दिल को धड़कने के लिए और ठीक तरह से काम करने के लिए ब्लड सप्लाई (Blood) और ऑक्सिजन (Oxygen) की जरूरत पड़ती है। हालांकि हार्ट से जुड़ी बीमारी (Heart disease) या हार्ट रिदम (Heart Rhythm) की समस्या होने पर ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ती है। कभी-कभी सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है। आज इस आर्टिकल में पेसमेकर और पेसमेकर का काम (Pacemaker work) इन्हीं विषयों पर आपसे महत्वपूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
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पेसमेकर (Pacemaker) क्या है?
पेसमेकर एक छोटी सी डिवाइस है, जिसकी मदद से हार्ट अपने काम को ठीक तरह से करने में सक्षम होता है। दरअसल जब हार्ट ठीक तरह से काम नहीं कर पाता है, तो ऐसी स्थिति में पेसमेकर की मदद ली जाती है। पेसमेकर का काम (Pacemaker work) है हार्ट की मसल्स को संकेत भेजना, जिससे हार्ट ठीक तरह से काम कर सके और हार्ट रिदम ठीक हो सके। दरअसल 1 मिनट में हृदय 60 से 100 बार धड़कता है और जब कॉम्प्लिकेशन ज्यादा बढ़ जाती है, तो पेसमेकर का इस्तेमाल किया जाता है।
पेसमेकर का काम: पेसमेकर की आवश्यकता कब पड़ सकती है?
निम्नलिखित स्थितियों में डॉक्टर पेसमेकर लगवाने की सलाह दे सकते हैं। जैसे:
- दिल की धड़कन ज्यादातर सामान्य से कम (Slow) होना।
- दिल की धड़कन अनियमित (Irregular heart beat) होना।
- दिल की धड़कन कभी बहुत तेज होना या धीरे होना।
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हार्ट बीट (Heartbeat) कितनी होनी चाहिए?
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) में पब्लिश्ड रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार हार्ट पल्पिटेशन की रेट हर उम्र में अलग-अलग होती है। जैसे:
- न्यू बॉर्न बच्चों (Newborn baby) में जगे रहने के दौरान प्रति मिनट 100 से 205 और सोने के दौरान 90 से 160 होनी चाहिए।
- नवजात बच्चों (Infant) में जगे रहने के दौरान 100 से 180 और सोने के दौरान 90 से 160 होनी चाहिए।
- 1 से 2 साल की आयु वाले बच्चों में जगे रहने के दौरान 98 से 140 और सोने के दौरान 80 से 120 होनी चाहिए।
- 3 से 5 साल की आयु वाले बच्चों में जगे रहने के दौरान 80 से 120 और सोने के दौरान 65 से 100 होनी चाहिए।
- 6 से 7 साल के आयु में जगे रहने के दौरान 75 से 118 और सोने के दौरान 58 से 90 होनी चाहिए।
- 7 साल से ज्यादा की उम्र में जगे रहने के दौरान 60 से 100 और सोने के दौरान 50 से 90 होनी चाहिए।
नोट: किसी हेल्थ कंडिशन के कारण हार्ट बीट में बदलाव देखे जा सकते हैं।
पेसमेकर कितने प्रकार के होते हैं? (Types of Pacemaker)
पेसमेकर 3 अलग-अलग तरह के होते हैं। जैसे:
- सिंगल चेंबर पेसमेकर (Single chamber Pacemaker)
- ड्यूल चेंबर पेसमेकर (Dual chamber Pacemaker)
- बिवेन्ट्रिक्युलर पेसमेकर (Biventricular Pacemaker)
सिंगल पेसमेकर (Single chamber Pacemaker)- यह पेसमेकर (Pacemaker) का सबसे समान्य प्रकार है, जिसे ज्यादातर इस्तमेला किया जाता है।
ड्यूल पेसमेकर (Dual chamber Pacemaker)- डिवाइस के दोनों छोड़ से दोनों चेंबर्स को आपस में जोड़ने के लिए ड्यूल चेंबर पेसमेकर का इस्तेमाल किया जाता है।
वेन्ट्रिक्युलर पेसमेकर (Biventricular Pacemaker)- वेन्ट्रिक्युलर पेसमेकर को कार्डियक रीसिंक्रनाइजेशन थेरिपी (CRT) के नाम से भी जाना जाता है। इस पेसमेकर में 3 लीड होती है, जो राइट एट्रियम के साथ-साथ लेफ्ट वेंट्रिक्ल और राइट वेंट्रिक्ल को जोड़ने का काम करती है।
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पेसमेकर का काम: कहां लगाया जाता है पेसमेकर?
पेसमेकर का काम है हृदय को अपना काम करने में सहायता प्रदान करना। इसलिए इसे लेफ्ट या राइट कॉलर बोन के नीचे की ओर एवं फैट टिशू के बीच लगाया जाता है। पेसमेकर के इंस्ट्रक्शन नसों के माध्यम से हार्ट मसल्स तक पहुंचते हैं। पेसमेकर का काम 10 से 12 साल तक होता है या यूं कहें कि पेसमेकर लगाने के बाद यह 10 से 12 साल तक काम कर सकता है। इसे पहले प्रोग्राम करते हैं और फिर हार्ट के पास सर्जरी की मदद से सेट किया जाता है। नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार पेसमेकर के काम करने का वक्त उस पर पड़ रहे दबाव पर भी निर्भर होता है।
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पेसमेकर का काम: सर्जरी के पहले किन बातों को जानना है जरूरी?
सर्जरी के बाद और सर्जरी के दौरान कोई परेशानी ना हो, जिससे पेसमेकर का काम ठीक तरह से हो सके। इसलिए डॉक्टर निनलिखित टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। जैसे:
- ब्लड टेस्ट (Blood Test)
- इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram)
- एक्स-रे (X-Ray)
- यूरिन टेस्ट (Urine test)
- इन टेस्ट के अलावा डॉक्टर हाय ब्लड प्रेशर (High blood pressure), डायबिटीज (Diabetes), ब्लड डिसऑर्डर (Blood disorder), किडनी (Kidney), लंग्स (Lungs) या एलर्जी (Allergy) से जुड़ी जानकारी लेंगे।
- डॉक्टर सर्जरी के पहले पेशेंट को खाने-पीने की सलाह नहीं देते हैं।
- स्मोकिंग (Smoking) या एल्कोहॉल (Alcohol) का सेवन ना करें।
- अगर आप किसी तरह की दवाओं का सेवन करते हैं, तो इसकी जानकारी डॉक्टर को पहले दें।
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पेसमेकर का काम: पेसमेकर के रिस्क फैक्टर क्या हैं? (Risk factor of Pacemaker)
पेसमेकर के रिस्क फेक्टर निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे:
- पेसमेकर लगाने के दौरान इंफेक्शन (Infection) का खतरा बढ़ सकता है।
- सूजन (Swelling) या ब्लीडिंग (Bleeding) का खतरा होना।
- पेसमेकर के पास मौजूद ब्लड वेसेल्स (Blood vessels) या नर्व (Nerve) का डैमेज होना
- लंग्स (Lungs) को क्षति पहुंचना।
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स्वस्थ रहने के लिए अपने आहार का विशेष ध्यान रखते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि कौन से खाद्य पदार्थ का सेवन कब करना चाहिए? नीचे दिए इस वीडियो लिंक पर क्लिक कर एक्सपर्ट से जानिए कब और क्या खाएं।
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पेसमेकर का काम: पेसमेकर लगने के बाद किन-किन बातों का रखें ध्यान?
पेसमेकर लगने के बाद 1 या 2 दिनों के बाद हॉस्पिटल से पेशेंट को डिस्चार्ज कर दिया जाता है। उसके बाद पेशेंट और परिवार वालों को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी माना जाता है। जैसे:
- 4 से 6 kg या इससे ज्यादा वजन ना उठायें।
- हेवी एक्सरसाइज (Workout) करने से बचें।
- दवाओं (Medicine) का सेवन समय पर करें।
- अपने आर्म्स से और एक्सपर्ट की सलाह लेकर पुश, पुल एवं ट्विस्ट एक्टिविटी करें।
- पेसमेकर (Pacemaker) लगने के बाद ज्यादा पावर वाले इलेक्ट्रिसिटी से दूर रहें।
- मोबाइल फोन या अन्य रेडियो तरंग वाले गैजेट्स के इस्तेमाल के दौरान भी सावधानी बरतें।
- मोबाइल फोन का इस्तेमाल जिस ओर पेसमेकर (Pacemaker) लगा हुआ है, उस ओर ना करें।
- एयरपोर्ट या अन्य जगहों पर की जाने वाली मेटल डिटेक्टर (Metal detector) से जांच के पहले व्यक्ति को पेसमेकर की जानकारी दें।
इन जरूरी बातों का ध्यान रखें और डॉक्टर द्वारा दिए गए सुझाव का पालन करें।
पेसमेकर लगवाने के बाद व्यक्ति को ठीक होने में 1 से 2 सप्ताह का समय लग सकता है। वहीं इस डिवाइस के लग जाने के बाद सीने में दर्द (Chest pain), चक्कर आना या फिर पेशेंट बेहोश (Faint) हो सकते हैं। अगर ऐसी परेशानी ज्यादा हो, तो डॉक्टर को इसकी जानकारी दें।
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