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प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) कैसे किया जा सकता है?

Written by डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


अपडेटेड 28/01/2022

    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) कैसे किया जा सकता है?

    डायबिटीज की बीमारी किसी को भी हो सकती है। डायबिटीज कम उम्र में भी हो सकती है और अधिक उम्र में भी। इस बीमारी का सामना कभी भी करना पड़ सकता है। प्रेग्नेंसी से पहले अगर किसी महिला को डायबिटीज है, तो ऐसे में उसे डायबिटीज को कंट्रोल करना बहुत जरूरी हो जाता है। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबिटीज की समस्या होने वाले बच्चे को कई तरह के स्वास्थ्य संबंधी नुकसान पहुंचा सकती है। इससे भ्रूण की मृत्यु भी हो सकती है या फिर उसे कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) या गर्भावस्था में डायबिटीज मैनेजमेंट बहुत जरूरी होता है, ताकि प्रेग्नेंसी के दौरान मां या फिर बच्चे को किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े। आज इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) कैसे किया जाए और किन बातों का ध्यान रखा जाए।

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    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy)

    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट

    हमारे शरीर में अग्नाशय से इंसुलिन हॉर्मोन सिकरीट होता है। इंसुलिन हॉर्मोन ब्लड में शुगर के लेवल को मेंटेन रखने का काम करता है। अगर किसी कारण से इंसुलिन हॉर्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं निकल पाता है या फिर बिल्कुल ही निकलना बंद हो जाता है, तो डायबिटीज की समस्या हो जाती है। अगर प्रेग्नेंसी में डायबिटीज होती है, तो उसे जेस्टेशनल डायबिटीज के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि प्रेग्नेंसी में डायबिटीज को मैनेज करने के या प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) जनरल प्रिंसिपल क्या है।

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  • अगर किसी महिला को प्रेग्नेंसी के दौरान शुगर को कंट्रोल करना है, तो उसे कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। गर्भावस्था में या फिर गर्भावस्था के पहले ग्लाइसेमिक कंट्रोल की मॉनिटरिंग बहुत जरूरी है। जिन महिलाओं को पहले से ही डायबिटीज की समस्या है, उन्हें समय-समय पर ब्लड ग्लूकोज टेस्ट जरूर करना चाहिए।
  • एसीई इनहिबिटर, स्टेटिन, आदि का इस्तेमाल सेक्शुअली एक्टिव वुमन को नहीं करना चाहिए।
  • रेड ब्लड सेल्स के टर्नओवर में बढ़त सामान्य बिना प्रेग्नेंट महिलाओं की तुलना में गर्भावस्था में A1C कम होता है। प्रेग्नेंसी में A1C का लक्ष्य 6-6.5% (42-48 mmol/mol) है, जो <6% (42 mmol/mol) अधिकतम हो सकता है। यह महत्वपूर्ण हाइपोग्लाइसेमिया के बिना प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन हाइपोग्लाइसीमिया से बचने के लिए टारगेट को <7% (53 mmol/mol) तक कम किया जा सकता है।
  • डायबिटीज (Diabetes) और क्रॉनिक हायपरटेंशन (Chronic hypertension) से जूझ रही प्रेग्नेंट महिलओं का ब्लड प्रेशर टारगेट (Blood pressure targets) 120–160 / 80–105 मिमीएचएचजी सजेस्ट किया जा सकता है। ऐसा लॉन्ग टर्म मैटरनल हेल्थ और फीटल ग्रोथ के विकास में पैदा होने वाले खतरे को कम करने के लिए होता है।
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    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट:  प्रीकॉन्सेप्शन काउंसलिंग क्या है?

    जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान या फिर प्रेग्नेंसी के पहले डायबिटीज की समस्या किसी भी महिला को हो सकती है। ऐसे में कंसीव करने से पहले डायबिटीज के लिए टेस्ट जरूर कराएं और साथ ही कंसीव करने के बाद भी ब्लड शुगर का लेवल जरूर चेक कराएं। प्रेग्नेंसी के 10 सप्ताह में डायबिटीज की समस्या के कारण भ्रूण को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसमें एनेस्थली (anencephaly), माइक्रोसेफली (microcephaly), जन्मजात हृदय रोग (congenital heart disease) आदि बीमारियों का खतरा रहता है।

    रिप्रोडक्टिव एज की सभी महिलाओं को डायबिटीज से संबंधित रिस्क के बारे में जानकारी देनी चाहिए और साथ ही उन्हें बताना चाहिए कि अगर प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज की समस्या हो जाए, तो कौन-सी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। साथ ही इफेक्टिव प्रिकॉन्सेप्शन काउंसलिंग की मदद से होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को बेहतर बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।

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    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट: प्रीकॉन्सेप्शन टेस्टिंग (Preconception Testing) क्या है?

    प्रीकॉन्सेप्शन काउंसलिंग के साथ ही प्रीकॉन्सेप्शन टेस्टिंग भी बहुत जरूरी होती है। प्रीकॉन्सेप्शन टेस्टिंग में डायबिटीज स्पेसफिक टेस्टिंग A1C, थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (Thyroid-stimulating hormone), क्रिएटिनिन (Creatinine), यूरीनरी एल्बुमिन (urinary albumin) आदि की जांच की जाती हैं। पहले से मौजूद डायबिटिक रेटिनोपैथी वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कड़ी निगरानी की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि रेटिनोपैथी आगे नहीं बढ़े।

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    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट: लाइफस्टाइल मैनेजमेंट (Lifestyle Management) भी है जरूरी

    डायबिटीज डायग्नोज हो जाने के बाद ट्रीटमेंट के साथ ही मेडिकल न्यूट्रीशन थेरिपी (medical nutrition therapy), फिजिकल एक्टिविटी के साथ ही वेट मैनेटमेंट बहुत जरूरी हो जाता है। ये डॉक्टर प्रीजेस्टेशनल वेट के अनुसार ही जानकारी देंगे की आपको कितना वेट कम करना चाहिए या फिर मैनेज करना चाहिए। समय-समय पर ग्लूकोज मॉनिटरिंग भी बहुत जरूरी हो जाती है। स्टडी में ये बात सामने आई है कि केवल लाइफस्टाइल मैनेजमेंट से ही 70-85% महिलाएं जीडीएम ( GDM) को नियंत्रित कर सकती हैं। हाइपरग्लेसेमिया की ग्रेटर इनीशियल डिग्री वाली महिलाओं को फार्माकोलॉजिकल थेरिपी ( Pharmacologic Therapy) की प्रारंभिक शुरुआत की जरूरत हो सकती है।

    प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज होने पर डॉक्टर आपको कुछ मेडिसिंस के साथ ही इंसुलिन लेने की सलाह दी जा सकती हैं। डॉक्टर से जानकारी लें कि कैसे घर में रहकर ब्लड शुगर लेवल को चेक करना है और साथ ही इंसुलिन के इंजेक्शन (Injections of insulin) कब लेने हैं। अगर डॉक्टर ने आपको इंजेक्शन लेने की सलाह नहीं दी है, तो आपको इसे नहीं लेना चाहिए बिना डॉक्टर से जानकारी लिए कोई भी मेडिसिंस ना लें। साथ ही आपको डाइट में क्या लेना चाहिए और किन चीजों को हटा देना चाहिए इस बारे में डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। रोजाना एक्सरसाइज के साथ ही बैलेस्ड डायट लेना भी बहुत जरूरी है।

    डायबिटीज में डायट का चयन होता है अहम!

    प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) के दौरान डायट अहम होता है। डायबिटीज की समस्या में हेल्दी डायट का चुनाव बहुत अहम होता है। आपको खाने में हेल्दी कार्बोहाइड्रेट का चयन करना चाहिए। आप खाने में ब्रेड, राइस, पास्ता, होल ग्रेन कार्बोहाइड्रेट आदि का चयन कर सकते हैं। आपको आलू, फ्रैंच फाइज, सफेद चावल, कैंडी, सोडा के साथ ही दूसरे स्वीट्स को अवॉइड करना चाहिए। ये तेजी से ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ा देते हैं। आपको शुगर ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक्स (Energy drinks) और फ्रूट जूस की मात्रा को बिल्कुल सीमित कर देना चाहिए या फिर बंद कर देना चाहिए। लो कैलोरी स्वीटनर्स का इस्तेमाल आप कर सकते हैं

    डिलिवरी के बाद महिलाओं में अक्सर जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational diabetes) की समस्या ठीक हो जाती है लेकिन ध्यान न देने पर समस्या लंबे समय तक या हमेशा भी रह सकती है। समय पर बीमारी को डायग्नोज करने के साथ ही बीमारी का ट्रीटमेंट कराना डायबिटीज से छुटकारा पाने का उपाय है। हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज से कैसे निटपा जाए, इस बारे में जानकारी दी है। आपको डॉक्टर से इस संबंध के बारे में जानकारी लेनी चाहिए और साथ ही होने वाले बच्चे पर डायबिटीज से संबंधित रिस्क के बारे में भी जानकारी लेनी चाहिए।

    इस आर्टिकल में हमने आपको प्रेग्नेंसी में डायबिटीज मैनेजमेंट (Management Of Diabetes In Pregnancy) को लेकर जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्स्पर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।

     

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