नॉन एलर्जिक रायनाइटिस (Nonallergic rhinitis)
नॉनएलर्जिक रायनाइटिस (vasomotor rhinitis) एक ऐसी स्थिति है, जो क्रॉनिक स्नीजिंग या नाक बहने का कारण बनती है। ये लक्षण एलर्जिक रायनाइटिस (hay fever)से मिलते हैं। ये एलर्जिक रायनाइटिस से अलग है, क्योंकि इसमे इम्यून सिस्टम इंवॉल्व नहीं है। वायु प्रदूषक या गंध, खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थ, कुछ दवाएं, मौसम में परिवर्तन या क्रॉनिक हेल्थ प्रॉब्लम्स नॉन एलर्जिक रायनाइटिस के लक्षणों को ट्रिगर कर सकती हैं। नॉन एलर्जिक रायनाइटिस होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- बंद नाक (Stuffy nose
- बहती नाक (Runny nose)
- छींक आना (Sneezing)
- पोस्टनेजल ड्रिप(Postnasal drip)
नॉन एलर्जिक रायनाइटिस का एक्यूट डायग्नोसिस जरूरी है ताकि समस्या को दूर किया जा सके। नॉन एलर्जिक राइनाइटिस होने पर एलर्जिक रायनाइटिस की जांच भी की जा सकती है क्योंकि दोनों में ही कुछ लक्षण कॉमन होते हैं। नॉन एलर्जिक रायनाइटिस को ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन ट्रीगर को अवॉयड करके समस्या से बचा जा सकता है। डॉक्टर नमकीन पानी से गरारा करने की सलाह दे सकते हैं। ओवर-द-काउंटर या प्रिस्क्रिप्शन दवाओं का उपयोग करके राहत पाई जा सकती है।
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जानिए थ्रोट कंडिशन्स (Throat condition) के कारण और उनसे बचने के उपाय
गला शरीर का उपयोगी अंग माना जाता है। थ्रोट एक ट्यूब है, जो खाने को ईसोफेगस में और वायु को विंडपाइट और लेरिक्स में ले जाती है। थ्रोट का टेक्निकल नेम फेरिनिक्स है। थ्रोट प्रॉब्लम कॉमन होती है। अक्सर लोगों को गले में खराश की समस्या रहती है। हम आपको यहां कुछ थ्रोट कंडीशन के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जानिए गले में खराश की समस्या के बारे में।
गले में खराश (Sore throat) के हो सकते हैं बहुत से कारण

कोल्ड और फ्लू के कारण सोर थ्रोट की समस्या हो जाती है। अन्य कारणों की वजह से भी गले में खराश की समस्या होती है। कुछ कारण जैसे कि एलर्जी,मोनोन्यूक्लिओसिस, धूम्रपान, स्ट्रेप थ्रोट, टॉन्सिलाइटिस आदि गले में खराश का कारण बन सकते हैं। जानिए गले में खराश के मुख्य कारणों के बारे में।
टॉन्सिलाइटिस (Tonsilitis) टॉन्सिल्स की सूजन है। थ्रोट के पीछे दो ओवल शेप पैड टॉन्सिल्स कहलाते हैं। इस कारण से गले में खराश की समस्या हो जाती है। टॉन्सिलाइटिस की समस्या अपने आप भी दूर हो सकती है। डॉक्टर इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए मेडिसिन्स लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
फेरिंजाइटिस (Pharyngitis)- भी गले में खराश का कारण हो सकता है। इस कारण गले के पिछले भाग में सूजन आ जाती है और फीवर भी हो सकता है। नाक बहना, कफ आना, सिरदर्द, खाना निगलने में दिक्कत आदि लक्षण दिख सकते हैं। ये वायरल इन्फेक्शन तीन से चार दिनों तक रहता है।
लेरिन्जाइटिस (Laringitis) के कारण गले में सूजन आ जाती है। ऐसा वाइस बॉक्स में इन्फेक्शन के कारण होता है। इस कारण से गले में खराश हो जाती है।लेरिन्जाइटिस के लक्षण दो से तीन सप्ताह तक दिख सकते हैं।
एप्लीगोटाइटिस(Epligotitis) का मुख्य कारण विंडपाइट को कवर करने वाली स्मॉल कार्टिलेज लिड में सूजन आना है। ये लंग्स में आने वाली एयर को ब्लॉक करने का कारण बनती हैं।
गले में खराश के लिए ट्रीटमेंट
गले में खराश का ट्रीटमेंट बीमारी के कारण पर निर्भर करता है। डॉक्टर गले में खराश का डायग्नोज करने के बाद इन्फेक्शन को कम करने के लिए मेडिसिन्स दे सकते हैं। साथ ही आपको अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। ओवर-द-काउंटर पेन किलर भी मदद कर सकती हैं। अगर बच्चे को गले में खराश की समस्या है, तो बिना डॉक्टर से परामर्श किए उसे एस्पिरिन या अन्य कोई दवा न दें। गले में खराश के दौरान लॉजेंजस चूसना और आराम पहुंचाता है। साथ ही गुनगुना पानी भी गले को राहत देता है। आप चाहे तो गले की हल्की सिकाई भी कर सकते हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होता है स्ट्रेप थ्रोट (Strep throat)
स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो गले में सूजन और दर्द का कारण बनता है। स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया (Streptococcus bacteria) के कारण स्ट्रेप थ्रोट की समस्या होती है। स्ट्रेप थ्रोट की समस्या बच्चों से लेकर बुजुर्गों में भी हो सकती है। पांच से 15 साल के बच्चों में स्ट्रेप थ्रोट की समस्या कॉमन होती है। छींकने और खांसने के दौरान बैक्टीरिया हवा में फैल जाता है और अन्य व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकता है। जानिए स्ट्रेप थ्रोट के कारण कौन से लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
- अचानक से तेज बुखार
- गले में खराश
- सिरदर्द
- ठंड लगना
- भूख न लगना
- गर्दन के लिम्फ नोड्स में सूजन
- निगलने में परेशानी होना
स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) का ट्रीटमेंट
डॉक्टर आपसे बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी लेंगे। स्ट्रेप थ्रोट के कारण थ्रोट में सफेद पैच दिखने लगते हैं। साथ ही टॉन्सिल में रेड स्पॉट भी दिखाई देते हैं। पेशेंट को सांस लेने में समस्या होती है और खाने में भी दिक्कत होती है। ऐसे में डॉक्टर रैपिड स्ट्रेप टेस्ट करते हैं। ऐसा करने से इन्फेक्शन का कारण पता चल जाता है। डॉक्टर इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक्स देंगे। डॉक्टर ने आपको जितनी भी एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी हो, उसे लें। मेडिसिन्स को अधूरा न छोड़ें वरना इन्फेक्शन दोबारा आ सकता है। डॉक्टर पेनिसिलिन और एमोक्सिसिलिन (Penicillin and amoxicillin ) खाने की सलाह देंगे।अगर आपको इन दवाओं से एलर्जी हो रही है, तो इस बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं।
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खाने या पीने के दौरान हो सकती है चोकिंग (Choking)

जब फूड, लिक्विड या फिर अन्य पदार्थों के कारण थ्रोट ब्लॉक हो जाता है, तो चोकिंग की समस्या हो जाती है। बच्चों में अक्सर किसी भी पदार्थ को मुंह में डालने के कारण चोकिंग की समस्या होती है। वहीं वयस्कों में खाना या पानी को तेजी से पीने के कारण चोकिंग की समस्या होती है। ज्यादातर लोगों को अपने जीवन में एक बार चोकिंग की समस्या जरूर होती है। वैसे तो चोकिंग की समस्या कुछ समय तक ही रहती है और कुछ समय बाद अपने आप ही ठीक भी हो जाती है लेकिन कुछ मामलें गंभीर हो सकते हैं। चोकिंग के कारण लगातार खांसी आ सकती है। चोकिंग के कारण निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं।
- खांसी आना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- बोल न पाना
- कफ आना
बच्चों में चोकिंग के निम्न कारण हो सकते हैं।
- पॉपकॉर्न खाने के दौरान
- कैंडी
- पेंसिल इरेजर
- गाजर
- च्यूइंगगम
- मूंगफली
- चेरी टमैटो
- अंगूर
- फलों के बड़े टुकड़े
- सब्जियों के बड़े टुकड़े
चोकिंग (Choking) होने पर करें ये उपाय
अगर खाते समय किसी व्यक्ति को चोकिंग की समस्या हो गई है, तो आप एक मैथड का इस्तेमाल कर सकते हैं। हैंड हील से व्यक्ति की पीठ में पांच बार हिट करें। आप इसके बाद हेइम्लीच मेन्योअर (Heimlich maneuver) को पांच बार कर सकते हैं। इसमे आपको व्यक्ति को पीछे खड़े हो जाना है और फिर अपनी आर्म से व्यक्ति की छाती को पकड़ना है। अब दबाव की सहायता से व्यक्ति को आगे की ओर धकेले। हाथों को एब्डॉमन में अपवर्ड पुजिशन में प्रेस करें। इसे करीब पांच बार करें। ऐसा करने से थ्रोट में फंसा पदार्थ बाहर आ जाएगा। अगर व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत हो रही है या परेशानी ज्यादा हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
डिस्फेजिया (Dysphagia)
खाना निगलने की समस्या को डिस्फेजिया (Dysphagia) कहते हैं। मुंह से खाना निगलने के दौरान अधिक प्रयास करना पड़ता है। ऐसा नर्व या मसल्स प्रॉब्लम के कारण होता है। बच्चों और बुजुर्गों में डिस्फेजिया की समस्या आम होती है। जानिए डिस्फेजिया के मुख्य कारणों के बारे में।
ओरल डिस्फेजिया (Oral dysphagia) – ये मुंह की समस्या के कारण होता है। जब स्ट्रोक के कारण जीभ कमजोर हो जाती है, तो खाना निगलने में दिक्कत होती है।
फरिंजियल डिस्फेजिया ( Pharyngeal dysphagia) – ये प्रॉब्लम थ्रोट के कारण होती है। गले में न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम नर्व को प्रभावित करती हैं।
एसोफैगल डिस्पैजिया ( Esophageal dysphagia) – इसोफेगस में प्रॉब्लम के कारण एसोफैगल डिस्पैगिया होता है। सर्जरी के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है।
- भोजन करते समय चोकिंग
- निगलने पर खांसी
- स्टमक एसिड गले में आना
- हार्टबर्न
- आवाज बैठना
- भोजन का वापस आना
डिस्पैजिया न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है। डॉक्टर के लिए डिस्पैजिया का ट्रीटमेंट चैलेंजिंग होता है। डॉक्टर स्वैलिंग थेरिपी (Swallowing therapy), लिक्विंड और कुछ फूड के कॉम्बिनेशन को लेने की सलाह, ट्यूब की हेल्प से फीडिंग, डायलेशन आदि ट्रीटमेंट कर सकते हैं। डॉक्टर पेशेंट को बैलेंस्ड डायट चार्ट भी बनाकर देते हैं, ताकि खानपान के पेशेंट कुपोषण का शिकार न हो।
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लिफ्ट नोड्स में सूजन (Lymph Nodes inflammation)
इन्फेक्शन और स्ट्रेस के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन की समस्या हो सकती है। ऐसा ईयर इन्फेक्शन के कारण हो सकता है। लिम्फ नोड्स पूरी बॉडी में उपस्थित होते हैं। नेक, जबड़े, कॉलरबोन, आर्मपिट आदि में लिम्फ नोड्स उपस्थित होते हैं। इन्फेक्शन के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन आ जाती है। अपर रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन आ सकती है। साइनस इन्फेक्शन, एचआईवी इन्फेक्शन, इन्फेक्टेड टूथ, स्किन इन्फेक्शन, गले में खराश आदि कारणों से लिफ्ट नोड्स में सूजन में सूजन आ जाती है। इम्यून सिस्टम डिसऑर्डर भी लिफ्ट नोड्स में सूजन का कारण बन सकता है। डॉक्टर टेस्ट के बाद लिम्फ नोड्स बायोस्पी की सलाह दे सकते हैं।
ओडायनोफेजिया (Odynophagia)
पेनफुल स्वेलिंग के लिए ओडायनोफेजिया टर्म यूज किया जाता है। दर्द का एहसास मुंह में, थ्रोट में या ईसोफेगस में हो सकता है। खाने या पीने के दौरान गले में दर्द का एहसास होता है। पेनफुल स्वेलिंग के कई कारण हो सकते हैं, इसलिए बीमारी का इलाज करने में परेशानी हो सकती है। जानिए उन मेडिकल कंडीशन के बारे में, जो पेनफुल स्वेलिंग का कारण बन सकती हैं।
- कैंसर (Cancer)
- कैंडीडा इन्फेक्शन (Candida infection)
- गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (Gastroesophageal reflux disease)
- एचआईवी (HIV)
- अल्सर (Ulcers)
ओडायनोफेजिया एंडोस्कोपी के जरिए डायग्नोज किया जाता है। थ्रोट की हेल्प से कैमरे के माध्यम से एंडोस्कोप ईसोफेगस की जांच करता है। डॉक्टर ब्लड टेस्ट की सलाह भी दे सकते हैं। मेडिकल कंडीशन होने पर डॉक्टर मेडिसिन्स खाने की सलाह देंगे। ईसोफेगल ट्यूमर होने पर सर्जन सर्जरी की हेल्प से उसे हटाएंगे। आपको डॉक्टर से सावधानियों के बारे में जरूर पूछना चाहिए। अगर आपको खाना निगलने में दिक्कत हो रही है, तो इस समस्या को इग्नोर बिल्कुल न करें। खाना सही से न निगलने के कारण पेशेंट सही से खा नहीं पाता है और शरीर को पोषण नहीं मिल पाता है, जो वजन कम होने का कारण बन सकता है।
एब्सेस पेरिटॉन्सिल (Abses peritonsil)
जब चेस्ट और टॉन्सिल्स में पस इकट्ठा होने लगता है, तो इस कंडीशन को एब्सेस पेरिटॉन्सिल कहते हैं। टॉन्सिल के ऊतकों में सूजन के कारण एयरवे ब्लॉक हो जाता है। इस कारण से व्यक्ति को फीवर, खाना निगलने में दिक्कत और थ्रोट पेन हो सकता है। पस पेरीटॉन्सिलर स्पेस में जमा होता है, जो कि टॉन्सिलर कैप्सूल और कॉन्सट्रक्टर मसल्स के बीच स्थित होता है। पेरीटॉन्सिलर स्पेस लूज कनेक्टिव टिशू से मिलकर बना होता है। एब्सेस पेरिटोंसलर चेस्ट और नेक रीजन का कॉमन इन्फेक्शन है। डॉक्टर एक्जामिनेशन के दौरान टॉन्सिल पस को चेक करते हैं। डॉक्टर कम्प्लीट ब्लड काउंट, पस कल्चर सेंसिटीविटी, सी-रिएक्टिव प्रोटीन ब्लड कल्चर आदि कर सकते हैं।
मेडिकल ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर इंट्रावेनस फ्लूड शुरू कर सकते हैं क्योंकि पेशेंट को डीहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। साथ ही जरूरी इंट्रावेनस एंटीबॉडी की शुरूआत भी की जा सकती है। दर्द और बुखार से राहत के लिए एनाल्जेसिक (Analgesics) और एंटीपीयरेटिक्स (antipyretics)दिए जाते हैं। बीमारी के दौरान स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल कॉन्ट्रोवर्सियल है। स्टडी में ये बात सामने आई है कि इंट्रावेनस intravenous (IV) डेक्सामेथासोन की एक खुराक से हॉस्पिटल स्टे और बीमारी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।
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ईयर कंडीशन (Ear condition) किन कारणों से होता है?
कान तीन पार्ट आउटर, मिडिल और इनर ईयर से मिलकर बना होता है। तीनो ही पार्ट सुनने में मदद करते हैं। ईयर इन्फेक्शन या अन्य कारणों से ईयर डिसऑर्डर की स्थिति पैदा हो जाती है। इस कारण सुनने में दिक्कत हो सकती है। जानिए हियरिंग प्रोसेस कैसे काम करती है।
हियरिंग प्रोसेस (Ear works)क्या है?

वातावरण से साउंड वेव्स के जरिए साउंड का ट्रांसमिशन होता है। आउटर ईयर की हेल्प से साउंड वेव्स ईयर कैनाल से होते हुए ईयर ड्रम तक पहुंचती है। साउंड वेव्स के कारण ईयर ड्रम वाइब्रेट होता है, जिसके कारण मिडल ईयर में छोटी तीन बोंस में मोशन होता है। बोंस के मोशन के कारण इनर ईयर में फ्लूड भरता है। ईनर ईयर फ्लूड में मूवमेंट के कारण कॉक्लिआ (Cochlea) की हेयर सेल्स झुक जाती हैं।हेयर सेल्स मूवमेंट को इलेक्ट्रिकल पल्स में बदल देता है। इलेक्ट्रिकल इम्पल्स हियरिंग नर्व में ट्रांसमिट हो जाती हैं और ब्रेन तक पहुंचती हैं और साउंड सुनाई देता है।
हियरिंग इम्पेयमेंट (Hearing Impairment) क्या है?
जब ईयर के एक या अधिक पार्ट डैमेज हो जाते हैं, तो हियरिंग इम्पेयमेंट (Hearing Impairment) की समस्या हो सकती है। आउटर या मिडिल या ईयर कैनाल में परेशानी हियरिंग लॉस का कारण बन सकती है।एक्सटरनल और मिडिल ईयर के कारण कंडक्टिव हियरिंग इम्पेयरमेंट( conductive hearing impairment) की समस्या हो जाती है। वहीं इनर ईयर और हियरिंग नर्व में प्रॉब्लम की वजह से सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस (Sensorineural hearing loss) होता है।
कंडक्टिव हियरिंग लॉस (Conductive hearing loss)
एक्टर्नल कैनाल ब्लॉकेज के कारण कंडक्टिव हियरिंग लॉस की समस्या हो सकती है। कंडक्टिव हियरिंग लॉस होने पर व्यक्ति के सुनने की क्षमता पूरी तरह से खत्म नहीं होती है। सर्जिकल करेक्शन की हेल्प से सुनमे की क्षमता को ठीक किया जा सकता है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस (Sensorineural hearing loss)
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस कॉमन हियरिंग इम्पेयरमेंट है। इस कारण सुनने की क्षमता में लॉस होता है। पेशेंट को साउंड सेंसिटीविटी कम महसूस होती है। सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस में स्पीच को समझने में दिक्कत होती है। अगर बैकग्राउंड में आवाज है, तो सुनने में अधिक दिक्कत होती है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस के कारण
- लाउड नॉइज (Loud noises)
- एजिंग (Aging)
- जेनेटिक फैक्टर (Genetic factors )
- ऑटोइम्यून अटैक (Autoimmune attacks)
- मैटाबॉलिक चेंजेस (Metabolic changes)
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस का डायग्नोस करने के लिए हियरिंग टेस्ट किया जाता है। हियरिंग टेस्ट की हेल्प से सेवेरिटी लेवल की जानकारी मिलती है। दोनो कानों में हियरिंग लेवल को चेक किया जाता है। हियरिंग लेवल को डेसीबल में चेक किया जाता है। लोअर हियरिंग लेवल (15 डीबी) बेहतर हियरिंग को प्रदर्शित करता है। 0-20 डीबी को नॉर्मल हियरिंग रेंज माना जाता है। 75 डीबी से 85 डीबी हियरिंग रेंज का मतलब है कि व्यक्ति के सुनने की क्षमता खत्म या बहुत कम हो गई है। स्पीच डिसक्रिमिनेशन स्कोर को परसंटेज के माध्यम से दिखाया जाता है। 96-100% को नॉर्मल स्पीच डिसक्रिमिनेशन (Speech discrimination) माना जाता है। सर्जिकल इम्प्लांटेशन (Surgical implantation) या कॉकलीयर इम्प्लांट (Cochlear implant) की हेल्प से हियरिंग लॉस को दूर करने की कोशिश की जाती है।