इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) एक ऐसा टेस्ट है जो हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी और इलेक्ट्रिकल पाथवेज को रिकॉर्ड करता है। इससे यह जानने में भी मदद मिलती है कि रोगी में असामान्य हार्टबीट का कारण क्या है। यही नहीं, यह टेस्ट रोगी के लिए सबसे बेहतरीन इलाज को ढूंढने में भी मदद करता है। इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) के दौरान डॉक्टर हार्ट रिदम को सुरक्षित तरीके से रिप्रोड्यूस करते हैं ताकि यह जाना जा सके कि कौन सी दवा इस रोग को कंट्रोल कर सकती है।। इसके बाद वो रोगी को विभिन्न दवाइयां दे सकते हैं। संक्षिप्त में कहा जाए तो इस टेस्ट का प्रयोग एब्नार्मल हार्ट रिदम (Abnormal Heart Rhythms) के व्यापक किस्मों के निदान और उपचार के लिए किया जाता है। आइए, जानते हैं इस टेस्ट के बारे में विस्तार से। सबसे पहले जानते हैं कि यह टेस्ट क्यों किया जाता है?
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग क्यों की जाती है? (Electrophysiological Testing)
जब किसी व्यक्ति का हार्ट सही तरह से बीट न कर रहा हो, तो डॉक्टर इसका कारण जानने के लिए इस टेस्ट को करते हैं। इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स आमतौर पर एक रेगुलर पैटर्न में हृदय के माध्यम से ट्रेवल करते हैं और हार्ट अटैक, उम्र का बढ़ना और हाय ब्लड प्रेशर हार्ट की समस्याओं का कारण बन सकते हैं। यही नहीं, यह हार्ट के असामान्य तरीके से धड़कने का कारण भी बन सकते हैं। कुछ जन्मजात हृदय दोषों में पाए जाने वाले अतिरिक्त असामान्य इलेक्ट्रिकल पाथवेज भी एरिथमिया का कारण बन सकते हैं। इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) का प्रयोग स्थितियों के बारे जानने के लिए किया जाता है:
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- एरिथमिया के लक्षणों के स्त्रोत के निदान के लिए
- हार्ट रिदम डिसऑर्डर्स को कंट्रोल करने के लिए उपयोग की जाने वाली कुछ दवाओं की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए
- फ्यूचर कार्डियक इवेंट के जोखिम का पूर्वानुमान करने के लिए
- किसी अन्य उपचार या आर्टिफिशियल पेसमेकर की जरूरत को जांचने के लिए
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) के अनुसार इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) पूरी दुनिया में प्रयोग होने वाला प्रोसीजर है, जिसका प्रयोग एरिथमिया के निदान के जरूरी हिस्से के रूप में किया जाता है। इस टेस्ट से पहले रोगी के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होना बेहद जरूरी है। जानिए, इस टेस्ट के लिए मरीज को क्या तैयारी करनी चाहिए।
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इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग से पहले की तैयारी
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) के लिए डॉक्टर पहले ही मरीज को इस प्रोसेस के बारे में बता देंगे। अगर आपके मन में भी इस टेस्ट से संबंधित कोई भी सवाल या चिंता है तो अपने डॉक्टर से पूछ लें। इस टेस्ट से पहले आपको इन चीजों का ध्यान रखना चाहिए:
- अगर आपको किसी दवाई, एनेस्थेटिक एजेंट्स आदि से एलर्जी है, तो इस टेस्ट से पहले ही डॉक्टर को बता दें।
- आपको टेस्ट से पहले कुछ घंटों तक कुछ भी न खाने या पीने की सलाह दी जाएगी।
- अगर आप गर्भवती हैं तो भी पहले ही डॉक्टर को बता देना जरूरी है।
- इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके डॉक्टर को इस टेस्ट से पहले पता होना चाहिए कि रोगी कौन सी दवाइयां, हर्बल उत्पाद या सप्लीमेंट्स ले रहा है।
- अगर आपको ब्लीडिंग डिसऑर्डर है या आप कोई ब्लड थिनिंग मेडिसिन व अन्य कोई ऐसी दवाई ले रहे हैं जिसका प्रभाव ब्लड क्लॉटिंग पर पड़ता है, तो इन्हें लेना भी आपको टेस्ट से पहले बंद करना होगा।
- इस टेस्ट से पहले आपको ब्लड टेस्ट या अन्य टेस्ट कराने के लिए भी कहा जा सकता है।
रोगी की मेडिकल स्थिति के अनुसार डॉक्टर अन्य कुछ खास तैयारियों के बारे में भी कह सकते हैं। अब जान लेते हैं कि कैसे किया जाता है यह टेस्ट ?
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इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग कैसे की जाती है?
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) के लिए मरीज को अस्पताल में रहना पड़ता है। यह टेस्टिंग रोगी की स्थिति पर भी निर्भर करती है। इस टेस्टिंग की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- इस टेस्ट से पहले मरीज को सभी गहने और अन्य ऑब्जेक्ट्स को उतारना होगा, जो इस टेस्ट को बाधित कर सकते हैं। टेस्ट से पहले मरीज को अस्पताल का गाउन पहनना होता है।
- इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) से पहले मरीज को ब्लैडर को खाली करने के लिए कहा जा सकता है।
- शरीर के जिस भाग से कैथेटर को शरीर के अंदर इंसर्ट किया जाना होता है, अगर उस स्थान पर बहुत अधिक बाल हैं, तो डॉक्टर रोगी को उन्हें रिमूव करने के लिए कहेंगे। इससे टेस्ट के बाद जल्दी हील होने और इंफेक्शन की संभावना कम होने में मदद मिलती है।
- टेस्ट से पहले रोगी के हाथ या बाजू में इंट्रावेनस (IV) (Intravenous (IV)) लाइन लगाई जाती है ताकि जरूरत पड़ने पर रोगी को दवाई और IV फ्लुइड्स दिया जा सके।
- मेडिकल टीम का एक मेंबर रोगी को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम मॉनिटर से कनेक्ट करेगा ताकि उसके शरीर की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड किया जा सके और टेस्ट के दौरान रोगी के हार्ट को उसकी स्किन में लगी छोटी इलेक्ट्रोड्स के प्रयोग से मॉनिटर किया जाएगा। इसके साथ ही रोगी में महत्वपूर्ण लक्षणों जैसे हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, ब्रीदिंग रेट और ऑक्सीजन लेवल को भी मॉनिटर किया जाएगा।
- टेस्ट से पहले रोगी को सेडेटिव दिए जा सकते हैं ताकि रोगी रिलैक्स हो सके। रोगी को एनेस्थीसिया भी दिया जाता है। इसके बाद डॉक्टर रोगी के ब्लड वेसल में शीथ(sheath) को इंसर्ट करते हैं जो एक प्लास्टिक ट्यूब होती है, जिसके माध्यम से कैथेटर को ब्लड वेसल में ड़ाला जाता है। कैथेटर को रोगी के दिल की ओर निर्देशित किया जाता है। इससे रोगी के दिल में इसकी स्थिति को स्क्रीन पर मॉनिटर किया जायेगा। जब इस कैथेटर को ड़ाला जाता है तो रोगी प्रेशर का अनुभव कर सकता है ।
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इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग दो भागों में की जाती है:
- इलेक्ट्रिकल फंक्शन का आकलन करने के लिए हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को रिकॉर्ड करना
- नियंत्रित परिस्थितियों में ऑब्जरवेशन के लिए कुछ एब्नार्मल रिदम लाने के लिए हार्ट को पेस देना
डॉक्टर रोगी की हृदय गति को बढ़ाने के लिए कैथेटर के माध्यम से इलेक्ट्रिसिटी पहुंचाने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम का प्रयोग करेंगे। अगर रोगी को महसूस होता है कि आपका हार्ट तेजी और मजबूती से धड़क रहा है, तो डॉक्टर आपसे आपके लक्षणों के बारे में जानना चाहेंगे। अगर इर्रेगुलर हार्ट रिदम शुरू होती है, तो डॉक्टर आपको कुछ दवाइयां दे सकते हैं, ताकि जान पाएं कि इन दवाइयों से यह हार्ट रिदम किस तरह से कंट्रोल होती है। यदि आवश्यक हो, तो नार्मल रिदम को वापस लाने के लिए आपकी छाती पर पैच द्वारा थोड़ी मात्रा में एनर्जी दी जा सकती है।
इस स्टडी के दौरान जो जानकारी इकट्ठी होती है, उसके बाद डॉक्टर एबलेशन प्रोसीजर (Ablation Procedure) को शुरू कर सकते हैं।
रोगी के हार्ट द्वारा प्रोड्यूस किए गए इलेक्ट्रिकल सिग्नल खास कैथेटर द्वारा पिक और रिकॉर्ड की जाती है। इसे कार्डियक मैपिंग कहा जाता है, जो डॉक्टर को जहां से एरिथमिया की समस्या हो रही है उस जगह को लोकेट करने में मदद करेगा। इसके बाद कैथेटर और IV लाइन को रिमूव कर दिया जाएगा। इस प्रक्रिया में एक से चार घंटे लग सकते हैं।
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इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग के बाद क्या होता है?
इस टेस्ट के बाद रोगी को कुछ देर ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है। डॉक्टर रोगी के लक्षणों को मॉनिटर करते हैं। अगर रोगी को चेस्ट पेन या कसाव महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर को बता दें।
- कुछ घंटों के बाद शीथ (sheath) को निकाल दिया जाता है और मरीज को खाने में हल्का आहार दिया जाता है।
- इंसर्शन स्थान पर ब्लीडिंग, दर्द, सूजन आदि का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह इंफेक्शन का संकेत हो सकते हैं। इंसर्शन साइट को साफ और सूखा रखना भी जरूरी है।
- आपको कुछ दिन तक कोई भी भारी शारीरिक गतिविधि करने के लिए मना किया जा सकता है।
अगर आप इन समस्याओं को महसूस करते हैं तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें, जैसे:
- अधिक बुखार या ठंड लगना (Fever and Cold)
- इंसर्शन वाली जगह पर दर्द, लालिमा, सूजन, ब्लीडिंग या पस निकलना।
- छाती में दर्द या कसाव (Chest pain and tightness)
- जी मचलना या उल्टी आना (Nausea or Vomiting)
- बेहोशी (Unconsciousness)
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यह तो थी इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल टेस्टिंग (Electrophysiological Testing) के बारे में पूरी जानकारी। इस टेस्ट के कारण कॉम्प्लीकेशन्स होना दुर्लभ हैं। लेकिन, अगर आपको इंसर्शन वाले स्थान पर स्किन के नीचे ब्लड नजर आए तो यह हेमाटोमा (Hematoma) हो सकता है। यह एक बैचैन करने वाली समस्या है और इसके कारण नील पड़ सकता है जिसे ठीक होने में कुछ दिन लग जाते हैं। इसके साथ ही इस टेस्ट के बाद रोगी को जल्दी रिकवर होने के लिए संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए, पर्याप्त आराम करना चाहिए, डॉक्टर की सलाह के अनुसार हल्का व्यायाम किया जा सकता है और तनाव से बचना जरूरी है। लेकिन, अगर आपको कोई असामान्य लक्षण महसूस करें तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
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