बेसल इंसुलिन का इस्तेमाल डायबिटीज की बीमारी के लिए किया जाता है। आप चाहें तो डायबिटीज को कई तरीकों से मैनेज कर सकते हैं, इसके लिए हेल्दी डायट अपनाने के साथ रेगुलर एक्सरसाइज को जीवन में शामिल कर बीमारी से निजात पा सकते हैं। लेकिन कुछ मामलों में आपको ब्लड शुगर लेवल को मैनेज करने के लिए इंसुलिन के साथ दवाओं की जरूरत पड़ सकती है। मौजूदा समय में इंसुलिन लेने के दो तरीके हैं। पहला बोलस और दूसरा बेसल। बोलस से खुराक लेने पर तुरंत राहत मिलती है, इसे खाने के पहले लिया जाता है। वहीं बेसल से खुराक लेने पर लंबे समय पर ब्लड ग्लूकोज लेवल सामान्य रहता है। इसके तहत ग्लूकोज लेवल सुबह से रात तक सामान्य रहता है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो बेसल इंसुलिन का काम ब्लड ग्लूकोज लेवल को मेन्टेन रखना है, खासतौर पर व्रत और सोने के दौरान। जब भी कोई व्यक्ति व्रत करता है तो उस दौरान लिवर ग्लूकोज निकालता है, जो हमारी रक्तकोशिकाओं से होते हुए शरीर में जाता है। वहीं बेसल इंसुलिन इसी ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल में रखने का काम करता है।
यदि बेसल इंसुलिन का इस्तेमाल न किया जाए तो संभव है कि ग्लूकोज लेवल के बढ़ने से मरीज को इमरजेंसी उपचार की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में बेलस इंसुलिन यह सुनिश्चित करता है कि आपकी रक्तकोशिकाओं को दिनभर के लिए उतना ही ग्लूकोज मिले, जितना जरूरी है।
क्या है बेसल इंसुलिन (Basal insulin)
24 घंटे में हमारे शरीर में मौजूद पैनक्रियाज इंसुलिन की नियमित मात्रा तैयार करते हैं। वहीं बेसल इंसुलिन इसी की नकल कर शरीर में उतनी ही इंसुलिन की मात्रा का प्रवाह करता है जितना उसे जरूरी होता है। हमारे शरीर को जब कम इंसुलिन की आवश्यकता होती है जब हम कुछ खाते नहीं है। लेकिन शरीर को सुचारू रूप से काम करने के लिए इंसुलिन की जरूरत होती है। यदि पता चल जाता है कि आप डायबिटीज टाइप 2 की बीमारी से ग्रसित हैं तो ऐसे में आपका डॉक्टर आपको बेसल इंसुलिन लेने का सुझाव दे सकता है। दिनभर में इसका एक शाट पर्याप्त होता है। यदि डोज पर्याप्त नहीं होता है तो उस स्थिति में डॉक्टर आपको खाने के पहले डोज का सुझाव दे सकता है।
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बेसल इंसुलिन के प्रकार (Basal insulin types)
मौजूदा समय में बेसल इंसुलिन के तीन प्रकार हैं
इंटरमीडिएट एक्टिंग इंसुलिन (एनपीएच) (Intermediate-acting insulin, NPH)
यह ह्यूमेलिन और नोवोलिन (Humulin and Novolin) नामक ब्रैंड के नाम में उपलब्ध है। डॉक्टर सामान्य तौर पर इसे दिन में एक बार या दो बार डोज लेने का सुझाव देते हैं। सामान्य तौर पर इसे सुबह के खाने के समय खुराक लेने का सुझाव दिया जाता है। सुबह-शाम दोनों ही समय की खुराक की बात करें तो इंसुलिन लेने के चार से आठ घंटों तक असर रहता है। वहीं खुराक के 16 घंटों के बाद असर कम होने लगता है।
लांग एक्टिंग इंसुलिन (Long-acting insulin)
मौजूदा समय में दो प्रकार के इंसुलिन मार्केट में मौजूद हैं। पहला डेटेमिर जिसे लेवेमिर भी कहते हैं (detemir (Levemir) दूसरे को ग्लेरगीन कहते हैं, इसे टाउजीओ, लेंटस और बसगलर ( glargine (Toujeo, Lantus, and Basaglar) भी कहा जाता है। इस प्रकार के बेसल इंसुलिन एक बार इंजेक्ट होने के बाद 90 मिनट से लेकर चार घंटों तक असर दिखाते हैं। वहीं इंसान की रक्तकोशिकाओं में करीब 24 घंटों तक रहते हैं। कुछ लोगों में जहां इसका असर ज्यादा देर तक देखने को मिलता है तो कुछ लोगों में इसका असर कम देखने को मिलता है। इस दवा में इंसुलिन कोई पीक टाइम नहीं होता है, यह दिनभर एक सामान्य गति से इंसुलिन का प्रवाह करता है।
अल्ट्रा लांग एक्टिंग इंसुलिन (Ultra-long acting insulin)
2006 में एक अन्य बेसल इंसुलिन डिग्लुडेक (ट्रेसिबा) (degludec (Tresiba) नामक दवा अस्तित्व में आई। इस इंसुलिन का डोज लेने पर यह 30 से 90 मिनटों में ही असर दिखाने लगता था वहीं रक्तकोशिकाओं में करीब 42 घंटों तक रहता था। लंबे समय तक असर दिखाने वाले डेटेमिर और ग्लेरगीन की तुलना में यह इस इंसुलिन में कोई पीक टाइम नहीं था, यह सामान्य रूप से दिनभर असर दिखाता है।
डिग्लुडेक इंसुलिन दो स्ट्रेंथ में मौजूद है। पहला 100 यू/एमएल और 200 यू/एमएल, तो इसके इस्तेमाल को लेकर डॉक्टरी सलाह के साथ दवा पर लिखे दिशा निर्देशों को पढ़ना जरूरी होता है।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डॉक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।
इंसुलिन (Insulin) के इस्तेमाल को लेकर इन बातों पर दें ध्यान
जब भी आप तुरंत और लंबे समय तक बेसल इंसुलिन का चुनाव कर रहे हो तो निम्न बातों पर ध्यान देना जरूरी होता है। इसके तहत लाइफस्टाइल के साथ खुराक लेने की इच्छा जरूरी होती है। उदाहरण के तौर पर आप चाहें तो एनपीएच की खुराक के पहले इंजेक्शन ले सकते हैं, वहीं लंबे समय तक खुराक चाहते हैं तो उसके लिए इंसुलिन की अलग से इंजेक्शन लेनी होगी। आपका बॉडी साइज, हार्मोन लेवल, डायट, आपका पैनक्रियाज वर्तमान में इंसुलिन की कितनी मात्रा रिलीज करता है तमाम मापदंडों के आधार पर ही इंसुलिन के डोज का निर्धारण होता है।
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जानें बेसल इंसुलिन के क्या हैं फायदें (Benefits of Basal Insulin)
डायबिटीज की बीमारी से पीड़ित ज्यादातर लोग बेसल इंसुलिन की ही मांग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बेसल इंसुलिन की मदद से वो अपने ब्लड शुगर लेवल को आसानी से मैनेज कर पाते हैं। वहीं लाइफस्टाइल भी मैनेज कर पाते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक इंसुलिन का डोज लेता है तो उसे इंसुलिन पीक एक्टिविटी को लेकर घबराने की जरूरत नहीं होती है। वहीं जो व्यक्ति खाने से पहले इंसुलिन लेता है उसके लो ब्लड शुगर लेवल में उतार चढ़ाव की संभावना होती है, क्योंकि यदि आप समय से इंसुलिन डोज नहीं लेते हैं तो संभव है कि आप असहज महसूस करें।
इतना ही नहीं यदि आप सुबह से समय में अपने टार्गेट ब्लड शुगर लेवल को मेनटेन नहीं रख पा रहे हैं तो अच्छा यही होगा कि आप बेसल इंसुलिन को रात के समय सोने से पहले डोज लें, ऐसे में आपको इस समस्या से छुटकारा मिलेगी।
डोज संबंधी अन्य जानकारी
यदि आप बेसल इंसुलिन की मदद से खुराक लेने की सोच रहे हैं तो वर्तमान में तीन डोज के विकल्प मौजूद है। हर एक विकल्प के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू हैं। बेसल इंसुलिन की जरूरत हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकती है। तो आपके डॉक्टर और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट आपको सही डोज की सलाह दे सकते हैं।
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रात को सोने से पहले, सुबह-सुबह या दोनों ही समय एनपीएच डोज लेना
इंसुलिन का डोज काफी अहम रोल अदा करता है। क्योंकि ऐसा हो सकता है कि दोपहर के समय में या इसके आसपास के समय में इंसुलिन अपनी पीक पर हो, वहीं इस समय इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। इंसुलिन की यही आवश्यकता आपकी लाइफस्टाइल, खाने पीने का समय सहित अन्य एक्टिविटी पर निर्भर करता है। इसके कारण संभव है कि रात को सोते वक्त लो ब्लड शुगर लेवल के साथ दिन में लो और हाई ब्लड ग्लूकोज लेवल का एहसास हो।
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ग्लेरगीन, डिग्लुडेक की खुराक
इन बेसल इंसुलिन की बड़ी खासियत यही है कि इसका असर लंबे समय तक रहता है। लेकिन कुछ लोगों में यह देखा गया है कि डेटेमीर और ग्लेरगीन की खुराक लेने के 24 घंटों में असर कम हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जब भी आप दूसरा डोज लें तो उसमें हाई ब्लड ग्लूकोज लेवल को लें। लेकिन डिग्लुडेक तबतक अपना असर दिखाता है जब तक दूसरे डोज का समय नहीं आ जाता है।
इंसुलिन पंप का इस्तेमाल कितना है कारगर (How effective is insulin pump)
यदि आप इंसुलिन पंप से इंसुलिन की खुराक ले रहे हैं तो आप बेसल इंसुलिन की खुराक को लिवर फंक्शन के अनुसार एडजस्ट कर सकते हैं। लेकिन पंप थेरेपी का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि इसके इस्तेमाल से डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (diabetic ketoacidosis) होने की संभावना रहती है। ऐसा पंप में आई खराबी के कारण हो सकता है। यदि मशीन में किसी भी प्रकार की दिक्कत आ जाए तो संभावना है कि आपके शरीर को सही मात्रा में इंसुलिन न मिले। ऐसे में आपको यह बीमारी होने की संभावना रहती है। इसलिए जरूरी है कि डोज लेने को लेकर और डोज संबंधी बातों पर पहले से ही डॉक्टर से विचार विमर्श कर लिया जाए।
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बेसल इंसुलिन के दुष्प्रभाव को जानें (Side effects of Basal Insulin)
बेसल इंसुलिन का इस्तेमाल करने के कुछ साइड इफेक्ट भी हैं। दूसरे इंसुलिन का इस्तेमाल करने की तुलना में इस इंसुलिन का इस्तेमाल करने वाले लोगों को हायपोग्लाइसीमिया (hypoglycemia) की बीमारी के साथ वजन बढ़ सकता है।
इतना ही नहीं यदि व्यक्ति बेसल इंसुलिन के साथ कुछ दवा का सेवन करता है तो उसके बारे में भी डॉक्टर को जानकारी देनी चाहिए। संभव है कि बीटा ब्लॉकर्स (beta-blockers), ड्यूरेटिक्स (diuretics), क्लोनिडीन (clonidine), लीथियम साल्ट (lithium salts) का सेवन करने से बेसल इंसुलिन का इफेक्ट कम हो जाए। इसलिए जरूरी है कि इस डोज को लेने के पूर्व पहले से यदि आप दवा का सेवन कर रहे हैं तो डॉक्टरी सलाह जरूर लें वहीं एंडोक्रिनोलॉजिस्ट की सलाह भी जरूर लेनी चाहिए।
इंसुलिन को ऐसे करें स्टोर (How to store insulin)
इंसुलिन को स्टोर करने की बात करें तो इसे ज्यादा गर्म और ज्यादा ठंडी जगह पर स्टोर न करें। वहीं इसे सूर्य की किरणों से दूर रखने के साथ न ही फ्रिज में रखें और न ही कार में रखें। इस्तेमाल के पूर्व इसकी एक्सपायरी डेट पर ध्यान दें। इंजेक्शन में जब इंसुलिन डालें तो वो दिखनी चाहिए कि आप कितनी मात्रा डाल रहे हैं। वहीं इसके इस्तेमाल के बाद अच्छे से डिस्पोज करें। इसके लिए आप डॉक्टरी सलाह ले सकते हैं। न तो वाशरूम में फेंके और न ही कूड़े में न फेंके, पर्यावरण को नुकसान पहुंच सकता है।
डॉक्टरी सलाह के बाद अपने शरीर के अनुरूप ले सकते हैं बेस्ट दवा
डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए बेसल इंसुलिन रामबाण हो सकता है। वहीं इसका डोज लेकर वो डायबिटीज को आसानी से मैनेज कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए बस जरूरी है कि आप अपने डॉक्टर और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट की सलाह लेकर अपने शरीर के हिसाब से इंसुलिन का डोज तय करने के साथ कौन-सा बेसल इंसुलिन आपके शरीर को सूट करेगा और कौन-सा नहीं उसको लेकर पहले से ही चर्चा कर लें और उसी के अनुरूप दवा का डोज लें। आप चाहें तो अपनी लाइफस्टाइल में सुधार करने के साथ बेसल इंसुलिन को लेकर आप रोजमर्रा के कामकाज को आसानी से कर सकते हैं। इस इंसुलिन की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसका डोज बार-बार लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, एक बार यदि कोई इसका खुराक ले लें तो करीब 24 घंटों तक इसे अन्य डोज की आवश्यकता नहीं पड़ती है। लेकिन हर व्यक्ति का शरीर अलग-अलग है ऐसे में लोगों को डॉक्टरी सलाह लेने के बाद ही डोज लेना चाहिए।
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