भारत में ऑनलाइन गेम का कारोबार बहुत ही तेजी से फल फूल रहा है। बीते कुछ वर्षों की बात की जाए तो भारत में वीडियो गेम इंडस्ट्री ने काफी तरक्की की है। भारतीय वीडियो गेम इंडस्ट्री में अलिबाबा, टेनसेंट, नजारा और युजु (Youzu) जैसी दिग्गज कंपनियों के भारी भरकम निवेश से इस इंडस्ट्री ने ग्रोथ की रफ्तार पकड़ी है। भारत में 2019 में वीडियो गेम इंडस्ट्री की वैल्यू करीब 6200 करोड़ रुपए होगी।
एक अनुमान के मुताबिक, 2024 तक गेमिंग इंडस्ट्री की वैल्यू बढ़कर 25 हजार करोड़ पर पहुंच जाएगी। आर्थिक मोर्चे पर वीडियो गेम इंडस्ट्री ने नए आयाम पेश किए हैं तो वहीं स्वास्थ्य के लिहाज से इसने पूरे देश के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी की है। 2019 में वीडियो गेम इंडस्ट्री भारतीयों की हेल्थ के लिए एक बड़ा खतरा रही। इसमें कोई दो राय नहीं कि ऑनलाइन गेम के दुष्प्रभाव इसके फायदों से ज्यादा बड़े हैं। आज हम इस आर्टिकल में कुछ ऐसी ही घटनाओं के बारे में जानने की कोशिश करेंगें, जिनकी हेल्थ को वीडियो गेम ने प्रभावित किया।
ऑनलाइन गेम की चपेट में युवाओं का स्वास्थ्य
डोटा 2 एक मल्टीप्लेयर वीडियो गेम है। इस वीडियो गेम में दो टीम होती हैं। प्रत्येक टीम में पांच प्लेयर होते हैं। प्रत्येक टीम एक पुरानी जगह की सुरक्षा करती है और प्रतिद्वंद्वी टीम की जगह को ध्वस्त करती है। दिल्ली में डोटा 2 से जुड़ा हुआ एक सनसनीखेज मामला सामने आया था। जब पोस्टग्रेजुएट की पढ़ाई करने वाला प्रणव नाम का एक छात्र घंटों तक वीडियो गेम खेलता था। प्रणव के दोस्तों ने उसे डोटा 2 से परिचित कराया था।
प्रणव डिजिटल गेमिंग डिजाइन में मास्टर्स कर रहा था। प्रणव के पिता सुभाष ने उस वक्त मीडिया से कहा था, ‘प्रणव छुट्टियों में जब भी घर आता था तब वो वीडियो गेम खेलता था। वो अपने आपको 6-7 घंटों तक कमरे में बंद कर लेता था।’ सुभाष के मुताबिक, ‘जब मैंने उससे सवाल करना शुरू किया तो उसने कहा कि यह उसकी पढ़ाई का हिस्सा है और मैंने उसे वीडियो गेम खेलने की इजाजत दे दी।’ उन्होंने कहा कि मुझे अहसास ही नहीं हुआ कि मेरे बेटे को वीडियो गेम की लत लग चुकी है।
छात्र छोड़ देते हैं खाना पीना
प्रणव के पिता कहते हैं, ‘मेरा बेटा वीडियो गेम में इतनी बुरी तरह फंस चुका था कि वह उसके बिना रह ही नहीं पाता था। उसने अपना खाना पीना और नींद छोड़ दी, जिसकी वजह से उसका वजन गिरने लगा।’
मेंटल हेल्थ पर ऑनलाइन गेम के दुष्प्रभाव
सुभाष के मुताबिक, ‘जब हमने उससे उसका लैपटॉप छीन लिया तो उसने मोबाइल और दरवाजा तोड़ दिया। दूसरी बार उसने घर की आठवीं मंजिल से कूदने की धमकी दी। मेरी पत्नी ने उससे बात की और उसे नीचे लेकर आई। मेरे परिवार के लिए यह एक कठिन समय था।’ प्रणव के पिता अपने बेटे का इलाज कराने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (NIMHANS) के शट क्लिनीक (Shut Clinic) (सर्विस फोर हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी) बेंगलुरू लेकर गए। कई दिनों तक इलाज कराने के बाद प्रणव वीडियो गेम की इस लत से बाहर निकल पाया।
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WHO ने माना ऑनलाइन गेम मेंटल हेल्थ के लिए खतरा
जून 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने गेमिंग की लत को मानसिक स्वास्थ्य की एक समस्या के रूप में वर्गीकृत किया है। इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के मैन्युअल में WHO ने गेमिंग की लत की व्याख्या की है, जो कि इस प्रकार है, डिजिटल या वीडियो गेम्स के रूप में लगातार या बार बार जुआ खेलने का एक व्यवहार है। यह इतना व्यापक है, जो जिंदगी की अन्य जरूरी चीजों की जगह ले लेता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि गेमिंग कोकीन और जुआ के समान लगने वाली लत हो सकती है।
वर्किंग लाइफ को खराब करता है ऑनलाइन गेम
अमेरिका की एक क्लाउड सर्विस कंपनी लाइमलाइट (Limelight) नेटवर्क ने इस संबंध में एक सर्वे किया था। कंपनी के सर्वे के मुताबिक, 24.2 प्रतिशत गेमर ऑनलाइन गेम खेलने के लिए काम को छोड़ देते हैं। यह आंकड़ा फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, सिंगापुर, साउथ कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिकी लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
सर्वे में शामिल 52% भारतीय गेमर ने माना कि वह ऑफिस के काम के दौरान वीडियो गेम खेलते हैं। दुनियाभर में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है। वहीं, ऑनलाइन गेम को अपना प्रोफेशन बनाने के मामले में भारत का स्थान टॉप पर आता है। इसके पीछे गेमिंग टूर्नामेंट का प्राइज मनी बढ़ना एक बड़ी वजह है।
पिछले कुछ दिनों में प्रौढ़ और युवा व्यस्क अधिक संख्या में ऑनलाइन गेम की लत को छुड़ाने के लिए काउंसलिंग के लिए आ रहे हैं। इस संख्या में इजाफा हुआ है। यह इजाफा इस समस्या के बारे में जागरुकता आने से हुआ है। ऑनलाइन गेमिंग की लत ज्यादातर 12-25 वर्ष के लोगों के बीच देखी जाती है।
इस पर मैक्स अस्पताल के साइकैट्रिस्ट डॉ. समीर मल्होत्रा ने भारत के एक जाने माने मीडिया ग्रुप से इस पर बात करते हुए कहा था कि अक्सर घंटों तक वीडियो गेम खेलने वाले टीनएजर्स स्कूल स्किप कर देते हैं। ऑनलाइन गेमिंग की प्रतिद्वंद्वी प्रकृति को बताते हुए उन्होंने कहा, ‘लोगों को एक इंस्टंट किक चाहिए। आप अगर बताएं तो वो असल जिंदगी में जीना छोड़ देते हैं। वीडियो गेम्स में रिवॉर्ड मिलना है।’
मस्तिष्क में इसे दोबारा खेलने के लिए बढ़ावा देता है। जब रिवॉर्ड दोबारा मिलता है तो आगे खेलने की ललक में स्थितियां और भी बदतर हो जाती हैं।
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आईजेओएसपी (Indian Journal of Social Psychiatry) के आंकड़े
इंडियन जर्नल ऑफ सोशल साइकेट्री ने बच्चों पर ऑनलाइन गेम के प्रभाव को लेक एक शोध किया। इस शोध में 200 छात्रों को शामिल किया गया। यह छात्र अलग-अलग राज्यों के स्कूलों में कक्षा आठवीं और नौवी के छात्र थे। यह छात्र इंग्लिश लिखना और पढ़ना जानते थे। इस अध्ययन में पता चला कि 18% बच्चे नियंत्रण के साथ वीडियो गेम खेलते हैं। 20% बेहद ही ज्यादा वीडियो गेम खेलते हैं और 17.5% छात्र को वीडियो गेम की लत थी।
शोध में पता चला कि 19% से ज्यादा बच्चे रोजाना तीन घंटों से ज्यादा का समय वीडियो गेम खेलने में व्यतीत करते हैं। इन बच्चों की जिंदगी का महत्वपूर्ण समय वीडियो गेम खेलने में व्यतीत होता है। इससे उनके पारिवारिक रिश्ते प्रभावित होते हैं। साथ ही सीखने में व्यतीत होने वाला समय भी प्रभावित होता है।
ऑनलाइन गेम की लत साबित हुई जानलेवा
किसी भी चीज की आदत जब तक नियंत्रण में है तब तक वह आपका एक शौक रह सकती है। यदि वो शौक की हद को पार करके यदि लत में तब्दील हो जाए तो वह जानलेवा साबित हो सकती है। 28 मई 2019 को मध्य प्रदेश में 16 वर्षीय फुर्कान कुरैशी नाम के एक छात्रा की ऑनलाइन गेम खेलते वक्त जान चली गई। यह छात्र लगातार छह घंटों तक पब्जी (PUBG) खेलता रहा, जिसके चलते उसे कार्डिएक अरेस्ट आ गया। हाल की दिनों में गुजरात को मिलाकर कई राज्यों ने इस प्रकार के वीडियो गेम पर रोक लगाने की कोशिश की है। वहीं, नेपाल और ईराक में ऐसे वीडियो गेम्स प्रतिबंधित हैं।
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ब्लू व्हेल (Blue Whale Challenge)
ऑनलाइन गेम ब्लू व्हेल इस मामले में एक खूनी वीडियो गेम साबित हो चुका है। इसमें बच्चों को 50 टास्क पूरे करने के लिए कहा जाता था। टास्क के अंतिम दिन वीडियो गेम में उनसे अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए कहा जाता था। अप्रैल 2019 में हैदराबाद के एक छात्र ने ऑनलाइन गेम पब्जी के चक्कर में पंखे से लटककर आत्म हत्या कर ली। इंग्लिश का एग्जाम देने के बजाय छात्र ऑनलाइन गेम पब्जी खेल रहा था। इसको लेकर उसके पिता ने उसे डांटा, जिसके चलते उसने पंखे से लटकर अपनी जान दे दी। एक ऐसा ही घटना मार्च 2019 में महाराष्ट्र में सामने आई थी। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) के मुताबिक, ‘ 20 वर्षीय दो लड़के रेलवे ट्रेक पर पब्जी खेल रहे थे, जिसके चलते दूसरी दिशा से आ रही ट्रेन कटकर उनकी मौत हो गई।’ साउथ कोरिया की एक कंपनी ने 2017 में पब्जी को लॉन्च किया था।
इन राज्यों में लगा ऑनलाइन गेम पर बैन
ऑनलाइन गेम पब्जी के हेल्थ पर दुष्प्रभाव को देखते हुए, कई राज्यों ने इस पार बैन लगाने की एक मुहिम शुरू की। जनवरी 2019 में गुजरात के स्टेट पब्लिक एजुकेशन डिपार्टमेंट ने विद्यालयों से 30 अप्रैल तक रोक लगाने के लिए कहा था। हालांकि, गुजरात उस दौरान इकलौता राज्य था, जिसने पब्जी पर बैन लगाया था। वहीं, आसपास से सटे राज्यों में भी अधिकारियों ने इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
दिसंबर 2018 में तमिलनाडु के वेल्लूर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने पब्जी पर कैंपस का माहौल खराब करने का आरोप लगाते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया था। फरवरी में गोवा के सूचना तकनीकी मंत्री रोहन खाउंते ने इसे हर घर में एक दानव कहते हुए पब्जी पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
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विदेशों के आंकड़ों पर एक नजर
साल 2013 में रूस में ऑनलाइन गेम ब्लू व्हेल गेम को लॉन्च किया गया था। रूस में ब्लू व्हेल 100 से ज्यादा छात्रों की जान ले चुकी है। हाल ही में इसे बनाने वाले व्यक्ति को इंटरनेट पर छात्रों से इसे खेलने की अपील करने की एवज में तीन साल की सजा हुई। ब्लू व्हेल के आखिरी राउंड में खेलने वाले व्यक्ति से आत्म हत्या के लिए कहा जाता है। कई बच्चों ने इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए एक डरावनी फिल्म की तरह अपन हाथों की नसें तक काट ली थीं।
अंत में हम यही कहेंगे कि ऑनलाइन गेम को हेल्थ के लिए कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता। आप पता तक नहीं चलता है कि कब आपको इसकी लत लग जाती है, जिसका नतीजा भयावाह निकलता है।
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