तनाव कम करने के लिए आपको प्राणायम (pranayamas) यानी ध्यान (meditation) और ब्रिदिंग एक्सरसाइज (breathing exercises) की भी सलाह दी जा सकती है।
आयुर्वेदिक डायट (Ayurvedic diet)

पीसीओएस के लक्षणों में सुधार के लिए आपको खास डायट प्लान (Diet plan) अपनाने की भी सलाह दी जा सकती है।
- सैचुरेटेड फैट जैसे रेड मीट और तली हुई चीजों का सेवन कम करें।
- खाने में नमक की मात्रा कम करें।
- डायट में अधिक मात्रा में फल, सब्जियां और साबूत अनाज को शामिल करें।
- रिफाइन्ड शुगर, मीठे पदार्थ और आर्टिफिशियल स्वीटनर का सेवन न करें।
- करेले की सब्जी खाएं या जूस पीएं। इससे ब्लड शुगर लेवल (blood sugar levels) नियंत्रित रहता है। आंवले का सेवन करना भी फायदेमंद होता है।
- मेथी के पत्ते (Fenugreek leaves) और तुलती की पत्तियां भी इंसिलन लेवल को नियंत्रित रखती है। दरअसल, पीसीओएस मरीजों के शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है क्योंकि कोशिकाएं इसका इस्तेमाल नहीं कर पाती जिससे ब्लड शुगर लेवल हाय हो जाता है।
- एक ग्लास पानी में एक चम्मच शहद (honey) और नींबू (lemon) का रस मिलाकर पीना भी फायदेमंद होता है इससे वजन कंट्रोल में रहता है।
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योग करें (Yog in PCOS)
पीसीओएस में नियमित रूप से योग करना भी फायदेमंद होता है। निम्न आसनों से आपको फायदा होगा।
प्राणायाम – जब आप नियमित रूप प्राणायाम करते है तो शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति बनी रहती है।
कपालभाति – यह पाचन तंत्र को ठीक रखता है। यह पेट की मांसपेशियों को एक्टिव करता है, जिससे पाचन क्रिया ठीक रहती है।
सूर्य नमस्का र- सूर्य नमस्कार करने से शरीर के सभी हिस्से को फायदा होता है।
शवासन – रात को सोने के समय 2 से 3 मिनट तक शवासन करने से तनाव दूर होता है और नींद अच्छी आती है।
अन्य टिप्स
- डेली कम से कम आधे घंटे फिजिकल एक्टिविटी जैसे वॉकिंग या एक्सरसाइज करना जरूरी है। इससे बॉडी एक्टिव रहती है और मूड भी अच्छा रहता है।
- आयरन और कैल्शियम की पूर्ति के लिए रोजाना दूध का सेवन करें।
- पूरे गुनगुना पानी पीएं। फ्रिज की ठंडी चीजें न खाएं।
- आयुर्वेद के मुताबिक पहले भोजन के बीच गैप होना जरूरी है। जब तक पहले का खाना पच न जाए दोबारा भोजन न करें।
- हमेशा घर का बना शुद्ध और ताजा खाना ही खाएं।
- बाहर का खाना और मैदे से बनी चीजों से परहेज करें।
- मौसम के अनुसार फल और सब्जियों का सेवन करना जरूरी है।
- रोज़ाना सुबह खली पेट एक चम्मच घी का सेवन करें।
- नाभि को तिल, सरसो या नारियल के तेल से पूरण करें जिससे आपका पूरा एब्डोमिनल एरिया अच्छे से काम करता है। नाभि पूरण एक आर्युवेदिक तकनीक है जिसमें नाभि में तेल भरा जाता है। पीरियड्स के दौरान पेट के निचले हिस्से पर तिल के तेल से मालिश करने से इस दौरान बहाव ठीक रहेगा।
पीसीओएस सबफर्टिलिटी का आयुर्वेदिक उपचार (PCOS subfertility ayurvedic treatment)
सबफर्टिलिटी (Subfertility) उस स्थिति को कहते हैं जब कोई महिला गर्भधारण की कोशिश करती है, लेकिन कंसीव करने में देरी होती है। ऐसा पीसीओएस के कारण हो सकता है। कुछ रिसर्च सबफर्टिली में आयुर्वेदिक उपचार को कारगर मानते हैं। सबफर्टिलिटी के लिए 6 महीने के प्रोग्राम से फायदा हो सकता है जिसमें शामिल है-
- शोधन (यह डिटॉक्सिफिकेशन और प्यूरीफिकेशन प्रक्रिया है)
- शमां (दर्दनिवारक उपचार जो लश्रणों की असहजता को कम करता है)
- तर्पण (Tarpana)
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पीसीओएस से बचाव के लिए जीवनशैली में बदलाव है जरूरी (Lifestyle changes)
पीसीओएस का मुख्या कारण हार्मोनल बदलाव है और हार्मोनल बदलाव को जीवनशैली में बदलाव (Lifestyle changes) करके कुछ हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। अपना वजन नियंत्रित करके आप ब्लड शुगर लेवल और एंड्रोजन हार्मोनल की मात्रा को बढ़ने से रोक सकती है। लो फैट और हाई कार्बोहाइड्रेट वाली चीजों को डायट में शामिल करें और फिजिकली एक्टिव रहें।
पीसीओएस के लिए आयुर्वेदिक उपचार (PCOS ayurvedic treatment) कारगर तो होता है, लेकिन अपनी मर्जी से कोई भी दवा या जड़ी-बूटी का इस्तेमाल करना हानिकारक हो सकता है। इसलिए समस्या का पता चलने पर किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह लें और उसके बाद ही पीसीओएस के लिए आयुर्वेदिक उपचार (PCOS ayurvedic treatment) शुरू करें।