मल्टिपैरा (Multipara) शब्द से मतलब प्रेग्नेंसी की संख्या से है। एक महिला प्रेग्नेंसी के बाद कितने बच्चे पैदा कर चुकी है, इसे मल्टिपैरा शब्द से परिभाषित किया जा सकता है। एक महिला अपने जीवनकाल में कई बार प्रेग्नेंट हो सकती है। मल्टिपैरा शब्द से मतलब है कि प्रेग्नेंसी 20वें सप्ताह से अधिक की होनी चाहिए। महिला चाहे कितनी बार भी प्रेग्नेंट हुई हो, प्रेग्नेंसी की संख्या बढ़ने के साथ महिला के शरीर में कई रिस्क भी बढ़ जाते हैं। मिसकैरिज हो या फिर सी-सेक्शन, इनकी संख्या बढ़ने के साथ ही महिला का शरीर कमजोर या फिर किसी बीमारी की चपेट में आने के लिए विवश हो जाता है। चिकित्सा की भाषा में महिला के प्रेग्नेंट होने की संख्या, प्रेग्नेंसी के बाद बच्चे के पैदा होने की संख्या को मेडिकल टर्म से परिभाषित किया जाता है।
मल्टिपैरा रिस्क के चलते महिलाओं को भविष्य में होने वाली प्रेग्नेंसी में दिक्कत हो सकती है। मल्टिपैरा रिस्क से बचने के लिए बच्चों की संख्या में नियंत्रण रखना जरूरी है। मल्टिपैरा के बारे में महिलाओं को जानकारी नहीं होती है। मल्टिपैरा रिस्क के चलते पोस्टपार्टम ब्लीडिंग, प्लासेंटा प्रीविया आदि की समस्या हो सकती है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि मल्टिपैरा रिस्क और उसके क्या कारण हो सकते हैं।
यह भी पढ़ें : तीसरी प्रेग्नेंसी के दौरान इन बातों का रखना चाहिए विशेष ख्याल
मल्टिपैरा और ग्रेविडिटी से क्या मतलब है?
ग्रेविडिटी से मतलब महिला के प्रेग्नेंट होने की संख्या से है। महिला के प्रेग्नेंट होने के बाद बच्चे की डिलिवरी हुई है या नहीं, इसे ग्रेविडिटी में नहीं गिना जाता है। जबकि मल्टिपैरा प्रेग्नेंसी में 20 सप्ताह का गर्भ होना जरूरी होता है। मल्टिपैरा (Parity) से मतलब फीटस को दिए गए जन्म की संख्या से है। इसमे जिंदा पैदा हुए या फिर मरे हुए बच्चे को भी शामिल किया जाता है। मल्टिपैरा में सात महीने तक की प्रेग्नेंसी को शामिल किया जाता है।
यह भी पढ़ें : हनीमून के बाद बेबीमून, इन जरूरी बातों का ध्यान रखकर इसे बनाएं यादगार
इस तरह से समझें मल्टिपैरा का गणित
ग्रेविडा और मल्टिपैरा को समझने के लिए हम आपको यहां उदाहरण दे रहे हैं, जो आपकी जानकारी को बढ़ाने का काम करेंगे।
- एक महिला जो पहली बार प्रेग्नेंट हुई ,लेकिन मिसकैरिज हो गया है। दूसरी बार प्रेग्नेंट होने पर भी मिसकैरिज हो गया। इस महिला का ग्रेविडा 2 यानी G2 होगा। अब यही महिला तीसरी प्रेग्नेंसी को पूरा कंप्लीट कर लेती है और एक बच्चे को जन्म देती है। चौथी बार प्रेग्नेंट होने पर आठवें महीने में महिला का मिसकैरिज हो गया। इस महिला की ग्रेविडा G2 और मल्टिपैरा 2 यानी P2 होगा।
- अगर कोई महिला दो बार प्रेग्नेंट हुई, लेकिन दूसरे या तीसरे महीने में मिसकैरिज हो गया तो इस महिला की ग्रेविडा G2 होगा। मल्टिपैरा और ग्रेविडा के अंतर को आसानी से समझा जा सकता है।
यह भी पढ़ें : 5 फूड्स जो लेबर पेन को एक्साइट करने का काम करते हैं
ग्रांड मल्टिपैरा से जुड़े हुए रिस्क
- अनियमित फीटल प्रसेंटेशन
- अधिक उम्र में प्रीटर्म डिलिवरी के चांसेस
- यूटेराइन अटॉनी ( Uterine atony)
- प्लासेंटा प्रीविया
- एम्निऑटिक फ्लूड इम्बॉलिस्म
- पोस्टपार्टम ब्लीडिंग
- तनाव की समस्या
- मूत्र संबंधी समस्या
जानिए प्रेग्नेंसी से रिलेटेड टर्म
नलीपेरस वीमन ( Nulliparous woman)
जिसने कभी भी बच्चे को जन्म न दिया हो।
प्राइमीग्रेविडा (PRIMIGRAVIDA])
फर्स्ट प्रेग्नेंसी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
मल्टीग्रेविडा (Multigravida)
जो महिला एक से ज्यादा बार प्रेग्नेंट हो।
ग्रांड मल्टीपैरा (A grand multipara)
जो महिला पांच बार से ज्यादा बार प्रेग्नेंट हो चुकी हो और प्रेग्नेंसी 24 हफ्ते से ज्यादा हो। ऐसी महिलाएं प्रेग्नेंसी के हाई रिस्क में रहती हैं।
ग्रांड मल्टिग्रेविडा (Grand multigravida)
जो महिला पांच बार से ज्यादा बार प्रेग्नेंट हो चुकी हो।
ग्रेट ग्रांड मल्टीपैरा (Great grand multipara )
जिस महिला के सात से ज्यादा प्रेग्नेंसी हो चुकी हो वो गर्भकाल का 24वां सप्ताह पार कर लिया हो।
किस तरह से जुड़ा है प्रेग्नेंसी का रिस्क
- महिला की पहली प्रेग्नेंसी जैसी होती है, उसका असर भविष्य में होने वाली प्रेग्नेंसी पर भी पड़ता है।
- अगर पहली प्रेग्नेंसी में किसी भी प्रकार का खतरा रहा है तो दूसरी प्रेग्नेंसी में रिस्क बढ़ जाता है।
ग्रेविडिटी और पैरिटी से प्रेग्नेंसी के दौरान रिस्क
आपकी पिछली प्रेग्नेंसी के दौरान हुए किसी भी तरह के कॉम्प्लिकेशन का अगली प्रेग्नेंसी पर भी असर पड़ता है। एक महिला पहले कितने बच्चे पैदा कर चुकी है, इसका असर उसके होने वाले बच्चे पर भी पड़ता है। पैरिटी के आधार पर आपकी नॉर्मल डिलिवरी पर असर पड़ सकता है। प्रेमिग्रेविडा में नॉर्मल लेबर, सामान्य लेबर से भिन्न होता है। इस दौरान यूट्रस में संकुचन बुरी तरह से हो सकते हैं। प्राइमाग्रेविडा में एवरेज फर्स्ट स्टेज मल्टिपेरस महिला की तुलना में धीमी गति से हो सकती है। लेबर में कुछ कमी महसूस की जा सकती है।
यह भी पढ़ें : प्रेंग्नेंसी की दूसरी तिमाही में होने वाले हॉर्मोनल और शारीरिक बदलाव क्या हैं?
प्रीक्लेमप्सिया (preeclampsia) क्या होता है?
20 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के बाद हाई ब्लड प्रेशर और यूरिन में अधिक मात्रा में प्रोटीन का शामिल होना, प्रीक्लेम्पसिया के कुछ मुख्य लक्षणों में से हैं। प्रीक्लेम्पसिया कम से कम पांच से आठ प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है।
प्रीक्लेमप्सिया (preeclampsia) के क्या लक्षण हैं?
आमतौर महिलाओं को प्रीक्लेम्पसिया के बारे में पता ही नहीं चलता है। डॉक्टरी जांच के बाद ही इस समस्या के बारे में जानकारी मिलती है। इसलिए प्रीक्लेम्पसिया के लक्षणों को जानना जरूरी है, जिससे समय रहते ही इलाज किया जा सके-
- रक्तचाप में वृद्धि होना (140/90 या उससे अधिक)।
- यूरिन में अतिरिक्त प्रोटीन।
- तेज सिरदर्द।
- धुंधला दिखना।
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, आमतौर पर दाईं ओर पसलियों के नीचे।
- उल्टी या मितली होना।
- यूरिन की मात्रा में कमी आना।
- ब्लड में प्लेटलेट्स के स्तर में कमी (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया)।
- सांस लेने में तकलीफ होना।
- अचानक वजन बढ़ना और सूजन आना- विशेष रूप से चेहरे और हाथों पर।
ये लक्षण दिखते ही अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें क्योंकि प्रीक्लेम्पसिया गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia) होने की संभावना किसे ज्यादा रहती है?
निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रीक्लेम्पसिया होने की संभावना बढ़ सकती है-
- पहली गर्भावस्था के दौरान प्रीक्लेम्पसिया विकसित होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
- अगर गर्भवती महिला को पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर हो।
- प्रेग्नेंट महिला की मां या बहन को प्रीक्लेम्पसिया पहले हुआ हो।
- जो महिलाएं मोटापे से ग्रस्त हैं या जिनका बीएमआई 30 या उससे अधिक है।
- जिन महिलाओं को गर्भावस्था से पहले किडनी की कोई समस्या रही हो।
- 20 वर्ष से कम और 40 वर्ष से अधिक उम्र की प्रेग्नेंट महिलाओं में प्रीक्लेम्पसिया का खतरा सबसे अधिक रहता है।
- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के जरिए गर्भधारण किया है, तो प्रीक्लेम्पसिया का खतरा बढ़ जाता है।
प्राइमीग्रेविडी से जुड़ा हुआ रिस्क
- प्री-एक्लम्पसिया विकसित होने का अधिक जोखिम
- लेबर की पहली स्टेज में देरी होना, इसे प्राइमाग्रेविडी में नॉर्मल कहा जा सकता है।
- प्रेमिग्रेविडा स्थिति में 37 प्रतिशत केस डिफिकल्ट पाए गए हैं।
यह भी पढ़ें : प्रेग्नेंसी में खाएं ये फूड्स नहीं होगी कैल्शियम की कमी
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी किसे कहते हैं?
प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी तरह की समस्या होने पर होने वाले बच्चे और मां की जान को खतरा हो सकता है। अभी तक हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की सही तरह से परिभाषा नहीं दी गई है। बढ़ी हुई पैरिटी से जुड़ी है-
- ज्यादा मैटरनल एज
- कम सोशियो-इकोनॉमिक और शिक्षा का स्तर
- पूअर प्रीनेटल केयर
- स्मोकिंग और एल्कोहल कंजप्शन
- हाययर बॉडी मास इंडेक्स (BMI)
- जेस्टेशनल डायबिटीज का अधिक रेट
अगर कोई भी महिला कई बार प्रेग्नेंट हो चुकी है और उसकी प्रेग्नेंसी सक्सेसफुल नहीं रही है तो उसे डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। मल्टीपैरा रिस्क के बारे में जानने के बाद डॉक्टर उचित राय दे सकता है। भविष्य में कंसीव करने से पहले एक बार डॉक्टर से ये जरूर पूछ लें कि क्या मुझे किसी तरह का मल्टिपैरा रिस्क हो सकता है क्या?
[embed-health-tool-ovulation]