सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) प्लान करने से पहले और बाद में ध्यान रखने वाली कुछ बातें
प्रेग्नेंट होने की जानकारी मिलते ही कपल अलग-अलग तरह की प्लानिंग में जुट जाते हैं। इसी प्लानिंग में एक है सी-सेक्शन डिलिवरी (सिजेरियन डिलिवरी)। जिसमें बच्चे का जन्म ऑपरेशन के द्वारा होता है। हालांकि सी-सेक्शन डिलिवरी (C-section delivery) आजकल आम बात हो गई है, लेकिन सिजेरियन डिलिवरी मेजर सर्जरी के श्रेणी में आती है। नॉर्मल डिलिवरी (Normal delivery) में वजाइना से बच्चे का जन्म होता है वहीं सिजेरियन डिलिवरी में बच्चे का जन्म ऑपरेशन से होता है। जानते हैं इस आर्टिकल में सी-सेक्शन (C-section) के बारे में।
सी-सेक्शन डिलिवरी क्या है? (what is C-section /Cesarean delivery)
सी-सेक्शन डिलिवरी ऑपरेशन एक प्रकार की सर्जरी है। इसमें प्रसव के दौरान गर्भवती के पेट और गर्भाशय पर चीरा लगाया जाता है, जिससे शिशु का जन्म आसानी से हो सके। इसके बाद ये टांके बंद कर दिए जाते हैं, जो समय के साथ-साथ बॉडी में घुल जाते हैं।
सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) दो तरह की होती है
- कपल खुद से निर्णय लेते हैं कि उन्हें सिजेरियन करवाना है।
- कभी-कभी डॉक्टरों को भी अचानक सिजेरियन का निर्णय लेना पड़ता है।
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अगर गर्भवती महिला सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) की प्लानिंग कर रही है तो कुछ बातों को जरूर ध्यान रखना चाहिए-
- जो महिलाएं सिजेरियन का विकल्प चुनती हैं उन्हें सामान्य डिलिवरी की तुलना में नॉर्मल होने के लिए दो से चार सप्ताह तक का समय लगता है।
- सिजेरियन के बाद सांस संबंधित परेशानी, डायबिटीज, मोटापा (Obesity) और एलर्जी (Allergy) होने की अधिक संभावना होती है।
- सिर्फ लेबर पेन के डर की वजह से सिजेरियन डिलिवरी प्लान करना सही फैसला नहीं है। गर्भवती महिला अगर गर्भावस्था के दौरान अपना ध्यान ठीक से रखती है और डॉक्टरों द्वारा दी गई सलाह को मानती है तो, सिजेरियन की संभावना कम होती है।
- सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) के वक्त पेन तो नहीं होगा क्योंकि डिलिवरी के बाद पेन किलर दवाईयां दी जाती है, लेकिन इसके बाद खाने-पीने और शिशु की देखभाल करने में परेशानी होती है।
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- सिजेरियन (C-section) के बाद डॉक्टर जब तक हॉस्पिटल से छुट्टी ना दे दें तब तक हॉस्पिटल में ही रुकना पड़ता है।
- C-section के बाद झुकने, तेजी से चलने की इजाजत नहीं होती है, क्यूोंकि इससे पेट पर लगे टांके पर जोर पड़ता है और टांके टूटने या उनसे खून आने की संभावना हो सकती है।
- पेट पर लगे टांके को साफ रखना होता है और अस्पताल से घर जाने के पहले इसे कैसे साफ रखना है यह जरूर समझ लेना चाहिए।
- C-section के बाद लगातार कुछ महीने तक आराम करने की सलाह दी जाती है जिससे भविष्य में होने वाली परेशानी से बचा जा सके।
- प्रेग्नेंसी (Pregnancy) के दौरान आखिरी के कुछ महीनों में गर्भवती महिला को सोने में तकलीफों का सामना करना पड़ता है क्योंकि शरीर का वजन बढ़ जाता है और पेट भारी होता है। ठीक वैसे ही सिजेरियन डिलिवरी (Cesarean delivery) के बाद भी सोने के वक्त ख्याल रखना पड़ता है जिससे टांके पर जोर न आए। पेट के बल आप नहीं सो सकते।
सी-सेक्शन डिलिवरी (Cesarean delivery) के लाभ और रिस्क
अगर आप सी-सेक्शन डिलिवरी (Cesarean delivery) प्लान कर रहीं हैं, तो उससे पहले इसके लाभ और जोखिम को भी जानना जरूरी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि श्लय प्रसव के मुकाबले सामान्य प्रसव बेहतर रहता है। इसलिए डॉक्टर भी आखिरी समय तक नॉर्मल डिलिवरी (Normal delivery) के लिए ही ट्राई करते हैं। फिर भी कुछ परिस्थितियों के चलते डॉक्टर सिजेरियन डिलिवरी करने का निर्णय लेते हैं। जानते हैं सी-सेक्शन डिलिवरी के लाभ-
- अगर गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों की जिंदगी को कुछ खतरा है, तो डॉक्टर सर्जरी करना ही उचित समझते हैं।
- सामान्य प्रसव की तुलना में ऑपरेशन से जन्म के समय शिशु को होने को लगने वाली चोट/फ्रैक्चर और ऑक्सिजन (Oxigen) की कमी से बचाया जा सकता है।
- गर्भवती महिला को पेल्विक फ्लोर विकार (पेल्विक एरिया की मांसपेशियां और टिश्यू का कमजोर होकर टूट जाना) जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है
- ऑपरेशन के जरिए शिशु के जन्म का दिन और समय पहले से ही तय किया जा सकता है।
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सी-सेक्शन डीलिवरी (Cesarean delivery) से होने वाले रिस्क
- सर्जरी की वजह से महिला को कई दिनों तक हॉस्पिटल में रहना पड़ता है। ऑपरेशन के कारण असहनीय दर्द से जूझना पड़ता है। साथ ही संक्रमण (Infection) होने की संभावना भी बनी रहती है।
- सी-सेक्शन डिलिवरी से महिला को खून की कमी भी हो सकती है।
- ऑपरेशन के कारण आंत या मूत्राशय में जख्म हो सकता है या फिर खून के थक्के भी बन सकते हैं।
- महिला को ब्रेस्टफीडिंग (Breastfeeding) कराने की स्थिति में आने में ज्यादा समय लग सकता है। साथ ही महिला का शिशु से कॉन्टैक्ट भी देर में होता है।
- अगली बार कंसीव करने पर भी सी-सेक्शन डिलिवरी (Cesarean delivery) होने का अंदेशा रहता है।
- सर्जरी से जन्मे शिशु को अस्थमा यानी दमे की बीमारी भी हो सकती है।
सिजेरियन डिलिवरी (C-section) के बाद क्या करें?
- सिजेरियन के बाद आराम करने के साथ-साथ धीरे-धीरे वॉक (Walk) करने की भी आदत डालें।
- सिजेरियन के बाद डॉक्टर द्वारा दी गई दवा का सेवन नियमित रूप से करें।
- दर्द की दवा लेने से पहले एक्सपर्ट से जरूर सलाह लें।
- सिजेरियन के बाद पूरी तरह से ठीक होने में लगभग 10 महीने तक का समय या इससे ज्यादा भी लग सकता है। हालांकि एक्सपर्ट्स से सलाह लेकर आसान व्यायाम (Workout) किया जा सकता है जैसे धीरे-धीरे वॉक करना या ध्यान की मुद्रा में बैठना।
- इस दौरान अपनी डायट का भी ख्याल रखें। क्योंकि इस दौरान आप ब्रेस्टफीडिंग भी करवा रही होती है इसलिए डायट को विशेष महत्व दें।
- इस बारे में डॉक्टर या डायट एक्सपर्ट से भी सलाह ली जा सकती है।
- ब्रेस्टफीडिंग के सही पॉजिशन का चुनाव करें क्योंकि गलत पॉजिशन से टांकों पर असर पड़ सकता है। इसके लिए आप किसी बड़े बुजुर्ग की मदद ले सकती हैं।
- आप अपनी मदद के लिए दाई या किसी करीबी को भी बुला सकती हैं।
अगर आप सिजेरियन सिर्फ लेबर पेन से बचने के लिए प्लान कर रहीं हैं तो ऊपर बताई गईं बातों को ध्यान से पढ़ना और समझना जरूरी है। क्योंकि डॉक्टर गर्भवती महिला और जन्म लेने वाले बच्चे को ध्यान में रख कर डिलिवरी का फैसला करते हैं। यह तो स्पष्ट है कि गर्भवती महिला के लिए सी-सेक्शन डिलिवरी (C-section delivery) का निर्णय विषम परिस्थितियों में ही लिया जाता है। हम आशा करते हैं कि इस आर्टिकल में आपको सिजेरियन प्रसव से जुड़ी हर तरह की जानकारी मिल गई होगी। अगर आपका इस संबंध में कुछ सवाल या सुझाव है तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में हम से पूछ सकते हैं। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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