सामान्य गर्भवती महिलाओं की तुलना में वैसी महिलाएं जिन्हें डायबिटीज की बीमारी होती है उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। उन महिलाओं को अपना टार्गेट ब्लड शुगर लेवल मेंटेन करना ही पड़ता है। यदि मेन्टेन नहीं किया गया तो उन महिलाओं को कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को मेंटेन रखना बहुत जरूरी होता है। जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) या पूर्व में इस बीमारी से पीड़ित महिलाओं का ब्लड शुगर लेवल फास्टिंग में और खाने से पहले 95 एमजी/डीएल से कम रहना चाहिए, खाना खाने के दो घंटे बाद 120एमजी/डीएल से कम रहना चाहिए। यह सामान्य मेडिकल गाइडलाइन है, लेकिन इसके लिए भी डॉक्टरी सलाह लेना बेहद ही जरूरी है।
गर्भावस्था के दौरान ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करना बेहद ही जरूरी होता है। ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखकर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जा सकता है। जिन्हें प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज होता है उनको विशेष रूप से सतर्क रहने की जरूरत होती है।
तो आइए इस आर्टिकल में हम प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को लेकर बात करते हैं। यहां इस बारे में चर्चा करेंगे कि यह सामान्य रहे तो क्या होता है और असामान्य रहे तो गर्भवती महिलाओं को किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, यह जानने की कोशिश करते हैं।
ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखना है बेहद जरूरी
प्रेग्नेंसी से पहले आपको डायबिटीज की बीमारी थी या फिर प्रेग्नेंसी के दौरान आपको यह बीमारी हुई हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल का होना बेहद ही जरूरी है, इसलिए गर्भावस्था के दौरान आपको ब्लड शुगर लेवल की समय-समय पर जांच करवाते रहने की आवश्यकता होती है। प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को बनाए रखकर प्रेग्नेंसी से जुड़ी जटिलताओं और विभिन्न प्रकार की समस्याओं से बचा जा सकता है। प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को मेंटेन रखकर जच्चा-बच्चा दोनों ही सुरक्षित रहते हैं।
जानें कैसे होता है ब्लड शुगर लेवल में परिवर्तन
प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल बनाए रखना बेहद ही अहम है। क्योंकि गर्भावस्था के दौरान तरह-तरह के खाद्य पदार्थ का सेवन करने से शिशु का सर्वांगीण विकास होता है, वहीं गर्भवती-शिशु हेल्दी रहते हैं। इस दौरान शरीर के हार्मोन में तेजी से बदलाव आता है, जिससे शरीर इंसुलिन बनाने के साथ उसका इस्तेमाल करता है। प्रेग्नेंसी के बाद की अवस्थाओं में गर्भवती महिला अधिक इंसुलिन रेसिस्टेंस बन सकती हैं, इसके कारण ब्लड शुगर लेवल हाई हो सकता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को बनाए रखना बेहद ही जरूरी होता है।
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क्या है जेस्टेशनल डायबिटीज
सामान्यत: दो से चार फीसदी महिलाओं में संभावना रहती है कि उन्हें अस्थायी तौर पर डायबिटीज की बीमारी हो सकती है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो बढ़े हुए इंसुलिन का उत्पादन करने में असक्षम होती हैं। जेस्टेशनल डायबिटीज में किसी प्रकार का बाहरी लक्षण नहीं दिखता है। लेकिन उन्हें अत्यधिक प्यास, थकान, बार-बार पेशाब का लगना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। शरीर में इस प्रकार का परिवर्तन अगर मरीज महसूस करें तो उनको तुरन्त डॉक्टरी सलाह की जरूरत पड़ती है।
प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल
प्रेग्नेंसी में महिलाएं ब्लड शुगर लेवल को नॉर्मल रखकर और उसको मेंटेन करके जच्चा-बच्चा की सुरक्षा कर सकती है। माताओं के लिए गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान टार्गेट एचबीए1सी 6.1 और 43 एमएमओएल/एमओएल होना चाहिए।
वैसे लोग जिन्हें गर्भावस्था के पहले से डायबिटीज की बीमारी है, उन्हें प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने की काफी ज्यादा जरूरत होती है। गर्भावस्था के दौरान शुरुआत के आठ सप्ताह काफी अहम होते हैं, इस दौरान प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल बनाना काफी अहम होता है। वैसी माताएं जिनमें जेस्टेशनल डायबिटीज की बीमारी होती है और उनका डायट और एक्सरसाइज के साथ यदि इंसुलिन लेवल हाई रहता है तो उन्हें ओरल हाइपो ग्लाइकेमिक टैबलेट (oral hypoglycaemics) या इंसुलिन इंजेक्शन देकर उपचार किया जाता है।
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जानें कैसे करें डायबिटीज मैनेजमेंट
ब्लड ग्लूकोज टार्गेट को पाने के लिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को बनाए रखना। इसके लिए गर्भवती महिला की नियमित जांच करवाना जरूरी होता है।
कितनी बार ब्लड शुगर लेवल चेक करना चाहिए
- पहले से मधुमेह की बीमारी होने पर (Pre-existing diabetes) : खाना खाने के पहले और बाद में तथा सोने से पहले मधुमेह की जांच करानी चाहिए।
- जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational diabetes) : प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल मेंटेन रखने के लिए जेस्टेशनल डायबिटीज के केस में ब्रेकफास्ट के पहले और हर बार खाना खाने के बाद ब्लड शुगर लेवल की जांच करानी चाहिए। इसके लिए आप डॉक्टरी सलाह ले सकती हैं, वहीं जान सकती हैं कि आपको खाने के कितने समय के बाद जांच करानी चाहिए।
- बीच रात में चेकअप : यदि आप गर्भवती हैं और आप टाइप 1 डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं, इंसुलिन लेती हैं तो उस स्थिति में आपके डॉक्टर आपको रात में ब्लड शुगर लेवल की जांच कराने की सलाह दे सकते हैं।
- प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल बनाए रखने के लिए यदि आप किसी भी प्रकार की डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं तो आपको महीने में कम से कम एक बार या सप्ताह में एक बार डॉक्टरी सलाह की जरूरत पड़ सकती है।
डायबिटीज से ग्रसित महिलाएं इस वीडियो को देख व एक्सपर्ट की राय जान बढ़ाए इम्युनिटी
डायबिटीज शिशु को कैसे करती है प्रभावित
कई रिपोर्ट से यह पता चला है कि प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज के कारण संभावना रहती है कि शिशु में कहीं डिफेक्ट न हो। इसलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल को मेनटेन रखा जाए।
शिशु मृत्यु दर और जन्म से जुड़े डिफेक्ट
सामान्य की तुलना में वैसी महिलाएं जिनको डायबिटीज की बीमारी रहती है उनमें शिशु में बर्थ डिफेक्ट की संभावनाएं बढ़ जाती है। ऐसे में पहले से सावधानी बरती जाए तो प्रेग्नेंसी से जुड़ी जटिलताओं को ठीक किया जा सकता है। वहीं हेल्दी प्रेग्नेंसी हो सकती है।
वैसी महिलाएं जिनको गर्भावस्था के पहले डायबिटीज थी उन्हें गर्भावस्था के दौरान ज्यादा समस्याएं हो सकती है। वैसी महिलाओं को हाइपरटेंशन, किडनी डिजीज, नर्व डैमेज और डायबिटीज से जुड़ी बीमारी – रेटिनोपैथी होने की संभावना रहती है।
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हाई ब्लड शुगर होने के कारण है
वैसी माताएं जिन्हें डायबिटीज की बीमारी होती है, शिशु के शरीर में व मां के शरीर में हाई ब्लड शुगर लेवल के कारण अतिरिक्त इंसुलिन का उत्पादन होता है। टाइप 1 डायबिटीज से ग्रसित महिलाओं को एक्सपर्ट की सलाह लेनी चाहिए।
शिशु के जन्म के समय उसका ब्लड ग्लूकोज लेवल हायपो ग्लाइकेमिक हो सकता है। एक्सपर्ट ब्लड टेस्ट कर इसका पता लगाते हैं। वहीं ओरल या अन्य तरीकों से ग्लूकोज की कमी को पूरा करते हैं। बता दें कि इसके बाद अन्य ब्लड टेस्ट प्रेग्नेंसी के छठें सप्ताह में किया जाता है, जिसमें एक्सपर्ट यह जांच करते हैं कि गर्भवती महिला को भविष्य में दवा देने की आवश्यकता है या नहीं।
फीटल मैक्रोसोमिया (FOETAL MACROSOMIA)
प्रेग्नेंसी में ब्लड शुगर लेवल नॉर्मल न रहकर ज्यादा बढ़ जाता है तो उस स्थिति में गर्भस्थ शिशु का भी शुगर लेवल बढ़ जाता है। इस कारण गर्भधारण की तारीख तक पहुंचने तक शिशु का औसत वजन बढ़ जाता है। इस कंडीशन को फीटल मैक्रोसोमिया कहा जाता है। जेस्टेशनल डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित महिलाओं में संभावना रहती है कि आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी कहीं उन्हें न हो जाए। 10 से 15 साल में उन्हें यह बीमारी हो सकती है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज होने के रिस्क फैक्टर्स पर एक नजर
गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज होने की काफी ज्यादा संभावनाएं रहती हैं, लेकिन कुछ मामलों में संभावनाएं और बढ़ जाती है, जैसे-
- यदि गर्भवती ओवरवेट हो
- यदि गर्भवती धूम्रपान करती हो, दिन में सामान्य से अधिक स्मोकिंग करती हो
- महिला को पूर्व में 4.5 किलोग्राम वजन का शिशु हुआ हो
- महिला के परिवार में किसी को डायबिटीज की बीमारी रही हो
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डॉक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।
सामान्य जांच के बाद ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट का दिया जाता है सुझाव
रूटीन टेस्ट कर गर्भवती की यूरीन में पाए जाने वाले ग्लूकोज लेवल की जांच की जाती है। इतना ही नहीं जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर ब्लड शुगर लेवल की जांच गर्भावस्था के दौरान 26 से 30 सप्ताह की बीच की जाती है। इस टेस्ट के तहत अलग-अलग दो टेस्ट किए जाते हैं। इनमें फास्टिंग ग्लूकोज टेस्ट या फिर रैंडम ग्लूकोज टेस्ट करने का सुझाव डॉक्टर देते हैं। दूसरे मामले में यदि नतीजे सही नहीं आते हैं या फिर गर्भवती के परिवार में किसी को पहले से डायबिटीज की बीमारी रही हो तो ऐसे में उसे ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट का सुझाव दिया जाता है।
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अच्छी प्रेग्नेंसी के लिए दी जाने वाली सलाह
वैसी गर्भवती महिला जो जेस्टेशनल डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित होती हैं, उन्हें डायट में बदलाव के साथ एक्सरसाइज में बदलाव करने के लिए कहा जाता है ताकि शिशु के जन्म में किसी प्रकार की कोई समस्या न आए। इस दौरान एक्सपर्ट गर्भवती को सुझाव देते हैं कि कम प्रेशर वाले एक्सरसाइज करें, जैसे वॉकिंग, स्विमिंग, योगा और पिलाटे। डॉक्टरी सलाह के अनुसार ही अपने डायट में भी बदलाव करने चाहिए। ऐसे लोगों को खानपान पर खास ध्यान देने को कहा जाता है, जैसे खाने में कितना फैट खा रही हैं, यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि फैट को डायट चार्ट से हटाना नहीं है बल्कि शरीर के अनुसार नियमित मात्रा में सेवन करने की सलाह दी जाती है। वहीं डायट में नमक की मात्रा का कम सेवन करने की सलाह देने के साथ फ्रूट्स और हरी सब्जियों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके लिए डायटीशियन या न्यूट्रीशिनिस्ट की सलाह भी लिया जा सकता है।
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एक्सपर्ट की लें सलाह
प्रेग्नेंसी में नॉर्मल ब्लड शुगर लेवल के लिए मरीज चाहें तो डॉक्टर के साथ हेल्थ एक्सपर्ट जैसे डायटीशियन और न्यूट्रीशिनिस्ट की सलाह ले सकते हैं। ताकि इस समस्या को सुलझा सकें। यदि गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की बीमारी है या फिर पूर्व में डायबिटीज की बीमारी रही हो तो ऐसे में सामान्य लोगों की तुलना में काफी सचेत रहने की आवश्यकता होती है, ताकि प्रेग्नेंसी से जुड़ी जटिलताओं को कम किया जा सके।
किसी भी बीमारी से लड़ना आसान होता है अगर आपकी विल पवार स्ट्रॉन्ग हो। नीचे दिए इस वीडियो लिंक में मिलिए मिसेज पुष्पा तिवारी रहेजा से। मिसेज रहेजा ने कभी न ठीक होने वाली बीमारियों की लिस्ट में शामिल डायबिटीज को मात दी है।
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