परिचय
रेक्टल कैंसर (Rectal Cancer) क्या है?
रेक्टल कैंसर (Rectal Cancer) वह कैंसर होता है जो मलाशय की कोशिकाओं में विकसित होता है। रेक्टम और कोलन दोनों ही हमारी पाचन प्रणाली का हिस्सा होते हैं और अक्सर इन दोनों में होने वाले कैंसर को एक साथ कोलोरेक्टल कैंसर कहा जाता है।
रेक्टल कैंसर (Rectal Cancer) वह कैंसर है, जो रेक्टम की कोशिकाओं में होता है। रेक्टम बड़ी आंत का सबसे आखिरी सिरा होता है। आमतौर पर रेक्टल कैंसर को कोलोन कैंसर के साथ जोड़ा जाता है।
इन्हें कोलोरेक्टल कैंसर (colorectal cancer) भी कहा जाता है। रेक्टल कैंसर उन कोशिकाओं में शुरू होता है, जो रेक्टम के भीतर लाइनिंग बनाती हैं। अक्सर रेक्टल कैंसर प्रीकैंसेरियस (polyps) के रूप में पैदा होता है।
रेक्टल कैंसर (Rectal Cancer) या मलाशय का कैंसर कितना सामान्य है?
इस प्रकार का कैंसर महिला और पुरुषों में सबसे ज्यादा सामान्य है। रेक्टल कैंसर कई मामलों में आपके लिए एक गंभीर समस्या खड़ी कर सकता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, प्रति 1,00,000 पुरुष और महिलाओं में कोलोन कैंसर और रेक्टल कैंसर के आंकड़े क्रमशः 4.4 और 4.1 प्रतिशत हैं।
वर्षिक आधार पर प्रति 1,00,000 महिलाओं में कोलोन कैंसर की वार्षिक दर 3.9 % है। वहीं, पुरुषों में कोलोन कैंसर आठवें और रेक्टल कैंसर 9वें पायदान पर है। उपरोक्त आंकड़ें कहीं न कहीं गंभीर चिंता का विषय हैं। यदि आप इसको लेकर चिंतित हैं तो रेक्टल कैंसर की अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
विश्वभर में कोलोरेक्टल कैंसर महिलाओं में दूसरा और पुरुषों में तीसरा होने वाला सबसे सामान्य कैंसर है।
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रेक्टल कैंसर या मलाशय का कैंसर की स्टेज क्या हैं?
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कैंसर किस तरह से शुरु हुआ है। डीएनए में किस तरह से परिवर्तन होता है, इसके कारण अभी ज्ञात नहीं हुए हैं।
कैंसर सेल्स की ग्रोथ के बाद ये धीरे-धीरे अच्छी सेल्स को भी डैमेज करने लगता है। टिशू, लिम्फ सिस्टम, ब्लड स्ट्रीम के माध्यम से कैंसर बॉडी के अदर पार्ट में भी फैलने लगता है। कैंसर की स्टेज के बारे में जानकारी मिलने पर इसके इलाज के दौरान सुविधा मिलती है।
रेक्टल कैंसर या मलाशय का कैंसर के चरण
- स्टेज 0 – रेक्टल कैंसर की स्टेज 0 में रेक्टम वॉल में कुछ असामान्य कोशिकाएं दिखना शुरू हो जाती हैं।
- रेक्टल कैंसर की स्टेज 1 – रेक्टल कैंसर की स्टेज 1 में कैंसर सेल्स रेक्टम वॉल के बाहर की ओर फैल जाती हैं लेकिन लिम्फ नोड्स में नहीं। इसे कैंसर की स्टेज 2A भी कह सकते हैं। स्टेज 2B में कैंसर एब्डॉमिनल लाइनिंग में फैलता है।
- रेक्टल कैंसर की स्टेज 3 – रेक्टल कैंसर की स्टेज 3 में कैंसर सेल्स रेक्टम की आउटर मोस्ट लेयर में फैल चुका होता है और साथ ही ये लिम्फ नोड्स में भी नजर आने लगता है। स्टेज 3 को लिम्फ नोड्स के प्रभावित क्षेत्र के आधार पर 3A, 3B और 3C में बांटा गया है।
- रेक्टल कैंसर की स्टेज 4 – रेक्टल कैंसर की फोर्थ स्टेज में कैंसर सेल्स शरीर के अन्य स्थानों में फैल जाती हैं जिसमे लंग और लिवर भी शामिल हैं।
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लक्षण
रेक्टल कैंसर के क्या लक्षण हैं?
रेक्टल कैंसर के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं –
- मल त्याग में बदलाव आना जैसे डायरिया, कब्ज या बार-बार पेशाब आना
- मल में ब्लड दिखाई देना
- मल में म्युकस दिखना
- पतला मल आना
- पेट साफ करते वक्त दर्द होना
- पेट में एक गांठ महसूस होना
- अचानक वजन कम होना
- पेट में दर्द की समस्या
- शरीर में आयरन की कमी होना
- पेट में सूजन दिखाई पड़ना
- उल्टी आना
- थकान महसूस होना
- लिम्फ नोड में सूजन आना
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उपरोक्त लक्षणों के अलावा भी रेक्टल कैंसर के कुछ लक्षण हो सकते हैं, जिन्हें ऊपर सूचीबद्ध नहीं किया गया है। यदि आप रेक्टल कैंसर के लक्षणों को लेकर चिंतित हैं, तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। हालांकि, हर व्यक्ति को रेक्टल कैंसर में अलग-अलग लक्षणों या संकेतों का अनुभव हो सकता है। जरूरी नहीं है कि किसी एक व्यक्ति में नजर आने वाले लक्षण किसी अन्य में समान रूप से नजर आयें।
मुझे डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
यदि आपको उपरोक्त लक्षणों या संकेतों में से किसी एक का अनुभव होता है तो अपने डॉक्टर से परामर्श लें। रेक्टल कैंसर के मामले में हर व्यक्ति की बॉडी अलग ढंग से प्रतिक्रिया दे सकती है। अपनी स्थिति की बेहतर जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह लेना उचित होगा।
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कारण
रेक्टल कैंसर का क्या कारण है?
रेक्टल कैंसर के प्रमुख रूप से दो कारण हैं, जो निम्नलिखित हैं:
इनफ्लेमेटरी बाउल डिजीज
इस बीमारी (अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग) से पीढ़ित लोगों में रेक्टल कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। लंबे वक्त तक किसी व्यक्ति को यह बीमारियां होने से रेक्टल कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है और इनफ्लेमेशन की गंभीरता बदतर हो जाती है।
उच्च जोखिम वाले समूहों में एस्पिरिन के साथ रोकथाम और नियमित कोलोनस्कोपी कराने का सुझाव दिया जाता है।
जेनेटिक्स
किसी परिवार में माता पिता या भाई बहनों को रेक्टल कैंसर की फैमिली हिस्ट्री के मामले में रेक्टल कैंसर होने का खतरा दो या तीन गुना रहता है। सभी प्रकार के रेक्टल कैंसर के मामलों में इनका आंकड़ा करीब 20% है। रेक्टल कैंसर के हाई रेट (उच्च दर) के साथ कई जेनेटिक सिंड्रोम भी जुड़े रहते हैं।
हेरीडिटरी नॉनपोलिपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर (HNPCC)
HNPCC को लिंच सिंड्रोम भी कहा जाता है। इस कारण से कोलन कैंसर के साथ ही अन्य कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। HNPCC सिंड्रोम के कारण 50 की उम्र के पहले ही लोगों में रेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
फैमिलियल एडिनोमेटस पॉलीपोसिस (FAP)
FAP रेयर डिसऑर्डर होता है जिसके कारण कोलन और रेक्टम में हजार से ज्यादा पॉलिप्स डेवलप हो जाते हैं। अगर इन पॉलिप्स का समय रहते इलाज नहीं कराया जाता है तो आगे चलकर 40 की उम्र के पहले ही व्यक्ति में कोलन या रेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
जेनेटिक टेस्टिंग के माध्यम से FAP, HNPCC और अन्य रेयर इनहेरिटेड रेक्टल कैंसर सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है। अगर आपकी फैमिली में किसी को भी रेक्टल कैंसर की समस्या है तो बेहतर होगा कि आप एक बार इस बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर लें। साथ ही इससे जुड़े रिस्क फैक्टर के बारे में भी जानें।
उपरोक्त कारणों के अलावा भी रेक्टल कैंसर के कुछ अन्य कारण हो सकते हैं, जिन्हें ऊपर सूचीबद्ध नहीं किया गया है। रेक्टल कैंसर के कारणों की विस्तृत जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।
वह आपकी मौजूदा हेल्थ का विश्लेषण करके रेक्टल कैंसर के संभावित कारणों का आंकलन कर सकता है। इसके लिए बेहतर होगा कि आप अपनी मौजूदा हेल्थ की विस्तृत जानकारी डॉक्टर के साथ साझा करें। डॉक्टर से किसी भी प्रकार की जानकारी को न छुपाएं।
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जोखिम
किन कारकों से रेक्टल कैंसर का जोखिम बढ़ता है?
रेक्टल कैंसर या मलाशय का कैंसर के रिस्क फैक्टर में लाइफस्टाइल को जोड़ कर देखा जाता है। सही लाइफस्टाइल न होने पर रेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
अधिक उम्र होना
अधिक उम्र के लोगों में रेक्टल कैंसर होने की संभावना अधिक पाई जाती है। कोलन और रेक्टल कैंसर 50 साल से अधिक लोगों में डायग्नोस किया गया है। यंग लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है।
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मलाशय का कैंसर या रेक्टल कैंसर की हिस्ट्री
यदि किसी व्यक्ति के परिवार में किसी को रेक्टल कैंसर हो चुका है तो उस व्यक्ति को भी भविष्य में रेक्टल कैंसर होने की संभावना है।
इंफ्लामेट्री बाउल डिसीज
रेक्टम और कोलन की क्रोनिक इंफ्लामेट्री डिसीज भी रेक्टल कैंसर का कारण बन सकती है।
इनहेरिटेड सिंड्रोम के कारण
इनहेरिटेड सिंड्रोम FAP और HNPCC के कारण भी व्यक्ति में रेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
मोटापे के कारण
मोटापा एक साथ कई समस्याओं को जन्म देता है। मोटापे के कारण भी रेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
एल्कोहॉल के कारण
जो लोग रोजाना एल्कोहल का सेवन करते हैं, उनमे रेक्टल कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
उपरोक्त जोखिम कारकों के अलावा भी कुछ ऐसे फैक्टर्स हो सकते हैं, जिनसे रेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। यदि आप फिर भी इसे लेकर चिंतित हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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उपचार
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप न समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
रेक्टल कैंसर का निदान कैसे किया जाता है?
- यदि आपके डॉक्टर को रेक्टल कैंसर का शक होता है तो वह फिजिकल एग्जामिनेशन और कुछ टेस्ट कराने की सलाह दे सकता है। इसके लिए डॉक्टर आपको बेरियम एनेमा (Barium Enema) के साथ लोअर जीआई (जीआई) (लोअर जठरांत्र श्रृंखला) दे सकते हैं। यह एक प्रकार का एक्स-रे है। इसमें आपके कोलोन और रेक्टम में बेरियम डाई को डालकर एक्स-रे किया जाता है।
- इसके अलावा, डॉक्टर आपको कोलोनस्कॉपी (colonoscopy) कराने की सलाह दे सकता है। यह टेस्ट रेक्टल कैंसर की मौजूदगी की पुष्टि करता और कोलोन या रेक्टम में गांठ की जानकारी देता है।
- जीआई होने के बाद, किसी भी प्रकार की असामान्यताएं एक्स-रे पर गहरी परछाईं में नजर आती हैं। इसलिए कोलोनस्कॉपी असामान्यताओं की मौजूदगी की पुष्टि करने के लिए की जाती है। कोलोनस्कॉपी का इस्तेमाल ट्यूमर या पोलिप्स (polyps) का इस्तेमाल किया जाता है।
यदि डॉक्टर को कैंसर का पता चलता है तो इसे पांच चरणों में चिन्हित किया जाता है:
स्टेज 0
चरण 0 कैंसर के निदान की शुरुआती स्टेज होती है। कोलोन की आंतरिक वॉल में असामान्य कोशिकाओं का पता चलता है। यह कोशिकाएं कैंसर का रूप धारण कर सकती हैं और इस बिंदु से आगे फैल सकती हैं।
स्टेज I
स्टेज I, को ड्युक्स (Dukes A) रेक्टल कैंसर कहा जाता है। यह एक कैंसर है, जो कोलोन की आंतरिक वॉल से आगे कोलोन में मसल लेयर में फैल जाता है।
स्टेज II
यह कैंसर की स्टेज है, गांठ कोलोन की मसक्युलर वॉल से आगे फैल जाती है, जो वॉल की बाहरी परत में प्रवेश कर जाती है। इसे सेरोसा (Serosa) कहा जाता है।
स्टेज III
स्टेज III में कैंसर सेरोसा से आगे फैलकर लायम्फ नोड्स (Lymph nodes) में फैल जाता है। यह छोटे नोड्युल्स (Nodules) होते हैं, जो बॉडी में इंफेक्शन से लड़ने वाली कोशिकाओं को स्टोर और पैदा करते हैं।
स्टेज IV
स्टेज IV रेक्टल कैंसर की सबसे एडवांस स्टेज है। इस स्टेज में कैंसर शरीर के कई अंगों जैसे फेफड़ों और दिमाग में फैल जाता है।
रेक्टल कैंसर का उपचार कैसे किया जाता है?
रेक्टल कैंसर या मलाशय का कैंसर का पता चलने के बाद इलाज के सबसे बेहतर कोर्स के विकल्प को तय किया जाता है। रेक्टल कैंसर के इलाज में डॉक्टर कई विकल्पों पर विचार करता है। आपका डॉक्टर इलाज के सबसे बेहतर तरीके को अपनाने की सलाह दे सकता है। उपचार में निम्नलिखित तरीकों को अकेले या संयुक्त रूप से प्रयोग किया जा सकता है:
- सर्जरी की सहायता से
- कीमोथरिपी की सहायता से
- रेडिएशन
- बायोलोजिकल थेरिपी
कई प्रकार के कैंसर की तरह ही रेक्टल कैंसर का उपचार करने के लिए एक सामूहिक एप्रोच का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त, नर्स से देखभाल, सोशल वर्कर्स, काउंसिलर्स और डायटीशियन की मदद ली जाती है। संभवतः निम्नलिखित विशेषज्ञों में से आपका एक से अधिक एक्सपर्ट्स द्वारा इलाज किया जाए:
सर्जन
- जठरांत्र चिकित्सक, एक ऐसा डॉक्टर होता है, जो पाचन तंत्र से जुड़ी हुई बीमारियों में विशेषज्ञ होता है।
- मेडिकल ओनक्लॉजिस्ट, एक ऐसा डॉक्टर होता है, जो दवाइयों के साथ कैंसर का उपचार करने में विशेषज्ञ होता है। उपचार की इस विधि को कीमोथेरिपी कह जाता है।
- रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट, एक ऐसा डॉक्टर होता है, जो रेडिएशन के इस्तेमाल से कैंसर के इलाज में विशेषज्ञ होता है।
उपरोक्त उपचार के तरीकों के अलावा भी रेक्टल कैंसर के निदान के तरीके उपलब्ध हो सकते हैं, जिन्हें ऊपर सूचीबद्ध नहीं किया गया है। यदि आप इस संबंध में विस्तृत जानकारी चाहते हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। हालांकि, रेक्टल कैंसर के उपाचार के लिए किसी भी तरह का घरेलू उपाय अपनाने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें। कई बार इस प्रकार के उपाय अन्य परेशानियों का कारण बन सकते हैं, जिससे आपकी समस्या और गंभीर हो सकती है।
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स्टेज के अनुसार मलाशय के कैंसर का इलाज
रेक्टल कैंसर का ट्रीटमेंट देते वक्त डॉक्टर कई बातों की जांच करेगा और फिर ट्रीटमेंट दिया जाएगा। ट्युमर का साइज कितना है, कैंसर कहां फैला है, व्यक्ति की उम्र क्या है और उसकी जनरल हेल्थ कैसी है। इन सबकी जानकारी लेने के बाद डॉक्टर इलाज करते हैं।
स्टेज 0 के लिए रेक्टल कैंसर का ट्रीटमेंट
- कोलोनोस्कोपी (colonoscopy) के माध्यम से टिशू को हटाना
- सेपरेट सर्जरी के माध्यम से टिशू को हटाना
- जिस हिस्से में कैंसर सेल्स डेवलप हो चुकी हैं, वहां उपस्थित टिशू को हटाना
स्टेड 1 के लिए रेक्टल कैंसर का ट्रीटमेंट
- लोकल एक्सिशन (local excision) या रीसेक्शन ( resection)
- रेडिएशन थेरेपी (radiation therapy)
- कीमोथेरपी (chemotherapy)
स्टेज 2 और स्टेज 3 के लिए ट्रीटमेंट
- सर्जरी
- रेडिएशन थेरेपी
- कीमोथेरेपी
स्टेज 4 के लिए ट्रीटमेंट
- बॉडी के एक या फिर अधिक भाग की सर्जरी
- रेडिएशन थेरेपी
- कीमोथेरेपी
- टार्गेट थेरेपी जैसे कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज और एंजियोजेनेसिस इनहिबिटर(angiogenesis inhibitors)
- क्रायोसर्जरी (cryosurgery) के माध्यम से एब्नॉर्मल टिशू को नष्ट करना।
- रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (radiofrequency ablation) यानी रेडियो तरंगों के माध्यम से खराब सेल्स को डिस्ट्रॉय करना।
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घरेलू उपाय
जीवन शैली में होने वाले बदलाव क्या हैं, जो मुझे रेक्टल कैंसर को ठीक करने में मदद कर सकते हैं?
निम्नलिखित जीवन शैली और घरेलू उपाय आपको इस समस्या से लड़ने में मदद करेंगे:
- साबुत अनाज, फल और हरी सब्जियों का सेवन बढ़ाना और रेड और प्रोसेस्ड मीट का सेवन कम करना।
- नियमित रूप से फिजिकल एक्सरसाइज की सलाह दी जाती है। फिजिकल एक्सरसाइज करने से कोलन में हल्की कमी आती है, लेकिन रेक्टल कैंसर का खतरा कम नहीं होता है। नियमित रूप से हाई लेवल्स पर फिजिकल एक्टिविटी करने से रेक्टल कैंसर का खतरी करीब 21% तक कम होता है।
- रेक्टल कैंसर में लंबे वक्त तक बैठे रहने से उच्च मृत्यु दर जुड़ी होती है। सामान्य भाषा में रेक्टल कैंसर में अधिक समय तक बैठना नहीं चाहिए। नियमित रूप से इसके रेक्टल कैंसर का जोखिम कम नहीं होता है। हालांकि, नियमित एक्सरसाइज से रेक्टल कैंसर का खतरा कम किया जा सकता है।
- फाइबर, फल और सब्जियां रेक्टल कैंसर में सुरक्षात्मक प्रभाव प्रदान करती हैं, लेकिन यह उतने कारगर नहीं होते।
- शरीर के वजन को सामान्य बनाए रखने से रेक्टल कैंसर का खतरा कम होता है। इसके लिए आप नियमित रूप से एक्सरसाइज कर सकते हैं।
- प्रत्येक घरेलू उपाय को शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है। बिना डॉक्टर की मंजूरी के किसी भी प्रकार के घरेलू उपाय या दवा का सेवन न करें।
इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी प्रकार की चिकित्सा और उपचार प्रदान नहीं करता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। आप स्वास्थ्य संबंधी अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं और अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।