डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) को न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Neurodevelopmental Disorder) भी कहा जाता है। इन के होने से प्रभावित व्यक्ति या बच्चे को ध्यान लगाने, कुछ भी सीखने या याद रखने के साथ-साथ सोशल इंटरेक्शन आदि में मुश्किल होती है। कुछ डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) में बच्चे बोल या समझ भी नहीं पाते। ये डिसऑर्डर बच्चे के जन्म के साथ हो सकते हैं या उनके डेवलपमेंटल पीरियड के दौरान हो सकते हैं। कुछ लोगों को पूरी उम्र इन विकारों के साथ रहना भी पड़ सकता है। हालांकि, इनका कोई उपचार नहीं है। लेकिन, अगर शुरुआत में ही इनके लक्षणों को पहचान कर डॉक्टर की सलाह ली जाती है, तो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) के प्रभावों को कम किया जा सकता है।
डेवलपमेंट डिसऑर्डर के उपचार में आवश्यक कौशल विकसित करने में बच्चे की सहायता के लिए दवा और स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग आदि को भी शामिल किया जा सकता है।
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर के कारण क्या हैं (Causes of Developmental Disorder)?
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) का शिकार अधिकतर बच्चे होते हैं। ऐसे में माता-पिता को अपने बच्चों में इन समस्याओं के लक्षणों आदि के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। डेवलपमेंटल डिसऑर्डर के बारे में विस्तृत जानकारी से पहले जानते हैं इनके कारणों के बारे में। जानिए, डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) के कौन से कारण हैं:
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- जेनेटिक (Genetic) या क्रोमोजोम अबनोर्मलिटीज (Chromosome Abnormalities) यह डाउन सिंड्रोम और रेट्ट सिंड्रोम जैसी स्थितियों का कारण बनते हैं।
- प्रसव से पहले किन्हीं नुकसानदायक चीजों का सेवन या संपर्क में आना। उदाहरण के लिए, गर्भवती होने पर शराब पीने से भ्रूण को अल्कोहल स्पेक्ट्रम विकार हो सकता है।
- गर्भावस्था में कुछ संक्रमण (Certain Infections in Pregnancy) भी डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) का कारण बन सकते हैं।
- अपरिपक्व जन्म (Preterm Birth) से भी डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) हो सकते हैं।
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर के प्रकार (Types of Developmental Disorder)
इस बारे में फोर्टिस अस्पताल मुलुंड के न्यूरोलॉजी विभाग के सलाहकार डॉ धनुश्री चोंकर का कहना है कि बच्चों में डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) का कोई दवाइंयों वाला इलाज नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे तरीके हैं जिससे इनके लक्षणों को कम किया जा सकता है। इन तरीकों में शारीरिक, स्पीच और ऑक्यूपेशनल थेरेपी (Occupational Therapy) शामिल हैं। जानिए कौन-कौन से हैं यह प्रकार। इनके लक्षणों और उपचार के बारे में जानना न भूलें। इसके लिए उनके बातचीत से लेकर आसपास के माहौल का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। पेरेंट्स को काउंसलर से मिलना चाहिए, जोकि बहुत जरूरी है।
आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder)
आटिज्म को आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का डिसेबिलिटी डिसऑर्डर है जो किसी व्यक्ति के सामाजिक कौशल (Individuals Social Skills), कम्युनिकेशन स्किल (Communication Skill) आदि पर बुरा प्रभाव डालता है। जानिए क्या हैं इसके लक्षण:
आटिज्म के लक्षण (Symptoms)
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में तीन साल के बाद ही लक्षण देखने को मिलते हैं। कुछ लोग जन्म से ही लक्षण दिखाते हैं। इस डिसऑर्डर के लक्षण इस प्रकार हैं :
- ऑय कांटेक्ट न करना
- किन्हीं चीजों में बिल्कुल रुचि न लेना या किन्हीं टॉपिक में बहुत अधिक रुचि लेना
- कई चीजों को बार-बार करना जैसे कुछ शब्दों को बार बार बोलना आदि
- आवाजों, गंध या कुछ अन्य चीजों के प्रति अधिक संवेदनशील होना
- किसी का छूना या प्यार करना उसे पसंद नहीं होता
- किसी की बातों, फेशियल एक्सप्रेशन या आवाज को समझने में भी असमर्थता
- ऑटिज्म से पीड़ित कुछ बच्चों में दौरे(seizures) भी पड़ सकते हैं। लेकिन, किशोरावस्था तक ऐसा नहीं होता।
आटिज्म के प्रकार (Types of Autism)
आटिज्म के कुछ प्रकार होते हैं जिन्हें आप इसकी अलग स्थिति भी कह सकते हैं। इसके लक्षणों के साथ-साथ इसके प्रकारों का भी आपको पता होना चाहिए। इससे आपको ऑटिज्म के लक्षणों को पहचानने में मदद मिलेगी। इसके प्रकार इस तरह से हैं:
- एस्पर्जर सिंड्रोम (Asperger’s Syndrome) : इसमें बच्चों को भाषा की कोई समस्या नहीं होती। लेकिन उन्हें सामाजिक समस्याएं हो सकती हैं ।
- ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Autistic Disorder) : आटिज्म का यह प्रकार सामाजिक बातचीत, संचार और 3 साल से छोटे बच्चों में खेलने की समस्याओं को बताता है।
- चाइल्डहुड डिसइंटिग्रेटिव डिसऑर्डर (Childhood Disintegrative Disorder) : इसमें बच्चों में दो साल तक ठीक विकास होता है और फिर वो अपने कम्युनिकेशन या सोशल स्किल में कमी महसूस करते हैं।
- पेरवासिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder) : यदि आपका बच्चा कुछ ऑटिस्टिक व्यवहार करता है, जैसे कम्युनिकेशन या सोशल स्किल में देरी, तो डॉक्टर इस शब्द का उपयोग करते हैं, लेकिन वह किसी अन्य श्रेणी में फिट नहीं होता है।
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आटिज्म का उपचार (Treatment of Autism)
आटिज्म का कोई इलाज नहीं है। लेकिन शुरुआत में ही इसके लक्षणों को कम करने से आटिज्म से प्रभावित बच्चे के विकास में फर्क देखा जा सकता है। इसलिए, अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे में आटिज्म से जुड़े लक्षण हैं तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
आटिज्म का इलाज दो तरीकों से किया जा सकता है:
1) बिहेवियरल और कम्युनिकेशन थेरेपी (Behavioral and communication therapy)
- इस उपचार में एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (Applied Behavior Analysis) शामिल है, इसमें सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा दिया जाता है और नकारात्मक व्यहार को नकारा जाता है।
- ऑक्यूपेशनल थेरेपी (Occupational Therapy) ड्रेसिंग, ईटिंग और लोगों से संबंधित जैसे लाइफ स्किल्स में मदद कर सकती है।
- सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी (Sensory Integration Therapy) किसी ऐसे व्यक्ति की मदद कर सकती है जिसे छूने, जगहों या आवाज़ के साथ समस्या है।
- स्पीच थेरेपी (Speech Therapy) संचार कौशल में सुधार करती है।
2) आटिज्म के लक्षणों को दूर करने जैसे अटेंशन प्रोब्लेम्स (Attention Problems), हाइपरएक्टिविटी (Hyperactivity) या चिंता (Anxiety) को दूर करने के लिए दवाईयां लेने के लिए भी कहा जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर पीड़ित के लाइफस्टाइल भी परिवर्तन के लिए कहेंगे।
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder)
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) एक ऐसा दिमागी डिसऑर्डर है जो प्रभावित व्यक्ति को ध्यान लगाने, सीधा बैठने या व्यवहार को नियंत्रित करने आदि को प्रभावित करता है। यह बच्चों को टीनएज से शुरू हो कर युवावस्था तक रहता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
बच्चों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के लक्षण (Symptoms of ADHD)
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) के लक्षणों को तीन अलग-अलग भागों में बांटा गया है। पहला है इनटेन्टिव, दूसरा है हाइपरएक्टिविटी-इम्पल्सिव और तीसरे प्रकार में दोनों को कंबाइन किया गया है। जानिए इन लक्षणों के बारे में:
इनटेन्टिव बच्चों में इसके लक्षण
- बहुत जल्दी ध्यान भटकना
- किसी बात को सुनने में रूचि न होना
- रोजाना करने वाले कामों को भूल जाना
- ऐसे कामों में रूचि न होना जिन्हें बैठ कर करना पड़े
- चीजों को अक्सर खो देना
- दिन में सपने देखना
हाइपरएक्टिविटी-इम्पल्सिव बच्चों में इसके लक्षण
- शांति से खेलने या बैठने में समस्या
- हमेशा चलते रहना जैसे दौड़ना या चीजों पर चढ़ना
- अधिक बोलना
- अपनी बारी आने का इंतजार करने में समस्या
- दूसरों को परेशान करना
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वयस्कों में इसके लक्षण
- हमेशा लेट आना या चीजें भूल जाना
- चिंता
- आत्मविश्वास में कमी
- काम में समस्या
- गुस्से को नियंत्रित करने में समस्या
- पदार्थ का दुरुपयोग या लत
- लोगों के साथ रहने में परेशानी
- टालमटोल करना
- जल्दी निराश या बोर हो जाना
- पढ़ते हुए ध्यान न लगना
- मूड स्विंग्स
- डिप्रेशन
- रिश्तों में समस्या
उपचार (Treatment)
इस समस्या का उपचार कई तरीकों से किया जाता है। लेकिन, ऐसा माना जाता है कि बहुत से बच्चों में इस समस्या के लक्षणों को मैनेज करने के लिए मल्टीमॉडल एप्रोच (Multimodal Approach) का प्रयोग सही है। हालांकि, इस परेशानी के कई लक्षणों को दवाई और थेरेपी से मैनेज किया जा सकता है। जानिए इस बारे में विस्तार से:
दवाइयां (Medicines)
इस स्थिति में दवाइयों के अधिक प्रयोग को लेकर अभी पूरी जानकारी नहीं है। लेकिन फिर भी इसके उपचार में इन दवाइयों का प्रयोग किया जाता है, जो इम्पल्सिव और हाइपरएक्टिव बिहेवियर को कंट्रोल करने के काम आती है। जैसे:
- एम्फ़ैटेमिन (Amphetamine)
- डेक्समिथाइलफेनिडेट (Dexmethylphenidate)
यह दवायें इस समस्या से पीड़ित हर व्यक्ति के लिए काम नहीं करती हैं। इसलिए 6 साल से अधिक उम्र के लोगों को यह दवाई दी जा सकती है:
- ऐटोमॉक्सेटाइन (Atomoxetine)
थेरेपी (Therapy)
- थेरेपी का प्रयोग पीड़ित बच्चे के व्यवहार को बदलने के उपचार में प्रयोग किया जाता है। स्पेशल एजुकेशन से बच्चे को सीखने में मदद मिलती है। बिहेवियर मॉडिफिकेशन से पीड़ित बच्चों को अपने व्यवहार में परिवर्तन के बारे में सिखाया जाता है।
- साइकोथेरेपी (Counseling) में उन्हें यह बताया जाता है कि अपनी परेशानियों को कैसे दूर किया जा सकता है। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
- सोशल स्किल्स ट्रेनिंग (Social Skills Training) से बच्चे लोगों से घुलना मिलना, शेयरिंग आदि सीखते हैं।
मेडिकल डिवाइस (Medical Device)
सात से बारह साल के बच्चों के लिए एक मेडिकल डिवाइस आता है। जिसे मोनार्क एक्सटर्नल ट्राइजेमिनल नर्व स्टिमुलेशन (Monarch external Trigeminal Nerve Stimulation) कहा जाता है। यह पीड़ित बच्चों के मस्तिष्क के उस हिस्से में निम्न-स्तरीय इम्पलसिस भेजता है, जो इस समस्या का कारण बनता है। इसके साथ बच्चे के माता पिता को भी बच्चे के व्यवहार को मैनेज करने के बारे में बताया जाता है। यह भी माना जाता है कि इस समस्या से पीड़ित बच्चों के आहार में ओमेगा-3s (Omega-3s) होना चाहिए।
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लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning Disability)
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर में अगला विकार है लर्निंग डिसेबिलिटी। लर्निंग डिसेबिलिटी का अर्थ है प्रभावित व्यक्ति को सीखने, समझने, बोलने आदि में समस्या होना। यह समस्या बच्चों में अधिक देखने को मिलती है। कई बार बच्चे कुछ सीखने में सामान्य से भी अधिक समय लगाते हैं। अगर ऐसा है तो यह लर्निंग डिसेबिलिटी का संकेत हो सकता है। जानिए, कौन से हैं इसके प्रकार
लर्निंग डिसेबिलिटी के प्रकार (Types of Learning Disability)
लर्निंग डिसेबिलिटी कई प्रकार की हो सकती हैं, जो अलग-अलग लोगों को अलग तरीके से प्रभावित करती हैं। यह बात समझना भी जरूरी है कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) और आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर्स (Autism Spectrum Disorders) दोनों लर्निंग डिसेबिलिटी से अलग हैं। इस डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Development disorder) के प्रकार इस तरह से हैं
- डिस्प्रक्सिया(Dyspraxia) :यह व्यक्ति के मोटर स्किल को प्रभावित करता है। मोटर कौशल हमारे मूवमेंट और कोआर्डिनेशन में मदद करते हैं।
- डिस्लेक्सिया (Dyslexia) : डिस्लेक्सिया के कारण बच्चों को लिखने और पढ़ने में समस्या हो सकती है। यह व्याकरण और पढ़ने की समझ की समस्या भी पैदा कर सकता है।
- डिस्ग्राफिया (Dysgraphia): डिसग्राफिया एक व्यक्ति की लेखन क्षमताओं को प्रभावित करता है।
- डिसकैलकुलिया (Dyscalculia): डिस्क्लेकुलिया व्यक्ति की गणित करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
- विजुअल प्रोसेसिंग डिसऑर्डर (Visual Processing Disorder) : इससे प्रभावित बच्चे किसी दृश्य की व्याख्या करने में असमर्थ होते हैं।
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लर्निंग डिसेबिलिटी के लक्षण (Symptoms of Learning Disability)
जैसा की इन प्रकारों से आप जान ही गए होंगी कि लर्निंग डिसेबिलिटी बच्चे की पढ़ाई में बाधा बनती है। इसलिए, इसके लक्षणों के बारे में जानकर आप इस समस्या का निदान कर सकते हैं। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:
- पढ़ने या लिखने के प्रति उत्साह में कमी
- याद करने में परेशानी
- धीमी गति से काम करना
- दिशाओं का पालन करने में समस्या
- किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी
- पुअर सामाजिक कौशल
लर्निंग डिसेबिलिटी के उपचार (Treatment of Learning Disability)
लर्निंग डिसेबिलिटी का सबसे सामान्य उपचार है स्पेशल एजुकेशन। आपका बच्चा लर्निंग डिसेबिलिटी से पीड़ित है, तो इस बात का निदान करने के लिए स्पेशल एजुकेटर्स की टीम आपके बच्चे के लिए एक इंडिविजुअल एजुकेशन प्रोग्राम (individualized education program) बनाएंगे। ताकि वो जान पाएं कि आपके बच्चे को स्कूल में कौन सी विशेष सेवाओं की जरूरत है। विशेष शिक्षक आपके बच्चे को उनकी स्ट्रेंथ बिल्डअप करने और कमजोरियों को दूर करने के तरीके सिखाएंगे।
रेट्ट सिंड्रोम (Rett Syndrome)
डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Development Disorder) का अंतिम प्रकार है रेट्ट सिंड्रोम। रेट्ट सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोडेवलपमेंटल विकार है जो आनुवांशिक समस्याओं के कारण होता है। यह विशेष रूप से लड़कियों में होता है और सामान्य विकास के शुरुआती 6 महीने की अवधि के बाद के विकास को प्रभावित करता है। इसके कई लक्षण ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार से मिलते जुलते हैं, जिनमें सोशल स्किल (Social Skill) और कम्युनिकेशन (Communication) में मुश्किल शामिल है। इसके लक्षण और उपचार इस प्रकार हैं:
रेट्ट सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms of Rett Syndrome)
- 6 महीने और 18 महीने की उम्र के बीच कुछ समय तक, रेट्ट सिंड्रोम से पीड़ित लड़कियों का विकास होता है। लेकिन, जब यह सिंड्रोम शुरू होता है, तो सिर का विकास धीमा हो जाता है।
- उस समय प्रभावित बच्चे के लैंग्वेज और सोशल स्किल बिगड़ जाते हैं।
- प्रभावित बच्चे को हाथों का हिलाने में समस्या आती है और सांस लेने में भी परेशानी होती है।
- उनमें इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी (Intellectual Disability) बढ़ती जाती है और आमतौर पर गंभीर होती है।
- प्रभावित बच्चे को समय के साथ दौरे भी पड़ते हैं।
- बच्चे को स्कोलियोसिस और हृदय की समस्याएं हो सकती हैं। जिससे उनका विकास धीमा हो जाता है।
रेट्ट सिंड्रोम का उपचार (Rett Syndrome Treatment)
हालांकि इस सिंड्रोम का कोई उपचार नहीं है। लेकिन, कुछ तरीकों से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। इस सिंड्रोम के लक्षणों में सुधार के बाद भी बच्चा कुछ समस्याओं का सामना करता ही है। जानिए इससे जुड़े उपचार के बारे में:
इसका उपचार इन तरीकों से किया जाता है:
- मेडिकल टीम सपोर्ट (Medical Team Support)
- स्पेशल एजुकेशन सपोर्ट (Special Education Support)
- लक्षणों को मैनेज कर के (Management of Symptoms)
इसमें सबसे सहायक उपचार है मेडिकल टीम सपोर्ट। जिसमें फिजिकल, ऑक्यूपेशनल, स्पीच थेरेपी शामिल है। इसके साथ ही रेट्ट सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को स्पेशल एजुकेशनल प्रोग्राम (Special Educational Program) की भी जरूरत पड़ती है। डॉक्टर दौरों को नियंत्रित करने में, सांस लेने में तकलीफ को दूर करने में या मूवमेंट से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकते हैं। स्कोलियोसिस और दिल की समस्याओं के लिए नियमित मेडिकल हेल्प की आवश्यकता होती है। प्रभावित बच्चों को अपना वजन बनाए रखने में मदद के लिए नुट्रिशन सहायता की जरूरत भी हो सकती है।
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डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) की स्थिति में बच्चों के माता-पिता को भी खास ध्यान रखना पड़ता है। ऐसे बच्चों को खास देखभाल की जरूरत होती है। लेकिन, सबसे जरूरी है डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Developmental Disorder) से पीड़ित बच्चों में लक्षणों को पहचानना। जितनी जल्दी लक्षणों की पहचान होगी, उतनी ही जल्दी बच्चे का सही उपचार संभव है।