कान, नाक और गला हमारे शरीर के अहम अंग हैं। जब हमे कान, नाक या गले में किसी भी तरह की परेशानी होती है, तो ईएनटी विशेषज्ञ की जरूरत पड़ती है। ईयर, नोज और थ्रोट को ईएनटी के नाम से भी जाना जाता है। ईएनटी कान, नाक और गले की चिकित्सा का संक्षिप्त नाम है। कान, नाक और गले में संक्रमण या फिर बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। कान, नाक और गले से संबंधित विभिन्न प्रकार के डिसऑर्डर होते हैं, जो शरीर में हल्के या अधिक लक्षणों को जन्म दे सकते हैं। ईएनटी स्पेशलिस्ट इन लक्षणों को पहचानकर बीमारी डायग्नोज करते हैं और साथ ही जरूरी ट्रीटमेंट भी करते हैं। कान, नाक और गले से संबंधित बहुत-सी बीमारियां हैं, जिनकी आपको शायद ही जानकारी होगी। हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कान, नाक और गले से जुड़ी बीमारियों के बारे में बताएंगे और साथ ही आपको बीमारी के कारण और ट्रीटमेंट की भी जानकारी देंगे। जानिए ईएनटी डिसऑर्डर के बारे में।
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जानिए ईएनटी डिसऑर्डर (ENT disorders) क्या होते हैं?
जब किसी कारण से कान, नाक और गले में विकार पैदा होता है, तो इनके कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कान न सिर्फ सुनने का काम करते हैं, बल्कि सेंसरी ऑर्गन होने के कारण ये सेंस को बैलेंस करने का भी काम करते हैं। वहीं नाक भी सेंसरी ऑर्गन है, जो न सिर्फ सूंघने के काम आती है बल्कि टेस्ट के सेंस के लिए भी जिम्मेदार होती है। नाक वातावरण में उपस्थित जर्म्स को शरीर के अंदर जाने से रोकती है। जब हम सांस लेते हैं, तो हवा में उसमे जर्म्स भी उपस्थित होते हैं। गला या थ्रोट एयर को लंग्स तक और फूड और वॉटर को डायजेस्टिव ट्रेक तक पहुंचाने का काम करता है। इन ऑर्गन में किसी तरह की समस्या मेडिकल इमरजेंसी का कारण बन सकती है। अगर आपको क्रॉनिक ईयर, नोज या थ्रोट प्रॉब्लम है, तो आपको ओटोलरीन्गोलॉजिस्ट (Otolaryngologist) से मिलना चाहिए। ईएनटी डिसऑर्डर का ट्रीटमेंट करने वाले डॉक्टर ओटोलरीन्गोलॉजिस्ट (Otolaryngologist) कहलाते हैं। टॉन्सिलाइटिस (Tonsillitis), ईयर इन्फेक्शन (Ear Infections), साइनस इन्फेक्शन (Sinus Infections),स्लीप एप्निआ (Sleep Apnea) आदि ईएनटी डिऑर्डर हैं।
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ईएनटी डिसऑर्डर को डायग्नोस कैसे किया जाता है?
कान, नाक या गले की बीमारी को लक्षणों के आधार पर डायग्नोज किया जाता है। पहले डॉक्टर आपसे बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे और फिर डायग्नोज करेंगे। यहां हम आपको कान,नाक और गले की बीमारी के दौरान किए जाने वाले डायग्नोज के बारे में जानकारी देंगे। जानिए लैरिंगोस्कोपी टेस्ट के बारे में।
गले के विकार को जांचने के लिए लैरिंगोस्कोपी (Laryngoscopy)
गले के अंदरूनी भाग की जांच के लिए डॉक्टर लैरिंगोस्कोपी टेस्ट करते हैं। गले और लैरिंक्स में किसी प्रकार की समस्या का लैरिंगोस्कोपी के माध्यम से पता लगाया जा सकता है। गले में दर्द होने पर, गले में कुछ फंसे होने का एहसास, गले में सूजन, क्रॉनिक कफ प्रॉब्लम, कफ में ब्लड या फिर गले में लिम्फ होने पर डॉक्टर लैरिंगोस्कोपी टेस्ट कर सकते हैं। लैरिंगोस्कोपी की प्रक्रिया में 45 मिनट से एक घंटे का समय लग सकता है। डॉक्टर टेस्ट के दौरान एनस्थीसिया का इस्तेमाल कर सकते हैं। डॉक्टर टेलीस्कोप के माध्यम से गले की अंदरूनी जांच करते हैं और बीमारी का पता लगाने की कोशिश करते हैं। अगर गलती से गले में कुछ फंस गया है, तो जांच के लिए डॉक्टर लैरिंगोस्कोपी कर सकते हैं। लैरिंगोस्कोपी कराने से पहले और बाद में आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस बारे में डॉक्टर से जरूर पूछें। आप टेस्ट के बाद गुनगुने पानी से गरारा कर सकते हैं। आप इस टेस्ट के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।
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ओटोस्कोप एक्जामिनेशन (Otoscope examination)
ऑटोस्कोप एक टूल होता है, जिसमे बीम लाइट होती है। बीम लाइट की हेल्प से ईयर कैनाल और ईयर ड्रम की कंडीशन चैक की जाती है। कान का दर्द, कान भरा हुआ महसूस होना या सुनने की शक्ति कम हो जाना आदि लक्षणों के दिखने पर ओटोस्कोप एक्जामिनेशन (Otoscope examination) किया जाता है। ओटोस्कोपिक टेस्ट के दौरान ओटोस्कोप का यूज किया जाता है, जो कानों की एनाटॉमी के बारे में जानकारी देता है। प्रोवाइडर ऑटोस्कोप की कोन को कान में डालते हैं। ऑटोस्कोप में लाइट और लेंस होता है। ऑटोस्कोपिक एक्जामिनेशन के पहले या एक्जामिनेशन के दौरान क्या सावधानी रखनी चाहिए, आप इस बारे में डॉक्टर से जरूर पूछें।
राइनोस्कोपी (Rhinoscopy)
नोज और थ्रोट की जांच के लिए राइनोस्कोपी मैथड अपनाया जाता है। नेजल एक्टिविटी की जांच के लिए राइनोस्कोपी की सहायता ली जाती है। राइनोस्कोप एक छोटी, फ्लेक्सिबल प्लास्टिक ट्यूब होती है जिसमें एयरवे को देखने के लिए फाइबर ऑप्टिक्स होते हैं। स्क्रीन में एयरवे इंटीरियर पार्ट को देखा जाता है। राइनोस्कोप में कैमरा भी जोड़ा जा सकता है। राइनोस्कोपी करने से पहले नाजल स्प्रे की सहायता से नाक की सफाई की जाती है। अन्य नेजल स्प्रे की सहायता से नाक को सुन्न कर दिया जाता है ताकि जांच के दौरान पेशेंट को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। राइनोस्कोप के अंदर जाने पर पेशेंट को इसका एहसास तो होता है, लेकिन कोई दर्द नहीं होता है। नेजल पैसेज में कुछ दिक्कत का एहसास हो सकता है लेकिन आप डॉक्टर से इस बारे में परामर्श कर सकते हैं। राइनोस्कोपी के पहले और बाद में रखी जाने वाली सावधानियों के बारे में डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
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ये नोज कंडीशन (Nose conditions) कर सकती हैं आपको परेशान
नाक शरीर का अहम हिस्सा है। नाक सांस लेने के दौरान हवा के धूल, कीटाणुओं और इरिटेंट को दूर करता है। ये हवा को गर्म और नम बनाए रखने का काम करता है। नाक में नर्व सेल्स भी होती हैं, जो गंध को पहचानने में सहायता करते हैं। जब आपको नाक में किसी प्रकार की समस्या होती है, तो आपका पूरा शरीर बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। कॉमन कोल्ड के कारण भरी हुई नाक, सांस लेने में समस्या, नींद न आना आदि परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कोल्ड के अलावा कई कंडीशन नाक को प्रभावित करती है। जानिए नोज कंडीशन के बारे में।
ईएनटी डिसऑर्डर: स्मैल डिसऑर्डर (Smell Disorders)
स्मैल सेंस की हेल्प से हम फेवरेट फूड की खुशबू, फूलों की खुशबू आदि को महसूस कर सकते हैं। स्मैल सेंस अलर्ट करने का काम भी करता है। कुछ डेंजर सिग्नल जैसे कि गैस लीक होने पर, खाना खराब होने महक, आग लगने पर या जलने की महक को नाक के स्मैल सेंस की हेल्प से महसूस किया जा सकता है। अगर स्मैल सेंस खत्म हो जाए या किसी कारण से गंध का एहसास न हो, तो बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। स्मैल डिसऑर्डर के कारण स्मैल सेंस लॉस हो सकता है। जिन लोगों स्मैल डिसऑर्डर होता है, उनमें स्वाद का सेंस भी कम हो सकता है। स्मैल सेंस कीमोसेंसरी सिस्टम(chemosensory system) का पार्ट है। सेंसरी सेल्स के कारण ही गंध की पहचान होती है। नोज के अंदर स्मॉल टिशू पैच होते हैं, जिनमें सेंसरी न्यूरॉन्स होते हैं। ये सेल्स ब्रेन से कनेक्ट रहती हैं और मॉल्यूक्यूल डिटेक्ट कर ब्रेन को मैसेज भेजती हैं। इस तरह से ब्रेन पर्टिकुलर स्मैल को पहचान लेता है।
हाइपोस्मिया (Hyposmia) -गंध को महसूस करने की क्षमता कम हो जाती है।
एनोस्मिया (Anosmia)– गंध को महसूस करने की पूरी क्षमता खत्म हो जाती है।
पैरोस्मिया (Parosmia) -गंध महसूस नहीं हो पाती है। जो अच्छी महक होती है, वो बुरी लग सकती है।
स्मैल डिसऑर्डर के कारण और ट्रीटमेंट
स्मैल डिसऑर्डर कई कारणों से हो सकता है। अगर व्यक्ति को कोई इंजुरी हुई है, तो वो भी गंध विकार का कारण बन सकता है। निम्न कारण स्मैल डिसऑर्डर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
- एजिंग
- रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन
- हेड इंजुरी
- हॉर्मोनल असामान्यता
- डेंटल प्रॉब्लम
- किसी कैमिकल के एक्पोजर
- रेडिएशन ट्रीटमेंट
स्मैल डिसऑर्डर को डायग्नोज करने के लिए कान, नाक और गले का फिजिकल एक्जामिनेशन करना पड़ सकता है। पेशेंट को स्मैल पहचानने के लिए भी कहा जा सकता है। डॉक्टर कुछ मेडिकेशन की हेल्प से स्मैल डिसऑर्डर को ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं। वहीं सर्जरी की हेल्प से नेजल पॉलिप्स को भी हटाया जा सकता है। अगर किसी बीमारी के कारण स्मैल डिसऑर्डर हुआ है, तो बीमारी ठीक होने पर स्मैल डिसऑर्डर की समस्या भी ठीक हो जाती है।
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एनोस्मिया (Anosmia)
स्मैल सेंट के पार्सियल या फिर कम्प्लीट लॉस को एनोस्मिया कहते हैं। ये लॉस टेम्परेरी या फिर परमानेंट भी हो सकता है। एलर्जी या फिर कोल्ड के कारण टेम्परेरी एनोस्मिया हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर या फिर हेड ट्यूमर के कारण नर्व प्रभावित होती हैं। ये कंडीशन परमानेंट स्मैल डिसऑर्डर का कारण बन सकती है। एनोस्मिया (Anosmia) सीरियस कंडीशन नहीं है लेकिन ये जीवन को कफी हद तक प्रभावित कर सकती है।एनोस्मिया से पीड़ित व्यक्ति को गंध की पहचान न होने के साथ ही खाने के स्वाद का पता भी नहीं चल पाता है। इस कारण से खाने के प्रति रुचि भी कम हो जाती है। इन कारणों से व्यक्ति का वजन कम हो सकता है या व्यक्ति कुपोषण का शिकार भी हो सकता है। जानिए एनोस्मिया के कारण और ट्रीटमेंट के बारे में।
एनोस्मिया (Anosmia) के कारण और ट्रीटमेंट
एनोस्मिया की समस्या कई कारणों से हो सकती है। आमतौर पर लोग टेम्परेरी एनोस्मिया का सामना कॉमन कोल्ड के समय करते हैं। वहीं ब्रेन कंडीशन के कारण भी एनोस्मिया की समस्या हो सकती है। जानिए एनोस्मिया के मुख्य कारण।
- साइनस संक्रमण (sinus infections)
- आम जुकाम (common colds)
- धूम्रपान (smoking)
- फ्लू या इन्फ्लूएंजा ( flu, or influenza)
- एलर्जिक राइनाइटिस(allergic rhinitis)
- ट्यूमर (tumors)
- नेजल पॉलिप्स (nasal polyps
- नेजल स्पैक्ट्रम या नाक के अंदर अस्थि की विकृति (bone deformities inside the nose or a nasal septum)
डॉक्टर आपका फिजिकल एक्जामिनेशन करने के बाद सीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन या फिर एक्स-रे कर सकते हैं। नेजल एंडोस्कोपी की हेल्प भी ली जा सकती है। डॉक्टर जांच के बाद सर्दी खांसी की दवा, एंटीहिस्टेमाइंस (antihistamines), स्टेरॉयड नाक स्प्रे (steroid nasal sprays), एंटीबायोटिक्स आदि लेने की सलाह दे सकते हैं। बेहतर होगा कि आप बिना डॉक्टर की जानकारी के किसी भी दवा का सेवन न करें।
मेंबरेन सूखने के कारण हो सकती है नोज ब्लीड (Nose bleed) की समस्या
कान नाक और गले की बीमारी में नोज ब्लीड कॉमन प्रॉब्लम है। नोज ब्लीड यानी नाक से खून निकलना किसी भी व्यक्ति के मन में डर पैदा कर सकता है। अगर नाक से तेजी से खून बह रहा है, तो ये सीरियस कंडीशन की ओर इशारा हो सकता है। कई बार नाक की झिल्ली यानी मेंबरेन के सूख जाने के कारण भी खून बहता है। आपने देखा होगा कि अधिक सर्दी में नोज ब्लीड की समस्या कॉमन होती है। क्रस्टिंग और फिर इचिंग के कारण नोज पिकिंग आमतौर पर लोगों की आदत बन जाता है और ये नोज ब्लीड का कारण बनता है। नाक से खून निकलने के अन्य कारण भी हो सकते हैं।
नोज ब्लीडिंग के कारण और ट्रीटमेंट
- नोज इंजुरी
- नाक में किसी वस्तु को डालने से
- एलर्जी
- कैंसर
- विंटर में
- हाई बीपी के कारण
- ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर
- कैल्शियम की कमी
- नाक की सर्जरी के कारण
- ब्लड डिसऑर्डर
नोज ब्लीड की समस्या किसी को भी हो सकती है। अगर कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए, तो इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। अगर आपकी नाक से खून निकल रहा है और बंद नहीं हो रहा है, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर सीबीसी(CBC), पीटीटी टेस्ट आदि के माध्यम से ब्लड डिसऑर्डर की जांच कर सकते हैं। साथ ही नाक का एक्स-रे और सीटी स्कैन भी किया जा सकता है। खून के अधिक बहाव को रोकने के लिए डॉक्टर सेप्टल सर्जरी कर सकते हैं।
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नेजल डिस्चार्ज (Nasal Discharge) खड़ी कर सकता है परेशानी
नाक में उपस्थित चिपचिपे पदार्थ को म्यूकस कहते हैं। म्यूकस वायु में उपस्थित बैक्टीरिया, जर्म्स और अन्य हानिकारक कणों को लंग्स में जाने से रोकता है। जब म्यूकस नाक से बाहर निकलने लगता है, तो इस कंडीशन को नेजल डिस्चार्ज कहते हैं। ऐसा अक्सर कोल्ड के समय देखने को मिलता है। इसे पोस्ट नेजल ड्रिप(Post-nasal drip) या राइनोरिया (Rhinorrhea) कहते हैं। नेजल डिस्चार्ज कॉमन होता है और अपने आप ही ठीक हो जाता है। कुछ केस में नाजल डिस्चार्ज हेल्थ प्रॉब्लम बन जाती है और मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत भी पड़ती है।
नेजल डिस्चार्ज के कारण और ट्रीटमेंट
- कॉमन कोल्ड (Common cold or flu)
- एलर्जी(Allergies)
- साइनोसाइटिस (Sinusitis)
- प्रेग्नेंसी के दौरान (Pregnancy)
- क्लस्टर हैडएक (Cluster headache)
- ड्राई एयर (Dry air)
- टोबैको स्मोक (Tobacco smoke)
- ड्रग एडिक्शन (Drug addiction)
नेजल डिस्चार्ज की रोकथाम के लिए घरेलू उपाय लाभकारी साबित होते हैं। यदि नाजल डिस्चार्ज के कारणों की रोकथाम की जाए, तो इस समस्या से निजात मिल सकता है। कुछ केसेज में डॉक्टर मेडिकेशन की सलाह दे सकते हैं। आपको रेस्ट के साथ ही अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। अगर आपको फ्लू है, तो डॉक्टर आपको एंटीवायरल मेडिसिन लेने की सलाह देंगे। आप सेलाइन नेजल स्प्रे (Saline nasal spray) का इस्तेमाल कर सकते हैं। हॉट वॉटर स्टीम लेने से भी नेजल डिस्चार्ज की समस्या से राहत मिलती है।
ईएनटी डिसऑर्डर: नाक को बंद कर सकता है डेविएटेड सेप्टम (Deviated septum)
डेविएटेड सेप्टम की समस्या तब होती है, जब नेजल पैसेज की पतली दीवार एक ओर विस्थापित हो जाती है। कई लोगों में नोज सेप्टम ऑफ-सेंटर होता है। इस कारण से नेजल पैसेज छोटा हो जाता है। जब डेविएटेड सेप्टम की गंभीर समस्या उत्पन्न होती है, तो नाक के एक तरफ का हिस्सा ब्लॉक हो जाता है और एयरफ्लो कम हो जाता है। क्रस्टिंग के कारण ब्लीडिंग की समस्या भी हो सकती है। डेविएटेड सेप्टम के लक्षण निम्न हो सकते हैं।
- एक या दोनो तरफ की नाक में अवरुद्ध
- नाक से ब्लीडिंग
- फेशियल पेन
- सोते समय नाक से आवाज आना
- एक तरफ सोना
डेविएटेड सेप्टम की समस्या जन्म से हो सकती है। किसी इंजुरी के कारण भी नेजल सेप्टम अपनी पुजिशन से हट सकता है। डेविएटेड सेप्टम से बचाव के लिए नाक की चोट से बचना होगा। ड्राइविंग करते समय हैलमेट पहनें। फुलटबॉल या वॉलीबॉल खेलते समय भी प्रोटक्शन का ध्यान रखें। वेहिकल चलाते समय सीट बेल्ट जरूर लगाएं। डॉक्टर मेडिकेशन की हेल्प से नाक की सूजन को कम करते हैं। जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी की जा सकती है। नाक बंद होने पर आप डॉक्टर से संपर्क करें और बीमारी का ट्रीटमेंट कराएं वरना आपको गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
ईएनटी डिसऑर्डर: नेजल पॉलिप्स ( Nasal Polyp)
नेजल पैसेज में सॉफ्ट, पेनलेस और नॉनकैंसरस ग्रोथ को नेजल पॉलिप्स कहते हैं। ये टीयरड्रॉप या ग्रैप्स जैसी लटकी हुई दिखाई पड़ती हैं। इनका निर्माण अस्थमा क्रॉनिक इफ्लामेशन, इन्फेक्शन, एलर्जी, ड्रग सेंसिटीविटी या किसी इम्यून डिसऑर्डर के कारण हो सकता है। छोटी नेजल पॉलिप्स किसी तरह के लक्षण को जन्म नहीं देती हैं, वहीं बड़ी पॉलिप्स नेजल पैसेज को ब्लॉक करने का काम कर सकती है। इस कारण से गंध सूंघने की क्षमता खो सकती है और इन्फेक्शन की संभावना भी बड़ जाती है।नेजल पॉलिप्स होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं।
- बहती नाक
- नाक में भरापन
- पोस्टनेजल ड्रिप
- गंध की कमी
- स्वाद न पता चलना
- चेहरे में दर्द
- सिरदर्द
- ऊपरी दांतों में दर्द
- चेहरे पर दबाव का एहसास
- खर्राटे
- बार-बार नाक बहना
अगर आपको उपरोक्त लक्षण 10 दिनों से ज्यादा दिखते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। नेजल पॉलिप्स की जांच करने के बाद डॉक्टर आपको मेडिसिन देंगे। अगर पॉलिप्स बड़े हैं, तो डॉक्टर सर्जरी भी कर सकते हैं। सर्जरी के बाद भी नेजल पॉलिप्स के दोबारा आने की संभावना बनी रहती है। उस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से परामर्श करें।
नॉन एलर्जिक रायनाइटिस (Nonallergic rhinitis)
नॉनएलर्जिक रायनाइटिस (vasomotor rhinitis) एक ऐसी स्थिति है, जो क्रॉनिक स्नीजिंग या नाक बहने का कारण बनती है। ये लक्षण एलर्जिक रायनाइटिस (hay fever)से मिलते हैं। ये एलर्जिक रायनाइटिस से अलग है, क्योंकि इसमे इम्यून सिस्टम इंवॉल्व नहीं है। वायु प्रदूषक या गंध, खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थ, कुछ दवाएं, मौसम में परिवर्तन या क्रॉनिक हेल्थ प्रॉब्लम्स नॉन एलर्जिक रायनाइटिस के लक्षणों को ट्रिगर कर सकती हैं। नॉन एलर्जिक रायनाइटिस होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- बंद नाक (Stuffy nose
- बहती नाक (Runny nose)
- छींक आना (Sneezing)
- पोस्टनेजल ड्रिप(Postnasal drip)
नॉन एलर्जिक रायनाइटिस का एक्यूट डायग्नोसिस जरूरी है ताकि समस्या को दूर किया जा सके। नॉन एलर्जिक राइनाइटिस होने पर एलर्जिक रायनाइटिस की जांच भी की जा सकती है क्योंकि दोनों में ही कुछ लक्षण कॉमन होते हैं। नॉन एलर्जिक रायनाइटिस को ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन ट्रीगर को अवॉयड करके समस्या से बचा जा सकता है। डॉक्टर नमकीन पानी से गरारा करने की सलाह दे सकते हैं। ओवर-द-काउंटर या प्रिस्क्रिप्शन दवाओं का उपयोग करके राहत पाई जा सकती है।
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जानिए थ्रोट कंडिशन्स (Throat condition) के कारण और उनसे बचने के उपाय
गला शरीर का उपयोगी अंग माना जाता है। थ्रोट एक ट्यूब है, जो खाने को ईसोफेगस में और वायु को विंडपाइट और लेरिक्स में ले जाती है। थ्रोट का टेक्निकल नेम फेरिनिक्स है। थ्रोट प्रॉब्लम कॉमन होती है। अक्सर लोगों को गले में खराश की समस्या रहती है। हम आपको यहां कुछ थ्रोट कंडीशन के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जानिए गले में खराश की समस्या के बारे में।
गले में खराश (Sore throat) के हो सकते हैं बहुत से कारण
कोल्ड और फ्लू के कारण सोर थ्रोट की समस्या हो जाती है। अन्य कारणों की वजह से भी गले में खराश की समस्या होती है। कुछ कारण जैसे कि एलर्जी,मोनोन्यूक्लिओसिस, धूम्रपान, स्ट्रेप थ्रोट, टॉन्सिलाइटिस आदि गले में खराश का कारण बन सकते हैं। जानिए गले में खराश के मुख्य कारणों के बारे में।
टॉन्सिलाइटिस (Tonsilitis) टॉन्सिल्स की सूजन है। थ्रोट के पीछे दो ओवल शेप पैड टॉन्सिल्स कहलाते हैं। इस कारण से गले में खराश की समस्या हो जाती है। टॉन्सिलाइटिस की समस्या अपने आप भी दूर हो सकती है। डॉक्टर इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए मेडिसिन्स लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
फेरिंजाइटिस (Pharyngitis)- भी गले में खराश का कारण हो सकता है। इस कारण गले के पिछले भाग में सूजन आ जाती है और फीवर भी हो सकता है। नाक बहना, कफ आना, सिरदर्द, खाना निगलने में दिक्कत आदि लक्षण दिख सकते हैं। ये वायरल इन्फेक्शन तीन से चार दिनों तक रहता है।
लेरिन्जाइटिस (Laringitis) के कारण गले में सूजन आ जाती है। ऐसा वाइस बॉक्स में इन्फेक्शन के कारण होता है। इस कारण से गले में खराश हो जाती है।लेरिन्जाइटिस के लक्षण दो से तीन सप्ताह तक दिख सकते हैं।
एप्लीगोटाइटिस(Epligotitis) का मुख्य कारण विंडपाइट को कवर करने वाली स्मॉल कार्टिलेज लिड में सूजन आना है। ये लंग्स में आने वाली एयर को ब्लॉक करने का कारण बनती हैं।
गले में खराश के लिए ट्रीटमेंट
गले में खराश का ट्रीटमेंट बीमारी के कारण पर निर्भर करता है। डॉक्टर गले में खराश का डायग्नोज करने के बाद इन्फेक्शन को कम करने के लिए मेडिसिन्स दे सकते हैं। साथ ही आपको अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। ओवर-द-काउंटर पेन किलर भी मदद कर सकती हैं। अगर बच्चे को गले में खराश की समस्या है, तो बिना डॉक्टर से परामर्श किए उसे एस्पिरिन या अन्य कोई दवा न दें। गले में खराश के दौरान लॉजेंजस चूसना और आराम पहुंचाता है। साथ ही गुनगुना पानी भी गले को राहत देता है। आप चाहे तो गले की हल्की सिकाई भी कर सकते हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होता है स्ट्रेप थ्रोट (Strep throat)
स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो गले में सूजन और दर्द का कारण बनता है। स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया (Streptococcus bacteria) के कारण स्ट्रेप थ्रोट की समस्या होती है। स्ट्रेप थ्रोट की समस्या बच्चों से लेकर बुजुर्गों में भी हो सकती है। पांच से 15 साल के बच्चों में स्ट्रेप थ्रोट की समस्या कॉमन होती है। छींकने और खांसने के दौरान बैक्टीरिया हवा में फैल जाता है और अन्य व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकता है। जानिए स्ट्रेप थ्रोट के कारण कौन से लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
- अचानक से तेज बुखार
- गले में खराश
- सिरदर्द
- ठंड लगना
- भूख न लगना
- गर्दन के लिम्फ नोड्स में सूजन
- निगलने में परेशानी होना
स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) का ट्रीटमेंट
डॉक्टर आपसे बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी लेंगे। स्ट्रेप थ्रोट के कारण थ्रोट में सफेद पैच दिखने लगते हैं। साथ ही टॉन्सिल में रेड स्पॉट भी दिखाई देते हैं। पेशेंट को सांस लेने में समस्या होती है और खाने में भी दिक्कत होती है। ऐसे में डॉक्टर रैपिड स्ट्रेप टेस्ट करते हैं। ऐसा करने से इन्फेक्शन का कारण पता चल जाता है। डॉक्टर इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक्स देंगे। डॉक्टर ने आपको जितनी भी एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी हो, उसे लें। मेडिसिन्स को अधूरा न छोड़ें वरना इन्फेक्शन दोबारा आ सकता है। डॉक्टर पेनिसिलिन और एमोक्सिसिलिन (Penicillin and amoxicillin ) खाने की सलाह देंगे।अगर आपको इन दवाओं से एलर्जी हो रही है, तो इस बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं।
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खाने या पीने के दौरान हो सकती है चोकिंग (Choking)
जब फूड, लिक्विड या फिर अन्य पदार्थों के कारण थ्रोट ब्लॉक हो जाता है, तो चोकिंग की समस्या हो जाती है। बच्चों में अक्सर किसी भी पदार्थ को मुंह में डालने के कारण चोकिंग की समस्या होती है। वहीं वयस्कों में खाना या पानी को तेजी से पीने के कारण चोकिंग की समस्या होती है। ज्यादातर लोगों को अपने जीवन में एक बार चोकिंग की समस्या जरूर होती है। वैसे तो चोकिंग की समस्या कुछ समय तक ही रहती है और कुछ समय बाद अपने आप ही ठीक भी हो जाती है लेकिन कुछ मामलें गंभीर हो सकते हैं। चोकिंग के कारण लगातार खांसी आ सकती है। चोकिंग के कारण निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं।
- खांसी आना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- बोल न पाना
- कफ आना
बच्चों में चोकिंग के निम्न कारण हो सकते हैं।
- पॉपकॉर्न खाने के दौरान
- कैंडी
- पेंसिल इरेजर
- गाजर
- च्यूइंगगम
- मूंगफली
- चेरी टमैटो
- अंगूर
- फलों के बड़े टुकड़े
- सब्जियों के बड़े टुकड़े
चोकिंग (Choking) होने पर करें ये उपाय
अगर खाते समय किसी व्यक्ति को चोकिंग की समस्या हो गई है, तो आप एक मैथड का इस्तेमाल कर सकते हैं। हैंड हील से व्यक्ति की पीठ में पांच बार हिट करें। आप इसके बाद हेइम्लीच मेन्योअर (Heimlich maneuver) को पांच बार कर सकते हैं। इसमे आपको व्यक्ति को पीछे खड़े हो जाना है और फिर अपनी आर्म से व्यक्ति की छाती को पकड़ना है। अब दबाव की सहायता से व्यक्ति को आगे की ओर धकेले। हाथों को एब्डॉमन में अपवर्ड पुजिशन में प्रेस करें। इसे करीब पांच बार करें। ऐसा करने से थ्रोट में फंसा पदार्थ बाहर आ जाएगा। अगर व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत हो रही है या परेशानी ज्यादा हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
डिस्फेजिया (Dysphagia)
खाना निगलने की समस्या को डिस्फेजिया (Dysphagia) कहते हैं। मुंह से खाना निगलने के दौरान अधिक प्रयास करना पड़ता है। ऐसा नर्व या मसल्स प्रॉब्लम के कारण होता है। बच्चों और बुजुर्गों में डिस्फेजिया की समस्या आम होती है। जानिए डिस्फेजिया के मुख्य कारणों के बारे में।
ओरल डिस्फेजिया (Oral dysphagia) – ये मुंह की समस्या के कारण होता है। जब स्ट्रोक के कारण जीभ कमजोर हो जाती है, तो खाना निगलने में दिक्कत होती है।
फरिंजियल डिस्फेजिया ( Pharyngeal dysphagia) – ये प्रॉब्लम थ्रोट के कारण होती है। गले में न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम नर्व को प्रभावित करती हैं।
एसोफैगल डिस्पैजिया ( Esophageal dysphagia) – इसोफेगस में प्रॉब्लम के कारण एसोफैगल डिस्पैगिया होता है। सर्जरी के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है।
- भोजन करते समय चोकिंग
- निगलने पर खांसी
- स्टमक एसिड गले में आना
- हार्टबर्न
- आवाज बैठना
- भोजन का वापस आना
डिस्पैजिया न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है। डॉक्टर के लिए डिस्पैजिया का ट्रीटमेंट चैलेंजिंग होता है। डॉक्टर स्वैलिंग थेरिपी (Swallowing therapy), लिक्विंड और कुछ फूड के कॉम्बिनेशन को लेने की सलाह, ट्यूब की हेल्प से फीडिंग, डायलेशन आदि ट्रीटमेंट कर सकते हैं। डॉक्टर पेशेंट को बैलेंस्ड डायट चार्ट भी बनाकर देते हैं, ताकि खानपान के पेशेंट कुपोषण का शिकार न हो।
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लिफ्ट नोड्स में सूजन (Lymph Nodes inflammation)
इन्फेक्शन और स्ट्रेस के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन की समस्या हो सकती है। ऐसा ईयर इन्फेक्शन के कारण हो सकता है। लिम्फ नोड्स पूरी बॉडी में उपस्थित होते हैं। नेक, जबड़े, कॉलरबोन, आर्मपिट आदि में लिम्फ नोड्स उपस्थित होते हैं। इन्फेक्शन के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन आ जाती है। अपर रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन आ सकती है। साइनस इन्फेक्शन, एचआईवी इन्फेक्शन, इन्फेक्टेड टूथ, स्किन इन्फेक्शन, गले में खराश आदि कारणों से लिफ्ट नोड्स में सूजन में सूजन आ जाती है। इम्यून सिस्टम डिसऑर्डर भी लिफ्ट नोड्स में सूजन का कारण बन सकता है। डॉक्टर टेस्ट के बाद लिम्फ नोड्स बायोस्पी की सलाह दे सकते हैं।
ओडायनोफेजिया (Odynophagia)
पेनफुल स्वेलिंग के लिए ओडायनोफेजिया टर्म यूज किया जाता है। दर्द का एहसास मुंह में, थ्रोट में या ईसोफेगस में हो सकता है। खाने या पीने के दौरान गले में दर्द का एहसास होता है। पेनफुल स्वेलिंग के कई कारण हो सकते हैं, इसलिए बीमारी का इलाज करने में परेशानी हो सकती है। जानिए उन मेडिकल कंडीशन के बारे में, जो पेनफुल स्वेलिंग का कारण बन सकती हैं।
- कैंसर (Cancer)
- कैंडीडा इन्फेक्शन (Candida infection)
- गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (Gastroesophageal reflux disease)
- एचआईवी (HIV)
- अल्सर (Ulcers)
ओडायनोफेजिया एंडोस्कोपी के जरिए डायग्नोज किया जाता है। थ्रोट की हेल्प से कैमरे के माध्यम से एंडोस्कोप ईसोफेगस की जांच करता है। डॉक्टर ब्लड टेस्ट की सलाह भी दे सकते हैं। मेडिकल कंडीशन होने पर डॉक्टर मेडिसिन्स खाने की सलाह देंगे। ईसोफेगल ट्यूमर होने पर सर्जन सर्जरी की हेल्प से उसे हटाएंगे। आपको डॉक्टर से सावधानियों के बारे में जरूर पूछना चाहिए। अगर आपको खाना निगलने में दिक्कत हो रही है, तो इस समस्या को इग्नोर बिल्कुल न करें। खाना सही से न निगलने के कारण पेशेंट सही से खा नहीं पाता है और शरीर को पोषण नहीं मिल पाता है, जो वजन कम होने का कारण बन सकता है।
एब्सेस पेरिटॉन्सिल (Abses peritonsil)
जब चेस्ट और टॉन्सिल्स में पस इकट्ठा होने लगता है, तो इस कंडीशन को एब्सेस पेरिटॉन्सिल कहते हैं। टॉन्सिल के ऊतकों में सूजन के कारण एयरवे ब्लॉक हो जाता है। इस कारण से व्यक्ति को फीवर, खाना निगलने में दिक्कत और थ्रोट पेन हो सकता है। पस पेरीटॉन्सिलर स्पेस में जमा होता है, जो कि टॉन्सिलर कैप्सूल और कॉन्सट्रक्टर मसल्स के बीच स्थित होता है। पेरीटॉन्सिलर स्पेस लूज कनेक्टिव टिशू से मिलकर बना होता है। एब्सेस पेरिटोंसलर चेस्ट और नेक रीजन का कॉमन इन्फेक्शन है। डॉक्टर एक्जामिनेशन के दौरान टॉन्सिल पस को चेक करते हैं। डॉक्टर कम्प्लीट ब्लड काउंट, पस कल्चर सेंसिटीविटी, सी-रिएक्टिव प्रोटीन ब्लड कल्चर आदि कर सकते हैं।
मेडिकल ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर इंट्रावेनस फ्लूड शुरू कर सकते हैं क्योंकि पेशेंट को डीहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। साथ ही जरूरी इंट्रावेनस एंटीबॉडी की शुरूआत भी की जा सकती है। दर्द और बुखार से राहत के लिए एनाल्जेसिक (Analgesics) और एंटीपीयरेटिक्स (antipyretics)दिए जाते हैं। बीमारी के दौरान स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल कॉन्ट्रोवर्सियल है। स्टडी में ये बात सामने आई है कि इंट्रावेनस intravenous (IV) डेक्सामेथासोन की एक खुराक से हॉस्पिटल स्टे और बीमारी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।
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ईयर कंडीशन (Ear condition) किन कारणों से होता है?
कान तीन पार्ट आउटर, मिडिल और इनर ईयर से मिलकर बना होता है। तीनो ही पार्ट सुनने में मदद करते हैं। ईयर इन्फेक्शन या अन्य कारणों से ईयर डिसऑर्डर की स्थिति पैदा हो जाती है। इस कारण सुनने में दिक्कत हो सकती है। जानिए हियरिंग प्रोसेस कैसे काम करती है।
हियरिंग प्रोसेस (Ear works)क्या है?
वातावरण से साउंड वेव्स के जरिए साउंड का ट्रांसमिशन होता है। आउटर ईयर की हेल्प से साउंड वेव्स ईयर कैनाल से होते हुए ईयर ड्रम तक पहुंचती है। साउंड वेव्स के कारण ईयर ड्रम वाइब्रेट होता है, जिसके कारण मिडल ईयर में छोटी तीन बोंस में मोशन होता है। बोंस के मोशन के कारण इनर ईयर में फ्लूड भरता है। ईनर ईयर फ्लूड में मूवमेंट के कारण कॉक्लिआ (Cochlea) की हेयर सेल्स झुक जाती हैं।हेयर सेल्स मूवमेंट को इलेक्ट्रिकल पल्स में बदल देता है। इलेक्ट्रिकल इम्पल्स हियरिंग नर्व में ट्रांसमिट हो जाती हैं और ब्रेन तक पहुंचती हैं और साउंड सुनाई देता है।
हियरिंग इम्पेयमेंट (Hearing Impairment) क्या है?
जब ईयर के एक या अधिक पार्ट डैमेज हो जाते हैं, तो हियरिंग इम्पेयमेंट (Hearing Impairment) की समस्या हो सकती है। आउटर या मिडिल या ईयर कैनाल में परेशानी हियरिंग लॉस का कारण बन सकती है।एक्सटरनल और मिडिल ईयर के कारण कंडक्टिव हियरिंग इम्पेयरमेंट( conductive hearing impairment) की समस्या हो जाती है। वहीं इनर ईयर और हियरिंग नर्व में प्रॉब्लम की वजह से सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस (Sensorineural hearing loss) होता है।
कंडक्टिव हियरिंग लॉस (Conductive hearing loss)
एक्टर्नल कैनाल ब्लॉकेज के कारण कंडक्टिव हियरिंग लॉस की समस्या हो सकती है। कंडक्टिव हियरिंग लॉस होने पर व्यक्ति के सुनने की क्षमता पूरी तरह से खत्म नहीं होती है। सर्जिकल करेक्शन की हेल्प से सुनमे की क्षमता को ठीक किया जा सकता है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस (Sensorineural hearing loss)
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस कॉमन हियरिंग इम्पेयरमेंट है। इस कारण सुनने की क्षमता में लॉस होता है। पेशेंट को साउंड सेंसिटीविटी कम महसूस होती है। सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस में स्पीच को समझने में दिक्कत होती है। अगर बैकग्राउंड में आवाज है, तो सुनने में अधिक दिक्कत होती है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस के कारण
- लाउड नॉइज (Loud noises)
- एजिंग (Aging)
- जेनेटिक फैक्टर (Genetic factors )
- ऑटोइम्यून अटैक (Autoimmune attacks)
- मैटाबॉलिक चेंजेस (Metabolic changes)
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस का डायग्नोस करने के लिए हियरिंग टेस्ट किया जाता है। हियरिंग टेस्ट की हेल्प से सेवेरिटी लेवल की जानकारी मिलती है। दोनो कानों में हियरिंग लेवल को चेक किया जाता है। हियरिंग लेवल को डेसीबल में चेक किया जाता है। लोअर हियरिंग लेवल (15 डीबी) बेहतर हियरिंग को प्रदर्शित करता है। 0-20 डीबी को नॉर्मल हियरिंग रेंज माना जाता है। 75 डीबी से 85 डीबी हियरिंग रेंज का मतलब है कि व्यक्ति के सुनने की क्षमता खत्म या बहुत कम हो गई है। स्पीच डिसक्रिमिनेशन स्कोर को परसंटेज के माध्यम से दिखाया जाता है। 96-100% को नॉर्मल स्पीच डिसक्रिमिनेशन (Speech discrimination) माना जाता है। सर्जिकल इम्प्लांटेशन (Surgical implantation) या कॉकलीयर इम्प्लांट (Cochlear implant) की हेल्प से हियरिंग लॉस को दूर करने की कोशिश की जाती है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस से बचने के उपाय
- कानों को तेज आवाज से बचाएं। आप हियरिंग प्रोटक्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- हाई फैट और हाई सॉल्ट डायट लेने से बचें। ऐसा करने से क्रॉनिक कंडीशन जैसे कि हार्ट डिजीज और डायबिटीज का रिस्क कम होता है। ये बीमारियां हियरिंग लॉस की संभावना को बढ़ाती हैं।
- मॉडरेट कार्डियोवस्कुलर एक्सरसाइज करें। ऐसा करने से इनर ईयर में ब्लड फ्लो बढ़ेगा।
- ईनर ईयर डैमेज को रोकने के लिए स्मोकिंग छोड़ दें।
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ईयर इन्फेक्शन (Ear infections) के हो सकते हैं ये कारण
कान में इन्फेक्शन के कई कारण हो सकते हैं। ईयर इन्फेक्शन वायरस, बैक्टीरिया या फंगस के कारण हो सकता है। कान में इन्फेक्शन बच्चो के साथ ही अधिक उम्र के लोगों को भी परेशान कर सकता है। कान में इन्फेक्शन के कारण कान में दर्द की समस्या होती है। एंटीबायोटिक्स की हेल्प से कान में इन्फेक्शन की समस्या को दूर किया जाता है। कुछ लोगों को कान में इन्फेक्शन की समस्या कई बार होती है और सीरियस कॉम्प्लीकेशन का सामना भी करना पड़ सकता है। कान में इन्फेक्शन के कारण निम्नलिखत लक्षण नजर आ सकते हैं।
- लेटते समय काम में दर्द होना
- कान में खींचाव
- नींद न आना
- रोने का मन करना
- आवाज सुनने में परेशान
- बैलेंस न होना
- बुखार
- कान से तरल पदार्थ निकलना
- सिरदर्द
- भूख में कमी
अगर आपको उपरोक्त लक्षणों का सामना करना पड़ रहा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर कानों की जांच करानी चाहिए। कानों में इन्फेक्शन का सही समय पर इलाज न कराने से समस्या अधिक बढ़ सकती है।
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ईएनटी डिसऑर्डर: मिडिल ईयर इन्फेक्शन (Otitis Media or Middle Ear Infection)
ओटिटिस मीडिया मिडिल ईयर का इन्फेक्शन है। ओटिटिस मीडिया के कारण मिडिल ईयर में सूजन हो जाती है। कोल्ड, गले में खराश या फिर रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन के कारण ओटिटिस मीडिया (Otitis media)की समस्या हो सकती है।ओटिटिस मीडिया से बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। मिडिल ईयर इन्फेक्शन यूस्टेशियन ट्यूब (Eustachian tube) की खराबी के कारण हो सकता है।यूस्टेशियन ट्यूब एक कैनाल होती है, जो मिडिल ईयर को थ्रोट एरिया से जोड़ने का काम करती है।यूस्टेशियन ट्यूब मिडिल ईयर और आउटर ईयर के प्रेशर को बराबर रखने का काम करता है। इस इन्फेक्शन का शिकार एडल्ट भी हो सकते हैं। ओटिटिस मीडिया के रिस्क को बढ़ाने का काम निम्न फैक्टर कर सकते हैं।
- स्मोक करने वाले व्यक्ति के समीप रहना
- ईयर इन्फेक्शन की हिस्ट्री
- कमजोर इम्यून सिस्टम
- पीठ के बल लेटकर बोतल से दूध पीना
- कोल्ड के कारण
मिडिल ईयर इन्फेक्शन निम्नलिखित हैं,
- चिड़चिड़ापन
- सोने में कठिनाई होना
- बुखार
- कान से तरल पदार्थ निकलना
- बैलेंस लॉस
- सुनने में दिक्कत
- कान का दर्द
डॉक्टर माईरिंगॉटिमी की हेल्प से ईयरड्रम से फ्लूड बाहर निकालने की कोशिश करते हैं और मिडिल ईयर के प्रेशर को कम करते हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकती हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: स्वीमर्स ईयर(Swimmer’s ear)
स्वीमर्स ईयर की समस्या उन लोगों को हो सकती है, जो अधिक समय तक घर के बाहर रहते हैं या फिर पानी में रहते हैं। स्वीमर्स ईयर को ओटिटिस एक्सटर्नल (Otitis external) भी कहते हैं। घर के बाहर रहने पर धूल, मिट्टी आदि कण कान के अंदर जाते हैं। धूल के साथ ही बैक्टीरिया भी काम में प्रवेश कर जाते हैं। कान में नमी रह जाने पर भी ऐसा ही होता है। अगर कोई व्यक्ति अधिक स्वीमिंग करता है और कानों में जाने वाले पानी की सफाई नहीं करता है, तो कानों में बैक्टीरिया पनप सकते हैं। कानों को नहाने के बाद अच्छे से सुखाएं। बाहर अधिक रहते हैं, तो कानों को ढक कर रखें ताकि धूल के कण अंदर न जा सके।
स्वीमर्स ईयर की समस्या होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- कान में खुजली
- कान में गंभीर दर्द
- सुनने में परेशानी होना
- कान में सूजन
- कान से मवाद निकलना
कानों में कॉटन स्वैब, फिंगर, हेयरपिन, पेन कैप या अन्य वस्तुओं को डालने से बचें। ऐसा करने से आपके कान का प्रोटेक्टिव ईयर वैक्स हट जाएगा। साथ ही स्किन में खरोंच भी आ सकती है। अगर आपको कान में अधिक भरेपन का एहसास हो रहा हो, तो डॉक्टर से ही सफाई कराएं।
मैस्टॉइडाइटिस (Mastoiditis)
ईयर इन्फेक्शन का सही से इलाज न हो पाने के कारण मैस्टॉइडाइटिस की समस्या हो जाती है। मैस्टॉइडाइटिस एक गंभीर संक्रमण है। मैस्टॉइडाइटिस रेयर कंडीशन हैं। मैस्टॉइडाइटिस के कारण ईयर के पीछे सूजन की समस्या हो सकती है और कानों से पस आ सकता है। कानों में दर्द की समस्या और सुनने में परेशानी हो सकती है। जब इन्फेक्शन का इलाज नहीं कराया जाता है, तो ईयर बोंस में इन्फेक्शन फैल जाता है।
- कानों में तेज दर्द
- बुखार
- कान के पीछे सूजन
- कान के पीछे लालिमा
- कान से बदबू आना
- सुनने में समस्या
कान के इन्फेक्शन को ठीक करने के लिए यदि पूरी एंटीबायोटिक्स न ली जाएं, तो मैस्टॉइडाइटिस की समस्या पैदा हो जाती है। पेशेंट को कान में समस्या होने पर लापरवाही नहीं करना चाहिए और डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
ईएनटी डिसऑर्डर: माय्रिंजाइटिस (Myringitis)
माय्रिंजाइटिस कान के संक्रमण का एक प्रकार है जिसमें छोटे, फ्लूड से भरे ब्लिस्टर्स (Blisters) इयरड्रम में बनते हैं। इन ब्लिटर्स के कारण तेज दर्द की समस्या हो सकती है। माय्रिंजाइटिस का संक्रमण वायरस या बैक्टीरिया के कारण हो सकता है। अगर सही समय पर ट्रीटमेंट कराया जाए, तो माय्रिंजाइटिस की समस्या से राहत पाई जा सकती है। जानिए नमाय्रिंजाइटिस के लक्षणों के बारे में।
- अचानक से काम नें दर्द
- सुनने में दर्द
- फीवर
- कान से तरल पदार्थ निकलना
- कान में भरेपन का एहसास
- कान में खिचांव
ओवर-द-काउंटर पेन रिलीवर या एंटीबायोटिक्स की हेल्प से माय्रिंजाइटिस की समस्या से निजात पाया जा सकता है। बीमारी ठीक होने के बाद सुनने की समस्या भी ठीक हो जाती है। दवाओं का सेवन करें दवाओं का कोर्स अधूरा न छोड़ें वरना इन्फेक्शन की समस्या दोबारा हो सकती है।
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लेबिरीनाइटिस (Labirinitis)
लेबिरीनाइटिस इनर ईयर डिसऑर्डर है। इनर ईयर के अंदर दो वेस्टीबुलर नर्व ब्रेन को स्पेशियल नेविगेशन और बैलेंस कंट्रोल (patial navigation and balance control) के बारे में जानकारी भेजती है। अगर किसी नर्व में सूजन आ जाती है, तो लेबिरीनाइटिस कंडीशन का सामना करना पड़ता है।
लेबिरीनाइटिस कंडीशन होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।
- चक्कर आना
- मतली
- कम सुनाई पड़ना
- सिर चकराना
- वॉमिटिंग
- फोकस करने में दिक्कत
- काम करने के दौरान दिक्कत
- ड्राईविंग न कर पाना
कुछ मेडिकेशन और सेल्फ हेल्प टेक्नीक की हेल्प से इस समस्या से राहत मिल सकती है। ईयर इन्फेक्शन का इलाज तो किया जा सकता है लेकिन लेबिरीनाइटिस से नहीं बचा जा सकता है। दवाओं की सहायता से लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। दवाओं के माध्यम से एक से हफ्तों में बीमारी के लक्षणों को काबू किया जाता है।
ईएनटी डिसऑर्डर: ईयर क्लॉग (Ear Clog)
जिस तरह से स्टफी नोज की समस्या की समस्या होती है ठीक उसी प्रकार स्टफी ईयर की समस्या भी हो सकती है। कान में अधिक मात्रा में वेक्स होने के कारण, कानों में पानी जाने के कारण, फ्लाई के दौरान, साइनस इन्फेक्शन, मिडिल ईयर इन्फेक्शन या एलर्जी के कारण स्टफी ईयर की समस्या हो सकती है। बच्चों के साथ ही ये समस्या एडल्ट्स को भी हो सकती है। आमतौर पर स्टफी ईयर की समस्या कोल्ड के दौरान देखने को मिलती है। स्टफी ईयर होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- सुनने में दिक्कत
- चक्कर आना
- कान में दर्द
- कान में आवाज गूंजना
- कानों से डिस्चार्ज आना
अगर आपको दिए गए लक्षणों का अनुभव होता है, तो डॉक्टर से जांच कराएं। डॉक्टर आपको मेडिसिन के साथ स्प्रे लेने की सलाह भी देंगे। घरेलू उपाय के तौर पर आउटर ईयर क्लॉग होने पर आप मिनिरल, ऑलिव या बेबी ऑयल की हल्की गुनगुनी दो या तीन बूंदों को कान में डाल सकते हैं। ऐसा करने से आपको राहत मिलेगी। ध्यान रखें कि तेल ज्यादा गरम नहीं होना चाहिए। कान बहुत सेंसिटिव होते हैं। अधिक समस्या महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
ईएनटी डिसऑर्डर: ईयर डिस्चार्ज (Ear Discharge)
कान से तरल पदार्थ का बाहर आना ईयर डिस्चार्ज कहलाता है। ज्यादातर मामलों में कान से वैक्स बाहर निकलता है। ये एक प्रकार का तेल होता है, जो बॉडी प्रोड्यूस करती है। वैक्स ईयर को प्रोटक्ट करने का काम करती है और धूल, बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्म जीवों को कान में अंदर आने से रोकती है। अन्य कंडीशन जैसे कि रप्चर्ड इयरड्रम के कारण भी कान से खून और तरल पदार्थ बह सकता है। ये इस बात का संकेत है कि कान में चोट लगी है या फिर इन्फेक्शन हो गया है।
ईयर डिस्चार्ज की समस्या मिडिल ईयर इन्फेक्शन के कारण भी हो सकती है। ईयर कैनाल ट्रॉमा भी ईयर डिस्चार्ज का कारण बन सकता है। ईयरड्रम में टियर को ठीक करने के लिए डॉक्टर स्पेशल पेपर पैच यूज करते हैं। डॉक्टर इन्फेक्शन को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह देंगे। ईयर डिस्चार्ज के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर ईयर कंडीशन की जांच कर सकते हैं।
टिनाइटस (Tinnitus)
टिनाइटस की समस्या कानों में बचने वाले अधिक शोर के कारण उत्पन्न हो सकती है। करीब 15 से 20 प्रतिशत लोगों इस समस्या से प्रभावित हैं। टिनाइटस एक कंडीशन न होकर बीमारी का लक्षण है। इस कारण से एज रिलेटेड हियरिंग लॉस, ईयर इंजुरी या सर्कुलेटरी सिस्टम डिसऑर्डर हो सकता है। बाहरी ध्वनी न होने पर टिनाइटस में ध्वनि की सनसनी शामिल होती है टिनिटस के लक्षणों के बारे में जानिए।
- रिंगिंग (Ringing)
- बजिंग (Buzzing)
- गरजने की आवाज (Roaring)
- क्लिकिंग (Clicking)
- हमिंग (Humming)
इनर ईयर हेयर सेल डैमेज होने के कारण टिनाइटस की समस्या उत्पन्न होती है। क्रॉनिक हेल्थ कंडीशन या इंजुरी के कारण भी कान की नर्व पर बुरा असर पड़ता है और कानों में आवाज गूंजने लगती है। अधिक उम्र में, तेज आवाज, ईयवैक्स ब्लॉकेज या ईयर बोन में बदलाव के कारण भी कानों में आवाज गूंजने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। डॉक्टर ट्रीटमेंट के दौरान एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह दे सकते हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: बीपीपीवी या वर्टिगो (Vertigo)
संतुलन खोना और चक्कर खाकर गिर जाना वर्टिगो के कारण हो सकता है। इनर ईयर प्रॉब्लम के कारण वर्टिगो की समस्या हो सकती है। बीपीपीवी (Benign paroxysmal positional vertigo) की समस्या तब उत्पन्न होती है जब छोटे कैल्शियम पार्टिकल नॉर्मल लोकेशन से हटकर इनर ईयर में आ जाते हैं। इनर ईयर हेड और बॉडी के ग्रेविटी रिलेटेड मूवमेंट्स के बारे में ब्रेन को जानकारी भेजता है। इस कारण से बैलेंस बना रहता है। बीपीपीवी होने का कोई ज्ञात कारण नहीं है और ये अधिक उम्र में हो सकता है। जानिए वर्टिगो के लक्षणों के बारे में।
- मतली
- उल्टी
- सिरदर्द
- पसीना आना
- कानों में घंटी बजना
- सुनने में परेशानी
वर्टिगो की जांच के लिए रोमबर्ग टेस्ट (Romberg’s Test), हेड-थ्रस्ट टेस्ट (Head-Thrust Test), सीटी स्कैन आदि की मदद से सेंट्रल वर्टिगो, पेरीफेरल वर्टिगो और इनर ईयर डैमेज के बारे में पता लगाया जाता है। डॉक्टर एंटीबायोटिक्स के साथ ही वेस्टीब्यूलर रिहेबिलिटेशन, कैनालिथ रिपुजिशनिंग मैन्योर या अन्य थेरिपी की मदद से बीमारी का इलाज किया जाता है।
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मेनियार्स डिजीज (Meniere disease)
“इस बारे में दिल्ली के क्लीनिकल जनरल फिजिश्यन डॉक्टर डॉक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि आजकल लोगों में कानों से संबंधित संक्रमण बढ़ता जा रहा है। ईयर डिसऑर्डर में सबसे ज्यादा होने वाले डिसऑर्डर में शामिल हैं, ईयर इंफेक्शन, कान में मैंल और नकसीर आदि शामिल है। इसके अलावा आज लोगों की सुनने की क्षमता भी प्रभावित होने लगी है, जिसका एक सबसे बड़ा कारण है लोगों का इयरफोन का अधिक इस्तेमाल। जिसकी वजह से ईयर लॉस की प्रॉब्लम युवाओं अब के समय में ज्याद देखने काे मिलती है।”
मेनियार्स डिजीज इनर ईयर डिसऑर्डर है, जो वर्टिगो और हियर लॉस का कारण बनता है। ज्यादातर केसेज में मेनियार्स डिजीज के कारण केवल एक कान प्रभावित होता है।मेनियार्स की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। इसे क्रॉनिक कंडीशन माना जाता है लेकन विभिन्न उपचार की सहायता से लक्षणों को कम किया जाता है। जानिए मेनियार्स डिजीज के लक्षणों के बारे में
- शरीर घूमने का एहसास
- हियरिंग लॉस
- कान में आवाज बजना
- कान में भराव का एहसास
मेनियार्स डिजीज का कारण ज्ञात नहीं है। कुछ फैक्टर्स इस बीमारी के ट्रिगर कर सकते हैं जैसे एब्नॉर्मल इम्यून रिस्पॉन्स, वायरल इन्फेक्शन, आनुवंशिक प्रवृतियां आदि। आप इस बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा आजकल लोग अपने सुनने की क्षमता भी खोते जा रहे हैं या उन्हें सुनने में दिक्कत आने लगी है। जिसका सबसे बड़ा कारण है अधिक हैडफोन का इस्तेमाल।
ईएनटी डिसऑर्डर: लैबिरिंथाइटिस (Labyrinthitis)
ईयर इन्फेक्शन के कारण शरीर बैलेंस नहीं कर पाता है। वायरस या बैक्टीरिया के कारण ये स्थिति पैदा होता है। ईयर में लेबिरंग पार्ट हियरिंग कैपेसिटी और बैलेंस को बनाए रखने का काम करता है। इन्फेक्शन के कारण ये प्रोसेस बिगड़ जाती है और असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है।
- सिर चकराना
- संतुलन न कर पाना
- मतली और उल्टी
- कान में बज या गूंज
- ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत
डॉक्टर हियरिंग टेस्ट, ब्लड टेस्ट, हेड का सीटी या एमआरआई स्कैन कर सकते हैं। ब्रेन वेव टेस्ट के लिए ईईजी (EEG) भी किया जा सकता है। आपको क्विक पुजिशन चेंज नहीं करनी चाहिए और साथ ही तेजी से उठना भी नहीं चाहिए। बीमरी के लक्षण कुछ दिनों बाद अपने आप ठीक हो सकते हैं। डॉक्टर बीमारी के इलाज के लिए एंटीहिस्टामाइन के साथ ही अन्य दवाओं को लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है।अगर आपको कान नाक और गले की बीमारी है, तो उसका तुरंत इलाज कराएं।समय पर ट्रीटमेंट न मिलने पर ये तीनों अंग आपके शरीर की कार्य प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।