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कोउवाडे सिंड्रोम क्या है, पिता पर क्या पड़ता है असर?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. हेमाक्षी जत्तानी · डेंटिस्ट्री · Consultant Orthodontist


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/09/2021

    कोउवाडे सिंड्रोम क्या है, पिता पर क्या पड़ता है असर?

    सिंपथेटिक प्रेग्नेंसी या कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) ऐसी अवस्था है जिसमें पुरुष बच्चा होने के लक्षणों को महसूस करता है। ये सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन ये सच है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये कोई समस्या या मानसिक बीमारी नहीं है। इस सिंड्रोम के कारण पुरुष ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे प्रेग्नेंट या उन्हें बच्चा पैदा होने वाला हो। अध्ययन के दौरान ये बात सामने आई है कि मनोवैज्ञानिक कारणों से शरीर की ऐसी स्थिति होती है।

    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade-syndrome) क्यों होता है?

    जब पुरुष पिता बनने वाले होते हैं तो उनका होने वाले बच्चे से लगाव बढ़ जाता है। अपने पार्टनर को कई तरह की समस्याओं से गुजरता देख कुछ पुरुष उनके जैसे लक्षण महसूस करने लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि पुरुषों में नींद की कमी, चिंता, अवसाद, कमेच्छा में कमी, बेचैनी या नींद के पैटर्न में बदलाव होने लगता है। पुरुषों को लक्षणों के हिसाब से ऐसा महसूस होने लगता है कि उनको बच्चा होने वाला है।

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    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) के क्या हैं लक्षण?

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    कहां देखे गए हैं ऐसे लक्षण?

    अध्ययनों से पता चला है कि अमेरिका में पुरुषों में 25-52% के बीच, स्वीडन में 20% और थाईलैंड में अनुमानित 61% लोगों में इस सिंड्रोम के लक्षण देखने को मिले हैं। हालांकि इसमें कम से लेकर ज्यादा तक शारीरिक लक्षण देखने को मिले हैं। बिट्रेन में भी 1970 के करीब 11 से 50 % तक कोउवाडे सिंड्रोम के लक्षण (Couvade syndrome symtoms) देखने को मिले थे।

    क्या साथी को इससे पहुंचता है फायदा?

    इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक कारण को समझना होगा। जब प्रेग्नेंट महिला अपने साथी में ऐसे लक्षण देखती है तो उसे लगता है कि वो अकेली नहीं है जिसे गर्भावस्था की समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है। कई बार पुरुष कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) से अपने साथी का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।

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    कोउवाडे सिंड्रोम का कारण (Couvade syndrome cause) क्या हाॅर्मोन हैं?

    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) किसी हार्मोन के कारण होता है या नहीं, इसके लिए 2001 में एक अध्ययन किया गया। दो अध्ययनों में सिंड्रोम का संबंध हाॅर्मोन से बताया गया। अध्ययन में बताया गया कि पार्टनर की पहले और तीसरे तिमाही की प्रेग्नेंसी के दौरान पुरुषों में प्रोलेक्टिन और एस्ट्रोजन हार्मोन बढ़ जाता है। साथ ही टेस्टोस्टेरान और स्टैस हार्मोन का लेवल कम हो जाता है। इस कारण से थकान, भूख में बदलाव, वजन बढ़ने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इसका संबंध कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) से हो सकता है।

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    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) और फैंटम प्रेग्नेंसी में क्या है अंतर?

    जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) में होने वाले पिता को शरीर में कुछ अंतर नजर आने लगते हैं, ठीक वैसा ही महिलाओं के साथ फैंटम प्रेग्नेंसी में भी होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को चक्कर महसूस होना, मॉर्निंग सिकनेस की समस्या, थकान महसूस होना या फिर स्तन में सूजन आदि लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन ऐसा तब होता है जब वाकई में महिला प्रेग्नेंट होती है। कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) की तरह ही महिलाओं में फैंटम प्रेग्नेंसी केवल लक्षणों को ही दिखाती है। फैंटम प्रेग्नेंसी में महिलाओं को प्रेग्नेंसी के केवल लक्षण महसूस होते हैं, जबकि वो सच में प्रेग्नेंट नहीं होती हैं।

    स्टडी के मुताबिक करीब 40 प्रतिशत महिलाएं फैंटम प्रेग्नेंसी या फैंटम फीटल किक की समस्या से पीड़ित होती हैं। ऑस्ट्रेलिया के मोनाश यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए ऑनलाइन सर्वे के अनुसार 197 महिलाओं का कहना है कि, वे फैंटम प्रेग्नेंसी की शिकार हुई हैं। डिलिवरी के साढ़े छह साल बाद ऑस्ट्रेलियन महिलाओं ने किया ऐसे एक्सपीरियंस शेयर किए हैं। वहीं एक महिला ने तो डिलिवरी के 28 साल बाद बच्चे के किक को अनुभव किया है। 40 प्रतिशत महिलाएं फैंटम किक हफ्ते में एक बार जरूर महसूस करती हैं वहीं 20 प्रतिशत महिलाओं का कहना है की वे फैंटम प्रेग्नेंसी को (फैंटम किक) तकरीबन हर रोज अनुभव करती हैं।

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    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) और फॉल्स प्रेग्नेंसी

    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) में जहां पुरुष प्रेग्नेंसी वाले लक्षणों को महसूस करते हैं, वहीं केमिकल प्रेग्नेंसी की वजह से महिलाओं को महसूस होता है कि वो प्रेग्नेंट हो चुकी हैं। कोउवाडे सिंड्रोम में भले ही पुरुषों को पता होता है कि इन लक्षणों के कारण बच्चा पैदा नहीं होगा। जबकि फॉल्स प्रेग्नेंसी में महिला को लगने लगता है कि वो कंसीव कर चुकी हैं और कुछ ही समय बाद मां बन जाएंगी। फॉल्स प्रेग्नेंसी में केमिकल प्रेग्नेंसी, एक्टोपिक प्रेग्नेंसी को शामिल किया गया है।

    आपके मन में प्रश्न होगा कि आखिर कब फॉल्स प्रेग्नेंसी महसूस होती है ?  मिसकैरिज होने के बाद घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट भी फॉल्स प्रेग्नेंसी रिजल्ट दे सकता है। इस दौरान महिलाएं जब घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट करती हैं तो नतीजा पॉजिटिव आता है, जो हकीकत में गलत होता है। एक बार फर्टाइल अंडा यूट्राइन वॉल के अंदर विकसित हो जाने पर महिलाओं का शरीर प्रेग्नेंसी हार्मोन एचसीजी को रिलीज करने का संकेत देता है।

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    क्या होती है केमिकल प्रेग्नेंसी?

    केमिकल प्रेग्नेंसी में फर्टाइल एग विकसित नहीं हो पाता है। फर्टाइल एग के विकसित न हो पाने के कारण महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती। इसमें फाइब्रॉइड, स्कार टिस्सूज और जन्म से ही गर्भाशय में विसंगति अनियमित गर्भाशय के आकार को विकसित कर देती है। इसके अलावा प्रोजेस्टेरॉन जैसे हार्मोंस की कमी अंडे के विकास को कम कर सकती है।

    वहीं एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में महिला को उबकाई आती हैं और प्रेग्नेंसी के अन्य लक्षण भी महसूस होते हैं। गर्दन, पेल्विस और पेट में तेज दर्द, स्तनों में सूजन, आदि लक्षण दिख सकते हैं। इसके अतिरिक्त, पेट में एक तरफ तेज दर्द भी हो सकता है। चक्कर आना या हल्की से लेकर मध्यम ब्लीडिंग हो सकती है। कोउवाडे सिंड्रोम में पुरुषों को इतने ज्यादा लक्षण नजर नहीं आते हैं। फिर भी ऐसी परिस्थितियों में बच्चे का जन्म नहीं होता है। ये लक्षण कुछ समय के लिए होते हैं और फिर महिला या पुरुष सामान्य महसूस करने लगता है। अगर शरीर में कुछ भी परिवर्तन दिखते हैं तो घबराना नहीं चाहिए। डॉक्टर से जांच कराने के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए।

    कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) कोई बीमारी नहीं है। प्रेग्नेंसी के दौरान साथी के लक्षणों को देखकर कुछ पुरुष शारीरिक और मानसिक बदलाव महसूस करते हैं। अगर आपको भी इस तरह के कोई लक्षण दिख रहे हो या फिर इनकी वजह से कोई परेशानी हो रही हो तो इसे नजरअंदाज न करें।

    हम उम्मीद करते हैं कि कोउवाडे सिंड्रोम (Couvade syndrome) पर लिखा गया यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। कोउवाडे सिंड्राेम के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइसइलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।

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