मनुष्य का शरीर एक मशीन की तरह है। जैसे मशीन का कोई भी पुर्जा खराब होने पर मशीन को काम करने में मुश्किल होती है, वैसे ही शरीर का कोई अंग अगर सही तरीके से काम न करे, तो इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है। ऐसा ही एक अंग है किडनी (Kidney)। अगर किडनी में खराबी आती है, तो यह किसी गंभीर समस्या या मृत्यु तक का कारण बन सकती है। आपने किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) के बारे में तो सुना ही होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आने वाले समय में किडनी के खराब होने की स्थिति में उसे आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) से रिप्लेस किया जा सकता है। सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह बिलकुल सच है। आइए, सबसे पहले जानते हैं किडनी के कार्यों और किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में।
क्या हैं किडनी के कार्य (Works of Kidney)
जैसा की आपको पता ही है किडनी, जिसे गुर्दा भी कहा जाता है, हमारे शरीर का अहम हिस्सा है। यह हमारे शरीर के कई मुख्य कामों को करने में मदद करती है। जैसे हानिकारक और विषैली चीजों को शरीर से बाहर निकालना और शरीर में पानी, तरल पदार्थों और मिनरल्स आदि की रेगुलेशन करना। इसका मुख्य कार्य है हानिकारक चीजों को निकाल कर खून को साफ करना। मानव शरीर में दो किडनी होती हैं। लेकिन किडनी में खराबी की वजह से किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत भी पड़ सकती है। अगर आप इसके बारे में नहीं जानते हैं, तो कोई बात नहीं। हम आपसे किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़ी पूरी जानकारी शेयर करेंगे। इस जानकारी के बाद आपको आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) के बारे में जानने में भी मदद मिलेगी।
किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में जानें (know about kidney transplant)
किडनी की गंभीर स्थितियों को क्रोनिक किडनी डिजीज (Chronic Kidney Disease) भी कहा जाता है। इन स्थितियों में किडनी खराब हो जाती है। अगर समय रहते इस स्थित के बारे में पता चल जाए तो इलाज संभव है। अन्यथा जब इस समस्या का निदान होता है, तब तक रोगी की किडनी खराब हो सकती है। इस दौरान रोगी को जीवित रहने के लिए डायलिसिस (Dialysis) या किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney transplant) की जरूरत होती है। डायलिसिस में खास मशीनों की मदद से खून को साफ करके खराब खून को शरीर से निकाल कर और उसे साफ कर के शरीर में भेजा जाता है। यह एक मुश्किल प्रक्रिया है और इसमें पैसा भी अधिक लगता है। यही नहीं, पूरी उम्र डायलिसिस की प्रक्रिया को दोहराना पड़ता है।
किडनी के खराब होने की स्थिति में किडनी ट्रांसप्लांट (Kidney Transplant) एक स्थायी इलाज माना जाता है, जिसमे रोगी के शरीर में किसी अन्य व्यक्ति की किडनी ट्रांसप्लांट की जाती है। यह प्रक्रिया इतनी आसानी नहीं होती। आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) से पहले इसके बारे में जानना भी जरूरी है। जानिए कि किडनी ट्रांसप्लांट कैसे की जाती है।
किडनी ट्रांसप्लांट कैसे होता है? (Process of Kidney Transplant)
किडनी ट्रांसप्लांट की जगह आने वाले समय में आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) लेने वाली है। इसके लिए लगातार रिसर्च और प्रैक्टिकल चल रहे हैं। आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का ट्रांसप्लांट भी सामान्य किडनी की तरह ही होगा। तो जानते हैं कि किडनी ट्रांसप्लांट कैसे होता है और आर्टिफिशियल किडनी (Kidney Transplant) से यह कैसे अलग है। किडनी की खराबी के अंतिम यानी पांचवें चरण में जब किडनी विफलता की बीमारी के कारण रक्त में विभिन्न विषाक्त पदार्थों और अपशिष्ट उत्पादों का निर्माण हो जाता है, जो मरीज के लिए अस्वस्थता और मृत्यु का कारण बन सकता है। इस चरण में आने के बाद मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट यानी किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है।
किडनी ट्रांसप्लांट में मरीज की खराब किडनी को किसी स्वस्थ किडनी से बदल दिया जाता है। किडनी विशेषज्ञ के अनुसार अंतिम चरण के मरीजों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट डायलिसिस से बेहतर उपाय है। किडनी प्रत्यारोपण मरीज की जीवनशैली को बेहतर बनाता है। साथ ही डायलिसिस के दुष्प्रभावों से बचने में मदद करता है। लेकिन अगर मरीज किसी कारणवश किडनी ट्रांसप्लांट नहीं करा सकता तो डायलिसिस ही बेहतर उपाय है। अब जानते हैं आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) के बारे में
आर्टिफिशियल किडनी क्या है? (What is Artificial Kidney?)
क्या आप जानते हैं कि साइंटिस्ट आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) को विकसित कर रहे हैं, जो वास्तविक अंगों के काम को दोहरा सकती हैं और इससे डायलिसिस की आवश्यकता संभावित रूप से समाप्त हो सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया के शोधकर्ता ऐसी एक प्रत्यारोपण कृत्रिम किडनी विकसित कर रहे हैं ,जो वास्तविक किडनी के कार्यों को बारीकी से दोहरा सकती हैं। यदि वे सफल होते हैं, तो वैज्ञानिकों का काम डायलिसिस की आवश्यकता को समाप्त करने में मदद कर सकता है। एन्ड स्टेज रीनल डिजीज (End-Stage Renal Disease) से पीड़ित रोगियों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट को अधिक सफलता मिल सकती है।
ऐसा माना जाता है कि आने वाले कुछ समय में किडनी ट्रांसप्लांट की जगह आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) ले लगी। इस डिवाइस का मानव परीक्षण शुरू होने वाला है। इस बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं, जानिए
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
शुवो रॉय जो यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया के किडनी प्रोजेक्ट के टेक्निकाल डायरेक्टर हैं, उनके अनुसार बायोआर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का इस्तेमाल डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले के अधिकांश लोगों द्वारा किया जा सकता है। यह पूरी तरह से सुरक्षित और अधिक प्रभावी उपचार है। इसे बनाने वाले विषेशज्ञों का मानना है कि यह किडनी फिल्ट्रेशन, बैलेंसिंग और प्राकृतिक किडनी के अन्य बायोलॉजिकल कार्यों को अच्छी तरह से करेगी। यह शरीर के ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) से काम करेगी और इस डिवाइस को किसी एक्सटर्नल ट्यूब या टेथर्स की जरूरत नहीं होती है।
इस डिवाइस को पेट में इन्सर्ट करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस डिवाइस के दो फीचर्स हैं एक एक मैकेनिकल अल्ट्राफिल्ट्रेशन यूनिट (Mechanical Ultrafiltration), जिसे हेमोफिल्टर (Hemofilter) कहा जाता है यह खून को सिलिकॉन मेमब्रेन्स (Silicon Membranes) से गुजार कर खून में से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है, जो नैनोमीटर-स्केल पोर्स (Nanometer-Scale Pores) के साथ बना होता है। दूसरा है बायोरिएक्टर जिसमें पर्याप्त तरल पदार्थ की मात्रा बनाए रखने और हॉर्मोन का उत्पादन करना जैसे किडनी के काम करने के लिए कल्चर्ड ह्यूमन किडनी सेल्स होंगे। इसे चलाने के लिए इलेक्ट्रिक पावर की जरूरत नहीं होगी, बल्कि यह शरीर के ब्लड प्रेशर के अनुसार काम करेगी। यही नहीं, एक किडनी ट्रांसप्लांट के विपरीत, कोई इम्युनोसुप्रेशन आवश्यक नहीं होगा। लेकिन इस प्रोजेक्ट को पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं है, जानिए कैसे।
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इस डिवाइस से जुड़ी चुनौतियां कौन सी हैं (What are the Challenges Associated with this Device?)
एक्यूट किडनी इंजरी वाले रोगियों में हुए क्लीनिकल ट्रायल के अनुसार रीनल असिस्ट डिवाइस (Renal Assist Device) या आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) द्वारा इलाज किए गए रोगियों में सर्वाइव करने की संभावना कंटीन्यूअस रीनल रिप्लेसमेंट थेरिपी प्राप्त करने वालों की तुलना में 50% बेहतर थी। बायोरिएक्टर में किडनी सेल्स को सर्वाइवल में इम्प्रूवमेंट को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार इसका ट्रायल एक बड़ी और जटिल प्रणाली थी। जिसमें कम से कम दो डायलिसिस मशीनें, बहुत सारे ट्यूबिंग और कई पंप थे।
डॉ रॉय के अनुसार उनकी टीम ने एक छोटा सिस्टम डिजाइन करने के लिए इंजीनियरिंग का तरीका अपनाया है। हालांकि कार्डियोलॉजी में इंजीनियरिंग से उन्हें कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (Cardioverter Defibrillator) और बल्कि बेडसाइड मशीन से एक इम्प्लांटेबल डिवाइस में बदलने में मदद मिली है, जो डायलिसिस मशीन का फंडामेंटल वर्क हाउस है। उनके अनुसार हालांकि कुछ मटेरियल में सुधार हुए हैं, फिर भी उनके माध्यम से रक्त को चलाने के लिए उच्च-ड्राइविंग दबाव की आवश्यकता होती है। क्योंकि वे विषाक्त पदार्थों को कुशलता से नहीं निकालते हैं और वे कुछ समय के उपयोग के बाद काम करना बंद कर देते हैं। आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का परीक्षण हुआ है या नहीं, जानिए।
आर्टिफिशियल किडनी का परीक्षण (Testing of Artificial Kidney)
जांचकर्ताओं ने सूअरों में प्रोटोटाइप हेमोफिल्टर और बायोरिएक्टर का परीक्षण किया है। हेमोफिल्टर डिजाइन को इस तरह से रिफाइंड किया गया है कि केवल एंटीप्लेटलेट थेरिपी का उपयोग करके 30 दिनों तक ब्लड फ्लो सफलतापूर्वक मेंटेन किया जा सकता है। उसमे सिस्टमिक एंटीकोआग्युलेशन (systemic anticoagulation) का प्रयोग नहीं किया जाता है। अतिरिक्त अध्ययनों से पता चला है कि हेमोफिल्टर ब्लड थिनर के बिना लगातार तीन दिनों तक सूअरों में इंप्लांटेशन के बाद यूरिया और क्रिएटिनिन क्लीयरेंस प्रदान कर सकता है। अब जानते हैं इससे जुड़े कुछ सवालों के बारे में।
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बायोआर्टिफिशियल किडनी से जुड़े कुछ आम सवाल और उनके जवाब (Question and Answers about Artificial Kidney)
बायोआर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) को लेकर लोग बहुत पॉजिटिव हैं। लेकिन, इसे लेकर कुछ सवाल मन में आना भी स्वभाविक है। जानिए आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) से जुड़े कुछ मुख्य सवाल और उनके जवाबों के बारे में:
इस डिवाइस का साइज (Size of Device) कितना बड़ा है?
बायोआर्टिफिशियल किडनी (Bioartificial Kidney) या आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का साइज एक कॉफी का कप के जितना है, जिसमें दो मॉडल्स हैं, जो हानिकारक पदार्थों को बाहर निकलने के लिए मिल कर काम करते हैं।
यह सर्जिकल प्रोसेस (Surgical Process) क्या है?
आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का सर्जिकल प्रोसेस वैसा ही है जैसा किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी का होता है। इसे जनरल एनेस्थीसिया दे कर किया जाता है। एक बार जब यह आर्टिफिशियल किडनी डिवाइस सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होगा तो इस प्रक्रिया को किसी भी अस्पताल में एक ट्रेंड ट्रांसप्लांट सर्जिकल टीम के साथ पूरा किया जा सकता है। यही नहीं, यह पूरी तरह से किफायती होगी ताकि आम लोग भी इसका प्रयोग आसानी से कर सकें।
इसमें फिल्टर (Filter cleaning process) कैसे साफ होगा?
इसके फिल्टर को एक विशेष पतली बायोकंपैटिबल फिल्म (Special Thin Biocompatible Film) के साथ कोट किया गया है, ताकि इसे गन्दा होने और रक्त के थक्कों को रोका जा सके। यही कोटिंग इसे गन्दा होने से बचाएगी।
आर्टिफिशियल किडनी के उपयोग के बाद यह डिवाइस कितने समय तक ठीक रहेगा और क्या इसे बदलना पड़ेगा (Will it need to be Changed)?
इस डिवाइस को अगर एक बार मनुष्य के शरीर में लगा दिया जाएगा तो यह स्थायी होगा। वर्तमान परीक्षण और अनुसंधान से पता चलता है कि यह डिवाइस को बिना किसी असफलता के कई वर्षों तक ऑपरेट करना संभव हो सकता है। अगर कोई समस्या होती है, तो फिल्टर या कोशिकाओं की रिप्लेसमेंट में कम से कम इनवेसिव सर्जरी का सहारा लिया जाएगा। यानी यह पूरी प्रक्रिया आसान और आरामदायक है।
इसके कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं (Side Effects of Device)
इस डिवाइस के साइड इफेक्ट भी वैसे ही होंगे जैसे उन अन्य प्रोसीजरस में होते हैं, जिनमें मेडिकल डिवाइस को इम्प्लांट किया जाता है। यह जटिलताएं ट्रामा, स्कार्स या इन्फेक्शन आदि से जुड़ी हो सकती हैं। इसके अलावा इसके कोई साइड-इफेक्ट नहीं होंगे।
रोगी इम्प्लांटेशन के बाद इम्यूनोसप्रेसिव ड्रग्स या एंटीकोगुलेन्ट ले सकता है?(Can take Immunosuppressive Drugs or Anticoagulants after Implantation?)
आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) के बायोरिएक्टर में सेल्स को रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune Power) के स्कैफफोल्ड द्वारा अलग किया जाता है, जिस पर वे विकसित होते हैं। डिवाइस पर हुई कोटिंग ब्लड क्लॉटिंग (Blood clotting) को दूर करने में मदद करती है। पहले के ह्यूमन ट्रायल में बड़े पैमाने पर बायोएर्टिफिशियल किडनी के लिए किसी भी तरह की एंटीरिजेक्शन दवाओं की आवश्यकता नहीं पड़ी थी, और हाल के प्रीक्लिनिकल प्रयोगों में, ब्लडथिनरस की जरूरत नहीं पड़ी। अब जानते हैं इससे जुडी चुनौतियों के बारे में।
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इस पूरी प्रक्रिया में क्या चुनौतियां आई (Challenges during this Process)?
विशेषज्ञों के अनुसार उन्हें इस पूरे प्रोजेक्ट के दौरान बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। अगर शार्ट टर्म की बात की जाए तो रिसर्च और डेवलपमेंट में फंडिंग एक चुनौती है। एक महत्वपूर्ण बाधा दोनों डिवाइस कम्पोनेंट्स के लिए प्रीक्लिनिकल स्टडीज को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन का न होना है। इसके साथ ही ह्यूमन स्टडी के पहले दौर के लिए पूर्ण-पैमाने के प्रोटोटाइप का निर्माण करना भी एक चुनौती है। हालांकि अभी क्लीनिकल ट्रायल के बाद भी कुछ समस्याएं आ सकती हैं।
अगर कोई व्यक्ति आर्टिफिशियल किडनी का इन्तजार कर रहा है। लेकिन उसके डॉक्टर उसे डायलिसिस शुरू करने के लिए कह रहे हैं, तो उसे क्या करना चाहिए? (Should Patient wait for the Artificial Kidney or Follow Doctor’s Instructions?)
इस स्थिति में डॉक्टर अपने मरीज अच्छे से गाइड कर सकते हैं। क्योंकि वो मरीज की स्वास्थ्य स्थिति को समझने और उनकी जरूरतों को जानते हैं। ऐसे में डॉक्टर के बताए अनुसार इलाज कराने में देर न करें। अभी आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) को उपलब्ध होने में कुछ समय लग सकता है। ऐसे में मरीज को अपने जीवन के साथ समझौता नहीं करना चाहिए।
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आने वाले समय में आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) रोगियों के लिए एक अच्छा उपचार साबित हो सकता है। लेकिन अभी इसके लिए कुछ इन्तजार करना होगा, क्योंकि इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल प्रोसेस के कई स्टेप्स बाकी हैं। जब यह स्टेप्स सफलतापूर्वक पूरे होंगे, उसके बाद यह बायोआर्टिफिशियल किडनी (Bioartificial Kidney) पब्लिक के लिए उपलब्ध होगी। इस बात की पूरी उम्मीद है कि इस डिवाइस के आने के बाद कई लोगों की किडनी संबंधी समस्याएं कम होंगी।