नॉन-डायबिटिक एडल्ट्स और टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में, एंटेसेडेंट हायपोग्लाइसीमिया (Antecedent hypoglycemia) और व्यायाम का पुरुषों की तुलना में महिलाओं में काउंटररेगुलेटरी हार्मोनल रिस्पॉन्सेस के मैग्नीट्यूड पर कम प्रभाव पड़ता है। हायपोग्लाइसीमिया के लक्षणों की डिटेक्शन डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को ब्लड ग्लूकोज में गिरावट के प्रति सचेत करती है, जिससे न्यूरोग्लाइकोपेनिया (Neuroglycopenia) के प्रभाव बढ़ने से पहले करेक्टिव एक्शन लिया जा सकता है। हायपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) के लक्षण, रिस्पॉन्सेस की एस्टैब्लिश्ड हीरारके (Established hierarchy) के पार्ट के रूप में जनरेट होते हैं और इनमें खास उम्र भी शामिल होती है। लेकिन, इसमें सेक्स डिफरेंसेस रिपोर्ट नहीं होते हैं।
हालांकि, अभी तक किये गए अध्ययनों से यह अंतर स्पष्ट नहीं हो पाया है। सबसे आम हायपोग्लाइसीमिया लक्षणों को फिजियोलॉजिकल स्टडी में सबग्रुप्स में बांटा गया है और स्टेटिस्टिकल मेथोडोलोजी द्वारा फैक्टर एनालिसिस का उपयोग किया गया है। टाइप 1 पेशेंट्स में हायपोग्लाइसीमिया के कारण जेंडर डिफरेंसेस (Gender differences in response to hypoglycemia in type 1 diabetes patients) के बारे में अभी और स्टडीज की जानी जरुरी हैं। यह तो थी टाइप 1 पेशेंट्स में हायपोग्लाइसीमिया के कारण जेंडर डिफरेंसेस (Gender differences in response to hypoglycemia in type 1 diabetes patients) के बारे में जानकारी। अब जान लेते हैं टाइप 1 पेशेंट्स हायपोग्लाइसीमिया की समस्या को कैसे मैनेज किया जा सकता है।
टाइप 1 पेशेंट्स हायपोग्लाइसीमिया की समस्या को कैसे मैनेज करें? (How to manage hypoglycemia)
अगर टाइप 1 पेशेंट्स हायपोग्लाइसीमिया (Hypoglycemia) के लक्षणों को अधिक देर तक इग्नोर करें, तो वो बेहोशी महसूस कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे ब्रेन को फंक्शन करने के लिए ग्लूकोज की जरूरत होती है। ऐसे में इसके लक्षणों को शुरुआत में ही पहचानना बेहद जरूरी है। क्योंकि, अगर इसका उपचार सही समय पर न हो, तो इसके कारण कई कॉम्प्लीकेशन्स हो सकती हैं। इस समस्या को इस तरह से मैनेज किया जा सकता है:
टाइप 1 पेशेंट्स में हायपोग्लाइसीमिया के कारण जेंडर डिफरेंसेस: ब्लड शुगर को मॉनिटर करें (Monitor blood sugar)
इस समस्या से पीड़ित रोगी को अपने ट्रीटमेंट के अनुसार लगातार अपने ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) को रिकॉर्ड करना पड़ सकता है। इसके बारे में डॉक्टर की सलाह लें और इसके बाद नियमित रूप से अपने ग्लूकोज लेवल को मॉनिटर करें।