सर्दियों के मौसम में ठंड लगना आम बात है। लेकिन, कुछ लोगों को बेवजह दूसरों से ज्यादा ठंड लगती है। ऐसी स्थिति आपके सामने भी आ चुकी होगी और इसी के साथ आपके मन में सवाल आता होगा कि ऐसा क्यों होता है? तो आपको बता दें कि कई बार यह समस्या हाइपोथर्मिया भी हो सकती है। इस आर्टिकल में जानें हाइपोथर्मिया के कारण, जोखिम और इलाज के बारे में।
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हाइपोथर्मिया क्या है?
हमारे शरीर का एक सामान्य तापमान होता है, जो कि शरीर द्वारा कंट्रोल किया जाता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्य व सुरक्षित स्तर से अचानक नीचे गिर जाता है, तो यह हाइपोथर्मिया कहलाता है। यह समस्या जानलेवा भी साबित हो सकती है और खासतौर से नवजात और बुजुर्ग लोगों के लिए तो यह समस्या काफी खतरनाक होती है। ऐसा दरअसल इसलिए होता है, क्योंकि आपका शरीर इतनी शारीरिक गर्मी का उत्पादन नहीं कर पाता, जितनी गर्मी आपके शरीर द्वारा इस्तेमाल की जा रही है।
शरीर में गर्मी बनाए रखने का कार्य दिमाग का एक हिस्सा करता है, जिसे हाइपोथेलेमस (hypothalamus) कहा जाता है। जब हाइपोथेलेमस को संकेत मिलता है कि शरीर में गर्माहट का स्तर गिर रहा है, तो यह शारीरिक तापमान को उठाकर सामान्य बनाने का कार्य करता है। हाइपोथर्मिया की वजह से आपके सोचने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। अधिकतर सर्दी के मौसम में आपके शरीर को अधिक सामान्य तापमान चाहिए होता है, लेकिन जब शरीर जरूरी गर्माहट को नहीं संयमित रख पाता तो मुश्किल स्थिति बन जाती है। यह समस्या ज्यादा देर ठंड या ठंडे पानी में रहने की वजह से भी हो सकती है।
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शरीर का सामान्य तापमान क्या होता है?
शरीर का सामान्य तापमान आपकी उम्र, लिंग और स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है। वैसे, सामान्य शारीरिक तापमान 98.6 डिग्री फारेनहाइट यानी 37 डिग्री सेल्सियस से लेकर 100.4 डिग्री फारेनहाइट यानी 38 डिग्री सेल्सियस तक होता है। न्यून्तम सामान्य शारीरिक तापमान 36 डिग्री सेल्सियस भी हो सकता है। शारीरिक तापमान के इससे नीचे गिरने पर हाइपोथर्मिया की समस्या कहा जाता है और 38 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा शारीरिक तापमान को बुखार की समस्या कहा जाता है।
हाइपोथर्मिया के लक्षण क्या हैं?
हाइपोथर्मिया की समस्या के दौरान आपको निम्नलिखित लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन जरूरी नहीं कि आपको यही लक्षण देखने को मिलें। हो सकता है आपको हाइपोथर्मिया की वजह से दूसरे लक्षण या फिर निम्नलिखित में से एक से ज्यादा लक्षणों का सामना करना पड़ें। हाइपोथर्मिया के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं-
- हाइपोथर्मिया के कारण आपको अत्यधिक कंपन महसूस हो सकती है।
- हाइपोथर्मिया की समस्या में व्यक्ति की सांसें धीमी पड़ जाती हैं।
- इस स्थिति में बोलने की गति कम हो जाती है।
- हाइपोथर्मिया की समस्या सोचने की क्षमता पर बुरा असर डालती है, जिससे आपको असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
- कुछ लोगों को इस समस्या की वजह से शारीरिक थकान का सामना भी करना पड़ सकता है।
- हाइपोथर्मिया की वजह से याद्दाश्त भी कमजोर हो सकती है।
- इस शारीरिक समस्या में हाथ और पैरों में सुन्नपन हो सकता है।
- नवजातों की त्वचा हाइपोथर्मिया की वजह से बिल्कुल लाल या ठंडी हो सकती है।
- इसके अलावा, नवजात बच्चों की ऊर्जा, हाइपोथर्मिया की वजह से काफी कम हो सकती है।
- हाइपोथर्मिया से ग्रस्त होने पर बोलचाल में परेशानी, ध्यान केंद्रित करने में समस्या, चाल लड़खड़ाने लगती है।
- हाइपोथर्मिया बिगड़ने पर व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है।
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हाइपोथर्मिया का खतरा किसे ज्यादा होता है?
हाइपोथर्मिया की समस्या वैसे तो किसी को भी हो सकती है, लेकिन निम्नलिखित स्थितियों में इसका खतरा ज्यादा होता है। जैसे-
- उम्र हाइपोथर्मिया की समस्या में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। क्योंकि, नवजातों या बुजुर्ग लोगों में इस समस्या के होने का ज्यादा खतरा होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि इन लोगों में सामान्य शारीरिक तापमान को बनाए रखने की क्षमता कम हो जाती है।
- कुछ डिप्रेशन दूर करने या एंटीसाइकोटिक दवाओं का सेवन करने से भी आपके शरीर की सामान्य तापमान बनाए रखने की क्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में अपने डॉक्टर से बात करके उचित जानकारी प्राप्त करें।
- शराब या ड्रग्स का सेवन करने से भी आपको हाइपोथर्मिया की समस्या का खतरा हो सकता है। इसमें शराब का सेवन करना ज्यादा खतरनाक हो सकता है। क्योंकि, शराब का सेवन करने से आपके शरीर के गर्म होने का झूठा एहसास होता है, जबकि असल में रक्त धमनियां फैल जाती हैं और त्वचा के जरिए ज्यादा शारीरिक गर्मी शरीर से निकल जाती है।
- डिमेंशिया या बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी अन्य मानसिक समस्या होने की वजह से भी आपको हाइपोथर्मिया की दिक्कत हो सकती है। मानसिक समस्या होने की वजह से लोग अपनी पर्याप्त देखभाल नहीं कर पाते और ऐसे में सर्दी के मौसम में पर्याप्त देखभाल के बिना बाहर जाना खतरनाक हो सकता है और उनके सामान्य शारीरिक तापमान में गिरावट का कारण बन सकता है।
अन्य स्थिति-
- अर्थराइटिस
- डायबिटीज
- पार्किंसन डिजीज
- हाइपोथाइरॉडिस्म
- स्ट्रोक
- कुपोषण, आदि
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हाइपोथर्मिया का इलाज क्या है?
अगर किसी व्यक्ति की स्थिति हाइपोथर्मिया के कारण गंभीर हो गई है, तो उसे मेडिकल सहायता मिलने तक तुंरत फर्स्ट एड दी जानी चाहिए। इसके लिए आप निम्नलिखित तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे-
- सबसे पहले व्यक्ति को गर्म, सूखी और खासतौर से किसी बंद जगह पर ले जाएं।
- अगर, उसके कपड़े गीले हैं, तो उन्हें उतारकर अलग कर दें और सूखें कपड़े ढकें।
- अगर कपड़ों के बाद भी उसके लक्षणों में कमी नहीं आई है, तो उस पर कंबल, चादर आदि की मदद से अतिरिक्त कपड़े ढकें। लेकिन, ध्यान रहे कि उसका चेहरा खुला रखें।
- इसके अलावा, हाइपोथर्मिया से ग्रसित व्यक्ति को जमीन पर न लिटाएं और अगर बेड या कोई बेंच न हो तो उसके नीचे गर्म कंबल या गद्दा डालें।
- उसकी सांसों की प्रक्रिया का ध्यान रखें और अगर उसकी सांसें बाधित हो रही हैं, तो तुरंत सीपीआर दें।
- हाइपोथर्मिया की समस्या को कम करने के लिए स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट भी कर सकते हैं। हो सके, तो उसके और अपने अधिकतर कपड़े उतारकर एक कंबल में लेट जाएं। ताकि उसके शरीर में शारीरिक गर्मी ट्रांसफर हो सके।
- अगर व्यक्ति खाने-पीने की स्थिति में है, तो उसे गर्म तरल पदार्थों का सेवन कराएं, लेकिन शराब या कैफीन का सेवन न कराएं।
हाइपोथर्मिया के लिए क्लिनिकल ट्रीटमेंट क्या है?
कुछ रिपोर्ट के मुताबिक, हाइपोथर्मिया का क्लिनिकल ट्रीटमेंट करने के लिए निम्नलिखित तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे-
- हाइपोथर्मिया के इलाज के लिए एक्टिव एक्सटर्नल रिवार्मिंग का तरीका अपनाया जा सकता है। इसमें हॉट वाटर बोटल या गर्म हवा के द्वारा शरीर के ट्रंकल क्षेत्र को गर्म किया जाता है। जैसे प्रत्येक हाथ के नीचे गर्म पानी की बोतल रखना।
- एक्टिव कोर रिवार्मिंग की मदद से भी हाइपोथर्मिया की समस्या का इलाज किया जाता है। जिसमें गर्म फ्लूड को नसों के भीतर पहुंचाया जाता है।
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