सामान्य जांच के बाद ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट का दिया जाता है सुझाव
रूटीन टेस्ट कर गर्भवती की यूरीन में पाए जाने वाले ग्लूकोज लेवल की जांच की जाती है। इतना ही नहीं जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर ब्लड शुगर लेवल की जांच गर्भावस्था के दौरान 26 से 30 सप्ताह की बीच की जाती है। इस टेस्ट के तहत अलग-अलग दो टेस्ट किए जाते हैं। इनमें फास्टिंग ग्लूकोज टेस्ट या फिर रैंडम ग्लूकोज टेस्ट करने का सुझाव डॉक्टर देते हैं। दूसरे मामले में यदि नतीजे सही नहीं आते हैं या फिर गर्भवती के परिवार में किसी को पहले से डायबिटीज की बीमारी रही हो तो ऐसे में उसे ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट का सुझाव दिया जाता है।
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अच्छी प्रेग्नेंसी के लिए दी जाने वाली सलाह
वैसी गर्भवती महिला जो जेस्टेशनल डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित होती हैं, उन्हें डायट में बदलाव के साथ एक्सरसाइज में बदलाव करने के लिए कहा जाता है ताकि शिशु के जन्म में किसी प्रकार की कोई समस्या न आए। इस दौरान एक्सपर्ट गर्भवती को सुझाव देते हैं कि कम प्रेशर वाले एक्सरसाइज करें, जैसे वॉकिंग, स्विमिंग, योगा और पिलाटे। डॉक्टरी सलाह के अनुसार ही अपने डायट में भी बदलाव करने चाहिए। ऐसे लोगों को खानपान पर खास ध्यान देने को कहा जाता है, जैसे खाने में कितना फैट खा रही हैं, यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि फैट को डायट चार्ट से हटाना नहीं है बल्कि शरीर के अनुसार नियमित मात्रा में सेवन करने की सलाह दी जाती है। वहीं डायट में नमक की मात्रा का कम सेवन करने की सलाह देने के साथ फ्रूट्स और हरी सब्जियों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके लिए डायटीशियन या न्यूट्रीशिनिस्ट की सलाह भी लिया जा सकता है।
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एक्सपर्ट की लें सलाह
प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल के लिए मरीज चाहें तो डॉक्टर के साथ हेल्थ एक्सपर्ट जैसे डायटीशियन और न्यूट्रीशिनिस्ट की सलाह ले सकते हैं। ताकि इस समस्या को सुलझा सकें। यदि गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की बीमारी है या फिर पूर्व में डायबिटीज की बीमारी रही हो तो ऐसे में सामान्य लोगों की तुलना में काफी सचेत रहने की आवश्यकता होती है, ताकि प्रेग्नेंसी से जुड़ी जटिलताओं को कम किया जा सके।
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