इंसुलिन एक तरह का हॉर्मोन है, जिसका निर्माण पैंक्रियाज करता है। बॉडी में ग्लूकोज लेवल को बैलेंस बनाये रखने में इंसुलिन की खास भूमिका होती है। बढ़ते वजन और जेनेटिक कारणों की वजह से देश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और डायबिटीज पेशेंट्स के लिए जरूरी होता है इंसुलिन। अगर किसी भी कारण से शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाए, तो टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) कराना जरूरी हो जाता है।
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- इंसुलिन टेस्ट क्या है?
- इंसुलिन टेस्ट क्यों किया जाती है?
- इंसुलिन टेस्ट के पहले क्या होता है?
- इंसुलिन टेस्ट के दौरान क्या किया जाता है?
- इंसुलिन टेस्ट के बाद क्या होता है?
- इंसुलिन टेस्ट के जोखिम क्या हैं?
- इंसुलिन टेस्ट के रेंज क्या है?
चलिए अब इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) से जुड़े इन सभी सवालों का जवाब जानते हैं।
इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) क्या है?
इंसुलिन ह्यूमन बॉडी में अलग-अलग रूपों में उपस्थित होता है। इंसुलिन टेस्ट की सहायता से टोटल एवं फ्री दो अलग-अलग तरह के इंसुलिन लेवल की जांच की जाती है। शरीर में उपस्थित टोटल इंसुलिन शरीर में मौजूद अन्य प्रोटीन से जुड़ा होता है। टोटल इंसुलिन (Total insulin) वैसे डायबिटीज पेशेंट में मौजूद होता है, जिनका इलाज इंसुलिन की सहायता से किया जा रहा हो। वहीं अगर फ्री इंसुलिन (Free insulin) की बात करें, तो यह प्रोटीन से जुड़ा नहीं होता है। टोटल इंसुलिन में दोनों तरह के इंसुलिन उपस्थित हो सकते हैं। अब ऐसी स्थिति में इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) क्यों किया जाता है, यह समझना बेहद आवश्यक होता है।
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इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) क्यों किया जाता है?
इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) इन्सुलिन लेवल की जांच के लिए किया जाता है। इंसुलिन एक तरह का हॉर्मोन होता है, जो सेल्स में ग्लूकोस को ले जाने का काम करता है। डायबिटीज पेशेंट इंसुलिन लेवल (Insulin level) पर डॉक्टर नजर बनाए रखते हैं और इंसुलिन के उत्पादन को देखते हुए इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) रिकमेंड करते हैं। अगर इंसुलिन से जुड़ी समस्या होती है, तो ऐसी स्थिति में इंसुलिन टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है।
इंसुलिन टेस्ट निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है
- प्रीडायबिटीज (Prediabetes) स्थिति होने पर।
- टाइप टू डायबिटीज (Type 2 Diabetes) की समस्या होने पर।
- पीसीओएस (PCOS) की समस्या होने पर।
- हार्ट डिजीज (Heart disease) की समस्या होने पर।
- मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome) की समस्या होने पर।
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इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) के पहले क्या होता है?
इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) से पहले पेशेंट को भूखे रहने की सलाह दी जाती है। ज्यादातर डॉक्टर टेस्ट के 8 घंटे पहले से ही खाने पीने पर पाबंदी लगा सकते हैं। हालांकि कुछ केसेस में ऐसा नहीं होता है। इसके साथ ही इस दौरान पेशेंट को ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप किसी भी तरह की दवाओं (Medication) या हर्बल सप्लिमेंट्स (Herbal supplements) का सेवन करते हैं, तो इसकी जानकारी अपने डॉक्टर को अवश्य दें, क्योंकि डॉक्टर पेशेंट की हेल्थ कंडिशन (Health Condition) को ध्यान में रखते हुए इन मेडिकेशन को भी नहीं लेने की सलाह दे सकते हैं।
इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) के दौरान क्या किया जाता है?
इंसुलिन टेस्ट की प्रक्रिया ब्लड टेस्ट (Blood test) की तरह है। इस टेस्ट के दौरान पेशेंट के आर्म पर एक एलास्टिक बांधी जाती है, जिससे नर्व आसानी से दिखाई देते हैं। अब उस एरिया को कॉटन की सहायता से डॉक्टर या नर्स क्लीन करते हैं और फिर निडिल की सहायता से ब्लड सेंपल लेते हैं। इस दौरान हल्का दर्द या चुभन महसूस हो सकता है।
इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) के बाद क्या होता है?
इंसुलिन टेस्ट के बाद सुई वाली जगह पर कॉटन या छोटी सी बैंडेज लगाई जाती है, जिससे ब्लड निकलने का खतरा कम हो जाता है। अब डॉक्टर या नर्स पेशेंट को कुछ देर तक हॉस्पिटल रुकने की सलाह देते हैं। अगर पेशेंट को इस दौरान चक्कर या घबराहट महसूस हो रही है, तो कुछ देर तक एक ही जगह पर बैठना चाहिए। वैसे इंसुलिन टेस्ट के 10 से 15 मिनट के बाद आप फ्री जाएंगें।
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इंसुलिन टेस्ट के जोखिम क्या है? (Risk factor of Insulin test)
इंसुलिन टेस्ट के जोखिम निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे:
- इंजेक्शन वाली जगह से खून (Blood) निकलना।
- निशान (Patch) पड़ना।
- चक्कर (Dizziness) आना।
- बेहोश (Faint) होना।
- इंफेक्शन (Infection) का खतरा होना।
ऊपर बताई गई तकलीफ कुछ मिनटों में अपने आप ठीक हो जाती है। बस इस दौरान पैनिक ना करें।
इंसुलिन टेस्ट की रेंज क्या है? (Range of Insulin)
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार डायबिटीज या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित ना होने पर ब्लड शुगर लेवल फास्टिंग (Fasting blood sugar level) में 70-99 मिलीग्राम / डीएल के बीच होना चाहिए। वहीं खाने के तकरीबन दो घंटे बाद ब्लड शुगर लेवल (Non fasting blood sugar level) 140 मिलीग्राम / डीएल से अधिक नहीं होना चाहिए।
इंसुलिन टेस्ट (Insulin test) कब करवाना आवश्यक है?
इंसुलिन टेस्ट निम्नलिखित स्थितियों में डॉक्टर से कंसल्टेशन के बाद करवाया जा सकता है। जैसे:
- अत्यधिक भूख लगने पर।
- जरूरत से ज्यादा प्यास लगने पर।
- बार-बार टॉयलेट जाने पर।
- हाथ-पैर सुन्न पड़ने पर।
- बिना कारण थकने पर।
- बार-बार इंफेक्शन (Infection) होने पर।
इन ऊपर बताई स्थितियों में इंसुलिन टेस्ट करवाई जा सकती है।
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ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने के लिए क्या करें? (Tips to control blood sugar level)
ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने के लिए पनीर डोडा का सेवन करें और साथ ही निम्नलिखित टिप्स भी फॉलो करें। जैसे:
- शरीर का वजन (Weight) संतुलित रखें।
- मीठे (Sweets) के सेवन से दूरी बनायें।
- नियमित आधे घंटे टहलें (Walk) या योग (Yoga) या एक्सरसाइज (Workout) करें।
- ब्लड शुगर लेवल (Blood Sugar Level) समय-समय पर चेक करें।
- तनाव (Tension) से दूर रहें।
- तेल-मसाले या प्रोसेस्ड फूड (Processed food) का सेवन ना करें।
- डायबिटीज की दवाओं (Diabetes medicine) का सेवन समय पर करें।
- इंसुलिन इंजेक्शन (Insulin injection) समय पर लें।
- शुगर लेवल बढ़ाने वाले फलों (Fruits) का सेवन न करें।
- 7 से 9 घंटे की नींद रोजाना लें।
ध्यान दें
अगर आपको इंसुलिन या फिर टाइप 1 डायबिटीज के बारे में अधिक जानकारी चाहिए, तो आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। बेहतर लाइफस्टाइल, वेट को कंट्रोल कर और पौष्टिक आहार का सेवन (Eating nutritious food) कर आप डायबिटीज के खतरे को कम कर सकते हैं।
डायबिटीज की समस्या होने पर हेल्दी डायट (Healthy diet) फॉलो करना बेहद जरूरी है। डॉक्टर से द्वारा प्रिस्क्राइब्ड ड्रग्स भी समय पर लें और नियमित योगासन करें। योग के फायदे और करने का तरीका जानिए नीचे दिए इस वीडियो लिंक में।
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