डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) बहुत से लोगों के लिए एक नया शब्द है। इस इस तरह समझें कि मुझे कुछ दिन पहले जुखाम की समस्या हो गई थी। जुखाम इतना ज्यादा था कि मेरा एक कान बंद हो गया। यानी एक कान में कुछ आवाज न आने का एहसास हो रहा था। फिर कुछ ही समय बाद मेरे दूसरे कान के साथ भी ऐसा ही हुआ। ये प्रक्रिया कुछ सेकेंड में मुझे बहुत कुछ एहसास करा गई। मुझे आसपास की आवाजें नहीं सुनाई दे रही थीं। बहुत उलझन महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि दम घुट रहा है। डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) यही समस्या है।
अब उन लोगों के बारे में सोचिए जो अपने चारों ओर की आवाज को कभी भी नहीं सुन पाते हैं। भले ही ऐसे लोगों को आवाज का मतलब न पता हो, लेकिन उनको कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा, इस बात का एहसास कर पाना बहुत मुश्किल है। बहरेपन (Deaf) की समस्या के कारण उत्पन्न हुई चिंता को एक शब्द दिया गया है ‘डेफ एंग्जाइटी’। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि आखिर क्या है इस शब्द का मतलब।
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डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) महसूस कर सकता है हर बधिर व्यक्ति
फोर्टिस हॉस्पिटल, कोलकाता की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. सृष्टि साहा से जब हैलो स्वास्थ्य ने डेफ एंग्जाइटी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘ ये शब्द लोगों के बीच नया हो सकता है। हमारी दुनिया में हम सब सुन सकते हैं, देख सकते हैं और चीजों का एहसास कर सकते हैं। बधिर लोग हमेशा कोशिश करते हैं कि वो बाकी लोगों के साथ नॉर्मल रहें। बधिर लोगों के मन में ये डर बैठ जाता है कि कहीं मैंने किसी की बात नहीं समझी तो वो मेरे साथ बुरा व्यवहार न करें। साथ ही बधिर लोगों के मन में ये डर भी बैठ जाता है कि मैं कही कुछ मिस न कर दूं, जिससे मैं खतरे में पड़ जाऊं। ये डर और चिंता घर और परिवार के बीच या फिर बाहर काम के दौरान महसूस किया जा सकता है।‘
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पेशेंट बताते हैं अपनी समस्या
साइकोलॉजिस्ट डॉ. सृष्टि साहा अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि मेरे पास ऐसे पेशेंट आते हैं जो न सुन पाने की क्षमता के कारण हमेशा डरे हुए रहते हैं। वो अपनी रोजमर्रा की समस्याएं भी बताते हैं। आप ऐसे समझिए कि बधिर व्यक्ति को ये चिंता भी लगी रहती है कि जरूरत पड़ने पर अगर किसी ने तेजी से चिल्लाया तो वो नहीं सुन पाएंगे। जरूरतमंद व्यक्ति उनके घर का सदस्य या फिर ऑफिस कलीग्स या स्कूल फ्रेंड भी हो सकता है। ये एहसास बहुत डराने वाला होता है कि न सुनने की क्षमता के कारण मैं अपनों की मदद नहीं कर सका।
ये सब वो बातें हैं जो हम और आप अनुमान लगा रहे है। जो व्यक्ति बधिर है, अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसे किस तरह की एंग्जाइटी फील होती होगी। डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) आमतौर पर होने वाली एंग्जाइटी से कुछ अलग नहीं होती है। डेफ एंग्जाइटी में भी वहीं लक्षण दिखाई दे सकते हैं जो आम इंसान को एंग्जाइटी के वक्त महसूस होते हैं।
डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) से रिलेटेड केस
हैलो स्वास्थ्य ने डेफ एंग्जाइटी के बारे में जानने के लिए न सुन पाने वाले व्यक्ति के दोस्त से संपर्क करने की कोशिश की। न सुन पाने की समस्या से जूझ रहे रवि बचपन से बहरे नहीं थे। उन्हें ठीक से सुनाई पड़ता था। कानपुर के रहने वाले रवी शुक्ला को करीब 14 साल की उम्र में किसी बीमारी की वजह से सुनाई देना बंद हो गया। आज रवि 41 साल के हैं और एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। रवि ने अपने दोस्त को साइन लैंग्वेज और लिखकर रोजमर्रा की परेशानी के बारे में बताया
‘ मुझे बहुत सालों से बहरेपन की समस्या है। मुझे आवाज का मतलब पता है क्योंकि मैं जन्म से बहरा नहीं था। अब मेरी पूरी दुनिया सुनसान है। मैं ऐसी जगह काम करता हूं जहां सब लोग सुन सकते हैं। ऐसे में मुझे बहुत सतर्क रह कर काम करना पड़ता है। कई बार बहुत सी बातें मिस कर जाता हूं और मेरा काम बाधित भी हो जाता है। जब सब किसी बात पर मुस्कुराते हैं तो मुझे नहीं पता होता है कि लोग क्यों हंस रहे हैं। अपने चारों ओर के माहौल को समझने में मुझे ज्यादा वक्त चाहिए होता है। कई बार लोग मेरी समस्या की वजह से परेशान भी हो जाते हैं, क्योंकि मैं उनकी बातें समझ नहीं पाता हूं। ये सब मेरी रोजाना की चिंता में शामिल है। लेकिन मैं उन लोगों के बारे में भी बताना चाहूंगा जो लोग मुझे पूरी तरह से सपोर्ट करते हैं।’
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क्यों होती हैं बधिर लोगों को डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) की समस्या ?
- हमारे समाज में रहने वाले ज्यादातर सामान्य लोगों को डेफ कल्चर के बारे में जानकारी नहीं होती है।
- सुनने वाले लोगों को नहीं पता है कि डेफ व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। बधिर व्यक्ति के लिए ये भी समस्या का कारण बन जाता है।
- समाज में बधिर लोगों के साथ सामान्य व्यवहार नहीं किया जाता है।
- लोग ये भूल जाते हैं कि बधिर व्यक्ति केवल सुन नहीं सकते हैं, बाकि वो सभी काम को सामान्य तरीके से ही करते हैं, उन्हें कम दर्जे का न आंका जाए।
- कई बार ऐसे व्यक्तियों को परिवार के साथ ही कम्युनिकेशन करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति खुद को परिवार से अलग महसूस करने लगता है।
- बधिर व्यक्ति के साथ कम्युनिकेशन आसान हो सकता है अगर सामान्य लोग उनकी हेल्प करें।
डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) के बारे में क्यों नहीं होती हैं बातें ?
ये बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है। हमारे समाज में जब कोई सामान्य व्यक्ति मेंटल प्रॉब्लम से गुजर रहा होता है तो उसके लिए ये स्वीकार करना मुश्किल होता है। मेंटल हेल्थ (Mental health) की समस्या से गुजर रहा व्यक्ति खुद को सामान्य ही बताता है और इलाज के लिए भी नहीं जाता है। डेफ एंग्जाइटी की समस्या से गुजर रहे बधिर लोगों के लिए इस बात को सबसे सामने लाना वाकई बहुत कठिन होता है। डेफ कम्युनिटी को नहीं पता है कि कैसे डेफ एंग्जाइटी की समस्या का निवारण किया जाए।
डेफ कम्युनिटी छोटी होती है जिस कारण से लोग डेफ एंग्जाइटी के बारे में बात करना सही नहीं समझते हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि कम्युनिकेशन में समस्या के कारण डेफ एंग्जाइटी की समस्या के बारे में लोग बात नहीं कर पाते हैं।
डेफ एंग्जाइटी की समस्या से निपटने का बेहतर उपाय यहीं है कि ऐसे व्यक्ति को अपनी समस्या बताई जाए जो आपके ऊपर भरोसा करता हो। बधिर व्यक्ति चाहे तो फैमिली मेंबर या फ्रेंड से इस बारे में सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
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जानिए क्या कहती है स्टडी ?
डेफ एंग्जाइटी के बारे में स्टडी भी की जा चुकी है। स्टडी के दौरान विवाहित और अविवाहित बधिर लोगों को शामिल किया गया और डेफ एंग्जाइटी के लेवल को चेक किया गया। एंग्जाइटी और डिप्रेशन के बारे में स्टडी करने के लिए 18 से 61 साल तक के बधिर लोगों को शामिल किया गया जिनका हियरिंग लॉस 60 dB से ज्यादा था। SCL-90-R (Symptom Checklist-90-Revised) की मदद से व्यक्तियों में डेफ एंग्जाइटी और डिप्रेशन के लेवल को चेक किया गया।
मैरिटल स्ट्रेस को चेक करने के लिए स्टॉकहोम मैरिटल स्ट्रेस स्केल (Stockholm Marital Stress Scale) का यूज किया गया। स्टडी में ये बात सामने आई कि डेफ और हार्ड हियरिंग सिंगल पर्सन में डेफ एंग्जाइटी और डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दिए। ये लक्षण शादीशुदा लोगों में देखने को मिले। मैरिटल स्ट्रेस और कम्युनिकेशन प्रॉब्लम चिंता और डिप्रेशन का मुख्य कारण थे। सिंगर पर्सन के कम्पेयर में कपल्ड पेयर में डेफ एंग्जाइटी और डिप्रेशन के लक्षण अधिक दिखाई दिए। महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा अधिक डेफ एंग्जाइटी और डिप्रेशन (Depression) का लेवल पाया गया।
एंग्जाइटी लेवल – (p < .03861)
एज – (p < .0006)
कम्युनिकेशन प्रॉब्लम – (p < .033)
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डेफ एंग्जाइटी के रिस्क फैक्टर क्या हैं ?
- जो व्यक्ति सुन नहीं सकते हैं, उन्हें अकेलापन महसूस होता है। ऐसे लोग खुद को दूसरे से अलग ही पाते हैं। बधिर लोगों को लगता है कि उनकी बातों को फैमिली मेंबर, ऑफिस में लोग या फिर आसपास के लोग नहीं समझ पाएंगे। इस कारण से बधिर लोग कंफ्यूजन की स्थिति में रहते हैं।
- बधिर व्यक्तियों को लगता है कि मैं कैसे कम्युनिकेट करूं कि सामने वाला व्यक्ति मेरी बातों को आसानी से समझ जाए। ऐसे व्यक्ति अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से कम ही व्यक्त कर पाते हैं। सामने वाले व्यक्ति से नकारात्मक भाव या चिल्लाने का भाव डर पैदा कर सकता है।
- बधिर लोग कई बार अपनी बातों को तेजी से बताने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनको अपनी ही आवाज नहीं सुनाई देती है। ऐसे में बधिर व्यक्ति को खुद को अकेला महसूस करने लगता है।
एंग्जाइटी के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Anxiety)
- खुद को शर्मिंदा या अपमानित होने का डर।
- अनजान लोगों के साथ बातचीत करने से डरना।
- अपनी चिंता (Tension) किसी के सामने जाहिर होने न देना।
- शर्मिंदगी के डर से लोगों से बातें करने या बोलने से डरना।
- पब्लिक स्पीकिंग में डर
- आंखो में आंखे (Eye) डाल कर किसी से बात ना कर पाना
- ऐसी जगहों पर जाने से बचना जहां सिर्फ उनकी ही चर्चा हो।
- स्कूल या ऑफिस जाने से डरना
- बातचीत करने में संकोच महसूस होना
- हमेशा किसी होने वाले हादसों का डर सतना।
- फिजिकल सिमटम्स जैसे कि पसीना (Sweat) आना, कांपना, शर्माना, तेज आवाज की वजह से शर्मिंदगी महसूस होना।
- स्कूल या ऑफिस जाने से डरना
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डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं ? (Symptoms of Depression)
- उदास रहना
- खुद को कोसते रहना
- निराशाजनक होना
- चिड़चिड़ापन
- आत्मविश्वास में कमी
- दुविधा में पड़े रहना
- खुशी के मौकों पर भी दुखी रहना
- लोगों से अलग-थलग रहना
- किसी से मिलने से बचना
- नींद अधिक या फिर कम आना
साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट
साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट में थेरिपी की हेल्प ली जाती है। थेरेपी की हेल्प से न केवल एंग्जाइटी की समस्या से छुटकारा मिलता है, बल्कि डिप्रेशन में भी राहत मिलती है।
डेफ एंग्जाइटी में कॉग्नीटिव बिहेवियर थेरिपी (Cognitive behaviour therapy)
कॉग्निटिव बिहेवियर थेरिपी एंग्जाइटी और डिप्रेशन की समस्या से निजात दिलाने में हेल्प करती है। थेरिपी की हेल्प से लोगों को सिखाया जाता है कि किस तरह से कॉमन डिफिकल्टी से बाहर निकलने के लिए सोचा जाए। साथ ही किसी सिचुएशन के समय कैसा रिएक्ट करना चाहिए, ये भी थेरिपी में सिखाया जाता है।
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डेफ एंग्जाइटी में इंटरपर्सनल थेरिपी (Interpersonal therapy )
इंटरपर्सनल थेरिपी में सिखाया जाता है कि कैसे किसी भी समस्या का समाधान किया जाए, और कैसे नए तरीकों को खोजा जाए। ये आपसी रिश्तों से जुड़ा हुआ मामला भी हो सकता है।
डेफ एंग्जाइटी के लिए मेडिकेशन
एंटीडिप्रेसेंट दवा (Antidepressant medication) के साथ ही साइकोलॉजिक थेरिपी लेना भी जरूरी होता है। ऐसा करने से डेफ एंग्जाइटी के साथ ही डिप्रेशन में भी राहत मिलती है। कौन सी एंटीडिप्रेसेंट दवा का यूज करना सही रहेगा, ये डॉक्टर से एक बार जरूर पूछें। बिना डॉक्टर के परामर्श के किसी भी तरह का ट्रीटमेंट लेना सही नहीं रहेगा।
अगर आपको भी डेफ एंग्जाइटी की समस्या महसूस हो रही है और आप इस बारे में किसी को नहीं बता पा रहे हैं, तो एक बार डॉक्टर से परामर्श जरूर करें। समस्या को डिस्कस न करने पर ये अधिक बढ़ जाएगी और आपको ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। बेहतर रहेगा कि एक बार डॉक्टर से संपर्क जरूर करें।