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इवेंट की अध्यक्षता करने वाले डॉ. आदित्य खेमका, जो कि एक ऑर्थोपेडिक सर्जन और ओसियोइंटीग्रेशन तकनीक में विशेषज्ञ हैं, ने कहा कि, “एंप्यूटेशन रीकंस्ट्रक्शन करने की प्रक्रिया में ओसियोइंटीग्रेशन एक नया आयाम है। प्रोस्थेटिक डिवाइस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा या उसका ‘बोटलनेक’ एक सॉकेट होता है। इसलिए, अगर प्रोस्थेटिक कंपोनेट सबसे बेहतर भी है, लेकिन सॉकेट खराब है, तो उसका असर बुरा हो सकता है और पूर्ण कार्य नहीं कर पाता। लेकिन, ओसियोइंटीग्रेशन टेक्नोलॉजी सॉकेट इश्यू की आशंका को खत्म कर व्यक्ति को असहजता और स्किन ब्रेक-डाउन की संभावना से छुटकारा देता है। इसके अलावा, यह अन्य कई फायदे देता है, जैसे- प्रोस्थेटिक डिवाइस को जल्द ही उतारना और पहनना और डिवाइस का जमीन पर टिका होने का अहसास मिलना। जिससे व्यक्ति ज्यादा सहज और बेहतर ढंग से चल-फिर सकता है।”
एंप्यूटेशन के बाद रिकवरी
किसी व्यक्ति को अगर एंप्यूटेशन रिमूव का सामना करना पड़ता है, जो उसे रिकवरी करने के लिए निम्नलिखित तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। एंप्यूटेशन के बाद की रिकवरी उसकी प्रक्रिया और एनेस्थिसिया के ऊपर निर्भर करता है। अगर, किसी व्यक्ति को एंप्यूटेशन के बाद दर्द रहता है, डॉक्टर उसे कुछ दर्दनिवारक दवाइयों के सेवन की सलाह भी दे सकता है। लेकिन, फिर भी कुछ फिजीकल थेरिपी, जेंटल शुरुआत, स्ट्रेंचिंग एक्सरसाइज आदि आम होते हैं। जैसे-
- मसल्स स्ट्रेंथ और कंट्रोल को सुधारने वाली एक्सरसाइज
- दैनिक गतिविधियों और स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता को रिस्टोर करने वाली एक्टिविटी
- आर्टिफिशियल लिंब्स और असिस्टिव डिवाइस का इस्तेमाल
- हाथ या पैर के खो जाने के दुख और नए शारीरिक अंग के साथ समन्वय बैठाने के लिए इमोशनल सपोर्ट, जैसे काउंसिलिंग।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
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