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बच्चे का बदलता व्यवहार हो सकता है बिहेवियरल डिसऑर्डर का संकेत!

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 15/09/2021

    बच्चे का बदलता व्यवहार हो सकता है बिहेवियरल डिसऑर्डर का संकेत!

    बच्चों की परवरिश कोई आसान काम नहीं है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, माता-पिता की जिम्मेदारी भी बढ़ती जाती है। सभी छोटे बच्चे शरारती, बात न मानने वाले और अधीर होते हैं, और यह पूरी तरह से सामान्य है। लेकिन कई बार उनका व्यवहार बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। बच्चों के व्यवहार का अजीब या चुनौतीपूर्ण होना चिंता का विषय हो सकता है। कई मामलों में ऐसा बिहेवियरल डिसऑर्डर्स का कारण होता है। अपने बच्चे के व्यवहार में आए बदलाव को नजरअंदाज न करें। आइए, जानते हैं बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) के बारे में।

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स क्या हैं (Behavioral and Developmental Disorders in Children)

    सभी बच्चे कभी न कभी मिसबिहेव करते हैं। इस व्यवहार का कारण कई बार कोई चिंता या तनाव हो सकता है। हालंकि बच्चों में कुछ बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स सामान्य है। लेकिन, कई बार यह गंभीर भी हो सकते हैं। बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) को डिसरप्टिव बिहेवियरल डिसऑर्डर  (Disruptive Behavioral Disorders) भी कहा जाता है। इन डिसऑर्डर्स की गंभीर स्थितियों में इलाज जरूरी है। क्योंकि, बिना इलाज के बच्चों को पूरी उम्र कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और इनका प्रभाव उनकी नौकरी, रिश्तों और सामान्य जीवन पर भी पड़ता है। उम्र के अनुसार बच्चों में बिहेवियरल और विकास डिसऑर्डर्स के बारे में जानें:

    और पढ़ें : स्कूल जाने वाले बच्चों के विकास के कौन से हैं महत्वपूर्ण चरण, जानें

    4 -5 साल के बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children : 4-5 years)

    4 -5 साल के बच्चे जब स्कूल जाना शुरू करते हैं, तो उनके व्यवहार में परिवर्तन आना आम बात है। इस उम्र के बच्चों में बिहेवियरल इश्यूज को डिसऑर्डर्स मानना सही नहीं है। एक बच्चे के जीवन के पहले पांच साल तेजी से विकास के समय का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए इतनी कम उम्र के बच्चों में असामान्य व्यवहार से सामान्य व्यवहारमें अंतर करना थोड़ा मुश्किल है। हालांकि, स्कूल जाने वाले बच्चों में यह डिसऑर्डर्स हो सकते हैं:

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children)

    अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention deficit hyperactivity disorder)

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) में पहला है अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर। यह डिसऑर्डर बच्चों में छोटी उम्र से शुरू होता है और युवावस्था तक उनके साथ रह सकता है। यह एक दिमागी डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चे कैसे दूसरी चीजों पर ध्यान देता है और अपने बिहेवियर को कंट्रोल करता है यह सब प्रभावित होता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं :

    • ध्यान का भटकना (Mind Divert)
    • निर्देशों का पालना न करना या काम पूरा न करना (Non-Compliance of Instructions or Non-Completion of Work)
    • किसी की बात सुनने में रूचि न होना (Not Interested in Listening)
    • रोजाना के काम करना भूल जाना (Forget to do Daily Chores)
    • ऐसे काम न कर पाना, जिसमे स्थिर रूप से बैठना होता है (Unable to do Such Things, which Involves Sitting Steadily)
    • चीजों को भूलना (Forget Things)

    कारण (Causes) : इस डिसऑर्डर के कई कारण हो सकते हैं जैसे जीन (Genes), केमिकलस (Chemicals), दिमाग में बदलाव (Brain Changes) ,दिमाग में चोट लगना या डिसऑर्डर (Brain Injury or Brain Disorder) आदि।

    उपचार (Treatment) : बच्चों में इस डिसऑर्डर के इलाज के लिए मल्टी मॉडल एप्रोच का प्रयोग किया जाता है। जिसमें दवाइयों और थेरेपी का प्रयोग किया जाता है, जो इस प्रकार हैं: 

    • दवाईयां (Medicines): जैसे एम्फ़ैटेमिन (Amphetamine), डेक्समिथाइलफेनिडेट (Dexmethylphenidate), मिथाइलफेनाडेट (Methylphenidate) 
    • थेरेपी (Therapy) : थेरेपीज से बच्चे के व्यवहार को बदलने में काम किया जाता है, जो इस प्रकार हैं : स्पेशल एजुकेशन (Special Education) , बिहेवियर मॉडिफिकेशन (Behavior Modification), काउन्सलिंग (Counseling) , सोशल स्किल्स ट्रेनिंग (Social Skills Training) 

    आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर  (Autism spectrum disorder)

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) में अगला है आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर। आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर दिमागी विकास से जुड़ी एक स्थिति है। जो बच्चे की समझ और व्यवहार पर प्रभाव डालती है। जिसके कारण उसे सामाजिक इंटरेक्शन और कम्युनिकेशन में समस्या हो सकती है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं :

    कारण (Causes) : इस समस्या के कारणों का ज्ञान नहीं है। लेकिन, ऐसा माना जाता है कि इसके कारण जेनेटिक हो सकते हैं या कुछ एनवायर्नमेंटल कारक भी इसके जिम्मेदार हो सकते हैं।

    उपचार (Treatment) : आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का कोई उपचार नहीं है। लेकिन, इसके लक्षणों को कम करने के लिए डॉक्टर काम कर सकते हैं और इन तरीकों को अपना सकते हैं:

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children)

    लर्निंग डिसऑर्डर्स (Learning Disorders)

    लर्निंग डिसऑर्डर्स इस उम्र के बच्चों को कुछ भी सीखने में होने वाली समस्या है। यहां सीखने की अक्षमता बुद्धि या प्रेरणा के कारण होने वाली समस्या नहीं है। इस बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) के लक्षण इस प्रकार हैं: 

    • बच्चों को पढ़ने, सिखने आदि से समस्या होना (Problems with Reading, Learning )
    • निर्देशों का पालन करने में समस्या (Problem to Follow Instructions)
    • याद रखने में परेशानी (Trouble Remembering)
    • कोआर्डिनेशन में कमी (Lack in Coordination)
    • होमवर्क या पढ़ाई से जुडी कोई भी एक्टिविटी करने में मना करना (Refuse to do any Activity Related to Homework or Studies)
    • किसी की मदद के बिना होमवर्क न कर पाना (Not Able to do Homework without Someone’s Help)

    कारण (Causes) : लर्निंग डिसऑर्डर्स के लिए फैमिली हिस्ट्री और जेनेटिक्स (Family History and Genetics) , प्रीनेटल और नियोनेटल रिस्क (Prenatal and Neonatal Risks) , साइकोलॉजिकल ट्रामा (Psychological Trauma) , फिजिकल ट्रामा (Physical Trauma), एनवायर्नमेंटल एक्सपोज़र (Environmental Exposure) आदि को जिम्मेदार माना जाता है।

    उपचार (Treatment): अगर आपके बच्चे को लर्निंग डिसऑर्डर है, तो डॉक्टर आपको निम्नलिखित उपचार के तरीकों और थेरेपी की सलाह दें सकते हैं:

    • व्यक्तिगत एजुकेशन प्रोग्राम (Individualized Education Program)
    • थेरेपी (Therapy) 
    • दवाईयां (Medication)
    • पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा Complementary and Alternative Medicine)

    यह भी पढ़ें: बच्चों की अन्य हेल्थ प्रॉब्लम्स के बारे में कितना जानते हैं आप?

    6 -10 साल के बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioural and Developmental Disorders in Children :6-10 years)

    6 -10 साल का बच्चा टीनएज में कदम रखने वाला होता है। यह उम्र बच्चे के जीवन में बहुत महत्व रखती है क्योंकि इस दौरान उनके शरीर और दिमाग में बहुत अधिक बदलाव आते हैं। ऐसे में व्यवहार में परिवर्तन भी सामान्य है। जानिए 6 -10 साल के बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) इस प्रकार हैं :

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    ओपोजीशनल डेफिएंट डिसऑर्डर (Oppositional Defiant Disorder)

    ऐसा माना जाता है कि 11 साल से कम उम्र के कम दस में एक से एक बच्चा इस डिसऑर्डर का शिकार होता है। अगर आपके बच्चे का व्यवहार बहुत अच्छा है, तब भी वो अपने जीवन में कभी न कभी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण समय जरूर गुजरेगा। ओपोजीशनल डिफिएंट डिसऑर्डर के लक्षण इस प्रकार हैं

    • गुस्से या परेशान रहना (Angry and irritable mood)
    • जल्दी या बार-बार गुस्सा हो जाना (Often and easily loses Temper)
    • अन्य लोगों से जल्दी नाराज हो जाना (Easily annoyed by Others
    • बड़े लोगों से बहस करना (Often argues with Adults) 
    • दूसरे लोगों को नाराज या परेशान करना (deliberately annoys or upsets People)
    • दूसरों को अपने व्यवहार के लिए जिम्मेदार मानना (Blames Others for his or her Mistakes or Misbehavior)

    कारण (Causes) : ओपोजीशनल डिफिएंट डिसऑर्डर का कोई स्पष्ट कारण नहीं है। लेकिन एक्सपर्ट्स के अनुसार इसके कुछ कारण यह हो सकते हैं:

    उपचार : बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) में ओपोजीशनल डेफियांट डिसऑर्डर के इलाज में फैमिली बेस्ड इंटरवेंशन शामिल हैं। इसके साथ ही बच्चों को अन्य तरह कि साइकोथेरेपी या ट्रेनिंग भी दी जा सकती हैं। इसका इलाज कराना जरूरी है, क्योंकि अगर इस डिसऑर्डर का इलाज न कराया जाए, तो इसके लक्षण बदतर हो सकते हैं। इसका इलाज इस तरह से किया जा सकता है:

    • पैरेंट ट्रेनिंग (Parent training)
    • पैरेंट-चाइल्ड इंटरेक्शन थेरेपी (Parent-child interaction therapy) 
    • इंडिविजुअल और फॅमिली थेरेपी (Individual and family therapy) 
    • कॉग्निटिव प्रॉब्लम-सॉल्विंग ट्रेनिंग (Cognitive problem-solving training) 
    • सोशल स्किल्स ट्रेनिंग (Social skills training)

    एंग्जायटी डिसऑर्डर्स (Anxiety Disorders)

    इस बारे में फोर्टिस अस्पताल मुलुंड के न्यूरोलॉजी विभाग के सलाहकार डॉ धनुश्री चोंकर का कहना है कि  बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। उनके मन में कोई भी बात बहुत जल्दी लग जाती है। आजकल बच्चों में भी तनाव की समस्या अधिक देखने को मिल रही है। इस कारण कई बच्चें परेशान हो कर सुसाइड जैसे विचारों की  तरफ अपने कदम बढ़ाने लगते हैं। बच्चों को पढ़ाई से ज्यादा सोशल ग्रुप का प्रेशर इतना ज्यादा बढ़ता जा रहा है कि वो बदलाव उनके व्यवहार देखने को मिलता है।  जिसमें सबसे पहले उनका चिड़चिड़ा व्यवहार और किसी से  बात न करना शामिल है।

    एंग्जायटी डिसऑर्डर्स के कारण बच्चे के व्यवहार, सोने, खाने और मूड में परिवर्तन, अधिक ड़र और चिंता पैदा होती है। बच्चों में कई तरह के एंग्जायटी डिसऑर्डर्स होते हैं जैसे :

    • जनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर (Generalized Anxiety Disorder)
    • सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर (Separation Anxiety Disorder)
    • सोशल फोबिया (Social Phobia)
    • सेलेक्टिव मुटिस्म (Selective Mutism)
    • स्पेसिफिक फोबिया (Specific Phobia)

    इस समस्या के लक्षण इस प्रकार हैं:

    • परेशान ,बैचेन और चिंतित महसूस करना  (Feeling Nervous, restless or Tense)
    • हार्ट रेट का बढ़ना (Having an increased Heart Rate)
    • सांस का तेजी से बढ़ना (Breathing Rapidly)
    • पसीना आना (Sweating)
    • थकावट (Feeling Weak or Tired)
    • ध्यान लगाने या सोचने में समस्या (Trouble in Concentrating or Thinking)

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children)

    कारण (Causes) : एंग्जायटी डिसऑर्डर का कोई स्पष्ट कारण नहीं है। इस बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) को कुछ कारण बढ़ा सकते हैं जैसे:

    • जेनेटिक्स (Genetics)
    • ब्रेन केमिस्ट्री (Brain chemistry)
    • जीवन की कुछ घटनाएं (Life situations)

    और पढ़ें : बच्चों की ग्रोथ और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं जीवन के शुरुआती साल!

    उपचार : एंग्जायटी डिसऑर्डर्स का इलाज कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive Behavioral Therapy) के साथ किया जाता है। यह एक प्रकार की टॉक थेरेपी है जो परिवारों, बच्चों और किशोरों को चिंता, भय और चिंता का प्रबंधन करने में मदद करती है

    11-15 साल के बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children : 11-15 years)

    11-15 साल के बच्चे किशोरावस्था में कदम रख चुके होते हैं। यह जीवन का वह समय होता है जब बच्चे स्वतंत्र रहना चाहते हैं और परिवार की तुलना में दोस्तों के साथ अधिक समय बिताते हैं। हालांकि, यह समय किसी सुंदर सपने से कम नहीं होता। लेकिन, इस दौरान भी बच्चों को बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) हो सकते हैं, जो इस प्रकार हैं

    पीडियाट्रिक पैनिक डिसऑर्डर (Pediatric Panic Disorder )

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) में अगला है पीडियाट्रिक पैनिक डिसऑर्डर। पैनिक अटैक को शारीरिक लक्षणों और डरा देने वालों विचारों सहित अधिक भय और पेनिस अटैक के रूप में परिभाषित किया गया है। बच्चों में पैनिक डिसऑर्डर को पीडियाट्रिक पैनिक डिसऑर्डर कहा जाता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं: 

    • दिल का तेजी से धड़कना (Racing Heart) 
    • घुटन कि भावना (Choking Sensations)
    • सांस लेने में समस्या (Difficulty Breathing)
    • पसीना आना (Sweating)
    • अंगों में सुन्नपन या झुनझुनी (Numbness or Tingling in the Limbs)
    • मरने या नियंत्रण खोने का डर (Fear of Dying or Losing Control)

    कारण (Causes): पीडियाट्रिक पैनिक डिसऑर्डर के कारण भी अज्ञात हैं। लेकिन कुछ फैक्टर्स को इस डिसऑर्डर का कारण माना गया है, जो इस प्रकार हैं

    • बायोलॉजिकल फैक्टर्स (Biological factors)
    • फैमिली फैक्टर्स (Family factors)
    • एनवायर्नमेंटल फैक्टर्स (Environmental factors)

    उपचार (Treatment) : पीडियाट्रिक पैनिक डिसऑर्डर के उपचार के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल ट्रीटमेंट (Cognitive behavioral treatment) और अन्य दवाइयों का प्रयोग किया जाता है।

    सोशल फोबिया (Social Phobia)

    सोशल फोबिया का अर्थ है बच्चों का लोगों के सामने प्रदर्शन करने का भय। इसमें बच्चे खुद को शर्मिंदा या अपमानित महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरे लोगों के सामने कुछ भी परफॉर्म करने से वो सबके सामने बेवकूफ या मूर्ख लगेंगे। स्कूल जाने वाले बच्चों में सोशल फोबिया सामान्य है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं 

    • स्कूल जाने के लिए मना करना (Avoiding or Refusing to go to School)
    • दूसरों के सामने प्रदर्शन करने के लिए मना करना (Refusing to speak in Socials Settings)
    • पुअर सोशल स्किल (Showing Poor Social Skills)
    • दूसरों के सामने खाने में डरना (Being Afraid to Eat in front of Others)

    और पढ़ें : पेरेंटिंग के बारे में क्या जानते हैं आप? जानिए अपने बच्चों की परवरिश का सही तरीका

    कारण (Causes):  इस समस्या के कारण भी अज्ञात हैं लेकिन इसके कारणों में इनहेरिटेड, ब्रेन स्ट्रक्चर एनवायरनमेंट फैक्टर शामिल हैं।

    उपचार (Treatment): इस समस्या के उपचार के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल ट्रीटमेंट (Cognitive Behavioral Treatment) और कुछ खास दवाइयां मददगार होती हैं।

    कंडक्ट डिसऑर्डर (Conduct Disorder)

    कंडक्ट डिसऑर्डर एक तरह का बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) है। जब किसी बच्चे के साथ असामाजिक व्यवहार होता है, तो उसके बाद वह बेसिक सामाजिक मानकों और नियमों की अवहेलना कर सकता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:

    • आक्रामक आचरण (Aggressive Conduct)
    • डराने वाला व्यवहार (Intimidating Behavior)
    • दूसरों को तंग करना (Bullying)
    • शारीरिक हिंसा (Physical fights)
    • जानबूझकर संपत्ति नष्ट करना (Intentionally destroying Property)
    • झूठ बोलना (Lying)
    • चोरी (Theft)

    इन लक्षणों की सूचि बहुत लम्बी हैं और यह सब लक्षण दिमागी स्वास्थ्य की समस्याओं से जुड़े हैं। ऐसे में बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना और इलाज कराना जरूरी है। 

    कारण (Causes): एक्सपर्ट्स का मानना है कि कंडक्ट डिसऑर्डर को कई कारक बढ़ा सकते हैं। यह कारक इस प्रकार हैं: 

    • दिमाग को नुकसान होना (Brain Damage)
    • जीन (Genes)
    • बाल उत्पीड़न (Child Abuse)
    • स्कूल ने अच्छा न कर पाना (Past School Failure)
    • सामाजिक समस्याएं (Social problems)

    उपचार (Treatment) : इस समस्या का उपचार बच्चे में लक्षण, उम्र और स्वास्थ्य के अनुसार हो सकता है। इसके साथ ही इस का उपचार इस बात पर भी निर्भर करता है कि बच्चे कि स्थिति कितनी खराब है। कंडक्ट डिसऑर्डर का उपचार इन तरीकों से किया जाता है:

    • कॉग्निटिव-बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive-Behavioral Therapy) 
    • फॅमिली थेरेपी (Family Therapy)
    • पीयर ग्रुप थेरेपी (Peer Group Therapy) 
    • दवाईयां (Medicines)

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children)

    बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स को कम करने के लिए क्या करना चाहिए? (How to Manage Behavioral and Developmental Disorders in Children)

    अगर आपको ऐसा लगता है कि केवल आपके बच्चे के व्यवहार में ही समस्या है, तो आप गलत हैं। क्योंकि कई माता-पिता इस समस्या से गुजरते हैं। आपको जरूरत है तो शांत रहने और बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स (Behavioral and Developmental Disorders in Children) को कम करने के लिए प्रयास करने की। जानिए, कैसे मैनेज कर सकते हैं आप इन डिसऑर्डर्स को:

    • अगर आपके बच्चे को बिहेवियरल संबंधी कोई समस्या है, तो परेशान होने की जगह उसे समझने की कोशिश करें। अपने बच्चे को अच्छा करने के लिए प्रेरित करें और उसकी प्रशंसा करना न भूलें।
    • अपने बच्चे पर विश्वास रखें और इस बात को अपने बच्चे को बार-बार बताएं भी। उसे यह बताना भी न भूलें कि आप उससे कितना प्यार करते हैं और उससे बहुत खुश हैं।
    • अपने बच्चे के साथ मस्ती-मजाक करना न भूलें और बच्चे को समझाएं कि उसे खुद पर गर्व होना चाहिए।
    • अपने बच्चे की पढ़ाई और अन्य गतिविधियों में मदद करें और रूचि लें।
    • अगर आपके विचार अपने बच्चे के विचारों से नहीं मिलते हैं तो न तो परेशान हों न ही गुस्सा। क्योंकि, ऐसा होना स्वभाविक है।
    • अगर आपको अपने बच्चे के स्वभाव या व्यवहार में कभी भी परिवर्तन नजर आता है, तो उसे नजरअंदाज न करें बल्कि तुरंत डॉक्टर की सलाह लेकर उपचार कराएं। क्योंकि, यह डिसऑर्डर उसके भविष्य पर बुरा असर ड़ाल सकते हैं।

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    माता-पिता होने के नाते सबसे पहले आपको अपने बच्चे के व्यवहार को स्वीकार करना होगा और उसके बाद उनकी समस्याओं को ठीक करने के लिए प्रयास करने होंगे। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे का व्यवहार एकदम से सही नहीं होगा। ऐसे में उसे कुछ वक्त दें और धैर्य रखें। अपने बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहते हैं तो पहले आपका उसके लिए एक अच्छा रोल मॉडल बनाना जरूरी है।

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    डॉ. प्रणाली पाटील

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    AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 15/09/2021

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