एक महिला का शरीर गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में बदलता रहता है। इस दौरान शिशु गर्भ में लगभग रोजाना विकसित होता है। महिला के पेट का साइज बढ़ता है। साथ ही महिला हॉर्मोनल परिवर्तनों को महसूस कर रही होती है। गर्भावस्था में महिला के शरीर में कई हॉर्मोनल और फिजिकली बदलाव आते हैं, क्योंकि ये हॉर्मोन्स शरीर में शिशु के विकास में मदद करते हैं। आमतौर पर यह बदलाव सभी गर्भवती महिलाओं में सामान्य होते हैं। जैसे कि शरीर में सूजन, फ्लूइड रिटेंशन से लेकर देखने की क्षमता तक से संबंधित हो सकते हैं।
गर्भावस्था दूसरी तिमाही के दौरान होने वाले हॉर्मोनल परिवर्तन:
ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन में वृद्धि
गर्भवती महिलाओं को ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन में अचानक वृद्धि का अनुभव होता है। वे कई अन्य हॉर्मोनों की मात्रा और उनके फंक्शन में भी बदलाव का अनुभव करती हैं। ये बदलाव केवल मनोदशा को ही प्रभावित नहीं करते हैं। वे यह भी कर सकते हैं:
- गर्भावस्था को स्मूद बनाए रखते हैं।
- भ्रूण के विकास में महत्वपूर्ण सहायता करते हैं ।
- व्यायाम और शारीरिक गतिविधि से शरीर पर होने वाले प्रभाव में बदलाव लाते हैं।
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दूसरी तिमाही ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन में परिवर्तन लाती है
गर्भावस्था के दौरान ईस्ट्रोजन का स्तर लगातार बढ़ता है जो दूसरी तिमाही में अपने चरम पर पहुंच जाता है। पहली तिमाही के दौरान ईस्ट्रोजन के स्तर में तेजी से वृद्धि मतली का कारण हो सकती है। दूसरी तिमाही के दौरान, यह स्तन को बड़ा करने वाली मिल्क डक्ट के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
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ईस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन गर्भावस्था में सक्रिय मुख्य हॉर्मोन्स होते हैं। गर्भावस्था के दौरान ईस्ट्रोजन में वृद्धि गर्भाशय और प्लसेंटा को इन कार्यों को कर पाने में सक्षम बनाती है:
- वस्कुलराइजेशन को इम्प्रूव करता है (जिससे रक्त वाहिकाओं का निर्माण होता है)।
- पोषक तत्वों को शरीर में हस्तनांतरण करता है।
- गर्भाशय में शिशु के विकास को बनाए रखता है ।
इसके अलावा ईस्ट्रोजन की भ्रूण के विकास और मैच्योर होने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।
गर्भावस्था के दूसरी तिमाही के दौरान प्रोजेस्ट्रॉन का स्तर भी असाधारण रूप से बढ़ता है। प्रोजेस्ट्रॉन में बदलाव पूरे शरीर में लिगामेंट्स और जोड़ों के दर्द या ढीलापन का कारण बनता है। प्रोजेस्ट्रॉन के उच्च स्तर से यूरेटर में भी बदलाव आते हैं। यूरेटर गुर्दे को मैटरनल ब्लैडर से जोड़ता है।
गर्भावस्था के दूसरी तिमाही में एक्सरसाइज के प्रभावों में बदलाव
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ये हॉर्मोन्स सफल गर्भावस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे व्यायाम को और अधिक कठिन बना सकते हैं, क्योंकि लिगामेंट्स रिलैक्स्ड होते हैं। गर्भवती महिलाओं को टखने या घुटने की मोच और तनाव का खतरा अधिक हो सकता है। हालांकि, किसी भी अध्ययन ने गर्भावस्था के दौरान चोट में वृद्धि दर का स्पष्टीकरण नहीं किया है।
गर्भवती महिला का शरीर कई बदलावों के दौर से होकर गुजरता है। ब्रेस्ट साइज, बेबी-बंप आदि के कारण एक्सरसाइज का पॉश्चर बदल जाता है।
वजन बढ़ना, फ्लूइड रिटेंशन, और शारीरिक गतिविधि में बदलाव
गर्भवती महिलाओं में वजन बढ़ने से शरीर पर बोझ बढ़ जाता है। यह बढ़ा हुआ वजन और गुरुत्वाकर्षण ब्लड और बॉडी फ्लूइड्स के मूवमेंट को धीमा कर देता है, खासकर निचले अंगों में। परिणामस्वरूप उनमें लिक्विड सबस्टंसिस लगातार बन रही होती हैं। इस कारण महिला चेहरे और अंगों में सूजन का अनुभव करती हैं। कई महिलाओं को दूसरी तिमाही के दौरान हल्की सूजन महसूस होने लगती है। यह अक्सर तीसरी तिमाही में भी जारी रहता है। फ्लूइड रिटेंशन में यह वृद्धि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के वजन बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
सूजन कम करने की उपायों में यह शामिल हैं:
- आराम करने में कोताही न बरतें
- बहुत देर तक खड़े रहने से बचें
- कैफीन और सोडियम के उपयोग से बचें
- पोटेशियम वाले आहार को बढ़ाएं
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स्वाद और सूंघने की क्षमता में बदलाव
अधिकांश महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान स्वाद को पहचानने की क्षमता में बदलाव का अनुभव होता है। इस समय वे गैर-गर्भवती महिलाओं की तुलना में नमक वाले भोजन, चटकारी चीजें और मीठे खाद्य पदार्थों को अधिक पसंद करती हैं। डिस्गेशिया, स्वाद की क्षमता में कमी, गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान सबसे अधिक अनुभव किया जाता है। जो दूसरी तिमाही (Trimester 2) में भी जारी रहता है। हालांकि कई महिलाओं को प्रसव के बाद भी कुछ समय के लिए इसका अनुभव होता है। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मुंह में धातु का स्वाद भी महसूस होता है।
त्वचा और नाखूनों में बदलाव
कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान त्वचा की शारीरिक बनावट में बदलाव का अनुभव करती हैं। हालांकि यह अस्थायी होता है। जैसे स्किन पर खिंचाव के निशान (स्ट्रेच मार्क्स) हमेशा रह सकते हैं। जो महिलाएं गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के दौरान इनका अनुभव करती हैं, उन्हें भविष्य में भी प्रेग्नेंसी या फिर हॉर्मोनल गर्भनिरोधक लेने के दौरान इन्हें वापस अनुभव करने की संभावना बढ़ जाती है।
स्ट्रेच मार्क्स रोका जा सकता है?
जैसे-जैसे वजन बढ़ता जाता है, त्वचा के कुछ हिस्से बेडौल हो सकते हैं। कई जगहों पर आप स्किन पर खिंचाव महसूस कर सकती हैं। इनसे यह स्ट्रेच मार्क्स आते हैं जो बेसिकली त्वचा पर लकीरें होती हैं। इनके पेट और स्तन पर होनी की संभावनाएं अधिक होती हैं।
सभी गर्भवती महिला को स्ट्रेच-मार्क्स के निशान नहीं होते हैं, लेकिन ये बहुत सामान्य हैं। उन्हें पूरी तरह से रोकने का कोई तरीका नहीं है। अपने वजन को कंट्रोल करने की कोशिश करें और चिकित्सक द्वारा सुझाए सुझावों को अनदेखा बिलकुल न करें। कुछ लोशन और तेल के इस्तेमाल से स्ट्रेच मार्क्स को घटाया जा सकता है। त्वचा को अच्छी तरह से मॉश्चराइज रखने और खुजली कम करने में मदद मिल सकती है।
सूखी त्वचा और खुजली का होना
गर्भावस्था के दूसरी तिमाही में हॉर्मोन्स के प्रभावों की वजह से त्वचा सूखी हो सकती है। इसके परिणाम में खुजली की समस्या हो सकती है। इनसे बचने के लिए डॉक्टर की सलाह से साबुन या मॉइश्चराइजर का उपयोग कर सकती हैं। बस ध्यान रखना जरूरी है कि इससे कोई दुष्प्रभाव न पड़े।
मूड अच्छा होगा
ज्यादातर महिलाएं जो गर्भावस्था की पहली तिमाही में अच्छा महसूस नहीं करती हैं, वे आमतौर पर दूसरी तिमाही में बेहतर महसूस करने लगती हैं। मॉर्निंग सिकनेस, मतली और उल्टी, समय के साथ कम होने लगती है। आपके हॉर्मोन्स अधिक संतुलित होने के कारण आपको अधिक ऊर्जा महसूस हो सकती है। आने वाले शिशु के लिए तैयार होने के लिए जरूरी जिम्मेदारियों को समझने के लिए यह एक अच्छा समय है।
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स्तन का भारी होना
प्रेग्नेंसी के दूसरी तिमाही के दौरान स्तन बड़े और भारी हो जाते हैं। यह संकेत होता है कि अब आप स्तनपान कराने के लिए तैयार होने लगी हैं। इसके अलावा निप्पल के आसपास का रंग गहरे काले रंग का हो जाता है।
नसें दिखाई पड़ना
गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर में खून की मात्रा बढ़ जाती है। इससे दिल तेजी से पंप करने लगता है। जिसके कारण स्तन पर नसें (हरे रंग की) दिखाई देने लगती हैं।
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प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों को समझने के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकती हैं। गर्भावस्था से गुजर चुकी दोस्त या किसी रिलेटिव की मदद भी ली जा सकती है।
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