नवजात शिशुओं में बीमारियां कई तरह की हो सकती हैं, यह बीमारियां बच्चे के जन्म से लेकर शुरुआती सालों में कभी भी हो सकती है। इसलिए इन शुरुआती सालों में बच्चे का खास ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है। नवजात शिशुओं में बीमारियां (Common Health Problems in Babies) बच्चे के विकास पर सीधा प्रभाव डालती है, इसलिए इन बीमारियों की वजह से बच्चा परेशान हो सकता है। यही वजह है कि नवजात शिशुओं में बीमारियां (Health Problems in Babies) होने पर जल्द से जल्द उसका इलाज करवाना चाहिए, जिससे बच्चे को समस्याओं का सामना ना करना पड़े। आइए जानते हैं नवजात शिशुओं में बीमारियां कौन-कौन सी हो सकती हैं और जानते हैं इससे जुड़ी ज़रूरी बातें।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : जो बन सकती है परेशानी का सबब! (Common Health Problems in Babies)
नवजात शिशुओं में बीमारियां (Common Health Problems in Babies) कई तरह की होती हैं, जिसमें से कुछ आसानी से ठीक हो सकती है, वहीं कुछ को ठीक होने में समय लग सकता है। पर दोनों ही स्थितियों में बच्चे की तकलीफ़ कम नहीं होती। इसलिए इन समस्याओं के बारे में माता-पिता को सही जानकारी होनी बेहद जरूरी मानी जाती है। इन समस्याओं के बारे में जानकर माता-पिता समाय पर बच्चे पर ध्यान दे सकते हैं और उसका जल्द से जल्द इलाज करवा सकते हैं। आइए जानते हैं नवजात शिशुओं में बीमारियां (Health Problems in Babies) कौन-कौन सी हो सकती हैं।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : बर्थ इंजरी (Birth injury)
आमतौर पर बच्चे के जन्म के दौरान कई तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, लेकिन बच्चे के जन्म के दौरान बर्थ प्रोसीजर के वक्त बच्चे को फिजिकल इंजरी हो सकती है। इसे बर्थ ट्रॉमा (Birth trauma) या बर्थ इंजरी के नाम से जाना जाता है। कई बार बर्थ कैनाल से बच्चे को बाहर निकालने के लिए फ़ोर्सेप या सक्शन पम्प का इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी वजह से बच्चे को फिजिकल इंजरी हो सकती है। हालांकि इन बर्थ इंजरी से बच्चा जल्द से जल्द रिकवर हो जाता है, लेकिन आमतौर पर शुरुआती समय में उसे सूजन और घाव होने की संभावना हो सकती है।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : पीलिया (Jaundice)
नवजात शिशुओं में बीमारियां (Common Health Problems in Babies) आम तौर पर एक जैसी ही होती है, इन्हीं बीमारियों में से एक बीमारी है पीलिया की। नवजात शिशु में पीलिया एक आम समस्या मानी जाती है। जब बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा ज्यादा हो जाती है, तो उनकी त्वचा पीली पड़ जाती है। इस समस्या को नियोनेटल जौंडिस के नाम से जाना जाता है। जब बच्चों का लिवर पूरी तरह से डेवेलप नहीं होता, तब यह रक्त में मौजूद बिलीरुबिन (Bilirubin) की मात्रा को कम नहीं कर पाता। लेकिन यह समस्या 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो सकती है। इस दौरान बच्चे का खास ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : एब्डोमिनल डिस्टेंशन (Abdominal distension)
आमतौर पर नवजात बच्चों में एब्डोमिनल डिस्टेंशन की समस्या देखी जाती है। यह समस्या तब होती है, जब बच्चा जरूरत से ज्यादा हवा शरीर के अंदर ले लेता है। इसलिए माता-पिता को बच्चे के पेट का खास ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है। नवजात शिशु का पेट काफी कोमल होता है, इसलिए यदि बच्चे का पेट फूला हुआ और कड़ा महसूस हो, तो बच्चे को गैस या कॉन्स्टिपेशन (Constipation) की समस्या हो सकती है। इस स्थिति के चलते बच्चे को फीडिंग के दौरान तकलीफ उठानी पड़ती है। इसलिए एब्डोमिनल डिस्टेंशन की समस्या में डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी माना जाता है।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : उल्टी (Vomiting)
नवजात शिशुओं में बीमारियां (Common Health Problems in Babies) आम तौर पर सामान्य तकलीफों में से एक होती है, इन्हीं सामान्य तकलीफों में से एक तकलीफ है उल्टी की। आमतौर पर बच्चा दूध पीने के बाद उल्टी कर सकता है। यह समस्या तब होती है, जब बच्चा दूध पीने के बाद डकार नहीं लेता। इसलिए बच्चे को दूध पिलाने के बाद डकार दिलवाना बेहद जरूरी है। यदि बच्चा दूध के साथ हल्के हरे रंग की उल्टी करे और उसकी उल्टी (Vomiting) ना रुके, तो यह एक सीरियस प्रॉब्लम कहलाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे को जल्द से जल्द डॉक्टर के पास ले जाना जरूरी माना जाता है।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस (Respiratory distress)
नवजात शिशुओं में बीमारियां (Common Health Problems in Babies) होना आम बात है, लेकिन इन बीमारियों में कुछ तकलीफें ऐसी हैं, जो बच्चे के लिए समस्याएं खड़ी कर सकती हैं। जब बच्चे को जरूरत के मुताबिक ऑक्सीजन नहीं मिलती, तो बच्चे के लिए यह स्थिति गंभीर साबित हो सकती है। ऐसा तब होता है जब बच्चे के नजल पैसेज में ब्लॉकेज उत्पन्न हो जाए। ऑक्सीजन की कमी के वजह से बच्चे की स्किन हल्की नीले रंग की दिखाई दे सकती है। इसलिए नवजात शिशु के ब्रीदिंग पैटर्न पर खास ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। यदि बच्चे की त्वचा नीली रंग की दिखाई दे, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। आमतौर पर नवजात शिशुओं में रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस (Respiratory distress) आम तौर पा देखा जा सकता है।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : स्किन प्रॉब्लम (Skin problem)
बच्चों की त्वचा बेहद कोमल होती है और काफी नाजुक भी होती है, इसलिए बच्चों में आमतौर पर स्किन की समस्याएं हो सकती है। इन स्किन की समस्याओं में डायपर रैश जैसी समस्याएं आम तौर पर देखी जा सकती हैं। लेकिन कई बार बच्चों को एलर्जी की समस्याएं भी हो सकती हैं, इसलिए बच्चे को एलर्जी या रैश की तकलीफ होने पर डॉक्टर से संपर्क करके रैश क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा यदि बच्चे के स्कैल्प में किसी तरह की एलर्जी (Allergies) दिखाई दे रही है, तो बच्चे के शैंपू का चुनाव सावधानी से किया जाना चाहिए। जिससे बच्चे को एलर्जी की समस्या ना हो।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां : इयर इंफेक्शन (Ear infection)
आमतौर पर बच्चे को इयर इंफेक्शन होने का खतरा होता है। आमतौर पर यह इंफेक्शन बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन (Bacterial or viral infection) भी हो सकता है, जो लंबे समय तक बना रहे, तो बच्चे की सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसलिए ऐसी स्थिति में आपको जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इयर इंफेक्शन की वजह से बच्चे को कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, इसलिए डॉक्टर की सलाह के बाद एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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नवजात शिशुओं में बीमारियां (Health Problems in Babies) कई तरह की हो सकती हैं, ऐसी स्थिति में आपको बच्चे पर ध्यान रखना बेहद जरूरी माना जाता है। किसी भी तरह का डिस्कंफर्ट बच्चे को हो रही समस्या की ओर इशारा करता है, इसलिए माता-पिता को बच्चे के शुरुआती महीनों में खास ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। बच्चे की सेहत का ठीक तरह से ध्यान रखने के लिए आपको डॉक्टर से संपर्क में बने रहना चाहिए और बच्चे के बर्ताव में बदलाव देखने के बाद तुरंत उसका चेकअप करवाना चाहिए। जिससे आप नवजात शिशुओं में बीमारियां (Common Health Problems in Babies) पहचान सकें और इसका जल्द से जल्द इलाज करवा सकें।
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