जब बात हो रही हो छोटे बच्चों की, तो उन्हें संभालना किसी चुनौती से कम नहीं माना जाता। लेकिन नए जमाने में माता-पिता ने बच्चों को संभालने का एक नया तरीका इजाद किया है, जिसे टेक्नोलॉजी का नाम दिया जाता है। टेक्नोलॉजी के नाम पर फोन, टैबलेट और लैपटॉप (Phones, tablets and laptops) जैसी चीजें बच्चों के आसपास दिखाई देती हैं, जिससे बच्चे आसानी से संभल तो जाते हैं, लेकिन इसका सीधा असर उनके डेवलपमेंट पर पड़ता है। आज हम बच्चों के डेवलपमेंट से जुड़े एक ऐसे ही विषय पर बात करने जा रहे हैं, जिसके बारे में माता-पिता को जानना बेहद जरूरी है। हम बात कर रहे हैं लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts) की। लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) इतना बुरा देखा गया है कि इसका सीधा असर बच्चों की उंगलियों, हाथों और मस्तिष्क पर पड़ रहा है। आज हम बात करने जा रहे हैं हार्ट ऑफ इंग्लैंड फाउंडेशन (Heart of England Foundation) में प्रकाशित एक रिपोर्ट की, जिसमें इस से जुड़ी जानकारी दी गई है। आइए जानते हैं इस रिपोर्ट के अनुसार लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट के बारे में।
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लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट : क्या कहती है रिपोर्ट? (Technology impacts on limbs development)
कुछ समय पहले हार्ट ऑफ इंग्लैंड फाउंडेशन (Heart of England Foundation) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में में बताया गया कि यूनाइटेड किंगडम (UK) में बच्चों को लिखने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि उनके लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) देखा जा रहा है और यह इंपैक्ट बेहद खतरनाक साबित होता जा रहा है। इसका कारण है बच्चों के शुरुआती सालों में लगातार फोन, टेबलेट इत्यादि का इस्तेमाल करना। जिसकी वजह से बच्चे की फ़िंगर मसल्स पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और यही वजह है कि लिखने जैसे आसान काम में भी उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
आमतौर पर ट्रेडिशनल एक्टिविटी (Traditional activity) जैसे कलरिंग, क्राफ्ट और इंडोर गेम (Coloring, Craft and Indoor Games) के जरिए बच्चों की मसल डेवलपमेंट होती है, लेकिन समय के साथ टेक्नोलॉजी की वजह से यह ट्रेडिशनल एक्टिविटी कम हो रही है। यही वजह है कि लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts) बेहद ख़तरनाक रूप से देखा जा रहा है। इन बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट इतना बुरा हो रहा है कि पेंसिल पकड़ने जैसे आसान काम के लिए भी उनकी मसल स्ट्रैंथ (Muscle strength) काम नहीं आ रही। इसका सीधा असर उनकी मोटर स्किल्स पर पड़ रहा है।
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पहले माता-पिता अपने बच्चों को मसल बिल्डिंग प्ले के जरिए बिजी रखते थे, जिसमें ब्लॉक बिल्डिंग, कटिंग, स्टिचिंग, रोप पुलिंग (Block Building, Cutting, Stitching, Rope Pulling) इत्यादि का समावेश होता था। आज इन सभी खेलो की जगह टेक्नोलॉजी ने ले ली है। यही वजह है कि बच्चो के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) होता हुआ दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि इस रिपोर्ट के जरिए साइंटिस्ट माता पिता को बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts) के बारे में सचेत करना चाहते हैं।
ज्यादा स्क्रीन टाइम (Screen time) के चलते बच्चों की हाथों में समस्याएं देखी जा रही हैं, जिसे लेकर समय रहते माता-पिता को सचेत हो जाना चाहिए। इस बारे में अमेरिकन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन ने अधिक जानकारी देते हुए डब्ल्यूएचओ (WHO) द्वारा जारी की हुई गाइडलाइन के बारे में जानकारी दी है। यह गाइडलाइन बच्चों की स्क्रीन टाइम से जुड़ी हुई है, जिसमें बच्चों के लिए डेली स्क्रीन टाइम के बारे में बताया गया है। बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) को समझने के लिए हर माता-पिता को डब्ल्यूएचओ की इन गाइडलाइंस पर ध्यान देना जरूरी है। आइए जानते हैं क्या हैं ये गाइडलाइंस?
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लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट : क्या कहती है डब्ल्यूएचओ की स्क्रीन टाइम पर गाइडलाइन? (WHO on Screen timing for kids)
जैसा कि हम पहले बता चुके हैं, डब्ल्यूएचओ (WHO) ने बच्चों के लिए डेली स्क्रीन टाइम (Daily screen time) के बारे में बताया गया है, जिसे समझना हर माता-पिता के लिए बेहद जरूरी है। इन गाइडलाइन के अनुसार हर उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम निर्धारित किया गया है, जो इस प्रकार है –
- 1 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए – 1 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा जीरो स्क्रीन टाइम निर्धारित किया गया है। भले ही छोटे बच्चों लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) नहीं देखा जाता, लेकिन उनके मानसिक विकास पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए 1 साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप या टैबलेट जैसी चीजें नहीं देनी चाहिए। साथ ही उन्हें पेट के बल लेटा कर अलग अलग तरह की एक्टिविटी में शामिल करना चाहिए।
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- 1 से 2 साल के बच्चों के लिए – 1 से 2 साल के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम 1 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही कम से कम 2 से 3 घंटे की फिजिकल एक्टिविटी बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts) को कम कर सकती है। बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) को कम करने के लिए उन्हें फिजिकल एक्टिविटी (Physical activity) में बिजी रखना बेहद जरूरी है, जिससे उनका मानसिक विकास भी ठीक तरह से हो।
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- 3 से 4 साल के बच्चों के लिए – 3 से 4 साल के बच्चों के लिए दिन भर में 1 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए। वहीं बच्चों को 2 से 3 घंटे तक फिजिकल एक्टिविटी करवानी चाहिए। 3 से 4 साल के बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts) न पड़े, इसके लिए आपको खास ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) इतना बुरा देखा जा रहा है कि इससे न सिर्फ बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर हो रहे हैं, बल्कि उनकी कॉग्निटिव स्किल्स (Cognitive skills) भी ठीक ढंग से विकसित नहीं हो पा रही। इसकी वजह से वह ठीक ढंग से चीजों को सीख नहीं पा रहे। इसके कारण बच्चे को मानसिक समस्याओं और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
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बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts on limbs development) के अलावा जो ध्यान देने वाली बात है, वह है इस टेक्नोलॉजी से निकलने वाली हार्मफुल रेज। यह हार्मफुल रेज बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा असर डालती हैं। इससे ना सिर्फ बच्चे की आंखें, कान इत्यादि जरूरी अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, साथ ही साथ बच्चा चीजें एक्सप्लोर करना भूल जाता है और चीजों से सीखने की बजाय टेक्नोलॉजी में उलझ के रह जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चे का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता। माता-पिता को बच्चों के लिंब्स डेवलपमेंट पर टेक्नोलॉजी इंपैक्ट (Technology impacts)के बारे में जानकारी होना बेहद ज़रूरी है, जिससे भविष्य में बच्चों को समस्याओं का सामना ना करना पड़े। साथ ही साथ बच्चे के सही विकास के लिए उसे सीमित मात्रा में टेक्नोलॉजी के आसपास रखा जा सके।
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