डायबिटीज एक ऐसी कंडिशन है, जो कई अन्य हेल्थ प्रॉब्लम्स का कारण बन सकती हैं। इसके दो प्रकार हैं जिन्हें टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) और टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) के नाम से जाना जाता है। टाइप 1 डायबिटीज एक क्रॉनिक डिजीज है और इससे प्रभावित व्यक्ति के पैंक्रियाज बिलकुल भी इंसुलिन नहीं बना पाते हैं या कम मात्रा में इंसुलिन बनाते हैं। टाइप 1 डायबिटीज आमतौर पर छोटी उम्र में होने वाली समस्या है और कई जटिलताओं का कारण बन सकती है। इसका प्रभाव हमारे मेटाबॉलिजम पर भी पड़ता है। आज हम बात करने वाले हैं टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) के बारे में। जानिए, टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) के बीच में क्या लिंक है। किंतु, सबसे पहले मेटाबॉलिजम के बारे में जान लेते हैं।
टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम: जानिए मेटाबॉलिजम क्या है? (Metabolism)
मेटाबॉलिजम को हमारे शरीर में होने वाले केमिकल रिएक्शंस के रूप में जाना जाता है। इन केमिकल रिएक्शंस के लिए एनर्जी की जरूरत होती है। इनके लिए कितनी एनर्जी की जरूरत है, यह बात कई फैक्टर्स पर निर्भर करती है जैसे व्यक्ति की उम्र (Age), बॉडी वेट (Age) और बॉडी कम्पोजीशन (Body Composition) आदि। डायबिटीज हमारे शरीर के हॉर्मोन्स के प्रयोग के तरीके को भी प्रभावित करती है, जिसे इंसुलिन कहा जाता है। यह हॉर्मोन्स हमारी ब्लड स्ट्रीम से टिश्यूज तक ग्लूकोज को ब्लॉक कर के ब्लड शुगर को रेगुलेट करते हैं। अगर डायबिटीज को सही तरीके से कंट्रोल न किया जाए, तो ब्लड शुगर लेवल (Blood Sugar level) बहुत अधिक बढ़ जाता है और ऑर्गन्स व ब्लड वेसल्स डैमेज हो सकते हैं। आइए, जानें कि हमारा मेटाबॉलिजम कैसे काम करता है?
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टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम: हमारा मेटाबॉलिजम कैसे काम करता है?
डायबिटीज और मेटाबॉलिजम के बारे में जानने से पहले हमारा मेटाबॉलिजम कैसे काम करता है यह जानना जरूरी है। हमारे शरीर में हर सेकंड कई केमिकल रिएक्शंस होते हैं। इन केमिकल रिएक्शंस को कलेक्टिवली मेटाबॉलिजम कहा जाता है। हर एक रिएक्शन के लिए एनर्जी की जरूरत होती है। यहां तक कि अपने भोजन से उपयोगी ऊर्जा निकालने के लिए भी एनर्जी की आवश्यकता होती है। मेटाबोलिक रेट वो एनर्जी का अमाउंट है जो हमारा शरीर एक खास समय अवधि में बर्न करता है। इसे कैलोरीज में मापा जाता है। यह तीन खास कंपोनेंट्स से बना होता है जो इस प्रकार हैं:
- आपका बेसल मेटाबॉलिक रेट (Basal Metabolic rate)
- डायजेशन के दौरान एनर्जी का बर्न होना
- फिजिकल एक्टिविटी के माध्यम से एनर्जी का बर्न होना
बेसल मेटाबॉलिक रेट (Basal Metabolic rate) शरीर की एनर्जी का वो अमाउंट है, जो हमारा शरीर आराम करते हुए बर्न करता है। यह रेट सभी लोगों में अलग होता है और इन चीजों पर निर्भर करता है, जैसे:
- बॉडी वेट (Body weight)
- उम्र (Age)
- फैट टू मसल रेश्यो (Fat to muscle ratio)
- जेनेटिक्स (Genetics)
यह भी माना जाता है कि बेसल मेटाबॉलिक रेट (Basal Metabolic rate) महिलाओं की तुलना में पुरुषों में कम होता है और ओवरवेट एडल्ट्स में बहुत अधिक कम होता है। अब जानिए टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) ले बारे में।
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टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism)
डायबिटीज से पीड़ित लोगों या ऐसे लोग जिन्हें यह समस्या नहीं है, दोनों का मेटाबॉलिजम एक जैसा होता है। इनमें बस एक ही अंतर् है कि डायबिटीज से पीड़ित लोगों को हॉर्मोन इंसुलिन का डिसफंक्शन होता है। आमतौर पर खाना खाने के बाद कार्बोहायड्रेट्स को स्लाइवा और डायजेस्टिव सिस्टम द्वारा ब्रेक डाउन कर दिया जाता है। एक बार जब कार्बोहायड्रेट्स ब्रेकडाउन हो जाता है, तो वो ब्लडस्ट्रीम में शुगर (जिसे ग्लूकोज कहा जाता है) के रूप में एंटर करता है। हमारे पेंक्रियाज इंसुलिन बनाते हैं जो एनर्जी के लिए ग्लूकोज को सेल्स तक भेजते हैं। डायबिटीज से पीड़ित लोगों का शरीर इंसुलिन के प्रति रेस्पॉन्ड नहीं करता है या पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है। इसके कारण है ब्लड शुगर लेवल का है होना। जानिए टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) के बीच में क्या लिंक है?
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टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम के बीच में लिंक (Link between Type 1 diabetes and Metabolism)
जैसा की आप जानते ही हैं की टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) को ऑटोइम्यून डिजीज है। सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रिवेंशन (Centers for Disease Control and Prevention) के अनुसार यह समस्या तब होती है जब हमारा शरीर पैंक्रियास में अटैक करता है और उन सेल्स को डिस्ट्रॉय करता है जो इंसुलिन का निर्माण करते हैं। इन्हें बीटा सेल्स कहा जाता है। टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) से पीड़ित लोगों को इंजेक्शन या इंसुलिन पंप के माध्यम से इंसुलिन लेने की जरूरत होती है, ताकि ब्लड शुगर लेवल लो रहे। इंसुलिन के बिना ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) अधिक हो सकता है और शरीर में कई तरह के डैमेज हो सकते हैं। इसके कारण निम्नलिखित कॉम्प्लीकेशन्स होने की संभावना रहती है:
- आई डैमेज (Eye damage)
- नर्व डैमेज (Nerve damage)
- किडनी डैमेज (Kidney damage)
- इंफेक्शन का बढ़ना खासतौर पर पैरों में (Increased infections)
- कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के रिस्क का बढ़ना (Increased risk for cardiovascular disease)
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टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) से पीड़ित लोगों में, मेटाबॉलिजम की प्रॉपर फंक्शनिंग इंसुलिन की डिलीवरी पर निर्भर करती है। अगर रोगी को सही मात्रा में इंसुलिन मिलती है, तो मेटाबॉलिजम की फंक्शनिंग में मदद मिलती है। हालांकि, ऐसा अक्सर मुश्किल होता है और इंसुलिन का सही से न मिल पाने का परिणाम हाय और लो ब्लड शुगर हो सकता है। ऐसी स्थिति में डायबिटीज के प्रकार के अनुसार इसका उपचार किया जाता है। फैट स्टोरेज में भी इंसुलिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) से पीड़ित व्यक्ति में भी इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin Resistance) बिल्ड-अप हो सकती है, जिसे डबल डायबिटीज कहा जाता है। यह तो थी टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) के बारे में बात अब जानिए कि इंसुलिन मेटाबॉलिजम पर क्या प्रभाव डालती है?
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टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम: इंसुलिन मेटाबॉलिजम पर क्या प्रभाव डालती है?
डायबिटीज से पीड़त लोगों को अपने ब्लड शुगर लेवल को सामान्य बनाए रखने के लिए इंसुलिन की जरूरत होती है। खासतौर पर टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) से पीड़ित व्यक्ति के उपचार में इंसुलिन को शामिल किया जाता है। यह इंसुलिन आमतौर पर इंजेक्शन या सीरिंज के माध्यम से लिया जा सकता है। इसके साथ ही इंसुलिन पंप (Insulin Pump) का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। यही नहीं, इसके लिए इंहेल्ड इंसुलिन एक और विकल्प है, जिसे आप अपनी सांस द्वारा ले सकते हैं। इस तरह से इंसुलिन को जल्दी से एब्जॉर्ब किया जा सकता है। जबकि, इंसुलिन के अन्य तरीकों जैसे इंजेक्शन आदि के द्वारा इसमें अधिक समय लगता है। टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर की सलाह भी ले सकते हैं।
इंसुलिन के पांच मुख्य प्रकार हैं, जो ब्लड शुगर लेवल को सही बनाए रखने में मदद करते हैं। आपके डॉक्टर आपके लिए बेहतरीन इंसुलिन को चुनने में आपकी मदद कर सकते हैं। बहुत अधिक इंसुलिन को लेने से ब्लड शुगर लो हो सकती है, जो गंभीर मामलों में जानलेवा है। यही नहीं ,आहार में बहुत अधिक गैप, मील्स को स्किप करना या एक्सरसाइज आदि से भी ब्लड शुगर लो हो सकती है। अपने ब्लड शुगर लेवेल को नियमित रूप से मॉनिटर करने से आपको अपने आहार और दवाईयों का निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। समय के साथ आप खुद यह समझ जाएंगे कि आपका शरीर किसी खास आहार या व्यायाम के प्रति किस तरह से रिस्पॉन्ड करता है। इसका अर्थ है कि इंसुलिन का हमारे मेटाबॉलिजम पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
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इंसुलिन की सही मात्रा को लेने के लिए कई लोग अपने आहार में कार्बोहेडेट्स को काउंट करते हैं। हाय कार्ब मील (खासतौर पर जिसमें सिंपल कार्बोहाइड्रेट्स हों), लो कार्बोहायड्रेट मील की तुलना में आपकी ब्लड शुगर लेवल को बढ़ा सकते हैं और ऐसे में ब्लड शुगर की सामान्य रेंज को बनाएं रखने के लिए अधिक इंसुलिन की जरूरत होगी।
यह तो थी टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम (Type 1 diabetes and Metabolism) के बारे में जानकारी। टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति के उपचार में कई तरीके शामिल हैं जैसे इंसुलिन और जीवनशैली में बदलाव। ब्लड शुगर लेवल को सही बनाएं रखने के लिए रोगी को अपनी जीवनशैली में भी हेल्दी परिवर्तन करने चाहिए जैसे सही खानपान (Right Food), नियमित व्यायाम (Regular Exercise), अगर आपका वजन अधिक है तो उसे कम करना (Loose Weight), पर्याप्त नींद लेना (Enough Sleep) और तनाव से बचाव (Avoid Stress) आदि। इसमें आपके डॉक्टर और डायटीशियन भी आपकी मदद कर सकते हैं। अगर टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम(Type 1 diabetes and Metabolism) संबंधी कोई भी सवाल आपके दिमाग में है, तो अपने डॉक्टर या एक्सपर्ट से इस बारे में बात अवश्य करें ताकि आपको सही सलाह मिल सके।
अगर आपके मन में टाइप 1 डायबिटीज और मेटाबॉलिजम से संबंधित कोई भी सवाल है तो आप हमारे फेसबुक पेज पर भी अपने सवालों को पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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