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कहीं बढ़ता ब्लड शुगर लेवल हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का कारण ना बन जाए?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/12/2021

    कहीं बढ़ता ब्लड शुगर लेवल हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का कारण ना बन जाए?

    शरीर में किसी भी बीमारी की एंट्री को इग्नोर अगर किया जाए, तो स्थिति गंभीर होने की संभावना बनी रहती है। ठीक वैसे ही अगर डायबिटीज की समस्या पर ध्यान ना दिया जाए, तो बढ़ते और घटते शुगर लेवल बॉडी में अन्य कॉम्प्लिकेशन शुरू कर सकते हैं। ऐसी ही डायबिटीज कॉम्प्लिकेशन से जुड़ी एक समस्या है हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome[HHS])। यह स्थिति डायबिटीज पेशेंट की परेशानी बढ़ा सकती है और डायबिटिक कोमा जैसी स्थिति भी हो सकती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का इलाज नहीं किया जा सकता है। इसलिए आज इस आर्टिकल में हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम से जुड़े कई सवालों के जवाब जानेंगे।

    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम क्या है?
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं?
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के कारण क्या हैं?
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है?
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है?

    चलिए अब एक-एक कर हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (HHS) के इन ऊपर बताये सवालों के जवाब जानते हैं।

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    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome) क्या है?

    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम डायबिटीज मेलिटस (Diabetes mellitus) का सीरियस कॉम्प्लिकेशन है। अगर इसे आसान शब्दों में समझें, तो इसका अर्थ है जब किसी भी व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल ज्यादा वक्त तक अत्यधिक हाय रहता है, तो ऐसी स्थिति हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome [HHS]) कहलाती है। इस दौरान पेशेंट को जरूरत से ज्यादा प्यास लगती है और कंफ्यूजन जैसी स्थिति भी हो सकती है। ऐसी स्थिति ना हो इसलिए HHS के लक्षणों के बारे में जरूर जानना चाहिए। आर्टिकल में आगे इसके लक्षणों को समझने की कोशिश करेंगे, लेकिन उससे पहले HHS यानी हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के अलग-अलग नाम ये इस डायबिटीज कॉम्लिकेशन को कौन-कौन से अलग मेडिकल टर्म से जाना जाता है, इसे जान लेते हैं।

    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome) के अलग-अलग मेडिकल टर्म-

    • डायबिटिक एचएचएस (Diabetic HHS)
    • डायबिटिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Diabetic hyperosmolar syndrome)
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर नॉनकिटोटिक कोमा (Hyperglycemic hyperosmolar nonketotic coma [HHNK])
    • हायपरोस्मोलर कोमा (Hyperosmolar coma)
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर नॉनकिटोटिक सिंड्रोम (Hyperosmolar hyperglycemic nonketotic syndrome [HHNS]).
    • हायपरग्लायसेमिक हायपरग्लायसेमिक स्टेट (Hyperosmolar hyperglycemic state)
    • नॉनकिटोटिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Nonketotic hyperosmolar syndrome [NKHS])

    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के लिए ये अलग-अलग मेडिकल टर्म हैं और अब समझ लेते हैं इस बीमारी के लक्षणों को।

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    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome)

    एचएचएस की समस्या किसी भी व्यक्ति को हो सकती है हालांकि नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम की समस्या टाइप 2 डायबिटीज के पेशेंट ज्यादा शिकार होते हैं। हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम की समस्या होने पर ब्लड शुगर लेवल बिगड़ने के साथ-साथ निम्नलिखित शारीरिक परेशानी देखी जा सकती है। जैसे:

    • अत्यधिक प्यास लगना।
    • बार-बार टॉयलेट जाना
    • मुंह सुखना।
    • कमजोरी महसूस होना
    • नींद नहीं आना
    • त्वचा गर्म रहना, लेकिन पसीना नहीं आना।
    • जी मिचलाने की समस्या होना।
    • उल्टी होना।
    • बॉडी वेट कम होना।
    • पैरों में क्रैम्प (Leg cramp) आना।
    • देखने में परेशानी होना।
    • बोलने में समस्या होना।
    • मांसपेशियों (Muscles) का ठीक तरह से काम नहीं करना।
    • कंफ्यूजन में रहना।
    • भ्रम(Hallucinations) होना।

    इन लक्षणों के अलावा कई अन्य लक्षण भी देखे या महसूस किये जा सकते हैं, जिन्हें इग्नोर नहीं करना चाहिए। अगर इस बीमारी को इग्नोर किया जाए को तकलीफ कम होने की बजाये बढ़ सकती है।

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    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम की वजह से होने वाली परेशानी (Risk factor of Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome)

    अगर एचएचसी का ठीक से इलाज ना किया जाए, तो निम्नलिखित शारीरिक परेशानी या बीमारी का खतरा हो सकता है। जैसे:

    ऐसी स्थिति ना हो, इसलिए इसलिए इस बीमारी का इलाज करवाना और इसके कारणों को जानना बेहद जरूरी है।

    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के कारण क्या हैं? (Cause of Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome)

    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे:

    • ब्लड शुगर लेवल का जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना। ऐसा तब हो सकता है जब डायबिटीज का इलाज ठीक तरह से ना किया गया हो।
    • इंफेक्शन (Infection) की समस्या होना।
    • ऐसी दवाओं का सेवन करना, जो ग्लूकोस टोलेरेंस (Glucose tolerance) को कम करने में कारगर होते हैं या बॉडी में फ्लूइड (Fluid loss) लेवल को कम कर सकते हैं।
    • हालफिलाल के दिनों में सर्जरी होना।
    • स्ट्रोक की समस्या होना।
    • हार्ट अटैक (Heart attack) होना।
    • किडनी फंक्शन (Impaired kidney function) की समस्या होना।

    इन कारणों के अलावा हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के इन ऊपर बताये कारणों के अलावा अन्य कारण भी हो सकते हैं। एचएचएस के इलाज के लिए पहले टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है।

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    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है? (Diagnosis of HHS)

    एचएचएस के निदान के लिए निम्नलिखित टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। जैसे:

    मरीज को प्यास (Dehydration) कितनी लगती है, बुखार (Fever) आता है, ब्लड प्रेशर (Blood pressure) कम रहता है या ज्यादा और दिल की धड़कन (Rapid Heart rate) की जानकरी डॉक्टर लेते हैं। टेस्ट के दौरान डॉक्टर पेशेंट की मेडिकल हिस्ट्री और सेहत से जुड़ी जानकारी लेते हैं। इसके अलावा कुछ और टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। जैसे:

    • ब्लड शुगर (Blood sugar) टेस्ट
    • केटोन्स (Ketones) टेस्ट।
    • क्रिएटिनिन (Creatinine) टेस्ट।
    • पोटैशियम (Potassium) टेस्ट।
    • फॉस्फेट (Phosphate) टेस्ट।

    इन ऊपर बताये टेस्ट के अलावा डॉक्टर ब्लड शुगर लेवल की जानकारी के लिए ग्लायकेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट (Glycated Hemoglobin Test) भी करवाने की सलाह देते हैं। इस टेस्ट की मदद से पिछले 2 महीने की ब्लड शुगर लेवल की जानकारी मिल जाती है। टेस्ट के दौरन डॉक्टर यूरिन एनालिसिस (Urinalysis) भी की जा सकती है।

    इनसभी टेस्ट के रिपोर्ट्स को ध्यान में हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (HHS) की ट्रीटमेंट शुरू की जाती है।

    हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है? (Treatment for Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome)

    एचएचएस के इलाज के लिए निम्नलिखित विकल्प अपनाये जा सकते हैं। जैसे:

    • डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए वेन के माध्यम से फ्लूइड दी जा सकती है।
    • ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) को कम करने के लिए इन्सुलिन (Insulin) दी जा सकती है
    • बॉडी सेल्स को नॉर्मल तरीके से काम करने के लिए और आवश्यकता पड़ने पर पोटैशियम (Potassium), फॉस्फेट (Phosphate) या सोडियम (Sodium) रिप्लेसमेंट का विकल्प अपनाया जा सकता है।

    नोट: हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम के इलाज के दौरान पेशेंट की उम्र, हेल्थ कंडिशन एवं बीमारी की गंभीरता को ध्यान में रखकर किया जाता है।

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    डायबिटीज से पीड़ित लोगों को अपने आहार का विशेष ख्याल रखना चाहिए। नीचे दिए इस क्विज को खेलिए और जानिए डायबिटीज और डायट (Diabetes and diet) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।

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    अगर आप हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome) से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर पूछ सकते हैं। हमारे हेल्थ एक्सपर्ट आपके सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगे। हालांकि अगर आप हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome) की समस्या से पीड़ित हैं, तो डॉक्टर से कंसल्टेशन करें, क्योंकि ऐसी स्थिति में डॉक्टर आपके हेल्थ कंडिशन को ध्यान में रखकर हायपरग्लायसेमिक हायपरोस्मोलर सिंड्रोम (Hyperglycemic Hyperosmolar Syndrome) ट्रीटमेंट जल्द से जल्द करेंगे।

    स्वस्थ रहने के लिए अपने दिनचर्या में नियमित योगासन करें। योग से जुड़ी खास जानकारी और योग को कैसे अपने जीवन में नियमित शामिल किया जा सकता है, ये बता रहीं हैं नीचे दिए इस वीडियो लिंक में योगा एक्सपर्ट पारमिता सिंह।

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