backup og meta

नॉर्मल डिलिवरी और सिजेरियन डिलिवरी में क्या अंतर है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nikhil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 13/05/2021

    नॉर्मल डिलिवरी और सिजेरियन डिलिवरी में क्या अंतर है?

    गर्भधारण करने के बाद अमूमन सभी महिलाओं को इसकी चिंता सताती है कि नॉर्मल डिलिवरी से शिशु को जन्म देना सही है या सिजेरियन। चिंता जायज भी है कि दोनों में किस प्रक्रिया द्वारा शिशु को जन्म देना बेहतर हो सकता है। आज सिजेरियन डिलिवरी का ज्यादा चलन आ गया है। डॉक्टर डिलिवरी के दौरान मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इनमें से एक विधि का चुनाव करते हैं। सामान्यतः नॉर्मल डिलिवरी से शिशु को जन्म देना ही बेहतर माना जाता है। किन्तु, कई बार डिलिवरी संबंधी जटिलताओं की वजह से डॉक्टर सिजेरियन डिलिवरी की सलाह देते हैं। डिलीवरी के दौरान हमें कई बातों का ध्यान रखना होता है, जिससे जुड़ी जरूरी जानकारियां हम इस आर्टिकल के माध्यम से लेंगे। लेकिन उससे पहले जान लेते हैं बर्थ की स्टेजेस, यानी डिलीवरी की पूरी प्रक्रिया। 

    क्या हैं बर्थ स्टेजेस?

    हर महिला की प्रसव की यात्रा अलग होती है, किसी की बिना किसी समस्या के आसानी से डिलीवरी हो जाती है, तो वहीं किसी को इस पूरी प्रक्रिया में तकलीफ़ उठानी पड़ती है। डिलीवरी की 3 स्टेजेस मानी जाती है, जिसमें डिलीवरी की शुरुआत से बच्चे के जन्म की पूरी प्रक्रिया शामिल होती है। वो इस प्रकार मानी जाती है।

    स्टेज 1  – अर्ली लेबर और एक्टिव लेबर 

    • अर्ली लेबर
    • एक्टिव लेबर

    स्टेज 2 – आपके बच्चे का जन्म 

    स्टेज 3 – प्लेसेंटा की डिलीवरी 

    इस तरह तीन भागों में डिलीवरी की प्रक्रिया को बांटा गया है। चलिए अब जान लेते हैं कि डिलीवरी के प्रकार कौन-कौन से होते हैं।

    और पढ़ें : नॉर्मल डिलिवरी केयर में इन बातों का रखें विशेष ख्याल

    नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर

    नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर है कि नॉर्मल डिलिवरी में शिशु का जन्म गर्भवती महिला के योनि मार्ग के माध्यम से ही करवाया जाता है जबकि सिजेरियन (सी-सेक्शन) डिलिवरी में गर्भवती महिला के पेट के ऑपरेशन के द्वारा गर्भाशय में से शिशु को निकाला जाता है।

    नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर को इस तरह से भी जानें:

    1. नॉर्मल डिलिवरी शिशु को जन्म देने की कठिन और नैचुरल प्रक्रिया है जिसमें गर्भवती महिला को असहनीय तकलीफ से गुजरना पड़ता है, लेकिन इसके कई फायदे हैं। डिलिवरी के बाद महिला 24 से 48 घंटे के अंदर घर वापस जाने में सक्षम हो जाती है। वहीं सिजेरियन डिलिवरी के बाद महिला को 4 से 5 दिनों तक अस्पताल में रुकना पड़ सकता है। यह नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर है। 

    2. नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर ये भी है कि सिजेरियन डिलिवरी में पेट का ऑपरेशन होता है, जिसकी वजह से पेट के जख्मों को भरने में थोड़ा समय लगता है, लेकिन नॉर्मल डिलिवरी में ऐसा होने की संभावना नहीं होती।

    3. नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर है कि नॉर्मल डिलिवरी में शिशु के जन्म के लिए गर्भवती महिला की रीढ़ की हड्डी पर इंजेक्शन नहीं लगाया जाता। जबकि सिजेरियन डिलिवरी होने की स्थिति में महिला को इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इसके कई साइड-इफेक्ट्स भी हो सकते हैं।  

    और पढ़ें : न नॉर्मल न सिजेरियन, वॉटर बर्थ से दिया मॉडल ब्रूना ने बेटी को जन्म

    4. सिजेरियन डिलिवरी के बाद अधिक मात्रा में ब्लीडिंग, जलन, इंफेक्शन और कई महीनों तक स्टीचिस में दर्द की समस्या रहती है। वहीं नॉर्मल डिलिवरी में महिला इन सिजेरियन डिलिवरी के खतरों से महफूज रहती है। यह भी नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर है। 

    5. नार्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर है कि नॉर्मल डिलिवरी करने के तुरंत बाद महिला शिशु को स्तनपान करा सकती है, लेकिन सिजेरियन डिलिवरी के तुरंत बाद शिशु को स्तनपान कराना बहुत तकलीफदेह हो सकता है। सिजेरियन के बाद कुछ दिनों तक महिला के लिए शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवा पाना मुश्किल होता है।

    6. सिजेरियन डिलिवरी की अपेक्षा नॉर्मल डिलिवरी में शिशु को मां से प्रारंभिक संपर्क पहले मिल जाता है। यह भी नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर है।

    7. योनि मार्ग से प्रसव के दौरान, इस बात की संभावना रहती है कि योनीमार्ग के चारों ओर की मांसपेशियां नवजात शिशु के फेफड़ों में पाए जाने वाले द्रव को निचोड़ने का काम करेंगे।

    और पढ़ें : नॉर्मल डिलिवरी के लिए फॉलो करें ये 7 आसान टिप्स

    क्या नॉर्मल डिलिवरी में जान को कोई खतरा हो सकता है?

    शिशु का जन्म होना एक नैचुरल शारीरिक प्रक्रिया है। महिलाओं के शरीर की संरचना इस तरह बनाई गई है कि वह शिशु को सुरक्षित जन्म दे सकती हैं। नॉर्मल डिलिवरी में ज्यादातर जान को कोई खतरा नहीं होता।

    और पढ़ें : पीरियड्स के दौरान योनि में जलन क्यों होती है? जानिए इसके कारण और इलाज

    क्या सिजेरियन डिलिवरी में जान को खतरा हो सकता है?

    एक स्टडी के अनुसार भारत में करीब 45,000 महिलाओं की मौत सिजेरियन डिलिवरी के दौरान होती है। सिजेरियन ऑपरेशन के बाद साफ-सफाई की भी खास ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि इससे इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। इसे सेप्सिस कहते हैं। कई शोध से इस बात की पुष्टि हुई है कि भारत में डिलिवरी के दौरान होने वालर मौतों में सेप्सिस तीसरा सबसे बड़ा कारण है।

    अगर नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर को देखा जाए तो नॉर्मल डिलिवरी ज्यादा सुरक्षित है। सिजेरियन के मदद से शिशु को जन्म देने के दौरान अगर सफाई पर ध्यान दिया जाए तो सिजेरियन डिलिवरी भी सेफ प्रॉसेस है।

    नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर को समझने के बाद अब हम इन दोनों के फायदे भी जान लेते हैं।

    सिजेरियन डिलिवरी के फायदे

    • युनाइटेड किंग्डम की यूनिवर्सिटी ऑफ इडनबर्ग में एमआरसी सेंटर फोर रिप्रोडक्टिव हेल्थ के सारह स्टॉक ने सिजेरियन पर उपलब्ध तमाम शोध का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि सिजेरियन डिलिवरी पेल्विक प्रोलेप्स और यूरिनरी इनकोन्टिनेंट के खतरे को कम करती है। हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि जरूरत पड़ने पर ही सिजेरियन डिलिवरी की जानी चाहिए।
    • ब्रीच पुजिशन और जुड़वां बच्चे के जन्म में भी सिजेरियन डिलिवरी का ही सहारा लिया जाता है ताकि नॉर्मल डिलिवरी के समय होने वाले कॉम्प्लिकेशन से बचा जा सके।

    नॉर्मल डिलिवरी के फायदे

    • सामान्य डिलिवरी में बच्चा बर्थ केनाल से होकर गुजरता है। इस दौरान अच्छे बैक्टीरिया उसके अंदर जाते हैं। इन बैक्टीरिया को माइक्रोबायोम कहा जाता है। यह बच्चे की सेहत और रोग रोधी क्षमता को मजबूत करते हैं। जोकि बच्चे के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।
    • प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित 80 अध्ययनों की समीक्षा में यह पाया गया कि सामान्य डिलिवरी में बच्चे को जन्मजात दमा और मोटापे की समस्या का खतरा नहीं रहता है। वहीं, सिजेरियन में दमे का 21% और मोटापे का 59% खतरा बढ़ जाता है।

    सिजेरियन डिलिवरी के बाद सेक्स कब करना चाहिए?

    रिसर्च के अनुसार, सिजेरियन डिलिवरी के बाद तकरीबन आठ हफ्ते बाद ही इंटरकोर्स करना चाहिए। क्योंकि सिजेरियन डिलिवरी मेजर सर्जरी होती है और घाव सूखने में वक्त लगता है। 4 से 6 हफ्ते का वक्त घाव सूखने में लग सकता है, लेकिन किसी समय सीमा को निर्धारित नहीं किया जा सकता। सिजेरियन डिलिवरी के बाद सेक्स करने से पहले एक बार अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें। सिजेरियन डिलीवरी के बाद ठीक होने के लिए आपको दो से चार दिनों के लिए अस्पताल में रहना पड़ सकता है। धीरे-धीरे दर्द निवारक दवाओं को कम करने और यूरिनरी मूत्र कैथेटर (Urinary Catheter) जैसे चिकित्सा उपकरणों को हटाया जाता है।

    ये तो थे डिलीवरी के प्रकार, लेकिन क्या आप जानते हैं कि डिलीवरी की भी अलग-अलग पुज़िशन होती है। अब जान लेते हैं लेबर के दौरान अपनाई जा सकनेवाली अलग-अलग पुज़िशन के बारे में।

    डिलीवरी पुज़िशन, जो आपके काम आ सकती हैं!

    ये सभी पुज़िशन आपकी इच्छा और जरूरत के अनुसार अपनाई जा सकती है। जिसकी मदद से आपकी प्रसव प्रक्रिया आसानी से पूरी हो जाए।

    स्क्वैटिंग पुजिशन

    स्क्वैटिंग पुजिशन की हेल्प से पेल्विक आउटलेट का डायमीटर बढ़ाने में हेल्प मिलती है। इसे जीरो स्टेशन के नाम से भी जाना जाता है। पेल्विक में बच्चे को लाने के लिए ये बेहतरीन पुजिशन साबित हो सकती है। इस पुजिशन की हेल्प से सेकेंड लेबर छोटा हो सकता है। साथ ही ये पेरेनियम को सेफ करने का भी काम करती है। पेरेनियम को सेफ करने से मतलब है कि डिलिवरी के दौरान पेरेनियम में चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

    और पढ़ें : सेकेंड बेबी प्लानिंग के पहले इन 5 बातों का जानना है जरूरी

    साइड लाइंग पुजिशन

    इस पुजिशन की हेल्प तब ली जाती है जब महिला को ब्लड प्रेशर संबंधी कोई समस्या हो। साथ ही होने वाला बेबी फीटल डिस्ट्रेस के लक्षण दिखा रहा हो। इसे ग्रेविटी न्यूट्रल पुजिशन भी कहते हैं। ये पुजिशन लेबर को कम करने में मदद करती है। इस पुजिशन का का यूज पेरिनियम में दबाव लाने के लिए भी किया जाता है। साइड लाइंग पुजिशन में महिला को एक तरफ करवट लेकर लेटना होता है।

    और पढ़ें : गर्भनिरोधक दवा से शिशु को हो सकती है सांस की परेशानी, और भी हैं नुकसान

    वॉकिंग

    लेबर के दौरान वॉक करना भी बेस्ट है। ऐसा करने से महिला को आराम महसूस हो सकता है। ये पुजिशन अर्ली लेबर के लिए भी सही है। आप चाहें तो घर के आसपास वॉक कर सकती हैं। ऐसे समय में किसी के साथ वॉक पर जाना बेहतर रहेगा। वॉक के दौरान पेल्विस आसानी से मूव करेगा और बच्चे को भी पेल्विस में आने में आसानी होगी। लेबर की बाद की स्टेज में संकुचन के दौरान वॉक करने में दिक्कत हो सकती है। ऐसे में लेबर के लिए पुजिशन को चुनते समय ध्यान रखने की जरूरत होती है। आप चाहे तो ऐसे समय में दूसरी पुजिशन भी चुन सकते हैं।

    सेमी सिटिंग पुजिशन

    सेमी सिटिंग पुजिशन मुख्य रूप से बेड पर की जाती है। एपिड्यूरल एनेस्थेसिया या अन्य दवाओं को देने के दौरान इस पुजिशन को अपनाना सही रहेगा। इस पुजिशन में लंबे समय तक रहना सही नहीं है। कुछ समय बाद पुजिशन चेंज करके सीधा लेट जाना बेहतर रहेगा। रिलैक्शेसन को प्रमोट करने के लिए और लेबर पेन को कम करने के लिए इस पुजिशन को अपनाया जा सकता है।

    लीनिंग फॉरवर्ड पुजिशन

    लीनिंग फॉरवर्ड पुजिशन की हेल्प से लेबर के दौरान बैक में पड़ने वाले प्रेशर में कमी आ जाती है। आप चाहे तो इसके लिए बर्थ बॉल या पिलो का यूज कर सकते हैं। लेबर में ये पुजिशन महिलाओं को रिलैक्स करती है। संकुचन के दौरान ये पुजिशन कुछ पल के लिए राहत देती है।

    तो अब आपने जाना कि किस तरह आलग-अलग तरह से बच्चे को जन्म देने की पुज़िशन अपनाई जा सकती है।चलिए अब जानते हैं कि डिलीवरी के लिए ख़ुद को आप कैसे तैयार कर सकती हैं।

    प्रसव के लिए ख़ुद को तैयार कैसे करें?

    प्रसव के लिए ख़ुद को तैयार रखना किसी भी मां के लिए बेहद जरूरी हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि हम कुछ खास बातों का ख़याल रखें। जो इस प्रकार हैं –

    • ख़ुद को मेंटली और फ़िजिकलि तैयार करें
    • ख़ुद को हायड्रेटेड रखें
    • तनाव से दूर रहें
    • लेबर से जुड़ी सभी जानकारी डॉक्टर से प्राप्त कर लें
    • अपने पार्टनर को प्रसव की प्रक्रिया के लिए तैयार रखें
    • शरीर के निचले हिस्से में हल्के हाथों से मसाज करें
    • ख़ुद को घबराहट से बचाएं
    • डॉक्टर की सलाह का पूरी तरह से पालन करें

    यदि आप इन सभी बातों का ध्यान रखेंगी, तो ख़ुद को प्रसव के लिए तैयार पाएंगी।

    हम उम्मीद करते हैं कि नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर पर आधारित यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। वैसे नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी में अंतर को डॉक्टर बेहतर तरीके से समझा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से कंसल्ट करें। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी प्रकार की चिकित्सा सलाह, उपचार और निदान प्रदान नहीं करता।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

    के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

    डॉ. प्रणाली पाटील

    फार्मेसी · Hello Swasthya


    Nikhil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 13/05/2021

    advertisement iconadvertisement

    Was this article helpful?

    advertisement iconadvertisement
    advertisement iconadvertisement