मौजूदा समय में डायबिटीज बेहद ही गंभीर बीमारी है। इसके कारण कई प्रकार की बीमारी होने की संभावनाएं रहती है। पहले के समय में जहां यह बीमारी 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को होती थी वहीं मौजूदा समय में यह बीमारी कम उम्र के लोगों में देखने को मिल रही है। यहां तक कि किशोरावस्था में भी देखने को मिल रही है। लेकिन हम यहां बात कर रहे हैं डायबिटिक न्यूरोपैथी (मधुमेह न्यूरोपैथी) की। वैसे व्यक्ति जो डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित होते हैं उनको डायबिटिक न्यूरोपैथी (मधुमेह न्यूरोपैथी) होने की संभावनाएं काफी अधिक रहती है। यह एक प्रकार के नर्व डैमेज से जुड़ी समस्या है। शरीर में हाई ब्लड शुगर (ग्लूकोज) की मात्रा नर्व को नुकसान पहुंचा सकती है। ज्यादातर मामलों में डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) हमारे पांव व तलवों को नुकसान पहुंचाती हैं।
डायबिटिक न्यूरोपैथी (मधुमेह न्यूरोपैथी) में नर्व को कितनी हद तक नुकसान पहुंचा है, उसके अनुसार ही व्यक्ति में लक्षण देखने को मिलते हैं। कई मामलों में दर्द से शुरू होने वाला लक्षण पांव व तलवों के सुन्न होने तक बढ़ता है, डायजेस्टिव सिस्टम में समस्या होने के साथ, यूरिनरी ट्रैक्ट, ब्लड वैसल्स और हार्ट से जुड़ी समस्या हो सकती है। कुछ लोगों में जहां कम समस्या देखने को मिलती है वहीं कुछ लोगों में समस्या ज्यादा हो सकती है।
डायबिटिक न्यूरोपैथी (मधुमेह न्यूरोपैथी) बेहद ही गंभीर बीमारी है, डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित 50 फीसदी लोगों को यह बीमारी होने की संभावनाएं रहती है। लेकिन हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाकर और ब्लड शुगर को मैनेज कर हम चाहें तो डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy)के बढ़ते प्रकोप को रोक सकते हैं या काफी हद तक कम कर सकते हैं।
बीमारी होने से क्या-क्या दिखते हैं लक्षण
चार मुख्य प्रकार के डायबिटिक न्यूरोपैथी होते हैं। कुछ लोगों में एक या फिर एक से अधिक प्रकार की डायबिटिक न्यूरोपैथी की बीमारी देखने को मिलती है। बीमारी के प्रकार और शरीर में कौन सा नर्व डैमेज हुआ है उसके अनुसार ही व्यक्ति में लक्षण देखने को मिलते हैं। लक्षण धीरे-धीरे कर बढ़ते हैं। शुरुआत में आपको एहसास भी नहीं होगा कि आपका नर्व डैमेज हो रहा है।
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पेरीफेरल न्यूरोपैथी (Peripheral neuropathy)
न्यूरोपैथी के इस प्रकार को डिस्टेल सिमेट्रिक पेरीफेरल न्यूरोपैथी भी कहा जाता है। डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) का यह बेहद ही सामान्य प्रकार है। हाथों से शुरू होकर यह शरीर के पांव व तलवों को प्रभावित करता है। पेरीफेरल न्यूरोपैथी के मामले में रात में बीमारी के लक्षण काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं। वहीं मरीज में इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं, जैसे
- स्पर्श से ही दर्द होना- कुछ लोगों में बेडशीट का वजन पड़ने से ही उनको दर्द का एहसास होना
- गंभीर पांव की समस्याएं, जैसे अल्सर, इंफेक्शन, हड्डी व ज्वाइंट में दर्द
- सुन्न पड़ना और दर्द सहने की शक्ति कम होना, तापमान का बदलना
- बर्निंग सेनसेशन के साथ झुनझुनी
- तेज दर्द और क्रैम्प का एहसास होना
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मोनो न्यूरोपैथी (Mononeuropathy)
मोनो न्यूरोपैथी को फोकल न्यूरोपैथी भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर यह दो प्रकार के होते है, पहला क्रैनियल (cranial) और दूसरा पेरीफेरल (peripheral)। मोनो न्यूरोपैथी शरीर में खास प्रकार के नर्व को डैमेज करता है। वहीं शरीर में विभिन्न प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनमें
- लिटिल फिंगर को छोड़ हाथ व उंगलियों में सुन्न होने के साथ झुनझुनी होना
- हाथ में कमजोरी होना, इस कारण आप चीजों को अच्छे से न पकड़ पाएं, हाथ से चीजें छूट जाएं
- फोकस करने में परेशानी और डबल विजन दिखना
- एक आंख के पीछे खुजली होना
- चेहरे के एक हिस्से में पैरालाइसिस होना
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ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी (Autonomic neuropathy)
ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम हमारे हार्ट, ब्लैडर, स्टमक, इन्टेस्टाइन, सेक्स ऑर्गन और आंखों को कंट्रोल करता है। डायबिटीज शरीर के किसी भी भाग को प्रभावित कर सकता है। जिसके कारण शरीर में इस प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं, जैसे
- जी मचलाना, उल्टी होने के साथ भूख न लगना
- हमारी आंखे जिस प्रकार अंधेरे से रौशनी में आती है, रौशनी से अंधेरे में जाती वह सामान्य न होकर आंखों का एडजस्टमेंट असामान्य होना
- सेक्सुअल रिस्पांस का कम होना
- हायपोग्लेकीमिया अनअवेयरनेस (hypoglycemia unawareness) इसके तहत शरीर में ब्लड शुगर लेवल कम हो जाता है और उसके बारे में पता नहीं होता है
- ब्लैडर और बॉवेल की समस्या
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प्रोक्सिमल न्यूरोपैथी (Proximal neuropathy)
इस प्रकार की न्यूरोपैथी को डायबिटिक एमोट्रॉफी (diabetic amyotrophy) भी कहा जाता है, इस बीमारी के होने से कूल्हे, जांघ, बटक्स और पांव के नर्व को प्रभावित करता है। यह पेट और छाती के एरिया के नर्व को भी प्रभावित कर सकता है। शरीर के एक हिस्से में इस बीमारी के लक्षण देखने को मिलते हैं, लेकिन यह दूसरी तरफ भी फैल सकता है। इस बीमारी के होने से आपको विभिन्न प्रकार के लक्षण दिखाई देंगे। जिनमें,
- बैठने में परेशानी होगी
- गंभीर रूप से पेट में दर्द होना
- कूल्हे, जांघ व बटक्स में तेज दर्द
- जांघ के मसल्स का कमजोर होने के साथ सिकुड़ जाना
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डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) के लक्षण दिखते ही लें डॉक्टरी सलाह
- पाचन शक्ति, पेशाब करने और सेक्सुअल फंक्शन में बदलाव आने पर
- सिर चकराना और बेहोश होने की स्थिति में
- पांव में किसी प्रकार का कट या घाव हो जो जल्द ठीक न हो रहा हो
- रोजमर्रा के काम करने के दौरान या फिर सोने के दौरान हाथों व पांव में बर्निंग सेनशेशन के साथ झुनझुनी व कमजोरी होने के साथ दर्द होना
द अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार यदि कोई व्यक्ति टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित होता है तो उसकी डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) की जांच जरूर करवाई जाती है। वहीं वैसे व्यक्ति जो डायबिटीज टाइप 1 की बीमारी से ग्रसित होते हैं उनको पांच साल के बाद डायबिटिक न्यूरोपैथी की जांच करवाई जाती है। ऐसा इसलिए है कि इस बीमारी से पीड़ित लोगों में इस बीमारी के होने की संभावनाएं रहती है।
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बीमारी के कारणों पर एक नजर
हर प्रकार के न्यूरोपैथी के कारणों का अबतक सही-सही पता नहीं चल पाया है। शोधकर्ता भी इस बात का पता लगा रहे हैं कि समय के साथ और अनकंट्रोल हाई ब्लड शुगर हमारे नर्व को डैमेज कर देता है, इस कारण नर्व सामान्य रूप से सिग्नल नहीं भेज पाते हैं। इस कारण लोगों को डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) की बीमारी होती है। हाई ब्लड शुगर के कारण भी स्मॉल ब्लड वैसल्स के वॉल कमजोर हो जाते हैं। इस कारण ब्लड वैसल्स नर्व के द्वारा ऑक्सीजन और न्यूट्रिएंट्स सामान्य रूप से सप्लाई नहीं हो पाती है।
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डायबिटिक न्यूरोपैथी के रिस्क फैक्टर
कोई भी व्यक्ति डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित होता है, संभावनाएं रहती है कि उसमें आगे चलकर न्यूरोपैथी हो जाए। वहीं वैसे व्यक्तियों में नर्व डैमेज की समस्या होने की भी संभावनाएं रहती है। जानें और कौन कौन सी बीमारी की है संभावनाएं-
- मोटापे से ग्रसित होना : वैसे व्यक्ति जिनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 या इससे ज्यादा हो वैसे व्यक्ति में डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) की होने की संभावनाएं ज्यादा रहती है।
- खराब ब्लड शुगर कंट्रोल : ब्लड शुगर लेवल बढ़ने की संभावनाएं होने से डायबिटिज से जुड़ी बीमारी या फिर नर्व डैमेज ।
- डायबिटीज हिस्ट्री : यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक डायबिटीज की बीमारी हो तो उसे डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) होने की संभावनाएं भी ज्यादा रहती है। खासतौर पर तब जब आपका ब्लड शुगर कंट्रोल न हो।
- किडनी डिजीज : डायबिटीज हमारे किडनी को भी डैमेज कर सकता है। किडनी डैमेज होने से हमारे खून में टॉक्सीन भेजता है जिसके कारण नर्व डैमेज हो सकता है।
- स्मोकिंग : वैसे व्यक्ति जो नियमित तौर पर धूम्रपान करते हैं उनकी आर्टरी न केवल हार्ड हो जाती है बल्कि वो पतली भी हो जाती है। ऐसे में हमारे पांव से लेकर तलवों में सामान्य रूप से रक्त प्रवाह नहीं होता। इस कारण पांव के घाव सामान्य रूप से व जल्दी नहीं भरते और व्यक्ति का पेरीफेरल नर्व डैमेज हो जाता है।
डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) के कारण हो सकती है कई समस्याएं, जैसे
- हायपोग्लेसीमिया अनअवेयरनेस (Hypoglycemia unawareness) : वैसे लोग जिनका ब्लड शुगर लेवल 70 मिलिग्राम पर डेक्लीटर (एमजी/डीएल) होता है वैसे लोगों को कंपकपी, पसीना आना व हार्टबीट का तेजी से धड़कना जैसी शिकायत होती है। लेकिन यदि आपको ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी है तो संभव है कि यह लक्षण आप महसूस न करें।
- पांव व तलवों का एहसास ही न होना : नर्व डैमेज होने के कारण संभव है कि आपको अपने पांव व तलवों का एहसास ही न हो। वहीं एक छोटा सा कट व चोट भी गंभीर अल्सर में बदल सकता है। इन मामलों में इंफेक्शन हड्डियों के जरिए टिशू में जा सकती है, वहीं यह जानलेवा साबित भी हो सकता है। इन मामलों में डॉक्टर पांव निकालने या फिर पांव के निचले हिस्से को काटकर अलग करने की सलाह देते हैं।
- यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन : वैसे नर्व जो हमारे ब्लैडर को कंट्रोल करते हैं यदि वो ही डैमेज हो जाएं तो संभावना रहती है कि हम अपने ब्लैडर को खाली ही न कर पाएं। इन मामलों में हमारे ब्लैडर और किडनी में बैक्टीरिया पनप जाते हैं। इसके कारण लोगों को यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन की बीमारी होती है।
- ब्लड प्रेशर में शार्प ड्राप : वैसे नर्व जो हमारे ब्लड फ्लो को कंट्रोल करते हैं यदि वो ही प्रभावित हो जाए तो उस स्थिति में संभावना रहती है कि हमारा ब्लड प्रेशर सामान्य रूप से एडजस्ट न हो। हो सकता है कि लंबे समय तक बैठे रहने के बाद जैसे ही आप उठते हैं आपका ब्लड प्रेशर एकाएक बदलता है, इस कारण आपको सिर चकराना और बेहोशी जैसी लक्षण महसूस हो सकते हैं।
- डायजेस्टिव प्रॉब्लम : यदि नर्व डैमेज आपके डायजेस्टिव ट्रैक पर असर डालता है तो संभावनाएं रहती है कि आपको कब्जियत या फिर डायरिया जैसे लक्षण महसूस हो। डायबिटीज से संबंधित नर्व डैमेज के कारण गेस्ट्रियोपेरिसिस (gastroparesis) की समस्या हो सकती है। इस समस्या के होने से हमारा पेट काफी धीरे-धीरे खाली होता है, इस कारण पेट में अपच और सूजन की समस्या हो सकती है।
- सेक्सुअल डिस्फंक्शन (Sexual dysfunction) : ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी हमारे उन नर्व को डैमेज कर सकता है जिसके कारण हमारे सेक्स ऑर्गन भी प्रभावित होते हैं। पुरुषों में जहां नपुंसकता (erectile dysfunction) की शिकायत देखने को मिलती है वहीं महिलाओं में कामोत्तेजना (arousal) में कमी आती है।
- पसीना का बढ़ना और घटना : नर्व डैमेज के कारण हमारा स्वेट ग्लैंड प्रभावित हो सकता है। इस कारण हमारे शरीर का तापमान लेने में परेशानी आ सकती है।
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डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) से ऐसे करें बचाव
हम डायबिटिक न्यूरोपैथी और इसके दुष्परिणामों से बचाव करने के लिए ब्लड शुगर लेवल को मैनेज करने के साथ पांव की अच्छे से देखभाल रख कर सकते हैं।
ब्लड शुगर मैनेजमेंट है जरूरी
द अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन यह सुझाव देता है कि वैसे व्यक्ति जो डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं उन्हें साल में कम से कम दो बार ए1सी की जांच करवानी चाहिए। यह ब्लड टेस्ट हमारे बीते हुए दो व तीन महीनों के ब्लड शुगर लेवल के औसत की जांच कर परिणाम बताता है। द अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार ए1सी सात फीसदी से कम होना चाहिए, यदि ब्लड शुगर लेवल ज्यादा है तो उस मामले में हमें डेली मैनेजमेंट की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में दवाओं का सेवन करने के साथ हमें डायट मैनेजमेंट की आवश्यकता पड़ सकती है।
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पांव की करें देखभाल
डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) बीमारी के होने से पांव संबंधी परेशानी होती है। खासतौर पर हमारे पांव के घाव भरते ही नहीं है। लेकिन हम चाहें तो इन परेशानियों से निजात पा सकते हैं, इसके लिए साल में एक बार हमें डॉक्टर से अपने पांव की जांच करवानी जरूरी हो जाती है। वहीं जब भी आप डॉक्टर के पास जाएं अपने पांव को जरूर दिखाएं, वहीं घर पर भी पांव की अच्छे से देखभाल करें। पांव की देखभाल के लिए डॉक्टर की सुझाई गई बातों पर ध्यान दें।
- रोजाना अपने पांव की देखभाल करें : पांव में देखें कि कहीं फफोले, घाव, कट, क्रैक, स्किन में रेडनेस, छिलने वाली त्वचा और सूजन तो नहीं। आप चाहे तो इसकी जांच करने के लिए शीशे की मदद ले सकते हैं, या परिवार के अन्य सदस्यों से इसकी जांच करवा सकते हो, यदि किसी प्रकार का कट मार्क हुआ तो डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
- अपने पांव को सूखा व साफ रखें : गुनगुना पानी और साबुन से हमेशा अपने पांव को धोना चाहिए। अपने पैरों को भिंगोने से बचाना चाहिए। उंगलियों के बीच में पानी न लगे इसको लेकर भी सचेत रहना चाहिए।
- पांव को करें मॉश्चराइज : यदि आप अपने पांव को मॉश्चराइज करेंगे तो इससे क्रैक होने की संभावनाएं भी कम हो जाती है। लेकिन उंगलियों के बीच में लोशन लगाने से परहेज करना चाहिए। ऐसा कर फंगल ग्रोथ को रोका जा सकता है।
- पांव की उंगलियों के नाखून को सावधानीपूर्वक हटाएं : पांव की उंगलियों के नाखूनों को सावधानीपूर्वक काटें। कोशिश यही रहनी चाहिए कि नाखून के कोने नुकीलें न हो, यह आपके पांव के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
- साफ व सूखे मोजे पहनें : कॉटन के मोजे पहनें, टाइट मोजे पहनने से बचने के साथ-साफ व सूखे मोजे पहनें।
- फिट व कुशन युक्त जूतें पहनें : वैसे जूतें व स्लीपर्स को पहनें जो हमारे पांव की रक्षा करें। वैसे जूते पहने जो हमारे पांव में आसानी से आ जाएं व फिट हो जाए।
क्या करें व क्या न करें
जरूरी यही है कि जैसा कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित लोग पांच साल में एक बार और डायबिटीज टाइप 2 की बीमारी से ग्रसित लोग साल में एक बार जरूर डॉक्टरी सलाह लें। वहीं डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित लोगों को खास सावधानी बरतनी पड़ती है। खानपान से लेकर सेहत का उन्हें खास ख्याल रखना चाहिए, यहां तक कि उन्हें अपने पांव की भी देखभाल करनी चाहिए वहीं किसी प्रकार के दुष्प्रभाव दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
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