फोर्टिस हॉस्पिटल, कोलकाता की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. सृष्टि साहा से जब हैलो स्वास्थ्य ने डेफ एंग्जाइटी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘ ये शब्द लोगों के बीच नया हो सकता है। हमारी दुनिया में हम सब सुन सकते हैं, देख सकते हैं और चीजों का एहसास कर सकते हैं। बधिर लोग हमेशा कोशिश करते हैं कि वो बाकी लोगों के साथ नॉर्मल रहें। बधिर लोगों के मन में ये डर बैठ जाता है कि कहीं मैंने किसी की बात नहीं समझी तो वो मेरे साथ बुरा व्यवहार न करें। साथ ही बधिर लोगों के मन में ये डर भी बैठ जाता है कि मैं कही कुछ मिस न कर दूं, जिससे मैं खतरे में पड़ जाऊं। ये डर और चिंता घर और परिवार के बीच या फिर बाहर काम के दौरान महसूस किया जा सकता है।‘
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पेशेंट बताते हैं अपनी समस्या
साइकोलॉजिस्ट डॉ. सृष्टि साहा अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि मेरे पास ऐसे पेशेंट आते हैं जो न सुन पाने की क्षमता के कारण हमेशा डरे हुए रहते हैं। वो अपनी रोजमर्रा की समस्याएं भी बताते हैं। आप ऐसे समझिए कि बधिर व्यक्ति को ये चिंता भी लगी रहती है कि जरूरत पड़ने पर अगर किसी ने तेजी से चिल्लाया तो वो नहीं सुन पाएंगे। जरूरतमंद व्यक्ति उनके घर का सदस्य या फिर ऑफिस कलीग्स या स्कूल फ्रेंड भी हो सकता है। ये एहसास बहुत डराने वाला होता है कि न सुनने की क्षमता के कारण मैं अपनों की मदद नहीं कर सका।
ये सब वो बातें हैं जो हम और आप अनुमान लगा रहे है। जो व्यक्ति बधिर है, अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसे किस तरह की एंग्जाइटी फील होती होगी। डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) आमतौर पर होने वाली एंग्जाइटी से कुछ अलग नहीं होती है। डेफ एंग्जाइटी में भी वहीं लक्षण दिखाई दे सकते हैं जो आम इंसान को एंग्जाइटी के वक्त महसूस होते हैं।
डेफ एंग्जाइटी (Deaf Anxiety) से रिलेटेड केस
हैलो स्वास्थ्य ने डेफ एंग्जाइटी के बारे में जानने के लिए न सुन पाने वाले व्यक्ति के दोस्त से संपर्क करने की कोशिश की। न सुन पाने की समस्या से जूझ रहे रवि बचपन से बहरे नहीं थे। उन्हें ठीक से सुनाई पड़ता था। कानपुर के रहने वाले रवी शुक्ला को करीब 14 साल की उम्र में किसी बीमारी की वजह से सुनाई देना बंद हो गया। आज रवि 41 साल के हैं और एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। रवि ने अपने दोस्त को साइन लैंग्वेज और लिखकर रोजमर्रा की परेशानी के बारे में बताया
‘ मुझे बहुत सालों से बहरेपन की समस्या है। मुझे आवाज का मतलब पता है क्योंकि मैं जन्म से बहरा नहीं था। अब मेरी पूरी दुनिया सुनसान है। मैं ऐसी जगह काम करता हूं जहां सब लोग सुन सकते हैं। ऐसे में मुझे बहुत सतर्क रह कर काम करना पड़ता है। कई बार बहुत सी बातें मिस कर जाता हूं और मेरा काम बाधित भी हो जाता है। जब सब किसी बात पर मुस्कुराते हैं तो मुझे नहीं पता होता है कि लोग क्यों हंस रहे हैं। अपने चारों ओर के माहौल को समझने में मुझे ज्यादा वक्त चाहिए होता है। कई बार लोग मेरी समस्या की वजह से परेशान भी हो जाते हैं, क्योंकि मैं उनकी बातें समझ नहीं पाता हूं। ये सब मेरी रोजाना की चिंता में शामिल है। लेकिन मैं उन लोगों के बारे में भी बताना चाहूंगा जो लोग मुझे पूरी तरह से सपोर्ट करते हैं।’