टाइप 1 डायबिटीज वो कंडिशन है, जिसमें हमारा इम्यून सिस्टम पैंक्रियाज के इंसुलिन-मेकिंग सेल्स को नष्ट कर देता है। इन सेल्स को बीटा सेल्स (Beta cells) कहा जाता है। यह कंडिशन का निदान आमतौर पर बच्चों और यंग लोगों मे होता है। टाइप 1 डायबिटीज, टाइप 2 डायबिटीज से पूरी तरह से अलग है। इसमें शरीर इंसुलिन का उस तरह से प्रयोग नहीं कर पाता है, जैसे उसे करना चाहिए। आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के बारे में। टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के कनेक्शन को समझने से पहले हमें टाइप 1 डायबिटीज के लक्षणों के बारे में जानकारी होना आवश्यक है। आइए जानें टाइप 1 डायबिटीज के लक्षणों के बारे में।
टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण क्या हैं? (Type 1 diabetes)
हालांकि, एक्सपर्ट को टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) के सही कारणों के बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन, ऐसा माना जाता है कि यह समस्या जेनेरिक फैक्टर्स के कारण हो सकती है। इस परेशानी का उपचार संभव नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को आसानी से मैनेज किया जा सकता है। टाइप 1 डायबिटीज के लक्षण इस प्रकार हैं:
- भूख और प्यास में बढ़ोतरी (Increased hunger and thirst)
- लगातार यूरिनेशन (Frequent urination)
- विजिन का धुंधला होना (Blurred vision)
- थकावट (Tiredness)
- बिना किसी खास कारण वजन का कम होना (Weight loss)
अगर किसी को भी यह लक्षण नजर आएं, तो तुरंत मेडिकल हेल्प लेना जरूरी है। ऐसा माना जाता है कि 3 में से 1 रोगियों में, इसके पहले लक्षण मधुमेह कीटोएसिडोसिस (Diabetic ketoacidosis) के होते हैं। यह स्थिति आमतौर पर गंभीर होती है और इसमें तुरंत मेडिकल अटेंशन की जरूरत होती है। यह लक्षण इस प्रकार हैं:
- सांस से फ्रूटी स्मेल आना (Fruity smell on the breath)
- ड्राय या फ्लश्ड स्किन (Dry or flushed skin)
- जी मिचलाना या उल्टी आना (Nausea or vomiting)
- पेट में दर्द (Abdominal pain)
- सांस लेने में समस्या (Breathing difficulty)
- कन्फ्यूजन और फोकस में समस्या होना (Confusion and difficulty focusing)
समय के साथ यह जटिलताएं बढ़ सकती है, जिससे कई अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं। लेकिन, टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के बीच के लिंक को जानने से पहले ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज के बारे में जान लेते हैं।
ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज क्या है? (Autoimmune thyroid disease)
थायरॉइड वो स्मॉल ग्लैंड है, जो गर्दन के सामने होता है। यह ग्लैंड हार्मोन बनाती है, जो लगभग हर अंग को नियंत्रित करने में मदद करती है। जब हमारा थायरॉइड पर्याप्त मात्रा में हॉर्मोन्स नहीं बना पाता है, तो हमारा शरीर से सही से काम नहीं कर पाता है। इससे रोगी का एनर्जी लेवल, मूड और वजन पर भी प्रभाव पड़ता है। अगर किसी के थायरॉइड इन्फ्लेम्ड़ हो जाते हैं, तो इस कंडिशन को थाईरॉइडाईटिस (Thyroiditis) कहा जाता है। किन्हीं मामलों में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रोगी का शरीर जो एंटीबॉडी बनाता है, वो गलती से उसके थायरॉयड पर अटैक कर देते हैं।
इस स्थिति को ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Thyroid disease) भी कहा जाता है। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डायबिटीज एंड डायजेस्टिव एंड किडनी डिजीज (National Institute of Diabetes and Digestive and Kidney Diseases) के अनुसार अगर इस समस्या का सही समय पर उपचार न किया जाए तो उससे कई कॉम्प्लीकेशन्स हो सकती हैं जैसे हाय कोलेस्ट्रॉल, हाय ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज आदि। अब जानते हैं टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के कनेक्शन के बारे में।
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टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज के बीच में क्या है कनेक्शन? (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease)
ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों को टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) की समस्या होती है, उन्हें अन्य लोगों की तुलना में अधिक ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Thyroid disease) होने की संभावना अधिक रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि अंडर या ओवरएक्टिव थायरॉइड डिजीज (Overactive Thyroid disease) का जोखिम टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में तीस प्रतिशत अधिक रहता है। यही नहीं, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में थायरॉइड रोग विकसित होने की संभावना आठ गुना अधिक होती है।
डॉक्टर्स के मुताबिक थायरॉइड डिजीज और टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) दोनों सिस्टर डिजीज की तरह हैं। यह पेड़ की टहनियों की समान हैं, जो अलग-अलग होती है लेकिन उनकी रुट एक समान होती हैं। और, वह रुट ऑटोइम्यूनिटी है, जहां इम्यून सिस्टम रोगी के अपने स्वस्थ एंडोक्राइन पार्ट्स पर हमला करती हैं। ऑटोइम्यून डिजीज जेनेटिक हो सकती हैं। जिन लोगों को एक ऑटोइम्यून डिजीज होती हैं, उन्हें दूसरी ऑटोइम्यून डिजीज का जोखिम अधिक रहता है। इन ऑटोइम्यून कंडिशंस के साथ कुछ जेनेटिक रिस्क्स भी जुड़े होते हैं, लेकिन हमें यह पता नहीं होता कि कौन से एन्वॉयरमेंटल ट्रिगर्स उन्हें एक्टिवेट करते हैं।
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टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज: पाएं और अधिक जानकारी
एक्सपर्ट यह भी मानते हैं कि टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) के रोगी को सीलिएक डिजीज का रिस्क अधिक होता है, जो ऑटोइम्यून कंडिशन है। टाइप 1 डायबिटीज की समस्या तब होती है ,जब हमारा इम्यून सिस्टम गलती से पैंक्रियाज में इंसुलिन प्रोड्यूसिंग सेल्स पर अटैक करता है और उन्हें नष्ट कर देता है। इंसुलिन वो हॉर्मोन है, जो खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट के मेटाबॉलिज्म के लिए आवश्यक है। पर्याप्त इंसुलिन के बिना ब्लड शुगर लेवल्स (Blood sugar levels) में बदलाव आ सकता है। जिससे कई गंभीर कॉम्प्लीकेशन्स हो सकती हैं।
टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति में इंसुलिन की कमी को रिप्लेस करने के लिए इंसुलिन शॉट्स या इंसुलिन पंप का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, बहुत अधिक इंसुलिन से भी ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) बहुत अधिक कम हो सकता है। थायरॉयड एक छोटी ग्रंथि है जो थायरॉयड हार्मोन का उत्पादन करती है और यह शरीर के मेटाबॉलिज्म के कई पहलुओं के लिए आवश्यक है। अधिकतर मामलों में टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में अंडर एक्टिव थायरॉयड विकसित होता है।
इस कंडिशन को हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस (Hashimoto’s Thyroiditis) कहा जाता है। जबकि, ओवरएक्टिव थायरॉयड को ग्रेव्स’स डिजीज (Graves’ disease) कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि सामान्य तौर पर, जिन लोगों को टाइप 1 डायबिटीज होती है, उन्हें भविष्य में कभी भी थायरॉयड की समस्या हो सकती है। अनट्रीटेड थायरॉयड प्रॉब्लम्स से टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) से पीड़ित बच्चों की ब्लड शुगर लेवल प्रभावित होता है। अगर किसी व्यक्ति को ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) को कंट्रोल करने में समस्या हो रही हो तो यह थायरॉयड के कारण भी हो सकता है।
टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज व ब्लड शुगर (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease and blood sugar)
जिन लोगों को टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) की समस्या है, उन्हें ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन, अगर वो अंडरएक्टिव थायरॉयड के बारे में अवेयर नहीं हैं, तो उन्हें बहुत सी अनएक्सप्लेंड लो ब्लड शुगर (Low blood sugar) की समस्या हो सकती है। अगर किसी को हायपरथायरॉयड की समस्या है, तो उन्हें अनएक्सप्लेंड हाय ब्लड शुगर (High blood sugar) की परेशानी हो सकती है। कभी-कभी टाइप 1 डायबिटीज वाले लोगों का इंसुलिन लेने से वजन बढ़ता है, लेकिन अनएक्सप्लेंड वजन बढ़ना भी एक अंडरएक्टिव थायरॉयड के कारण हो सकता है।
लोगों के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि अगर किसी को इनमें से कोई भी समस्या है, तो याद रखें कि उन्हें दूसरी कंडिशन की संभावना अधिक है। लेकिन, अधिकतर लोग इनके लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं। ऐसे में आपको टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के लक्षणों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। ऑटोइम्यून थायरॉयड डिजीज को आमतौर पर दवाईयों से मैनेज किया जा सकता है। जो डॉक्टर की सलाह से ली जा सकती हैं। यह तो थी टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के बारे में जानकारी। अब जानते हैं कि टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) के लक्षणों को मैनेज कैसे किया जा सकता है?
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टाइप 1 डायबिटीज को कैसे मैनेज करें? (Management of Type 1 diabetes)
टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के बीच के संबंध को तो आप समझ ही गए होंगे। इन दोनों के बीच में गहरा कनेक्शन है। यही नहीं अगर किसी को एक समस्या है, तो उन्हें दूसरी परेशानी होने की संभावना बहुत अधिक रहती है। ऐसे में रोगी के लिए टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) को मैनेज करना बेहद जरूरी है। इसके लिए डॉक्टर रोगी को सही दवाइयों, इंसुलिन और लाइफस्टाइल में बदलाव के लिए कह सकते हैं।
- टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) के पेशेंट्स को सही और पौष्टिक आहार का सेवन करना जरूरी है। इसके लिए आप अपने डॉक्टर और डायटीशियन की सलाह भी ले सकते हैं।
- नियमित रूप से ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) की जांच कराना आवश्यक है।
- रोजाना एक्सरसाइज करें। ऐसा करना संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
- स्मोकिंग करना पूरी तरह से नजरअंदाज करें।
- तनाव से बचें क्योंकि तनाव डायबिटीज सहित कई समस्याओं का मुख्य कारण है। इसके लिए आप योगा और मेडिटेशन का सहारा ले सकते हैं।
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उम्मीद है कि टाइप 1 डायबिटीज और ऑटोइम्यून थायरॉइड डिजीज (Type 1 diabetes and Autoimmune thyroid disease) के बारे में यह जानकारी आपको अवश्य पसंद आई होगी। इन दोनों के बीच के कनेक्शन को भी आप समझ गए होंगे। इन दोनों कंडिशंस को मैनेज करने के लिए आपको अपनी जीवनशैली में बदलाव करने चाहिए और डॉक्टर की सलाह का पूरी तरह से पालन करना भी आवश्यक है। अगर इस से संबंधित कोई भी सवाल आपके मन में है तो आप अपने डॉक्टर से इस बारे में अवश्य जानें। आप हमारे फेसबुक पेज पर भी अपने सवालों को पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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