अगर आपको इनमे से कोई भी लक्षण महसूस हो रहे हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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किडनी कैंसर के कारण क्या होते हैं ?
किडनी कैंसर (Kidney cancer) क्यों होता है, इसके कारण स्पष्ट नहीं हैं। किडनी कैंसर कॉमन कैंसर माना जाता है। इसके कई रिस्क फैक्टर हो सकते हैं। डॉक्टर्स का किडनी कैंसर के बारे में कहना है कि किडनी की कुछ सेल्स में डीएनए में म्युटेशन होता है। म्युटेशन होने के कारण कोशिकाओं में तेजी से विभाजन होता है। विभाजन के बाद कोशिकाएं तेजी से बढ़ने लगती हैं। तेजी से बढ़ती सेल्स ट्युमर का विकास करती हैं। कुछ सेल्स टूट कर शरीर के दूसरे हिस्से में भी फैल जाती हैं। बढ़ती उम्र, मोटापा, स्मोकिंग और हाई ब्लड प्रेशर आदि किडनी कैंसर के रिस्क को बढ़ा सकते हैं।
गुर्दे में कैंसर के रिस्क फैक्टर क्या हैं ?
किडनी कैंसर के कई रिस्क फैक्टर हो सकते हैं जैसे,
अधिक उम्र के कारण गुर्दे में कैंसर का रिस्क
उम्र बढ़ने के साथ ही गुर्दे में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। कम उम्र में किडनी कैंसर के मामले रेयर होते हैं।
स्मोकिंग के कारण
स्मोकिंग के कारण शरीर को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गुर्दे में कैंसर भी उनमे से एक है। स्मोकिंग करने वालो को किडनी कैंसर का खतरा अधिक रहता है। अगर व्यक्ति समझदारी दिखाते हुए स्मोकिंग छोड़ दें तो किडनी कैंसर का जोखिम कम हो सकता है।
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मोटापे के कारण जोखिम
मोटापा अपने साथ कई बीमारियां लेकर आता है। जो लोग मोटापे से ग्रस्त हैं, उनमें अन्य व्यक्तियों के मुकाबले गुर्दे में कैंसर का खतरा अधिक रहता है।
हाई ब्लड प्रेशर के कारण जोखिम
हाई ब्लड प्रेशर के कारण भी गुर्दे में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। बेहतर रहेगा कि समय-समय पर ब्लड प्रेशर की जांच कराएं और जरूरत पड़ने पर रोजाना मेडिसिन भी लें।
किडनी फेलियर ट्रीटमेंट
जो व्यक्ति किडनी फेलियर ट्रीटमेंट ले रहे हैं, उनमें गुर्दे में कैंसर का खतरा अधिक रहता है। जो व्यक्ति लंबे समय से डायलिसिस पर हैं, उनमें किडनी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।
इनहेरिट सिंड्रोम के कारण
जो व्यक्ति किसी इनहेरिट सिंड्रोम के साथ पैदा हुए हैं, उनमें भी गुर्दे में कैंसर का खतरा बना रहता है। वॉन हिप्पेल-लिंडौ रोग, बर्ट-हॉग-ड्यूब सिंड्रोम, ट्यूब्युलर स्क्लेरोसिस कॉम्प्लेक्स, हेरिडिटरी पेपिलरी रीनल सेल कार्सिनोमा आदि किडनी कैंसर के रिस्क फैक्टर हो सकते हैं। जिन लोगों को ये सिंड्रोम फैमिली से मिले होते हैं, उनमे किडनी कैंसर होने का रिस्क बढ़ जाता है। परिवार में अगर किसी व्यक्ति को किडनी कैंसर है तो ये भी व्यक्ति के अंदर किडनी कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है।
कुछ पदार्थो का एक्सपोजर
अगर आप ऐसे वर्कप्लेस में काम करते हैं जहां कैडमियम (cadmium) या अन्य हर्बीसाइड्स का एक्पोजर होता है तो इस कारण भी गुर्दे के कैंसर का रिस्क बढ़ सकता है।
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गुर्दे के कैंसर का इलाज क्या है ?
गुर्दे में कैंसर का इलाज कई फैक्टर पर डिपेंड करता है।
- ओवरऑल हेल्थ
- किडनी कैंसर के प्रकार और अवस्था
- पर्सनल प्रिफरेंस के आधार पर
- कैंसर के पिछले ट्रीटमेंट के आधार पर
किडनी कैंसर ट्रीटमेंट के लिए सर्जरी
किडनी कैंसर ट्रीटमेंट के लिए सर्जरी पहला विकल्प है। सर्जन किडनी के सभी पार्ट को निकाल सकता है। साथ ही ट्युमर के आसपास के टिशू को भी निकाल सकता है। जरूरत के हिसाब से डॉक्टर लिम्फ नोड्स और अन्य टिशू को भी हटा सकता है। अगर व्यक्ति की एक किडनी सही है तो ट्युमर वाली किडनी को निकाला भी जा सकता है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में केवल छोटे चीरों की जरूरत होती है।
गुर्दे में कैंसर ट्रीटमेंट के लिए नॉनसर्जिकल ऑप्शन
गुर्दे में कैंसर से जूझ रहा व्यक्ति अगर कमजोर है और सर्जरी कराने की हालत में नहीं है तो उस व्यक्ति के लिए नॉन सर्जिकल ऑप्शन अपनाया जा सकता है।
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एम्बोलाइजेशन (Embolization)
इस प्रक्रिया में कैथेटर (नली) का यूज किया जाता है। कैथेटर की हेल्प से सिंथेटिक मैटीरियल को ब्लड वैसल्स में पहुंचाया जाता है। इस मैटीरियल की वजह से किडनी में ब्लड की सप्लाई बंद हो जाती है और ऑक्सिजन और न्युट्रिएंट्स भी नहीं पहुंच पाते हैं। इस कारण से ट्युमर सिकुड़ने लगता है।
क्रायोअब्लेशन (Cryoablation)
क्रायोअब्लेशन की प्रोसेस में डॉक्टर ट्युमर में छोटे चीरे लगाकर निडिल इंसर्ट करता है। निडिल में गैस होती है जो कैंसर कोशिकाओं को फ्रीज करने का काम करती है। फिर कोशिकाओं को गर्म करने का काम किया जाता है। ऐसा करने से कोशिकाएं धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं। ये प्रक्रिया दर्दनाक हो सकती है। ऐसा करने से अच्छी सेल्स भी डैमेज हो सकती हैं, साथ ही ब्लीडिंग और इंफेक्शन की समस्या भी हो सकती है।
कीमोथेरेपी (Chemotherapy)
कीमोथेरेपी में पावरफुल ड्रग का यूज किया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं पर हमला करती है और उन्हें समाप्त करने का काम करती है। कीमोथेरेपी की हेल्प से कैंसर प्रोग्रेस को रोका जा सकता है। ये दवाएं अक्सर पूरे शरीर को प्रभावित करती हैं और शरीर में प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ते हैं। एक बार उपचार खत्म हो जाने के बाद साइड इफेक्ट भी खत्म हो जाते हैं।
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इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy)
इम्यूनोथेरेपी की हेल्प से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है ताकि वो कैंसर से लड़ने में सक्षम हो सके। इसके साइड इफेक्ट के रूप में मतली, ठंड लगना, शरीर का टेम्परेचर बढ़ना और भूख कम लगना आदि समस्या हो सकती हैं।
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टार्गेट थेरेपी (Targeted therapy)
टार्गेट थेरेपी की हेल्प से स्पेसिफिक जीन को टार्गेट किया जाता है जो कैंसर के विकास में अहम रोल अदा करते हैं। थेरेपी की हेल्प से उन फंक्शन को भी इंटरप्ट किया जाता है, जो कैंसर ग्रोथ के लिए जिम्मेदार होते हैं।
रेडिएशन थेरेपी (Radiation therapy)
रेडिएशन थेरेपी का यूज आमतौर पर गुर्दे में कैंसर में नहीं किया जाता है। लेकिन रेडिएशन थेरेपी की हेल्प से कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोका जा सकता है। रेडिएशन की हेल्प से ट्युमर सिकुड़ जाता है। रेडिएशन के साइड इफेक्ट के रूप में मतली और थकान की समस्या शामिल हो सकती है।
अगर आपको भी उपरोक्त दिए गए लक्षणों में से किसी का एहसास होता है तो बेहतर होगा कि तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें। कैंसर का सही ट्रीटमेंट तभी हो पाता है, जब उसका जल्द पता चल जाए। गुर्दे में कैंसर की अधिक जानकारी के लिए एक बार डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।