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WHO ने माना ऑनलाइन गेम मेंटल हेल्थ के लिए खतरा
जून 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने गेमिंग की लत को मानसिक स्वास्थ्य की एक समस्या के रूप में वर्गीकृत किया है। इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के मैन्युअल में WHO ने गेमिंग की लत की व्याख्या की है, जो कि इस प्रकार है, डिजिटल या वीडियो गेम्स के रूप में लगातार या बार बार जुआ खेलने का एक व्यवहार है। यह इतना व्यापक है, जो जिंदगी की अन्य जरूरी चीजों की जगह ले लेता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि गेमिंग कोकीन और जुआ के समान लगने वाली लत हो सकती है।
वर्किंग लाइफ को खराब करता है ऑनलाइन गेम
अमेरिका की एक क्लाउड सर्विस कंपनी लाइमलाइट (Limelight) नेटवर्क ने इस संबंध में एक सर्वे किया था। कंपनी के सर्वे के मुताबिक, 24.2 प्रतिशत गेमर ऑनलाइन गेम खेलने के लिए काम को छोड़ देते हैं। यह आंकड़ा फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, सिंगापुर, साउथ कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिकी लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
सर्वे में शामिल 52% भारतीय गेमर ने माना कि वह ऑफिस के काम के दौरान वीडियो गेम खेलते हैं। दुनियाभर में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा है। वहीं, ऑनलाइन गेम को अपना प्रोफेशन बनाने के मामले में भारत का स्थान टॉप पर आता है। इसके पीछे गेमिंग टूर्नामेंट का प्राइज मनी बढ़ना एक बड़ी वजह है।
पिछले कुछ दिनों में प्रौढ़ और युवा व्यस्क अधिक संख्या में ऑनलाइन गेम की लत को छुड़ाने के लिए काउंसलिंग के लिए आ रहे हैं। इस संख्या में इजाफा हुआ है। यह इजाफा इस समस्या के बारे में जागरुकता आने से हुआ है। ऑनलाइन गेमिंग की लत ज्यादातर 12-25 वर्ष के लोगों के बीच देखी जाती है।
इस पर मैक्स अस्पताल के साइकैट्रिस्ट डॉ. समीर मल्होत्रा ने भारत के एक जाने माने मीडिया ग्रुप से इस पर बात करते हुए कहा था कि अक्सर घंटों तक वीडियो गेम खेलने वाले टीनएजर्स स्कूल स्किप कर देते हैं। ऑनलाइन गेमिंग की प्रतिद्वंद्वी प्रकृति को बताते हुए उन्होंने कहा, ‘लोगों को एक इंस्टंट किक चाहिए। आप अगर बताएं तो वो असल जिंदगी में जीना छोड़ देते हैं। वीडियो गेम्स में रिवॉर्ड मिलना है।’