क्या आपको तारे जमीन पर फिल्म का ईशान याद है? वहीं ईशान जिसे पढ़ने लिखने में परेशानी थी। यहां हम उसकी इसी परेशानी डिस्लेक्सिया (Dyslexia) के बारे में बात कर रहे हैं। कई लोग ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया को एक ही समझते हैं। इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि दोनों के बीच क्या अंतर है। इसके साथ ही दोनों के कारण, लक्षण और इससे उबरने के उपयों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।
ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया में अंतर (Difference between autism and dyslexia)
इन दोनों कंडिशन में कुछ ऐसे अंतर है जो इन्हें एक दूसरे से पूरी तरह अलग करते हैं।
ऑटिज्म क्या है? (Autism)
ऑटिज्म एक प्रकार का न्यूरोलॉजिकल विकार है और इसके अंदर बहुत से लक्षण हो सकते हैं जबकि डिस्लेक्सिया भाषा से सम्बंधित विकार है। डिस्लेक्सिया होने पर केवल पढ़ने-लिखने में परेशानी आ सकती है। लेकिन सामाजिक रूप से बच्चा बिलकुल सामान्य होगा।
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ऑटिज्म होने पर कौन से लक्षण दिखाई दे सकते हैं :
- असमान शारीरिक संरचना और भाव।
- आवाज का भारी होना।
- सही ढंग से आंखे न मिला पाना।
- व्यवहार में बदलाव आना।
- भाषा समझने में परेशानी होना।
- बचपन में बोलना न सीख पाना।
- आईक्यू स्तर का कम होना।
- सामाजिक व्यव्हार से अपरिचित होना।
- ध्यान केंद्रित न कर पाना।
- इम्यूनिटी कमजोर होना।
- अलग तरह का सेक्शुअल व्यवहार दिखाना।
ऑटिज्म की अवस्था में शरीर के सभी अंग प्रभावित होते हैं और कई परेशानियां आ सकती हैं। ऑटिज्म के चलते कई बार डिस्लेक्सिया होता है लेकिन ये जरूरी नहीं है। कई बार ऑटिस्टिक बच्चे असामान्य तौर से भाषा, मैथ्स और कला के क्षेत्र में असीम कुशलता रखते हैं। इसे सवंत सिंड्रोम कहते हैं।
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क्या है डिस्लेक्सिया? (dyslexia)
डिस्लेक्सिया एक प्रकार की सीखने की असक्षमता है। डिस्लेक्सिया से प्रभावित व्यक्ति का दिमाग शब्दों और अंकों को सही तरह से समझने में असमर्थ होता है। शब्द को सुनने के बाद दिमाग उसे प्रोसेस करने में जरूरत से ज्यादा समय लेता है। फलस्वरूप कुछ भी समझ पाना या पढ़ पाना जटिल हो जाता है।
इस परिस्थिति में शब्दों को सुनकर याद रखना, उन्हें पढ़ना या फिर लिखना बहुत मुश्किल होता है। इसके साथ ही शब्दों के उच्चारण में भी परेशानी आती है। इस बीमारी में बच्चा लाख कोशिशों के बाद भी पढ़ने लिखने में दिक्कतें महसूस करेगा ऐसी स्थिति में माता -पिता को उसका साथ देना चाहिए।
बढ़ती उम्र के साथ किन लक्षणों को देखा जा सकता है-
स्कूल जाने से पहले के लक्षण
- देर से बात करना।
- नए शब्दों को सीखने में समय लगना।
- शब्दों का सही उच्चारण न कर पाना।
- शब्दों , वर्णों की सही आवाज को न समझ पाना।
स्कूल जाने की उम्र में दिखने वाले लक्षण :
- सही ढंग से किताब न पढ़ पाना।
- किसी भी शब्द को सुनकर समझने में जरूरत से ज्यादा समय लगना।
- क्रम अनुसार चीजों को याद रखने में परेशानी आना।
- शब्दों की स्पैलिंग को न याद रख पाना।
- अक्षरों और नंबरो को उल्टा सीधा लिखना।
- पढाई से जुड़ी हर बात से भागना।
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व्यस्क और टीन्स में डिस्लेक्सिया के लक्षण
- जोर से पढ़ने में परेशानी होना।
- पढ़ने – लिखने में परेशानी होना।
- स्पैलिंग में परेशानी होना।
- अंग्रेजी पढ़ने में परेशानी आना।
- याद करने की क्षमता में कमी आना।
- मैथ्स की समस्याओं को न समझ पाना।
ज्यादातर बच्चे बहुत छोटी उम्र से ही जल्दी सीखना शुरू कर देते हैं लेकिन ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया प्रभावित बच्चों को हर छोटी चीज सीखने में समय लगता है। कई बार पेरेंट्स इस बात को समझ नहीं पाते है और गुस्सा करने लगते हैं। इस स्थिति में सयंम रखें और बच्चे को चीजें समझने के लिए समय दें।
ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया में कुछ थेरिपी कर सकती हैं मदद
शिक्षात्मक थेरिपी (Educational therapy)
इस थेरिपी में ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया रोगी के कौशल विकास और संचार कौशल को विकसित करने की दिशा में काम किया जाता है। इसमें एक्सपर्ट्स की टीम खासतौर पर रोगी के लिए केंद्रित प्रोग्राम तैयार करते हैं।
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डिस्क्रीट ट्राइल ट्रेनिंग (DTT) Discrete trial training
डिस्क्रीट ट्राइल ट्रेनिंग के अंतर्गत ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया का इलाज करने के लिए एक टीचर रोगी को एक के बाद एक लेसन देता है। इसके बाद रोगी से इसके जवाब और सही व्यवहार के बारे में पूछा जाता है। सही जवाब देने और उचित व्यवहार करने पर उसे गिफ्ट देकर प्रोत्साहित किया जाता है।
पॉजिटिव बियेवियरल सपोर्ट (PBS) Positive behavioral and support
पीबीएस यानी पॉजिटिव बियेवियरल सपोर्ट एक ऐसी तकनीक है जिसके अतंर्गत ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया का इलाज किया जाता है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार को उसके आसपास के वातावरण में बदलाव कर उसे सकारात्मक बनाने के प्रयास किए जाते हैं। पहले देखा जाता है कि किस वजह से रोगी के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। इसके बाद रोगी को नई चीजें सिखाई जाती हैं और अच्छा व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया में बच्चे के डायट का कैसे रखें ध्यान?
जब आपके बच्चे को ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया होता है, तो वो कई तरह के खाद्य पदार्थ, उनके स्वाद, गंध, बनावट या रंग को देखकर संवेदनशील हो सकता है और वह उसे खाने से इंकार कर देता है। ऐसे में नए तरह का खाना खिलाना भी एक चुनौती होता है, इसलिए इस दिशा में धीरे-धीरे कदम उठाना चाहिए।
इसके लिए आप एक खास तरीका अपना सकते हैं। जब आप शॉपिंग पर जाएं तो अपने बच्चे को साथ ले जाने की कोशिश करें और उसे अपनी पसंद का खाना चुनने को बोलें। जब आप वो खाना घर लाएं तो उसे संतुलित तरीके से बनाने की कोशिश करें। हो सकता है कि खाना बनने के बाद बच्चा खाने से इंकार कर दे। ये बेहद सामान्य बात है, उसे इस चीज से परिचित होने में वक्त लग सकता है। ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया में न्यूट्रिशन टिप्स को फॉलो करके इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसके लिए आप डायटीशियन की भी मदद ले सकती हैं। वे आपको आटिज्म या डिस्लेक्सिया का सामना कर रहे बच्चों के लिए हेल्दी रेसिपी और टिप्स बता सकती हैं।
ऑटिज्म होने पर भी ये परेशानियां आ सकती हैं उस स्थिति में बच्चा दोनों ही स्थितियों यानि ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया से प्रभावित होगा। ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया से संबंधित अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें। अगर बच्चों की समय पर उचित देखभाल की जाए तो इस बीमारी को मैनेज किया जा सकता है और इससे आसानी से निकला जा सकता है बिलकुल तारे जमीं पर वाले ईशान की ही तरह। बस ऐसे में पेरेंट्स को बच्चे का पूरा साथ देना होगा।
उम्मीद करते हैं कि आपको ऑटिज्म और डिस्लेक्सिया संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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