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पीरियड्स से मेनोपॉज तक महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलाव कौन से हैं?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Manjari Khare द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/05/2021

    पीरियड्स से मेनोपॉज तक महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलाव कौन से हैं?

    महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलावों का सिलसिला पीरियड्स से मेनोपॉज तक जारी रहता है। पीरियड्स की शुरुआत लगभग 12 साल की उम्र में हो जाती है। कई लड़कियों को 10 साल या फिर 15 साल में भी पीरियड्स आते हैं। हर लड़की की बॉडी का शेड्यूल अलग होता है। सभी के लिए एक ही समय पर मासिक धर्म की शुरूआत नहीं होती। पीरियड्स शुरू होने के लगभग 2 साल पहले गर्ल्स में ब्रेस्ट डेवलपमेंट (Breast development) शुरू हो जाता है और लगभग 6 महीने पहले वजायनल (Vaginal discharge) डिस्चार्ज होने लगता है। ये महिलाओं के बॉडी में होने वाले सबसे शुरुआती बदलाव होते हैं। इसके बाद उन्हें कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक बदलावों से गुजरना पड़ता है। फिर चाहे वह पीरियड्स के दौरान या उसके पहले होने वाले हॉर्मोनल चेंजेस (Hormonal changes) हो, प्रेग्नेंसी के दौरान होना वाला मूड स्विंग या मेनोपॉज के समय आने वाले हॉट फ्लैशेज। इस आर्टिकल में हम महिलाओं में पीरियड्स से मेनोपॉज तक होने वाले बदलावों (Changes from periods to menopause) के बारे में बात करेंगे।

    पीरियड्स (Periods) की शुरुआत क्यों होती है?

    बॉडी में होने वाले हॉर्मोनल चेंजेंस की वजह से पीरियड्स की शुरुआत होती है। हॉर्मोन्स कैमिकल मैसेंजर हैं। ओवरी फीमेल हॉर्मोन्स ईस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्ट्रॉन (Progesterone) को रिलीज करती है। ये हॉर्मोन्स यूटेरस (Uterus) के लाइनिंग को बनाने के काम करते हैं। लाइनिंग बनने के बाद यह फर्टिलाइज्ड एग के लिए तैयार हो जाती है। अगर एग फर्टिलाइज नहीं होता है, तो यह लाइनिंग टूट जाती है और ब्लीडिंग होने लगती है। यही प्रॉसेस हमेशा चलता रहता है। जब तक महिला गर्भवती नहीं हो जाती। लाइनिंग को बनने और फिर टूटने में लगभग एक महीने का समय लगता है। इसलिए महिलाओं को एक महीने में पीरियड आते हैं। मासिक धर्म की शुरुआत होने के बाद हर महीने पीरियड्स आने के पहले और इसके दौरान महिलाओं में कुछ शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। पीरियड्स से मेनोपॉज तक बदलावों का सिलसिला जारी रहता है।

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    पीरियड्स के दौरान होने वाले हॉर्मोनल बदलाव (Hormonal changes during Menstruations)

    इसकी शुरुआत एंडोक्राइन ग्लैंड्स से होती है। यह ग्रंथि हॉर्मोन्स को प्रोड्यूस करती है, जो पीरियड का समय, मेंस्ट्रुअल फ्लो और रिप्रोडक्टिव ऑर्गन ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं ये निर्धारित करते हैं। मस्तिष्क का क्षेत्र जिसे हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) कहा जाता है, पिट्यूटरी ग्रंथि के माध्यम से नर्वस और एंडोक्राइन सिस्टम को कनेक्ट करता है। यह पीरियड्स के लिए जरूरी हॉर्मोन्स को भी कंट्रोल करता है। मेन्ट्रुअल साइकिल के दौरान हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) सबसे पहले गोनाडोट्रॉपिन रिलीजिंग हॉर्मोन (Gonadotropin-releasing hormone) (GnRH) को रिलीज करता है। इसकी वजह से पिट्यूटरी ग्रंथि में कैमिकल रिएक्शन होते हैं और ये फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन एवं ल्यूटेनाइजिंग हॉर्मोन को स्टिम्युलेट करते हैं। इन दोनों हॉर्मोन के स्टिम्युलेट होने पर ईस्ट्रोजन (Estrogen), प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) और टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) का उत्पादन होता है। यह ये हॉर्मोन एक साथ अच्छी तरह से काम करते हैं तो सामान्य मासिक धर्म चक्र होता है।

    इन हॉर्मोनल चेंजेंस के अलावा कुछ और बदलाव भी होते हैं। कुछ महिलाएं इस दौरान अलग अनुभव नहीं करती। वे एनर्जी लेवल और क्रिएटिविटी बढ़ने जैसे अनुभव करती हैं। वहीं ज्यादातर फीमेल्स इस दौरान नेगेटिव बदलाव जैसे कि मूड स्विंग्स (Mood swings), थकान, डिप्रेशन, ब्लोटिंग, ब्रेस्ट में पेन और सिर दर्द आदि का अनुभव करती हैं। ये प्रीमेंस्ट्रुअल अनुभव हल्के हो सकते हैं, लेकिन कई बार ये परेशानी का कारण बन सकते हैं।

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    मूड चेंजेंस (Mood Changes) और डिप्रेशन (Depression)

    पीरियड्स से मेनोपॉज तक (Women body changes from periods to menopause)

    पीरियड्स के पहले मूड चेंजेस का अनुभव करना कॉमन है। जिसमें हल्का डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन शामिल है। इन लक्षणों को मैनेज करना आसान है। सेल्फ केयर और नॉनमेडिकल टेक्निक के जरिए मूड चेंजेस को मैनेज किया जा सकता है। कैल्शियम (Calcium), विटामिन बी6 (Vitamin B6) सप्लिमेंट्स और कुछ हर्ब इन लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करती हैं। हालांकि किसी भी हर्ब और सप्लिमेंट्स का उपयोग डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं करना चाहिए। वहीं कुछ प्रकार के डायट्री चेंजेंस भी इन लक्षणों में राहत प्रदान कर सकते हैं। जिसमें नमक, शुगर, कैफीन खासतौर पर कॉफी, रेड मीट और एल्कोहॉल का कम उपयोग शामिल है। मसाज थेरिपी, रिफलैक्सोलॉजी भी इसमें मददगार साबित हो सकती है। पीरियड्स से मेनोपॉज तक होने वाले बदलावों में एक्सेप्ट करना सबसे जरूरी है।

    प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (PMS)

    कई महिलाओं प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम का अनुभव करती हैं। यह कंडिशन ऑव्युलेशन (Ovulation) के बाद और पीरियड्स के शुरू होने के पहले होती है। जिसमें एब्डॉमिनल ब्लोटिंग, फूड क्रेविंग्स, तनाव, ब्रेस्ट में सूजन, पीठ में दर्द, थकान जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। ये लक्षण पीरियड्स शुरू होने के एक हफ्ते पहले दिखाई देते हैं, जब ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन का लेवल काफी कम होता है।

    सीवियर क्रैम्प (Severe cramp)

    पीरियड्स के दौरान कई महिलाएं सीवियर क्रैम्पिंग की शिकायत करती हैं। क्रैम्पिंग (Cramping) के साथ ही अकसर जी मिचलाना और डायरिया की शिकायत भी हो जाती है। जिसका कारण प्रोस्टग्लैंडिन्स (Prostaglandins) का अधिक प्रोडक्शन और इसका अधिक मात्रा में रिलीज होना होता है। कुछ लोगों में इसका प्रोडक्शन ज्यादा तो किसी में कम होता है। ऐसा क्यों होता है। इसका कारण पता नहीं है।

    एक्सट्रीम ब्लीडिंग (Extream bleeding)

    कई महिलाएं पीरियड्स के दौरान हैवी ब्लीडिंग (Heavy bleeding) का अनुभव करती हैं। वैसे तो यह चिंता का कारण नहीं होता है, लेकिन अगर ब्लड क्लॉट के साथ हैवी ब्लीडिंग हो तो यह मेन्ट्रुएशन साइकल के पहले और बाद में हो तो इसे एब्नॉर्मल यूटेराइन ब्लीडिंग कहा जाता है। ऐसा होने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

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    गर्भावस्था के दौरान होने वाले बदलाव (Pregnancy changes)

    ओवरीज से निकलने वाले एग्स को जब स्पर्म (Sperm) द्वारा फर्टिलाइज कर दिया जाता है। तो भ्रूण का निमार्ण होता है। जब फर्टिलाइज एग यूटेरस में इंप्लांट हो जाता है, तो यह प्रेग्नेंसी हॉर्मोन को रिलीज करता है, जो यूटेरस की लाइन को ब्रेक होने से रोकता है। इसके बाद पीरियड्स आना बंद हो जाते हैं और महिलाओं की बॉडी में कई प्रकार के बदलाव आना शुरू हो जाते हैं। गर्भावस्था के हर ट्राइमेस्टर में कुछ अलग प्रकार के बदलाव देखे जाते हैं। जिसमें कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। जिसमें निम्न शामिल हैं।

    • मॉर्निंग सिकनेस (Morning sickness)
    • कब्ज (Constipation)
    • सीने में जलन और अपच
    • बार-बार यूरिन आना
    • थकान का एहसास
    • पीठ में दर्द
    • चक्कर आना
    • ब्रेस्ट के साइज में बदलाव और ब्रेस्ट पेन

    इसके साथ ही हर ट्राइमेंस्टर कुछ नए तरह के बदलाव सामने आते हैं। वहीं हर ट्राइमेस्टर में महिला का वजन बढ़ता है। तीसरे ट्राइमेस्टर में महिला का पेट काफी बढ़ा हो जाता है। जिसके कारण कई बार वे असहज महसूस कर सकती हैं। वहीं कई महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान मूड स्विंग, डिप्रेशन और चिंता का भी अनुभव करती हैं। कुल मिलाकर प्रेग्नेंसी का पूरा पीरियड बदलावों का ही रहता है। पीरियड्स से मेनोपॉज तक महिलाओं को कई प्रकार के बदलावों (Changes from periods to menopause) का सामना करना पड़ता है। प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं की बॉडी में जो बड़े बदलाव आते हैं, वे मेनोपॉज की शुरुआत में आते हैं। पीरियड्स से मेनोपॉज तक होने वाले बदलाव महिलाओं के लिए जरूरी भी हैं।

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    पीरियड्स से मेनोपॉज तक (Women body changes from periods to menopause)

    पेरीमेनोपॉज (Perimenopause)

    पीरियड्स से मेनोपॉज तक बदलावों (Changes from periods to menopause) का सिलसिला जारी रहता है। मेनोपॉज के बदलावों की शुरुआत होती है पेरीमेनोपॉज से। यह वह समय होता है जब बॉडी मेनोपॉज की तरफ बढ़ने के लिए तैयारी कर रही होती। पेरीमेनोपॉज को मेनोपॉजल ट्रांजिशन (Menopausal transition) भी कहते हैं। इस दौरान कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं जिनमें अनियमित पीरियड प्रमुख है। पेरीमेनोपॉज के लक्षण 40 साल की उम्र में दिखाई देने लगते हैं, लेकिन कुछ महिलाएं थर्टीज के मिड में लक्षणों को अनुभव कर सकती हैं। इस दौरान ईस्टोजन का लेवल असामान्य रूप से घटता बढ़ता रहता है। पीरियड्स से मेनोपॉज तक होने वाले बदलावों से महिलाएं परेशान हो सकती हैं, लेकिन ये बेहद जरूरी होते हैं।

    इन दौरान निम्न बदलाव दिखाई देते हैं।

  • हॉट फ्लैशेज और स्लीप प्रॉब्लम्स
  • मूड चेंजेस
  • वजायनल ड्रायनेस (Vaginal dryness) के कारण पेनफुल इंटरकोर्स (Painful intercourse)
  • सेक्स ड्राइव में कमी (Low sex drive)
  • फर्टिलिटी में कमी
  • बोन लॉस
  • मेनोपॉज (Menopause)

    मेनोपॉज वह समय है जब पीरियड्स आना बंद हो जाते हैं। मेनोपॉज तब डायग्नोस होता है जब 6 महीने से 1 साल तक पीरियड्स नहीं आते। मेनोपॉज 50 साल या इसके बाद शुरू होता है। यह एक नैचुरल बायोलॉजिकल प्रॉसेस है। जिसमें कई प्रकार के इमोशनल और फिजिकल चेंजेस नोटिस किए जाते हैं। जिसमें एनर्जी लेवल कम होना, इमोशनल हेल्थ प्रभावित होना, स्किन में बदलाव आना आदि शामिल हैं। इनके अलावा मेनोपॉज के दौरान निम्न बदलाव नोटिस किए जाते हैं।

    • रात को अत्यधिक पसीना आना
    • हॉट फ्लैशेस
    • कंपकंपी होना
    • नींद आने में परेशानी
    • मूड चेंजेस (Mood changes)
    • वजन का बढ़ना
    • मेटाबॉलिज्म का स्लो हो जाना
    • बालों का पतला होना
    • स्किन ड्राय होना (Dry skin)
    • ब्रेस्ट का ढीला हो जाना

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    इस प्रकार पीरियड्स से मेनोपॉज तक बदलावों (Changes from periods to menopause) का सिलसिला चलता रहता है, जिससे महिलाओं को दो चार होना पड़ता है। कभी ये बदलाव अच्छे लगते हैं तो कभी बुरे। जिस तरह बदलाव प्रकृति का नियम है उसी तरह ये बदलाव भी बॉडी के लिए जरूरी हैं। जिनसे घबराएं बिना इनका सामना करना चाहिए। अगर किसी भी प्रकार की परेशानी होती है, तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें और पीरियड्स से मेनोपॉज तक होने वाले बदलावों को स्वीकार कर लें।

    उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और पीरियड्स से मेनोपॉज तक (Changes from periods to menopause) महिलाओं की बॉडी में क्या बदलाव होते हैं इससे संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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