विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैज्ञानिकों के पत्र को संज्ञान में लेते हुए कोरोना वायरस एयरबॉर्न की बात पर गौर किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में कोविड-19 महामारी से जुड़ी टेक्निकल लीड डॉक्टर मारिया वा केरख़ोव ने मीडिया से मुखातिब होते हुए इस विषय पर कहा कि, “कोरोना वायरस हवा के द्वारा फैलने की आशंका है, ऐसा वैज्ञानिकों के हवाले से पता चला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के लोग अभी इस बात पर विचार विमर्श कर रहे हैं।”
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इसी बात पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि, “जब हम खांसते हैं, बोलते हैं, चिल्लाते हैं, छींकते हैं तो हमारे मुंह से छोट-छोटे ड्रॉपलेट्स निकलते हैं। ये ड्रॉपलेट्स अलग-अलग साइज के होते हैं और एक से दो मीटर दूर तक फैल सकते हैं। जिससे उस ड्रॉपलेट में मौजूद बैक्टीरिया या वायरस किसी को भी संक्रमित कर सकता है। लेकिन इन्हीं ड्रॉपलेट्स में एक बहुत छोटा ड्रॉपलेट होता है, जिसका आकार 5 माइक्रोन से भी कम होता है। इतने छोटे ड्रॉपलेट्स को एरोसॉल्स कहते हैं। ये ड्रॉपलेट्स हवाओं के झोंकों के साथ उड़ कर इधर-उधर जा सकते हैं। जिसके बाद ये आसपास के क्षेत्रों में आसानी से फैल सकता है।”
कोरोना वायरस एयरबॉर्न है या नहीं, इस पर डॉ. सौम्या का कहना है कि, “अभी कोरोना वायरस एयरबॉर्न है या नहीं इस पर निर्णय लेना जल्दबाजी होगी। क्योंकि हवा से फैलने वाली बीमारी का संक्रमण दो तरह का हो सकता है- पहला तो ये कि किसी बीमारी से संक्रमित व्यक्ति द्वारा निकले हुए ड्रॉपलेट्स किसी सतह पर रुक जाए। इस तरह से ड्रॉपलेट्स में मौजूद बैक्टीरिया या वायरस अगले कितने घंटों तक उस सतह पर जिंदा रह सकते हैं, ये उस सतह पर निर्भर करता है। इस बीच अगर कोई व्यक्ति उस सतह के संपर्क में आता है तो संक्रमण उस तक पहुंच सकता है। वहीं, दूसरा ये है कि अगर ड्रॉपलेट्स बहुत छोटे हैं तो वो ठहरी हुई हवा में एक निश्चित दूरी तक 10 से 15 मिनट तक टिके रह सकते हैं। इस दौरान अगर कोई व्यक्ति उस क्षेत्र में आता है या उस क्षेत्र से गुजरता है तो ड्रॉपलेट में मौजूद बैक्टीरिया या वायरस से संक्रमित हो सकता है। क्योंकि व्यक्ति के सांसों के द्वारा वो ड्रॉपलेट्स उसके शरीर के अंदर जा सकता है।”