एक सामान्य व्यक्ति के लिए इस संसार में अनेक रंग हैं, लेकिन नेत्रहीन लोगों के लिए यह दुनिया काफी चुनौतीपूर्ण है। रोजाना की दिनचर्या में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। भारत में कुछ लोग जन्म से ही नेत्रहीन होते हैं तो कुछ बाद में दुर्घटनावश हो जाते हैं। नेत्रहीन लोगों के कल्याण के लिए भारत ने कई योजनाएं चलाई हैं। हममें से ज्यादातर लोगों को नेत्रहीन व्यक्ति की समस्याओं और चुनौतियों को समझना काफी जटिल है। आज दुनिया अंतरराष्ट्रीय ब्रेल (World Braille Day) दिवस मना रही है। इस दिवस पर हम आपको इस आर्टिकल में नेत्रहीन लोगों की समस्याओं और चुनोतियों के बारे में बताएंगे। साथ ही हम लुइस ब्रेल और ब्रेल लिपि (Braille Script) पर संक्षिप्त रूप में एक प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे।
लुइस ब्रेल (Louis Braille) कौन थे?
लुइस ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 में फ्रांस के छोटे से गांव कुप्रे में हुआ था। नेत्रहीन लोगों के लिए लुइस ब्रेल (लुई ब्रेल) किसी युगपुरुष से कम नहीं थे। लुइस ब्रेल एक मध्यम वर्गीय परिवार से थे। इनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थे। लुइस ब्रेल की परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। घर के आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उनके पिता साइमन अतिरिक्त मेहनत करते थे।
घर की माली हालत खराब होने की वजह से लुइस के पिता ने उन्हें तीन वर्ष की आयु में अपने साथ घोड़ों के लिए काठी और जीन बनाने के काम में लगा दिया था। तीन वर्ष की आयु में लुइस ज्यादातर वक्त खेलने में गुजार देते थे। पिता द्वारा तैयार किए जाने वाली कठोर लकड़ी, रस्सी, लोहे के टुकड़े, घोड़े की नाल, चाकू और काम आने वाले लोहे के औजार के साथ ही लुइस खेला करते थे।
तीन वर्ष की आयु में अपने आसपास मौजूद वस्तुओं के साथ खेलना किसी भी बच्चे के लिए एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। एक दिन काठी के लिए लकड़ी को काटने में इस्तेमाल किया जाने वाला चाकू अचानक उछल कर लुइस की आंख में जा लगा। इससे लुइस की आंख से खून निकलने लगा।
लुइस अपनी आंख को दबाकर रोते हुए घर पहुंचा। इसके बाद उसकी मां ने आंख पर साधारण औषधि लगाकर पट्टी बांध दी। उस दौरान लगा कि लुइस की आयु कम है और समय के साथ वह ठीक हो जाएगा। लुइस के माता-पिता उसकी आंख के ठीक होने की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ दिनों बाद लुइस को दूसरी आंख से भी कम दिखाई देने लगा। संभवतः अपने पिता की लापरवाही की वजह से लुइस की आंख का उचित उपचार नहीं हो पाया। पांच वर्ष की आयु तक आते-आते लुइस नेत्रहीन हो गया। नन्हीं-नन्हीं आंखों से रंग बिरंगी दुनिया लुइस के लिए एक अंधकार में बदल गई।
ब्रेल लिपी (Braille Script) क्या है?
लुइस एक साधारण परिवार में जन्मा एक सामान्य बालक था। नेत्रहीन होने के बाद भी संसार से लड़ने की उसमें प्रबल इच्छाशक्ति थी। लुइस ने अपनी दृष्टिहीनता से हार नहीं मानी और वह मशहूर पादरी बैलेन्टाइन के पास गया। बैलेन्टाइन पादरी के प्रयासों के फलस्वरूप 1819 में 10 वर्षीय लुइस को ‘रॉयल इंस्टिट्यूट फॉर ब्लाइंड्स’ में दाखिला मिल गया। 1821 तक आते-आते लुइस 12 साल का हो गया था। इसी दौरान विद्यालय में लुइस को पता चला कि शाही सेना के रिटायर्ड कैप्टन चार्ल्स बार्बर ने सैनिकों के लिए एक ऐसी लिपि का विकास किया है, जिससे अंधेरे में टटोलकर संदेशों को पढ़ा जा सकता है।
कैप्टन चार्ल्स बार्बर ने इस लिपि का विकास सैनिकों को पेश आने वाली दिक्कतों को कम करने के उद्देश्य से किया था। इसी दौरान लुइस के दिमाग में सैनिकों को द्वारा टटोलकर पढ़ी जाने वाली कूटलिपि में नेत्रहीन लोगों के लिए पढ़ने की संभावनाओं को तलाश कर रहा था। इस उद्देश्य से लुइस ने पादरी बैलेन्टाइन से चार्ल्स बार्बर से मिलने की इच्छा जताई। पादरी ने लुइस की कैप्टन से मिलने का व्यवस्था की। लुइस कैप्टन चार्ल्स बार्बर से मिले। उन्होंने कैप्टन को लिपि में कुछ संशोधन का प्रस्ताव दिया। कैप्टन लुइस के आत्मविश्वास को देखकर एकाएक हैरान रह गए।
लुइस ने इसी लिपि में तकरीबन आठ वर्षों तक अन्वेषण किया और 1829 में एक ऐसी लिपि तैयार की, जिसे नेत्रहीन लोग टटोलकर पढ़ सकते थे। मौजूदा समय में इस लिपि को ब्रेल लैंग्वेज या ब्रेल भाषा (Braille Language) के रूप में जाना जाता है। दुनियाभर में हजारों नेत्रहीन लोग ब्रेल लिपि (Braille Script) की सहायता से अपना संर्वांगीण विकास कर रहे हैं। नेत्रहीन लोगों के लिए ब्रेल लिपि (Braille Script) का विकास करने वाले लुइस ब्रेल किसी युग पुरुष से कम नही हैं।
उपरोक्त तथ्यों से आपको नेत्रहीन लुइस ब्रेल और ब्रेल लिपि के बारे में पर्याप्त जानकारी हो गई होगी। अंतरराष्ट्रीय ब्रेल दिवस पर नेत्रहीन लोगों की समस्याओं को समझने का यह एक अच्छा मौका है। आप चाहें तो इस संबंध में अपने आसपास दिखने वाले नेत्रहीन लोगों से बातचीत कर सकते हैं।
नेत्रहीन लोगों की समस्याएं और चुनौतियां
आसपास की जगहों को ढूंढने में परेशानी
किसी भी नेत्रहीन के लिए, जो पूर्णतः दृष्टिहीन है अपने आसपास की जगहों को तलाशना सबसे जटिल कार्य है। आमतौर पर नेत्रहीन लोग अपने घर के आसपास के इलाकों में आसानी से आवाजाही कर सकते हैं, क्योंकि वह उस क्षेत्र से वाकिफ होते हैं। यदि आप किसी नेत्रहीन व्यक्ति के साथ रह रहे हैं तो बिना उन्हें सूचित किए ऐसी किसी भी वस्तु की स्थिति में कोई परिवर्तन न करें, जिनसे उन्हें इसे ढूंढने में दिक्कत आए।
हालांकि, बाजार और अन्य कमर्शियल जगहों पर टेकटाइल्स लगी हुई होती हैं, जिनकी मदद से नेत्रहीन अपने गंतव्य का पता लगा लेते हैं। दुर्भाग्यवश ज्यादातर जगहों पर इन टेकटाइल्स की व्यवस्था नहीं की गई है। इस स्थिति में नेत्रहीन को ऐसी जगहों पर आने जाने में एक चुनौती का सामना करना पड़ता है।
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पढ़ने की सामग्री में चुनौती
नेत्रहीन लोगों के लिए एक ऐसी पाठन सामग्री को ढूंढ पाना काफी मुश्किल होता है, जिसे वह आसानी से पढ़ सकें। भारत में लाखों लोग नेत्रहीन हैं, जिनके पास ब्रेल लिपि में पर्याप्त पाठन सामग्री उपलब्ध नहीं है। उपन्यास, अन्य प्रकार की कुछ सामग्री ही ब्रेल भाषा (Braille Language) में उपलब्ध है।
नेत्रहीन लोग इंटरनेट का भी इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं। यहां तक कि एक नेत्रहीन स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन उनके लिए इसे चालान आसान कार्य नहीं है। खासकर उस स्थिति में जब उस वेबसाइट को ऐसे फॉर्मेट में न बनाया गया हो। नेत्रहीन लोगों को फोटो को समझने के लिए तस्वीरों के संक्षिप्त वर्णन पर निर्भर रहना पड़ता है। अक्सर ज्यादातर वेबसाइट तस्वीर के संक्षिप्त वर्णन को ठीक से मुहैया नहीं कराती हैं।
कपड़ों को लगाने में बड़ी समस्या
जैसा कि ज्यादातर नेत्रहीन लोग किसी वस्तु के आकार पर निर्भर रहते हैं ऐसे में उनके लिए लॉन्ड्री या कपड़ों को अरेंज करना एक कठिन कार्य होता है। हालांकि, ज्यादातर नेत्रहीन लोग अपनी तकनीक से कम से कम खुद के कपड़ों को अरेंज कर लेते हैं। फिर भी उनके लिए यह एक मुश्किल काम है। कपड़ों के जोड़े बनाना उनके लिए एक साहस का कार्य है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि वह कपड़ों के रंग को नहीं देख सकते।
रोजगार में बड़ी समस्या
नेत्रहीन लोगों के लिए अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रोजगार एक बड़ी चुनौती है। ज्यादातर एंप्लॉयर नेत्रहीन लोगों के स्वभाव और उनकी कार्यक्षमता को समझ नहीं पाते हैं। ऐसे एंप्लॉयर्स को नेत्रहीन लोगों की कार्यकुशलता और क्षमता पर अविश्वास रहता है। इस वजह से अक्सर नेत्रहीन लोगों को नौकरी ढूंढने में समस्या का सामना करना पड़ता है। दफ्तर में भी उन्हें अपने सहकर्मियों कुछ समस्याएं पेश आती हैं।
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एटीएम से पैसा निकालना जटिल
नेत्रहीन लोगों के लिए बैंकों द्वारा जगह-जगह पर मुहैया कराए गए एटीएम का प्रयोग कर पाना एक मुश्किल कार्य होता है। नेत्रहीन एटीएम का उपयोग करने के लिए माइक्रोफोन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे वह मशीन से आने वाली आवाजों के माध्यम से इसका उपयोग कर पाते हैं। कई बार इन मशीनों पर ब्रेल भाषा का भी बटन होता है, लेकिन दृष्टि से अक्षम लोगों के लिए इसका उपयोग कर पाना मुश्किल होता है। कुछ मशीनों में ध्वनियां या आवाजें नहीं आती हैं, जिनके चलते दृष्टिहीन इन एटीएम का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। देखने में यह समस्या आपको बेहद ही साधारण लगेगी, लेकिन दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए यह कभी न खत्म होने वाली एक चुनौती है।
दृष्टिहीनता के आंकड़े
अक्टूबर 2019 में जारी किए गए एक सर्वे के मुताबिक, भारत में 2007 से दृष्टिहीनता में 47 % तक की कमी आई है। यह आंकड़े राष्ट्रीय दृष्टिहीनता और दृष्टिबाधित सर्वेक्षण 2019 में सामने आये हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 तक दृष्टिहीन लोगों की कुल आबादी में 0.3 % की कटौती का लक्ष्य रखा है।
कुल संख्या में, दृष्टिहीनता से पीड़ित लोगों का आंकड़ा 2006-07 में 1.2 करोड़ था, जो 2019 में घटकर 48 लाख पर आ गया है। हालांकि, अभी भी केटरेक्ट (Cataract) दृष्टिहीनता का सबसे सामान्य कारण ( 66.2 %) बना हुआ है। इसके बाद कोरनियल दृष्टिहीनता (7.4 %) का स्थान आता है। इसके बावजूद केटरेक्ट सर्जरी की वजह से दृष्टिहीन होने वाले लोगों का आंकड़ा 7.2 % बढ़ा है। यह सर्वेक्षण केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जारी किया था।
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मदद करने वाले लोग भी बन जाते हैं परेशानी
कई बार आप किसी दृष्टिहीन व्यक्ति को देखते ही उसकी मदद के लिए आतुर हो जाते हैं। बगैर यह जानें कि उन्हें मदद की आवश्यकता है या नहीं। यह एक स्वभाविक प्रतिक्रिया है। कुछ ऐसे भी कार्य होते हैं, जिन्हें एक दृष्टिहीन व्यक्ति स्वयं कर सकता है। ऐसे में यदि आप उनसे बिना इजाजत लिए मदद के लिए तैयार हो जाते हैं तो उनके आत्मविश्वास में कमी आती है। उन्हें ऐसा लगता है कि वो अन्य लोगों पर निर्भर हैं। अपनी दिनचर्या के कुछ कार्यों को भले ही दृष्टिहीन लोग धीरे-धीरे पूरा करें, लेकिन इसका यह मतलब नहीं की वह पूरी तरह से असमर्थ हैं।
यदि आप बिना किसी दृष्टिहीन की इजाजत के उसकी मदद के लिए तैयार हो जाते हैं तो आप कहीं न कहीं उसे स्वतंत्र रूप से उन कार्यों को पूरा करने के तरीको को सीखने से रोकते हैं। इससे उन्हें खुद से सीखने अनुभव नहीं मिलता। अंतरराष्ट्रीय ब्रेल दिवस (World Braille Day)) पर हम यही कहेंगे कि किसी भी दृष्टिहीन व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर न बनाएं, बल्कि उन्हें खुद से सीखने का मौका जरूर दें। दृष्टिहीन व्यक्ति की मदद करने से पहले एक बार उनसे पूछें जरूर।
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