हीमोफीलिया जेनेटिकल (Genetical) कारणों से होने वाली बीमारी है। अगर इसे सामान्य शब्दों में समझें, तो यदि पिता (Father) को हीमोफीलिया की समस्या है और मां (Mother) को नहीं है, तो ऐसी स्थिति में पुत्र (Son) को हीमोफीलिया नहीं होगा, लेकिन बेटी (Daughter) को हीमोफीलिक होने की संभावना ज्यादा रहती है या यही मुख्य कारण है लड़कियों में हीमोफीलिया की समस्या होने का। वहीं अगर मां को हीमोफीलिया की समस्या है, तो लड़के और लड़कियां दोनों में हीमोफीलिया की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि यहां एक बात ये समझना बेहद जरूरी है कि महिलाओं में हीमोफीलिया तभी संभव है, जब पिता को हीमोफीलिया (Hemophilia) हो और मां हीमोफीलिया जीन की वाहक हों, जो काफी असामान्य होता है। हालांकि अगर आप ये सोच रहें कि ये तो अनुवांशिक बीमारी है, तो इसका इलाज कैसे संभव है, तो बच्चों में हीमोफीलिया (Hemophilia in Children) के लिए सबसे पहले डायग्नोसिस की जाती है।
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बच्चों में हीमोफीलिया: शिशुओं में हीमोफीलिया का डायग्नोसिस कैसे किया जाता है? (Diagnosis of Hemophilia in Children)
हीमोफीलिया की समस्या होने पर डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। जैसे:
- कंप्लीट ब्लड काउंट (CBC) टेस्ट
- प्रोथ्रॉम्बिन टाइम (Prothrombin Time [PT]) टेस्ट
- एक्टिवेटेड पार्शियल थ्रोम्बोप्लास्टिन टाइम (PTT)
- फैक्टर 8 (Factor VIII) एक्टिविटी टेस्ट
- फैक्टर 9 (Factor IX) एक्टिविटी टेस्ट
नोट: अगर परिवार में हीमोफीलिया की समस्या है, तो ऐसे में प्रीनेटल (Prenatal) टेस्ट की जाती है। वहीं शिशु के जन्म के बाद (Umbilical Cord) से ब्लड सैंपल (Blood test) टेस्ट के लिए लिया जाता है। कुछ बच्चों के जन्म के बाद और 6 महीने के होने के बाद हीमोफीलिया की जानकारी मिलती है। इसकी जानकारी तब मिलती है, जब किसी कारण या चोट लगने की वजह से बच्चों में ब्लीडिंग की समस्या सामान्य से ज्यादा वक्त तक चलती है।
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बच्चों में हीमोफीलिया: शिशुओं में हीमोफीलिया का इलाज (Treatment for Hemophilia in Children)

बच्चों में हीमोफीलिया का इलाज हीमोफीलिया के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है। इसके इलाज के दौरान डॉक्टर सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि अगर शिशु को ब्रेन या जॉइन्ट में ब्लीडिंग की समस्या हो रही है, तो वो जल्द से जल्द ठीक हो। इसलिए बच्चों में हीमोफीलिया का इलाज निम्नलिखित तरह से किया जाता है। जैसे:
- जॉइन्ट्स में ब्लीडिंग की समस्या होने पर सर्जरी (Surgery) या इमोबिलाइजेशन (Immobilization) की आवश्यकता पड़ सकती है। वहीं जॉइन्ट्स में ब्लीडिंग के तकलीफ को दूर करने के लिए फिजिकल थेरिपी (Physical Therapy) या एक्सरसाइज (Exercise) की भी मदद ली जा सकती है।
- ब्लड ट्रांस्फ्यूजन (Blood transfusions) की समस्या को दूर करने के लिए बच्चे को एक्स्ट्रा ब्लड की जरूरत पड़ सकती है।
- फैक्टर VIII और IX का सेल्फ इंफ्यूसन करके हीमोफीलिया की तकलीफ को कम किया जाता है, जिससे नॉर्मल लाइफ स्टाइल आसानी से मेंटेन की जा सके। बच्चे खुद से सेल्फ इंफ्यूसन यानी दवाओं का ध्यान नहीं रख सकते हैं, इसलिए पेरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए और पेरेंट्स ही फैक्टर VIII और IX इंफ्यूसन दें।
शिशुओं में हीमोफीलिया (Hemophilia in Children) का इलाज इन ऊपर बताये तरीकों से डॉक्टर द्वारा की जाती है। इसलिए पेरेंट्स परेशान ना हों, लेकिन कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें, जिससे बच्चे को हेल्दी रहने में सहायता मिलेगी।
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हीमोफीलिक बच्चों के पेरेंट्स के लिए आवश्यक जानकारी क्या है? (Tips for Parents)
बच्चों में हीमोफीलिया की समस्या होने पर पेरेंट्स को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे:
- वक्त-वक्त पर डॉक्टर से कंसल्ट करना।
- डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्राइब की गई दवाओं को समय से देना।
- बच्चे के बीमार पड़ने पर डॉक्टर को ये जरूर बतायें कि आपका बच्चा हीमोफीलिक है।
- वैसे स्पोर्ट्स एक्टिविटी में कोशिश करें आपका बच्चा हिस्सा ना ले, जिसमें चोट लगने की संभावना ज्यादा हो।
- बच्चे का डेंटल केयर ध्यान पूर्वक करें, क्योंकि दांतों से जुड़ी परेशानी होने पर ब्लीडिंग की समस्या का खतरा बना रहता है।
नोट: बच्चे के स्कूल में टीचर एवं केयर टेकर को हीमोफीलिया (Hemophilia) की जानकारी देकर रखें, जिससे अगर बच्चे को स्कूल में किसी भी कारण या चोट लगने की वजह से ब्लीडिंग की समस्या होती है, तो ऐसे में वो पेरेंट्स एवं डॉक्टर से जल्द से जल्द कंसल्ट करें। वहीं अगर बच्चा इस बीमारी के बारे समझने लगा है, तो उसे भी संभलकर रहने की सलाह दें।
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अगर बच्चे को चोट लग जाए और ब्लीडिंग होने लगे, तो ऐसे में फस्ट एड (First Aid) क्या करें?

फस्ट एड के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें और इसे फॉलो करें। जैसे:
- बच्चे के नाक (Nose) से ब्लीडिंग होने पर बच्चे को सीधा लिटा दें।
- दांत या मसूड़ों से ब्लीडिंग होने पर बर्फ का टुकड़ा रखें।
- अगर बच्चे को चोट लगी है, तो चोट वाले हिस्से को सबसे पहले क्लीन करें और फिर बैंडेज करें।
इन ऊपर बताये 3 बातों को ध्यान में रखने के साथ-साथ डॉक्टर से जल्द से जल्द कंसल्ट करें।
बच्चों में हीमोफीलिया से जुड़ी ऊपर दी गई जानकारी अगर आपको अच्छी लगी, तो आप आर्टिकल को लाइक और शेयर करना ना भूलें, क्योंकि जानकारी के अभाव में या अनजाने में हमसभी बीमारी को समझ नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में जल्द ठीक होने वाली बीमारी भी वक्त ज्यादा ले लेती है और आपकी परेशानी बढ़ा देती है। अगर आप बच्चों में हीमोफीलिया (Hemophilia in Children) की समस्या से परेशान हैं और इससे जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर पूछ सकते हैं।
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