- डायरेक्टली (Directly): इसमें दवाईयां हार्ट के इलेक्ट्रिकल करंट को प्रभावित कर सकती हैं।
- इंडायरेक्टली (Indirectly): बीटा ब्लॉकर्स (Beta blockers) जैसी दवाईयां एड्रेनलिन (Adrenaline) के प्रभाव को ब्लॉक करती हैं और हार्ट में ब्लड फ्लो (Blood Flow) को सुधरती हैं। बीटा ब्लॉकर्स हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) को कम करने में भी मदद कर सकती हैं। यह सबसे सुरक्षित और सामान्य प्रयोग की जाने वाली दवाईयां हैं।
और पढ़ें: ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने के साथ जानुशीर्षासन के और अनजाने फायदें और करने का सही तरीका जानिए
इसके अलावा प्रयोग होने वाली दवाईयां इस प्रकार हैं:
- यदि बीटा ब्लॉकर्स से उपचार के बाद भी रोगियों को वेंट्रिकुलर टॉयकीकार्डिया (Ventricular tachycardia) का अनुभव होता है, तो एंटीएरिथिमिक दवाएं (Antiarrhythmic Medications), जैसे कि सोटोलोल (Sotalol) या ऐमियोडैरोन (Amiodarone) की सलाह दी जा सकती है।
- एंजियोटेंसिन कंवर्टिंग एंजाइम (Angiotensin converting enzyme) इन्हिबिटर्स भी हार्ट के वर्कलोड को कम करने में सहायक हैं और हार्ट फेलियर के जोखिम को भी यह कम कर सकती हैं। ऐसे में डॉक्टर इनकी सलाह भी दे सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि सभी दवाईयों के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। इसलिए इनके बारे में भी पहले ही डॉक्टर से जान लें।
और पढ़ें: कार्डियोमायोपैथी में बीटा ब्लॉकर्स : इस तरह से है फायदेमंद, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बिना लेने की न सोचें
इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (Implantable Cardioverter Defibrillators)
इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर का प्रयोग सामान्य रूप से एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया(Arrhythmogenic Right Ventricular Dysplasia) के उपचार के लिए किया जाता है। यह डिवाइस लगातार हार्ट बीट को मॉनिटर करते हैं अगर इन डिवाइसेस को एक असामान्य हार्ट बीट या तेज हार्ट रिदम का अनुभव होता है। तो वो ऑटोमेटिकली एक स्मॉल इलेक्ट्रिकल शॉक रोगी के हार्ट को देते हैं। इसके कारण थोड़ी देर के लिए रोगी को परेशानी भी हो सकती है। यह डिवाइस पेसमेकर की तरह भी काम करते हैं। यही नहीं, यह फास्ट और स्लो दोनों तरह की रिदम्स का उपचार कर सकते हैं। लेकिन, इन डिवाइसेस की हर 3 से 6 महीने के अंदर जांच होनी चाहिए और हर 4 या 6 साल में इन्हें रिप्लेस करना भी जरुरी है।
कैथेटर एबलेशन (Catheter Ablation)
एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Dysplasia) के उपचार के लिए कैथेटर एबलेशन (Catheter Ablation) का प्रयोग भी किया जाता सकता है। इसके साथ हार्ट का वो हिस्सा जो असामान्य हार्टबीट का कारण बन रहा है, उस टिश्यू को नष्ट करने के लिए पहले इसे पहचाना जाता है और उसके बाद कोट्राइज्ड (Cauterized) यानी दागा जाता है। इस इनवेसिव प्रोसीजर को इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी लेबोरेटरी में किया जाता है और इससे एरिथमिक एपिसोड्स (Arrhythmic episodes) की फ्रीक्वेंसी को कम किया जा सकता है
इस स्थिति में हार्ट को हुआ डैमेज अगर गंभीर हो तो हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) की जरूरत भी हो सकती है हालांकि यह दुर्लभ है। यह तो इस हार्ट डिजीज के उपचार। अब पाइए एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Dysplasia) की स्थिति को मैनेज करने की जानकारी।