गले में खराश के लिए ट्रीटमेंट
गले में खराश का ट्रीटमेंट बीमारी के कारण पर निर्भर करता है। डॉक्टर गले में खराश का डायग्नोज करने के बाद इन्फेक्शन को कम करने के लिए मेडिसिन्स दे सकते हैं। साथ ही आपको अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए। ओवर-द-काउंटर पेन किलर भी मदद कर सकती हैं। अगर बच्चे को गले में खराश की समस्या है, तो बिना डॉक्टर से परामर्श किए उसे एस्पिरिन या अन्य कोई दवा न दें। गले में खराश के दौरान लॉजेंजस चूसना और आराम पहुंचाता है। साथ ही गुनगुना पानी भी गले को राहत देता है। आप चाहे तो गले की हल्की सिकाई भी कर सकते हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण होता है स्ट्रेप थ्रोट (Strep throat)
स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो गले में सूजन और दर्द का कारण बनता है। स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया (Streptococcus bacteria) के कारण स्ट्रेप थ्रोट की समस्या होती है। स्ट्रेप थ्रोट की समस्या बच्चों से लेकर बुजुर्गों में भी हो सकती है। पांच से 15 साल के बच्चों में स्ट्रेप थ्रोट की समस्या कॉमन होती है। छींकने और खांसने के दौरान बैक्टीरिया हवा में फैल जाता है और अन्य व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकता है। जानिए स्ट्रेप थ्रोट के कारण कौन से लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
- अचानक से तेज बुखार
- गले में खराश
- सिरदर्द
- ठंड लगना
- भूख न लगना
- गर्दन के लिम्फ नोड्स में सूजन
- निगलने में परेशानी होना
स्ट्रेप थ्रोट (strep throat) का ट्रीटमेंट
डॉक्टर आपसे बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी लेंगे। स्ट्रेप थ्रोट के कारण थ्रोट में सफेद पैच दिखने लगते हैं। साथ ही टॉन्सिल में रेड स्पॉट भी दिखाई देते हैं। पेशेंट को सांस लेने में समस्या होती है और खाने में भी दिक्कत होती है। ऐसे में डॉक्टर रैपिड स्ट्रेप टेस्ट करते हैं। ऐसा करने से इन्फेक्शन का कारण पता चल जाता है। डॉक्टर इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए एंटीबायोटिक्स देंगे। डॉक्टर ने आपको जितनी भी एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी हो, उसे लें। मेडिसिन्स को अधूरा न छोड़ें वरना इन्फेक्शन दोबारा आ सकता है। डॉक्टर पेनिसिलिन और एमोक्सिसिलिन (Penicillin and amoxicillin ) खाने की सलाह देंगे।अगर आपको इन दवाओं से एलर्जी हो रही है, तो इस बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं।
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खाने या पीने के दौरान हो सकती है चोकिंग (Choking)

जब फूड, लिक्विड या फिर अन्य पदार्थों के कारण थ्रोट ब्लॉक हो जाता है, तो चोकिंग की समस्या हो जाती है। बच्चों में अक्सर किसी भी पदार्थ को मुंह में डालने के कारण चोकिंग की समस्या होती है। वहीं वयस्कों में खाना या पानी को तेजी से पीने के कारण चोकिंग की समस्या होती है। ज्यादातर लोगों को अपने जीवन में एक बार चोकिंग की समस्या जरूर होती है। वैसे तो चोकिंग की समस्या कुछ समय तक ही रहती है और कुछ समय बाद अपने आप ही ठीक भी हो जाती है लेकिन कुछ मामलें गंभीर हो सकते हैं। चोकिंग के कारण लगातार खांसी आ सकती है। चोकिंग के कारण निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं।
- खांसी आना
- सांस लेने में दिक्कत होना
- बोल न पाना
- कफ आना
बच्चों में चोकिंग के निम्न कारण हो सकते हैं।
- पॉपकॉर्न खाने के दौरान
- कैंडी
- पेंसिल इरेजर
- गाजर
- च्यूइंगगम
- मूंगफली
- चेरी टमैटो
- अंगूर
- फलों के बड़े टुकड़े
- सब्जियों के बड़े टुकड़े
चोकिंग (Choking) होने पर करें ये उपाय
अगर खाते समय किसी व्यक्ति को चोकिंग की समस्या हो गई है, तो आप एक मैथड का इस्तेमाल कर सकते हैं। हैंड हील से व्यक्ति की पीठ में पांच बार हिट करें। आप इसके बाद हेइम्लीच मेन्योअर (Heimlich maneuver) को पांच बार कर सकते हैं। इसमे आपको व्यक्ति को पीछे खड़े हो जाना है और फिर अपनी आर्म से व्यक्ति की छाती को पकड़ना है। अब दबाव की सहायता से व्यक्ति को आगे की ओर धकेले। हाथों को एब्डॉमन में अपवर्ड पुजिशन में प्रेस करें। इसे करीब पांच बार करें। ऐसा करने से थ्रोट में फंसा पदार्थ बाहर आ जाएगा। अगर व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत हो रही है या परेशानी ज्यादा हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
डिस्फेजिया (Dysphagia)
खाना निगलने की समस्या को डिस्फेजिया (Dysphagia) कहते हैं। मुंह से खाना निगलने के दौरान अधिक प्रयास करना पड़ता है। ऐसा नर्व या मसल्स प्रॉब्लम के कारण होता है। बच्चों और बुजुर्गों में डिस्फेजिया की समस्या आम होती है। जानिए डिस्फेजिया के मुख्य कारणों के बारे में।
ओरल डिस्फेजिया (Oral dysphagia) – ये मुंह की समस्या के कारण होता है। जब स्ट्रोक के कारण जीभ कमजोर हो जाती है, तो खाना निगलने में दिक्कत होती है।
फरिंजियल डिस्फेजिया ( Pharyngeal dysphagia) – ये प्रॉब्लम थ्रोट के कारण होती है। गले में न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम नर्व को प्रभावित करती हैं।
एसोफैगल डिस्पैजिया ( Esophageal dysphagia) – इसोफेगस में प्रॉब्लम के कारण एसोफैगल डिस्पैगिया होता है। सर्जरी के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता है।
- भोजन करते समय चोकिंग
- निगलने पर खांसी
- स्टमक एसिड गले में आना
- हार्टबर्न
- आवाज बैठना
- भोजन का वापस आना
डिस्पैजिया न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है। डॉक्टर के लिए डिस्पैजिया का ट्रीटमेंट चैलेंजिंग होता है। डॉक्टर स्वैलिंग थेरिपी (Swallowing therapy), लिक्विंड और कुछ फूड के कॉम्बिनेशन को लेने की सलाह, ट्यूब की हेल्प से फीडिंग, डायलेशन आदि ट्रीटमेंट कर सकते हैं। डॉक्टर पेशेंट को बैलेंस्ड डायट चार्ट भी बनाकर देते हैं, ताकि खानपान के पेशेंट कुपोषण का शिकार न हो।
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लिफ्ट नोड्स में सूजन (Lymph Nodes inflammation)
इन्फेक्शन और स्ट्रेस के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन की समस्या हो सकती है। ऐसा ईयर इन्फेक्शन के कारण हो सकता है। लिम्फ नोड्स पूरी बॉडी में उपस्थित होते हैं। नेक, जबड़े, कॉलरबोन, आर्मपिट आदि में लिम्फ नोड्स उपस्थित होते हैं। इन्फेक्शन के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन आ जाती है। अपर रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन के कारण लिम्फ नोड्स में सूजन आ सकती है। साइनस इन्फेक्शन, एचआईवी इन्फेक्शन, इन्फेक्टेड टूथ, स्किन इन्फेक्शन, गले में खराश आदि कारणों से लिफ्ट नोड्स में सूजन में सूजन आ जाती है। इम्यून सिस्टम डिसऑर्डर भी लिफ्ट नोड्स में सूजन का कारण बन सकता है। डॉक्टर टेस्ट के बाद लिम्फ नोड्स बायोस्पी की सलाह दे सकते हैं।
ओडायनोफेजिया (Odynophagia)
पेनफुल स्वेलिंग के लिए ओडायनोफेजिया टर्म यूज किया जाता है। दर्द का एहसास मुंह में, थ्रोट में या ईसोफेगस में हो सकता है। खाने या पीने के दौरान गले में दर्द का एहसास होता है। पेनफुल स्वेलिंग के कई कारण हो सकते हैं, इसलिए बीमारी का इलाज करने में परेशानी हो सकती है। जानिए उन मेडिकल कंडीशन के बारे में, जो पेनफुल स्वेलिंग का कारण बन सकती हैं।
- कैंसर (Cancer)
- कैंडीडा इन्फेक्शन (Candida infection)
- गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (Gastroesophageal reflux disease)
- एचआईवी (HIV)
- अल्सर (Ulcers)
ओडायनोफेजिया एंडोस्कोपी के जरिए डायग्नोज किया जाता है। थ्रोट की हेल्प से कैमरे के माध्यम से एंडोस्कोप ईसोफेगस की जांच करता है। डॉक्टर ब्लड टेस्ट की सलाह भी दे सकते हैं। मेडिकल कंडीशन होने पर डॉक्टर मेडिसिन्स खाने की सलाह देंगे। ईसोफेगल ट्यूमर होने पर सर्जन सर्जरी की हेल्प से उसे हटाएंगे। आपको डॉक्टर से सावधानियों के बारे में जरूर पूछना चाहिए। अगर आपको खाना निगलने में दिक्कत हो रही है, तो इस समस्या को इग्नोर बिल्कुल न करें। खाना सही से न निगलने के कारण पेशेंट सही से खा नहीं पाता है और शरीर को पोषण नहीं मिल पाता है, जो वजन कम होने का कारण बन सकता है।
एब्सेस पेरिटॉन्सिल (Abses peritonsil)
जब चेस्ट और टॉन्सिल्स में पस इकट्ठा होने लगता है, तो इस कंडीशन को एब्सेस पेरिटॉन्सिल कहते हैं। टॉन्सिल के ऊतकों में सूजन के कारण एयरवे ब्लॉक हो जाता है। इस कारण से व्यक्ति को फीवर, खाना निगलने में दिक्कत और थ्रोट पेन हो सकता है। पस पेरीटॉन्सिलर स्पेस में जमा होता है, जो कि टॉन्सिलर कैप्सूल और कॉन्सट्रक्टर मसल्स के बीच स्थित होता है। पेरीटॉन्सिलर स्पेस लूज कनेक्टिव टिशू से मिलकर बना होता है। एब्सेस पेरिटोंसलर चेस्ट और नेक रीजन का कॉमन इन्फेक्शन है। डॉक्टर एक्जामिनेशन के दौरान टॉन्सिल पस को चेक करते हैं। डॉक्टर कम्प्लीट ब्लड काउंट, पस कल्चर सेंसिटीविटी, सी-रिएक्टिव प्रोटीन ब्लड कल्चर आदि कर सकते हैं।
मेडिकल ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर इंट्रावेनस फ्लूड शुरू कर सकते हैं क्योंकि पेशेंट को डीहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। साथ ही जरूरी इंट्रावेनस एंटीबॉडी की शुरूआत भी की जा सकती है। दर्द और बुखार से राहत के लिए एनाल्जेसिक (Analgesics) और एंटीपीयरेटिक्स (antipyretics)दिए जाते हैं। बीमारी के दौरान स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल कॉन्ट्रोवर्सियल है। स्टडी में ये बात सामने आई है कि इंट्रावेनस intravenous (IV) डेक्सामेथासोन की एक खुराक से हॉस्पिटल स्टे और बीमारी के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है।
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ईयर कंडीशन (Ear condition) किन कारणों से होता है?
कान तीन पार्ट आउटर, मिडिल और इनर ईयर से मिलकर बना होता है। तीनो ही पार्ट सुनने में मदद करते हैं। ईयर इन्फेक्शन या अन्य कारणों से ईयर डिसऑर्डर की स्थिति पैदा हो जाती है। इस कारण सुनने में दिक्कत हो सकती है। जानिए हियरिंग प्रोसेस कैसे काम करती है।
हियरिंग प्रोसेस (Ear works)क्या है?

वातावरण से साउंड वेव्स के जरिए साउंड का ट्रांसमिशन होता है। आउटर ईयर की हेल्प से साउंड वेव्स ईयर कैनाल से होते हुए ईयर ड्रम तक पहुंचती है। साउंड वेव्स के कारण ईयर ड्रम वाइब्रेट होता है, जिसके कारण मिडल ईयर में छोटी तीन बोंस में मोशन होता है। बोंस के मोशन के कारण इनर ईयर में फ्लूड भरता है। ईनर ईयर फ्लूड में मूवमेंट के कारण कॉक्लिआ (Cochlea) की हेयर सेल्स झुक जाती हैं।हेयर सेल्स मूवमेंट को इलेक्ट्रिकल पल्स में बदल देता है। इलेक्ट्रिकल इम्पल्स हियरिंग नर्व में ट्रांसमिट हो जाती हैं और ब्रेन तक पहुंचती हैं और साउंड सुनाई देता है।
हियरिंग इम्पेयमेंट (Hearing Impairment) क्या है?
जब ईयर के एक या अधिक पार्ट डैमेज हो जाते हैं, तो हियरिंग इम्पेयमेंट (Hearing Impairment) की समस्या हो सकती है। आउटर या मिडिल या ईयर कैनाल में परेशानी हियरिंग लॉस का कारण बन सकती है।एक्सटरनल और मिडिल ईयर के कारण कंडक्टिव हियरिंग इम्पेयरमेंट( conductive hearing impairment) की समस्या हो जाती है। वहीं इनर ईयर और हियरिंग नर्व में प्रॉब्लम की वजह से सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस (Sensorineural hearing loss) होता है।
कंडक्टिव हियरिंग लॉस (Conductive hearing loss)
एक्टर्नल कैनाल ब्लॉकेज के कारण कंडक्टिव हियरिंग लॉस की समस्या हो सकती है। कंडक्टिव हियरिंग लॉस होने पर व्यक्ति के सुनने की क्षमता पूरी तरह से खत्म नहीं होती है। सर्जिकल करेक्शन की हेल्प से सुनमे की क्षमता को ठीक किया जा सकता है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस (Sensorineural hearing loss)
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस कॉमन हियरिंग इम्पेयरमेंट है। इस कारण सुनने की क्षमता में लॉस होता है। पेशेंट को साउंड सेंसिटीविटी कम महसूस होती है। सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस में स्पीच को समझने में दिक्कत होती है। अगर बैकग्राउंड में आवाज है, तो सुनने में अधिक दिक्कत होती है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस के कारण
- लाउड नॉइज (Loud noises)
- एजिंग (Aging)
- जेनेटिक फैक्टर (Genetic factors )
- ऑटोइम्यून अटैक (Autoimmune attacks)
- मैटाबॉलिक चेंजेस (Metabolic changes)
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस का डायग्नोस करने के लिए हियरिंग टेस्ट किया जाता है। हियरिंग टेस्ट की हेल्प से सेवेरिटी लेवल की जानकारी मिलती है। दोनो कानों में हियरिंग लेवल को चेक किया जाता है। हियरिंग लेवल को डेसीबल में चेक किया जाता है। लोअर हियरिंग लेवल (15 डीबी) बेहतर हियरिंग को प्रदर्शित करता है। 0-20 डीबी को नॉर्मल हियरिंग रेंज माना जाता है। 75 डीबी से 85 डीबी हियरिंग रेंज का मतलब है कि व्यक्ति के सुनने की क्षमता खत्म या बहुत कम हो गई है। स्पीच डिसक्रिमिनेशन स्कोर को परसंटेज के माध्यम से दिखाया जाता है। 96-100% को नॉर्मल स्पीच डिसक्रिमिनेशन (Speech discrimination) माना जाता है। सर्जिकल इम्प्लांटेशन (Surgical implantation) या कॉकलीयर इम्प्लांट (Cochlear implant) की हेल्प से हियरिंग लॉस को दूर करने की कोशिश की जाती है।
सेंसॉरिन्यूरल हियरिंग लॉस से बचने के उपाय
- कानों को तेज आवाज से बचाएं। आप हियरिंग प्रोटक्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- हाई फैट और हाई सॉल्ट डायट लेने से बचें। ऐसा करने से क्रॉनिक कंडीशन जैसे कि हार्ट डिजीज और डायबिटीज का रिस्क कम होता है। ये बीमारियां हियरिंग लॉस की संभावना को बढ़ाती हैं।
- मॉडरेट कार्डियोवस्कुलर एक्सरसाइज करें। ऐसा करने से इनर ईयर में ब्लड फ्लो बढ़ेगा।
- ईनर ईयर डैमेज को रोकने के लिए स्मोकिंग छोड़ दें।
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ईयर इन्फेक्शन (Ear infections) के हो सकते हैं ये कारण
कान में इन्फेक्शन के कई कारण हो सकते हैं। ईयर इन्फेक्शन वायरस, बैक्टीरिया या फंगस के कारण हो सकता है। कान में इन्फेक्शन बच्चो के साथ ही अधिक उम्र के लोगों को भी परेशान कर सकता है। कान में इन्फेक्शन के कारण कान में दर्द की समस्या होती है। एंटीबायोटिक्स की हेल्प से कान में इन्फेक्शन की समस्या को दूर किया जाता है। कुछ लोगों को कान में इन्फेक्शन की समस्या कई बार होती है और सीरियस कॉम्प्लीकेशन का सामना भी करना पड़ सकता है। कान में इन्फेक्शन के कारण निम्नलिखत लक्षण नजर आ सकते हैं।
- लेटते समय काम में दर्द होना
- कान में खींचाव
- नींद न आना
- रोने का मन करना
- आवाज सुनने में परेशान
- बैलेंस न होना
- बुखार
- कान से तरल पदार्थ निकलना
- सिरदर्द
- भूख में कमी
अगर आपको उपरोक्त लक्षणों का सामना करना पड़ रहा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर कानों की जांच करानी चाहिए। कानों में इन्फेक्शन का सही समय पर इलाज न कराने से समस्या अधिक बढ़ सकती है।
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ईएनटी डिसऑर्डर: मिडिल ईयर इन्फेक्शन (Otitis Media or Middle Ear Infection)

ओटिटिस मीडिया मिडिल ईयर का इन्फेक्शन है। ओटिटिस मीडिया के कारण मिडिल ईयर में सूजन हो जाती है। कोल्ड, गले में खराश या फिर रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन के कारण ओटिटिस मीडिया (Otitis media)की समस्या हो सकती है।ओटिटिस मीडिया से बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। मिडिल ईयर इन्फेक्शन यूस्टेशियन ट्यूब (Eustachian tube) की खराबी के कारण हो सकता है।यूस्टेशियन ट्यूब एक कैनाल होती है, जो मिडिल ईयर को थ्रोट एरिया से जोड़ने का काम करती है।यूस्टेशियन ट्यूब मिडिल ईयर और आउटर ईयर के प्रेशर को बराबर रखने का काम करता है। इस इन्फेक्शन का शिकार एडल्ट भी हो सकते हैं। ओटिटिस मीडिया के रिस्क को बढ़ाने का काम निम्न फैक्टर कर सकते हैं।
- स्मोक करने वाले व्यक्ति के समीप रहना
- ईयर इन्फेक्शन की हिस्ट्री
- कमजोर इम्यून सिस्टम
- पीठ के बल लेटकर बोतल से दूध पीना
- कोल्ड के कारण
मिडिल ईयर इन्फेक्शन निम्नलिखित हैं,
- चिड़चिड़ापन
- सोने में कठिनाई होना
- बुखार
- कान से तरल पदार्थ निकलना
- बैलेंस लॉस
- सुनने में दिक्कत
- कान का दर्द
डॉक्टर माईरिंगॉटिमी की हेल्प से ईयरड्रम से फ्लूड बाहर निकालने की कोशिश करते हैं और मिडिल ईयर के प्रेशर को कम करते हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकती हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: स्वीमर्स ईयर(Swimmer’s ear)
स्वीमर्स ईयर की समस्या उन लोगों को हो सकती है, जो अधिक समय तक घर के बाहर रहते हैं या फिर पानी में रहते हैं। स्वीमर्स ईयर को ओटिटिस एक्सटर्नल (Otitis external) भी कहते हैं। घर के बाहर रहने पर धूल, मिट्टी आदि कण कान के अंदर जाते हैं। धूल के साथ ही बैक्टीरिया भी काम में प्रवेश कर जाते हैं। कान में नमी रह जाने पर भी ऐसा ही होता है। अगर कोई व्यक्ति अधिक स्वीमिंग करता है और कानों में जाने वाले पानी की सफाई नहीं करता है, तो कानों में बैक्टीरिया पनप सकते हैं। कानों को नहाने के बाद अच्छे से सुखाएं। बाहर अधिक रहते हैं, तो कानों को ढक कर रखें ताकि धूल के कण अंदर न जा सके।
स्वीमर्स ईयर की समस्या होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- कान में खुजली
- कान में गंभीर दर्द
- सुनने में परेशानी होना
- कान में सूजन
- कान से मवाद निकलना
कानों में कॉटन स्वैब, फिंगर, हेयरपिन, पेन कैप या अन्य वस्तुओं को डालने से बचें। ऐसा करने से आपके कान का प्रोटेक्टिव ईयर वैक्स हट जाएगा। साथ ही स्किन में खरोंच भी आ सकती है। अगर आपको कान में अधिक भरेपन का एहसास हो रहा हो, तो डॉक्टर से ही सफाई कराएं।
मैस्टॉइडाइटिस (Mastoiditis)
ईयर इन्फेक्शन का सही से इलाज न हो पाने के कारण मैस्टॉइडाइटिस की समस्या हो जाती है। मैस्टॉइडाइटिस एक गंभीर संक्रमण है। मैस्टॉइडाइटिस रेयर कंडीशन हैं। मैस्टॉइडाइटिस के कारण ईयर के पीछे सूजन की समस्या हो सकती है और कानों से पस आ सकता है। कानों में दर्द की समस्या और सुनने में परेशानी हो सकती है। जब इन्फेक्शन का इलाज नहीं कराया जाता है, तो ईयर बोंस में इन्फेक्शन फैल जाता है।
- कानों में तेज दर्द
- बुखार
- कान के पीछे सूजन
- कान के पीछे लालिमा
- कान से बदबू आना
- सुनने में समस्या
कान के इन्फेक्शन को ठीक करने के लिए यदि पूरी एंटीबायोटिक्स न ली जाएं, तो मैस्टॉइडाइटिस की समस्या पैदा हो जाती है। पेशेंट को कान में समस्या होने पर लापरवाही नहीं करना चाहिए और डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
ईएनटी डिसऑर्डर: माय्रिंजाइटिस (Myringitis)
माय्रिंजाइटिस कान के संक्रमण का एक प्रकार है जिसमें छोटे, फ्लूड से भरे ब्लिस्टर्स (Blisters) इयरड्रम में बनते हैं। इन ब्लिटर्स के कारण तेज दर्द की समस्या हो सकती है। माय्रिंजाइटिस का संक्रमण वायरस या बैक्टीरिया के कारण हो सकता है। अगर सही समय पर ट्रीटमेंट कराया जाए, तो माय्रिंजाइटिस की समस्या से राहत पाई जा सकती है। जानिए नमाय्रिंजाइटिस के लक्षणों के बारे में।
- अचानक से काम नें दर्द
- सुनने में दर्द
- फीवर
- कान से तरल पदार्थ निकलना
- कान में भरेपन का एहसास
- कान में खिचांव
ओवर-द-काउंटर पेन रिलीवर या एंटीबायोटिक्स की हेल्प से माय्रिंजाइटिस की समस्या से निजात पाया जा सकता है। बीमारी ठीक होने के बाद सुनने की समस्या भी ठीक हो जाती है। दवाओं का सेवन करें दवाओं का कोर्स अधूरा न छोड़ें वरना इन्फेक्शन की समस्या दोबारा हो सकती है।
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लेबिरीनाइटिस (Labirinitis)
लेबिरीनाइटिस इनर ईयर डिसऑर्डर है। इनर ईयर के अंदर दो वेस्टीबुलर नर्व ब्रेन को स्पेशियल नेविगेशन और बैलेंस कंट्रोल (patial navigation and balance control) के बारे में जानकारी भेजती है। अगर किसी नर्व में सूजन आ जाती है, तो लेबिरीनाइटिस कंडीशन का सामना करना पड़ता है।
लेबिरीनाइटिस कंडीशन होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।
- चक्कर आना
- मतली
- कम सुनाई पड़ना
- सिर चकराना
- वॉमिटिंग
- फोकस करने में दिक्कत
- काम करने के दौरान दिक्कत
- ड्राईविंग न कर पाना
कुछ मेडिकेशन और सेल्फ हेल्प टेक्नीक की हेल्प से इस समस्या से राहत मिल सकती है। ईयर इन्फेक्शन का इलाज तो किया जा सकता है लेकिन लेबिरीनाइटिस से नहीं बचा जा सकता है। दवाओं की सहायता से लक्षणों को कंट्रोल किया जा सकता है। दवाओं के माध्यम से एक से हफ्तों में बीमारी के लक्षणों को काबू किया जाता है।
ईएनटी डिसऑर्डर: ईयर क्लॉग (Ear Clog)

जिस तरह से स्टफी नोज की समस्या की समस्या होती है ठीक उसी प्रकार स्टफी ईयर की समस्या भी हो सकती है। कान में अधिक मात्रा में वेक्स होने के कारण, कानों में पानी जाने के कारण, फ्लाई के दौरान, साइनस इन्फेक्शन, मिडिल ईयर इन्फेक्शन या एलर्जी के कारण स्टफी ईयर की समस्या हो सकती है। बच्चों के साथ ही ये समस्या एडल्ट्स को भी हो सकती है। आमतौर पर स्टफी ईयर की समस्या कोल्ड के दौरान देखने को मिलती है। स्टफी ईयर होने पर निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं।
- सुनने में दिक्कत
- चक्कर आना
- कान में दर्द
- कान में आवाज गूंजना
- कानों से डिस्चार्ज आना
अगर आपको दिए गए लक्षणों का अनुभव होता है, तो डॉक्टर से जांच कराएं। डॉक्टर आपको मेडिसिन के साथ स्प्रे लेने की सलाह भी देंगे। घरेलू उपाय के तौर पर आउटर ईयर क्लॉग होने पर आप मिनिरल, ऑलिव या बेबी ऑयल की हल्की गुनगुनी दो या तीन बूंदों को कान में डाल सकते हैं। ऐसा करने से आपको राहत मिलेगी। ध्यान रखें कि तेल ज्यादा गरम नहीं होना चाहिए। कान बहुत सेंसिटिव होते हैं। अधिक समस्या महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
ईएनटी डिसऑर्डर: ईयर डिस्चार्ज (Ear Discharge)
कान से तरल पदार्थ का बाहर आना ईयर डिस्चार्ज कहलाता है। ज्यादातर मामलों में कान से वैक्स बाहर निकलता है। ये एक प्रकार का तेल होता है, जो बॉडी प्रोड्यूस करती है। वैक्स ईयर को प्रोटक्ट करने का काम करती है और धूल, बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्म जीवों को कान में अंदर आने से रोकती है। अन्य कंडीशन जैसे कि रप्चर्ड इयरड्रम के कारण भी कान से खून और तरल पदार्थ बह सकता है। ये इस बात का संकेत है कि कान में चोट लगी है या फिर इन्फेक्शन हो गया है।
ईयर डिस्चार्ज की समस्या मिडिल ईयर इन्फेक्शन के कारण भी हो सकती है। ईयर कैनाल ट्रॉमा भी ईयर डिस्चार्ज का कारण बन सकता है। ईयरड्रम में टियर को ठीक करने के लिए डॉक्टर स्पेशल पेपर पैच यूज करते हैं। डॉक्टर इन्फेक्शन को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह देंगे। ईयर डिस्चार्ज के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर ईयर कंडीशन की जांच कर सकते हैं।
टिनाइटस (Tinnitus)
टिनाइटस की समस्या कानों में बचने वाले अधिक शोर के कारण उत्पन्न हो सकती है। करीब 15 से 20 प्रतिशत लोगों इस समस्या से प्रभावित हैं। टिनाइटस एक कंडीशन न होकर बीमारी का लक्षण है। इस कारण से एज रिलेटेड हियरिंग लॉस, ईयर इंजुरी या सर्कुलेटरी सिस्टम डिसऑर्डर हो सकता है। बाहरी ध्वनी न होने पर टिनाइटस में ध्वनि की सनसनी शामिल होती है टिनिटस के लक्षणों के बारे में जानिए।
- रिंगिंग (Ringing)
- बजिंग (Buzzing)
- गरजने की आवाज (Roaring)
- क्लिकिंग (Clicking)
- हमिंग (Humming)
इनर ईयर हेयर सेल डैमेज होने के कारण टिनाइटस की समस्या उत्पन्न होती है। क्रॉनिक हेल्थ कंडीशन या इंजुरी के कारण भी कान की नर्व पर बुरा असर पड़ता है और कानों में आवाज गूंजने लगती है। अधिक उम्र में, तेज आवाज, ईयवैक्स ब्लॉकेज या ईयर बोन में बदलाव के कारण भी कानों में आवाज गूंजने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। डॉक्टर ट्रीटमेंट के दौरान एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह दे सकते हैं।
ईएनटी डिसऑर्डर: बीपीपीवी या वर्टिगो (Vertigo)
संतुलन खोना और चक्कर खाकर गिर जाना वर्टिगो के कारण हो सकता है। इनर ईयर प्रॉब्लम के कारण वर्टिगो की समस्या हो सकती है। बीपीपीवी (Benign paroxysmal positional vertigo) की समस्या तब उत्पन्न होती है जब छोटे कैल्शियम पार्टिकल नॉर्मल लोकेशन से हटकर इनर ईयर में आ जाते हैं। इनर ईयर हेड और बॉडी के ग्रेविटी रिलेटेड मूवमेंट्स के बारे में ब्रेन को जानकारी भेजता है। इस कारण से बैलेंस बना रहता है। बीपीपीवी होने का कोई ज्ञात कारण नहीं है और ये अधिक उम्र में हो सकता है। जानिए वर्टिगो के लक्षणों के बारे में।
- मतली
- उल्टी
- सिरदर्द
- पसीना आना
- कानों में घंटी बजना
- सुनने में परेशानी
वर्टिगो की जांच के लिए रोमबर्ग टेस्ट (Romberg’s Test), हेड-थ्रस्ट टेस्ट (Head-Thrust Test), सीटी स्कैन आदि की मदद से सेंट्रल वर्टिगो, पेरीफेरल वर्टिगो और इनर ईयर डैमेज के बारे में पता लगाया जाता है। डॉक्टर एंटीबायोटिक्स के साथ ही वेस्टीब्यूलर रिहेबिलिटेशन, कैनालिथ रिपुजिशनिंग मैन्योर या अन्य थेरिपी की मदद से बीमारी का इलाज किया जाता है।
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मेनियार्स डिजीज (Meniere disease)
“इस बारे में दिल्ली के क्लीनिकल जनरल फिजिश्यन डॉक्टर डॉक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि आजकल लोगों में कानों से संबंधित संक्रमण बढ़ता जा रहा है। ईयर डिसऑर्डर में सबसे ज्यादा होने वाले डिसऑर्डर में शामिल हैं, ईयर इंफेक्शन, कान में मैंल और नकसीर आदि शामिल है। इसके अलावा आज लोगों की सुनने की क्षमता भी प्रभावित होने लगी है, जिसका एक सबसे बड़ा कारण है लोगों का इयरफोन का अधिक इस्तेमाल। जिसकी वजह से ईयर लॉस की प्रॉब्लम युवाओं अब के समय में ज्याद देखने काे मिलती है।”
मेनियार्स डिजीज इनर ईयर डिसऑर्डर है, जो वर्टिगो और हियर लॉस का कारण बनता है। ज्यादातर केसेज में मेनियार्स डिजीज के कारण केवल एक कान प्रभावित होता है।मेनियार्स की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। इसे क्रॉनिक कंडीशन माना जाता है लेकन विभिन्न उपचार की सहायता से लक्षणों को कम किया जाता है। जानिए मेनियार्स डिजीज के लक्षणों के बारे में
- शरीर घूमने का एहसास
- हियरिंग लॉस
- कान में आवाज बजना
- कान में भराव का एहसास
मेनियार्स डिजीज का कारण ज्ञात नहीं है। कुछ फैक्टर्स इस बीमारी के ट्रिगर कर सकते हैं जैसे एब्नॉर्मल इम्यून रिस्पॉन्स, वायरल इन्फेक्शन, आनुवंशिक प्रवृतियां आदि। आप इस बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा आजकल लोग अपने सुनने की क्षमता भी खोते जा रहे हैं या उन्हें सुनने में दिक्कत आने लगी है। जिसका सबसे बड़ा कारण है अधिक हैडफोन का इस्तेमाल।
ईएनटी डिसऑर्डर: लैबिरिंथाइटिस (Labyrinthitis)
ईयर इन्फेक्शन के कारण शरीर बैलेंस नहीं कर पाता है। वायरस या बैक्टीरिया के कारण ये स्थिति पैदा होता है। ईयर में लेबिरंग पार्ट हियरिंग कैपेसिटी और बैलेंस को बनाए रखने का काम करता है। इन्फेक्शन के कारण ये प्रोसेस बिगड़ जाती है और असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है।
- सिर चकराना
- संतुलन न कर पाना
- मतली और उल्टी
- कान में बज या गूंज
- ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत
डॉक्टर हियरिंग टेस्ट, ब्लड टेस्ट, हेड का सीटी या एमआरआई स्कैन कर सकते हैं। ब्रेन वेव टेस्ट के लिए ईईजी (EEG) भी किया जा सकता है। आपको क्विक पुजिशन चेंज नहीं करनी चाहिए और साथ ही तेजी से उठना भी नहीं चाहिए। बीमरी के लक्षण कुछ दिनों बाद अपने आप ठीक हो सकते हैं। डॉक्टर बीमारी के इलाज के लिए एंटीहिस्टामाइन के साथ ही अन्य दवाओं को लेने की सलाह भी दे सकते हैं।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है।अगर आपको कान नाक और गले की बीमारी है, तो उसका तुरंत इलाज कराएं।समय पर ट्रीटमेंट न मिलने पर ये तीनों अंग आपके शरीर की कार्य प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।