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कैंसर की बीमारी एक ऐसी बीमारी है जिसके नाम से ही लोगों के मन में डर पैदा होता है। दुनिया में 2 करोड़ से ज्यादा लोग इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं। हर साल 90 लाख व्यक्ति इस लिस्ट में जुड़ जाते हैं। वहीं प्रति वर्ष इसके चलते 40 लाख लोग अपनी जान गवां बैठते हैं। बात करें भारत की तो भारत में हर एक लाख लोगों में से 70 से 80 लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। कैंसर एक व्यापक शब्द है जिसका इस्तेमाल कई विभिन्न बीमारियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर यह तब होता है जब शरीर में असामान्य कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं।
हेल्दी शरीर में खरबों कोशिकांए रोजाना विकसित और विभाजित होती हैं। ये हमारे शरीर को सुचारू रूप से काम करने के लिए बेहद जरूरी होती हैं। स्वस्थ कोशिकाओं की एक लाइफ साइकिल होती है, जिसमें नई कोशिका बनती हैं और पूरानी नष्ट हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में नई कोशिकाएं पुरानी या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं क्योंकि वे नष्ट हो चुकी होती हैं। कैंसर इस प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है। डीएन में परिवर्तन के कारण कोशिकाओं में आसामान्य वृद्धि होती है, जिससे शरीर सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाता है।
कैंसर की बीमारी 200 से अधिक प्रकार के होते हैं। कुछ कैंसर की बीमारी शरीर में बहुत धीरे बढ़ते हैं वहीं कुछ बहुत तेजी से बढ़ते हैं। ज्यादातर कैंसर शरीर के जिस हिस्से में होते हैं उसके नाम से जाने जाते हैं। जैसे ब्रेस्ट में होने वाले कैंसर को ब्रेस्ट कैंसर कहते हैं। ज्यादातर कैंसर ट्यूमर बनाते हैं लेकिन सभी ट्यूमर कैंसर वाले नहीं होते हैं।
नॉन-कैंसर ट्यूमर, बिनाइन ट्यूमर (benign tumor), या नॉन-मेलिग्नेंट ट्यूमर (non malignant tumor) शरीर के दूसरे हिस्से में नहीं फैलते हैं और न ही अन्य ट्यूमर बनाते हैं। जबकि कैंसर वाले ट्यूमर या मेलिग्नेंट ट्यूमर स्वस्थ कोशिकाओं को बाहर कर शरीर के कार्य में बाधा डालते हैं। इसके साथ ही शरीर के ऊतकों से पोषक तत्वों को निकालते हैं।
कैंसर मेटास्टेसिस प्रक्रिया के माध्यम से लगातार बढ़ता जाता है और फैलता जाता है, जिससे घातक कोशिकाएं लिमफेटिक और ब्लड वैसल्स के जरिए शरीर के दूसरे हिस्सों में नया ट्यूमर का निर्माण करता है।
कैंसर की बीमारी के प्रमुख प्रकार:
कार्सिनोमा (carcinoma): कार्सिनोमा सबसे अधिक पाए जाने वाला कैंसर है। यह त्वचा, फेफड़े, स्तन, अग्न्याशय और अन्य अंगों और ग्रंथियों में उत्पन्न होता है।
सारकोमा (sarcoma): सारकोमा मांसपेशियों या हड्डी के टिशू से शुरू होता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में शुरू हो सकता है। शरीर के जिस हिस्से से इसकी शुरुआत होती है वहा सूजन और मामूली दर्द की शिकायत होती है। धीरे-धीरे उसके आसपास के अंगों पर असर पड़ने लगता है। सबसे ज्यादा सारकोमा कैंसर मांसपेशियों, जोड़ों और पेट में पनपता है।
मेलेनोमा (melanoma): मेलेनोमा एक तरह का स्किन कैंसर है जो बेहद खतरनाक होता है। इसकी शुरुआत तिल के रूप में होती है। वक्त के साथ यह स्किन के अंदर नसों, लिवर, दिमाग, हड्डियों, लंग्स तक पहुंच जाता है।
लिम्फोमा (lymphoma): लिम्फोमा कैंसर की शुरुआत इम्यून सिस्टम के लिम्फोसाइट सेल्स से होती है। ये सेल्स शरीर के कई हिस्सों में होती हैं। इस कैंसर में लिम्फोसाइट सेल्स अनियिंत्रित तरीके से बढ़ने लगती हैं।
ल्यूकेमिया (leukemia): ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर होता है। इसमें शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या में आसामान्य वृद्धि होने लगती है। इसके अलावा ब्लड सेल्स के साइज भी बदलने लगता है। ये मामले बढ़ती उम्र में ज्यादा देखने को मिलते हैं। इस कैंसर की बीमारी में शरीर की इम्यूनिटी अत्यधिक कमजोर हो जाती है, जिससे मामूली वायरस भी जान के लिए घातक साबित हो सकता है।
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कैंसर की बीमारी के लक्षण जरूरी नहीं सभी में एक जैसे नजर आएं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इससे शरीर का कौन सा हिस्सा प्रभावित है।
कैंसर की बीमारी के कुछ सामान्य लक्षण:
यदि आपको उपरोक्त बताए लक्षणों में से या शरीर में किसी तरह का बदलाव नजर आए जो आपकी चिंता का कारण बन रहा हो तो तत्काल डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लें। कई बार बीमारियों के लक्षण हर व्यक्ति में भिन्न नजर आते हैं। ऐसे में चिकित्सा परामर्श लेना सबसे बेहतर है।
आमतौर पर यह जानना संभव नहीं है कि एक व्यक्ति में कैंसर की बीमारी क्यों विकसित होता है और दूसरे में नहीं। लेकिन कुछ शोध में ऐसे जोखिम कारक खे बारे में बताया गया है जो किसी व्यक्ति में कैंसर की बीमारी के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं। जोखिम वाले कारकों में रसायनों या अन्य पदार्थों के साथ-साथ कुछ आदते भी शामिल हैं। इनमें वे चीजें भी शामिल हैं जिन्हें लोग नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, जैसे उम्र और फैमिली हिस्ट्री। कुछ कैंसर फैमिली हिस्ट्री के कारण कैंसर सिंड्रोम का संकेत हो सकते हैं।
नीचे दी गई सूची में कैंसर के लिए सबसे अधिक संदिग्ध जोखिम कारक शामिल हैं। इनमें कुछ जोखिम कारक ऐसे हैं जिनसे बचा जा सकता है। वहीं कुछ से बचा नहीं जा सकता जैसे उम्र। किसी की उम्र को कभी रोका नही जा सकता है।
कैंसर की बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित में से कोई टेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं:
फिजिकल एग्जाम (Physical exam): हो सकता है डॉक्टर को आपके शरीर में कई गांठ महसूस हो जो ट्यूमर का संकेत दे सकती है। फिजिकल एगजाम के दौरान हो सकता है वह असामान्यताओं की तलाश करें जैसे त्वचा की रंगत बदलना या किसी अंग का बढ़ना आदि। ये कैंसर होने का संकेत हो सकता है।
लेबोरेटरी टेस्ट (Laboratory tests): लेबोरेटरी टेस्ट जैसे यूरिन या ब्लड टेस्ट करा सकते हैं। इसमें डॉक्टर उन खामियों का पता लगा पाएंगे जो कैंसर का कारण हो सकते हैं। जैसे कॉमन ब्लड टेस्ट कराने से बल्ड काउंट मालूम होता है। ल्यूकेमिया से पीड़ित लोगों की रिपोर्ट में व्हाइट ब्लड सेल्स का काउंट असामान्य हो सकता है।
इमेजिंग टेस्ट (Imaging Test): इमेजिंग टेस्ट में आपके आंतरिक अंगों और हड्डियों की जांच होती है। इमेजिंग परीक्षणों में सीटी स्कैन का टेस्ट, बोन स्कैन, एमआरआई, पीईटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड की प्रोसेस और एक्स-रे शामिल होते हैं।
बायोप्सी (Biopsy): बायोप्सी में टेस्ट के लिए डॉक्टर बारीकी से जांच के लिए शरीर से टिश्यू का सैंपल लेते हैं। सैंपल लेने के भी कई तरीके हैं। आपके लिए कौन-सा बायोप्सी का तरीका ठीक है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको कौन-सा कैंसर है।
वैसे तो कैंसर से बचाव का कोई निश्चित तरीका नहीं है। लेकिन शोधकर्ताओं ने इस खतरनाक बीमारी के जोखिम को कम करने के कई तरीकों के बारे में बताया है, जैसे:
धूम्रपान न करें: यदि आप सिगरेट पीते हैं तो उसे बंद कर दें। स्मोकिंग सिर्फ लंग्स कैंसर से ही नहीं और भी कई कैंसर से जुड़ा हुआ है। धूम्रपान न करके आप इस रोग के खतरे को कम कर सकते हैं।
हेल्दी डायट लें: अपनी डायट में सब्जियों और फलों को ज्यादा शामिल करें।
रोजाना व्यायाम करें: रोजाना एक्सरसाइज करके भी इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। प्रतिदिन आधा घंटा एक्सरसाइज जरूर करें ।
धूप में ज्यादा न रहें: सूरज से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणें स्किन कैंसर के जोखिम को बढ़ाती हैं। इसलिए जितना हो सके धूप में जाने से बचें। साथ ही बाहर निकलते समय ऐसे कपड़े पहनें जिससे पूरा शरीर ढका हुआ हो और सनस्क्रीन लगाएं।
अपने वजन को मेंटेन करके रखें: ओवरवेट या मोटापे से ग्रसित होने से भी इसकी संभावना बढ़ती है। इसलिए हेल्दी डायट और रोजाना एक्सरसाइज करके अपने वजन को मेंटेन रखें।
एल्कोहॉल का सेवन न करें: शराब पीना हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है यह तो हम सभी जानते हैं। कई शोध के अनुसार, इसके सेवन से मुंह, ओसोफेगल, लिवर, कोलोरेक्टल और ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है।
स्क्रीनिंग टेस्ट: समय समय पर स्क्रीनिंग टेस्ट कराते रहें। इससे शरीर में बढ़ने वाली आसामान्य कोशिकाओं से जुड़ी जानकारी मिल सकेगी। जिससे डॉक्टर को आपकी मेडिकेशन निर्धारित करने में मदद होगी।
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कैंसर मालूम होने के बाद डॉक्टर इसकी स्टेज का पता लगाते हैं। स्टेज का पता लगाने के बाद उसी अनुसार ट्रीटमेंट दिया जाता है। आमतौर पर कैंसर की पहली से लेकर चार स्टेज होती हैं। पहली स्टेज में इसका पता लगने पर आसानी से इलाज कर छुटकारा पाया जा सकता है।
कैंसर के इलाज के लिए नीचे बताएं ट्रीटमेंट ऑप्शन का उपयोग किया जाता है:
कैंसर और इसके उपचार में कई जटिलताएं हो सकती हैं, जिनमें शामिल हैं:
दर्द (Pain): कैंसर या कैंसर के इलाज के कारण आपको दर्द हो सकता है। हालांकि सभी कैंसर दर्दनाक नहीं होते हैं। दवाओं से आप कैंसर के कारण होने वाले दर्द से राहत पा सकते हैं।
सांस लेने में दिक्कत (Difficulty breathing): कैंसर या कैंसर के इलाज के दौरान हो सकता है आपको सांस की कमी का एहसास हो। उपचार से आपको इससे राहत मिल सकती है।
थकान (Fatigue): कैंसर पेशेंट्स में थकान की समस्या के कई कारण होते हैं लेकिन इसे मैनेज किया जा सकता है। कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी में थकान होना आम है।
शरीर में रासायनिक परिवर्तन (Chemical changes in body): कैंसर आपके शरीर में सामान्य रासायनिक संतुलन को डिस्टर्ब कर सकता है औऱ जोखिम को बढ़ा सकता है। रासायनिक असंतुलन के लक्षणों में अत्यधिक प्यास, लगातार यूरीन, कब्ज और कंफ्यूजन शामिल हो सकते हैं।
वजन कम होना (Weight loss): कैंसर सामान्य कोशिकाओं से भोजन चुराता है और उन्हें पोषक तत्वों से वंचित करता है। कई लोगों के कैंसर के इलाज के दौरान भारी डोसेज और थेरेपी के कारण वजन तेजी से गिर जाता है।
मतली (Nausea): कुछ कैंसर और कैंसर के उपचार मतली की स्थिति पैदा करते हैं। आपका डॉक्टर इस बात का अनुमान लगा सकता है कि उपचार के दौरान आपको मतली की दिक्कत होने की संभावना है। ऐसे में वह आपको दवा के जरिए इसे रोकने में मदद कर सकते हैं।
डायरिया और कब्ज (Diarrhea or constipation): कैंसर और कैंसर के इलाज से आपको डायरिया या कब्ज की शिकायत हो सकती है।
ब्रेन और नर्वस सिस्टम संबंधित परेशानियां(Brain and nervous system problems): कैंसर आस-पास की नसों पर दबाव डाल सकता है और आपके शरीर के एक हिस्से में दर्द या कार्य में बाधा डाल सकता है। मस्तिष्क को शामिल करने वाले कैंसर में सिरदर्द, शरीर में कमजोरी और स्ट्रोक की समस्या जैसे लक्षण हो सकते हैं।
कैंसर का वापस होना (Cancer that returns): कैंसर के ठीक होने के बाद उसके वापस होने की भी संभावना होती है। इसके लिए अपने डॉक्टर से बात करें कि कैसे आप कैंसर के वापस आने के खतरे को कम कर सकते हैं। कैंसर के वापस आने को ट्रेक करने के लिए समय समय पर स्कैन और टेस्ट कराते रहें।
हेयर लॉस (Hair loss): कैंसर के इलाज के लि कीमोथेरेपी काफी प्रचलित है। कीमो में कैंसर युक्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान बालों की जड़े कमजोर हो जाती हैं, जिस वजह से हेयरफॉल होता है। कैंसर के ट्रीटमेंट में दी जाने वाली कई दवाओं के साइड इफेक्ट से भी बाल झड़ने लगते हैं।
कैंसर की बीमारी के इलाज में होने वाली परेशानियों को कम करने में मदद करेंगी ये टिप्स:
एक्सरसाइज और कैंसर की बीमारी (Exercise and Cancer)
कैंसर से पीड़ित लोग एक्सरसाइज करके थकान, मांसपेशियों में तनाव और चिंता को नियंत्रित कर सकते हैं। इसके लिए आप सुबह सैर करने जा सकते हैं या स्वीमिंग भी ट्राय कर सकते हैं। ऐसा करने से आप बेहतर महसूस करेंगे। कई शोध में, कैंसर के उपचार के साथ एक्सरसाइज करने के अच्छे परिणाम देखे गए हैं। यदि आप कैंसर के इलाज के साथ एक्सरसाइज का प्लान कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि आप ऐसा अपने चिकित्सक की देखरेख में ही करें।
न्युट्रिशन, डायट और कैंसर (Nutrition, Diet, and Cancer)
रिसर्च के अनुसार, न्यूट्रिशन कैंसर की रोकथाम में भूमिका निभा सकता है। कई शोधों के अनुसार कैंसर के कई मामले खानपान की आदत से जुड़े होते हैं। जैसे कोलोरेक्टल कैंसर उन लोगों में ज्यादा होता है जो आहार में सब्जियों और फलों की जगह रेड मीट ज्यादा खाते हैं।
माइंड थेरेपी और कैंसर (Mind Therapy and Cancer)
कैंसर पेशेंट्स पर किए गए एक शोध के अनुसार, माइंड थेरेपी से कैंसर पेशेंट्स के बिहेवियर में सुधार देखने को मिले हैं। उनके दर्द, मतली, उल्टी और एंग्जायटी में भी सुधार हुआ। काउंसलिंग में अपनी परेशानी बताकर उन्हें रिलैक्स महसूस होता है। ये थेरेपी उनके अकेलेपन और चिंता को दूर कर उनकी रिकवरी में मदद करती है।
एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर (Acupuncture and Acupressure)
कैंसर के इलाज के दौरान होने वाली परेशानियों को कम करने के लिए एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर मदद कर सकते हैं। हालांकि ये बीमारी को ठीक करने का दावा नहीं करते हैं, लेकिन कई शोध में यह पुष्टि हुई है कि ये ट्रीटमेंट के दौरान होने वाले लक्षणों और दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं।
कैंसर से लड़ने के लिए हर्ब्स (Herbs to Fight Cancer)
कई ऐसे हर्ब्स हैं जो कैंसर के लक्षणों को दूर करने में मदद करते हैं। जैसे कैंसर के इलाज के दौरान उल्टी की शिकायत होता है। इसके लिए जिंजर और पेपरमिंट टी पीने की सलाह दी जाती है।
उपरोक्त दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।
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