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क्या आप जानते हैं वजन, बीपी और कोलेस्ट्रोल बढ़ने से इंसुलिन रेजिस्टेंस भी बढ़ सकता है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 15/07/2021

    क्या आप जानते हैं वजन, बीपी और कोलेस्ट्रोल बढ़ने से इंसुलिन रेजिस्टेंस भी बढ़ सकता है?

    शायद आप जानते होंगे कि कुछ मामलों में हमारे मसल्स, फैट और लिवर में मौजूद सेल्स, इंसुलिन को सही तरह से प्रतिक्रिया करने नहीं देते हैं, जिस कारण खून से ग्लूकोज का इस्तेमाल सामान्य रूप से नहीं हो पाता है उसे इंसुलिन रेजिस्टेंस कहा जाता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस सिंड्रोम (Insulin resistance syndrome) के कारण कई प्रकार की समस्याएं हो सकती है। लोगों को मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रोल के साथ टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी हो सकती है। कई लोग इस बीमारी को मेटॉबॉलिक सिंड्रोम (metabolic syndrome) के नाम से भी जानते हैं।

    इंसुलिन रेजिस्टेंस के लक्षणों पर एक नजर (Symptoms of insulin resistance)

    इस हेल्थ कंडीशन में आप लक्षणों को महसूस कर यह नहीं बता सकते हैं कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। बल्कि इसके लिए आपके ब्लड टेस्ट की जांच करवाना जरूरी होता है। ब्लड शुगर लेवल की जांच में पता चलता है कि आपका इंसुलिन रेजिस्टेंस क्या है।

    ऐसे में यदि आप इंसुलिस रेजिस्टेंस सिंड्रोम के अन्य हेल्थ कंडीशन जैसे हाई व लो ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रोल लेवल के साथ हाई ट्राइग्लिसराइड्स की समस्या से जूझ रहे हो, तब भी बिना डॉक्टर को दिखाए इस समस्या के बारे में पता नहीं चलता है।

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    इंसुलिन रेजिस्टेंस होने से इस प्रकार के हो सकते हैं लक्षण

    • फास्टिंग में ग्लूकोज लेवल 100-125 एमजी/डीएल हो सकता है
    •  हाई डेंसिटी लीपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्रोल का लेवल पुरुषों में जहां 40 एमजी/डीएल से कम हो सकता है वहीं महिलाओं में 50 एमजी/डीएल से कम हो सकता है।
    • काली व मखमली त्वचा जिसे अकन्थोसिस निगरिकन्स (acanthosis nigricans) कहा जाता है
    • थकान 
    • पुरुषों में कमर 40 इंच और महिलाओं में 35 इंच हो सकती है
    • ब्लड प्रेशर की रीडिंग 130/80 mmHg या इससे भी ज्यादा हो सकती है

    और पढ़ें : डायबिटीज की दवा दिला सकती है स्मोकिंग से छुटकारा

    इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण (Insulin resistance Causes), आखिर क्यों होती है यह

    इंसुलिन रेजिस्टेंस के होने के कारणों की बात करें तो यह वैसे लोगों को हो सकती है जो मोटापे से ग्रसित होते हैं। खासतौर पर जिनका पेट निकला होता है। वहीं वैसे लोग जिनकी दिनचर्या (लाइफस्टाइल) खराब होती है और खाने में हाई कार्बोहाइड्रेड्स का सेवन करते हैं। जेस्टेशनल डायबिटीज  (Gestational diabetes) के साथ जो व्यक्ति फैटी लिवर डिजीज और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (polycystic ovary syndrome) जैसी बीमारी व हेल्थ कंडीशन से ग्रसित होते हैं वैसे लोगों को यह बीमारी होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। इतना ही नहीं वैसे लोग जिनके परिवार में किसी को डायबिटीज की बीमारी रही हो या फिर वो व्यक्ति धूम्रपान करता हो वैसे लोगों को यह बीमारी हो सकती है। सामान्य तौर पर देखा गया है कि यह बीमारी 45 साल के बाद की उम्र के लोगों को होती है। वहीं हार्मोन डिसऑर्डर की बात करें तो वैसे लोग जिन्हें कशिंग सिंड्रोम और एक्रोमिगेली रोग (acromegaly) होता है उन लोगों को इस बीमारी के होने की आशंका ज्यादा रहती है। इतना ही नहीं वैसे लोग जो स्टेरॉयड्स, एंटीसाइकोटिक्स और एचआईवी की दवाओं को ज्यादा सेवन करते हैं उनको सामान्य लोगों की तुलना में इस बीमारी के होने की संभावनाएं अधिक रहती है। माना जाता है कि स्लीप एपनिया (sleep apnea) जैसी स्लीपिंग डिसऑर्डर की बीमारी से ग्रसित लोगों को यह बीमारी हो सकती है। इसलिए ऐसे लोगों को काफी सावधान रहना चाहिए। ताकि इस बीमारी से बच सकें।

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    इंसुलिन रेजिस्टेंस का टेस्ट और डायग्नोसिस को जानने के लिए पढ़़ें 

    किसी भी मरीज में इंसुलिन रेजिस्टेंस की पहचान करने के लिए डॉक्टर इन चीजों की जांच कर सकता है। इसके लिए डॉक्टर मरीज के परिवार की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में भी पूछताछ कर सकता है। वहीं मरीज का फिजिकल इग्जामिनेशन भी कर सकता है। इसमें मरीज के वजन की जांच के साथ ब्लड प्रेशर की जांच की जाती है।

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    डॉक्टर इन ब्लड टेस्ट को करवाने का दे सकता है सुझाव

    • फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट (Fasting plasma glucose test) : इस जांच में मरीज के ब्लड शुगर लेवल की जांच की जाती है। इसके लिए जरूरी है कि मरीज ने आठ घंटों तक कुछ भी खाया न हो। इसलिए डॉक्टर इसे खाली पेट जांच करवाने की सलाह देते हैं।
    • ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (Oral glucose tolerance test) : इस टेस्ट के तहत पहले मरीज की फास्टिंग ग्लूकोज टेस्ट की जाती है। उसके बाद मरीज को खास प्रकार का शुगरी सॉल्यूशन (sugary solution) पिलाया जाता है, जिसके दो घंटों के बाद मरीज की एक और ब्लड टेस्ट की जाती है।
    • हीमोग्लोबिन ए1सी टेस्ट (Hemoglobin A1c test) : इस ब्लड टेस्ट के जरिए मरीज के दो से तीन महीनों की औसतन ब्लड शुगर लेवल के बारे में पता किया जाता है। इसके जरिए डॉक्टर यह जानने की कोशिश करते हैं कि कहीं मरीज प्री डायबिटीज या डायबिटीज से ग्रसित तो नहीं। यदि मरीज को डायबिटीज है तो यह पता किया जाता है कि वह कंट्रोल में है या नहीं। डायबिटीज कंट्रोल के नतीजों को जानने के लिए उसके बाद एक और टेस्ट की आवश्यकता पड़ती है।

    इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।

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    इंसुलिन रेजिस्टेंस कैसे टाइप 2 डायबिटीज में होता है तब्दील

    जब आपको इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या है तो इस कंडीशन में आपके पैनक्रियाज ज्यादा इंसुलिन तैयार करते हैं। कुछ समय के लिए आपका ब्लड शुगर लेवल सामान्य हो सकता है, लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता है आपके पैनक्रियाज ब्लड शुगर लेवल को सामान्य नहीं रख पाते हैं। वहीं इस दौरान आप अपने खानपान, लाइफस्टाइल में सुधार कर या एक्सरसाइज कर अपनी हेल्थ नहीं सुधारते हैं तो आपका ब्लड शुगर लेवल तबतक बढ़ता है जबतक आपको प्री डायबिटीज न हो जाए। इस हेल्थ कंडीशन में आपके स्वास्थ्य जांच के लिए डॉक्टर कुछ ब्लड टेस्ट करवाते हैं व उसके नतीजों के अनुसार इलाज करते हैं। डॉक्टर यह कराते हैं टेस्ट;

    • फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोज टेस्ट 100 से 125 एमजी/डीएल
    • ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट 140 से 199 एमजी/डीएल दूसरे टेस्ट के बाद
    • ए1सी रिजल्ट जो 5.7% से 6.4% हो सकता है

    यदि आप प्री डायबिटीज को सही से नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो उस स्थिति में आपकी टाइप 2 डायबिटीज की जांच भी की जाती है। इस कंडीशन में आपके कुछ जांच किए जाते हैं जैसे,

    • फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट 126 एमजी/डीएल या उससे अधिक
    • ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट 200 एमजी/डीएल या दूसरे टेस्ट के बाद इससे भी अधिक
    • ए1सी रिजल्ट 6.5% या इससे भी अधिक

    और पढ़ें : Type 2 Diabetes: टाइप 2 डायबिटीज क्या है?

    इंसुलिन रेजिस्टेंस का क्या है इलाज और इससे कैसे करें बचाव

    यदि कोई व्यक्ति इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हो जाता है तो उससे बचाव कर सकता है। जाने कैसे व क्या कर इससे बचा जा सकता है, जैसे

    • एक्सरसाइज : इस बीमारी से पीड़ित लोगों को बचाव के लिए जरूरी है कि उन्हें अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि वो रोजाना कम से कम आधा घंटा खुद के सेहत के लिए निकाले, इसके लिए वो चाहे तो तेज वाकिंग कर सकते हैं। ऐसा वो सप्ताह में पांच या उससे ज्यादा दिनों के लिए कर सकते हैं। बावजूद इसके आपकी सेहत ठीक न हुई तो आपको और एक्सरसाइज करने की जरूरत पड़ सकती है।
    • अपने वजन को नियंत्रण में रख : यदि आपको नहीं पता है कि आपका वजन कितना होना चाहिए और उसे कितना नियंत्रित करना है तो इसके लिए जरूरी है कि आप डॉक्टरी सलाह लें और फिर उसपर काम करें। वजन को नियंत्रण में करने के लिए आप चाहे तो न्यूट्रिशनिस्ट की भी सलाह लेने के साथ पर्सनल ट्रेनर की मदद भी ले सकते हैं। लेकिन अपनी उम्र व हाइट के हिसाब से वजन को नियंत्रण में रख आप स्वस्थ्य रह सकते हैं।
    • हेल्दी डाइट का सेवन कर : हेल्दी डाइट का सेवन कर हम चाहें तो इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी को मात दे सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम खाने में फ्रूट्स, हरी साक-सब्जियों का सेवन करने के साथ अनाज खाएं, नट्स, बीन्स, मछली, फलियां और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।इतना ही नहीं खानपान को लेकर डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए कि क्या खाएं और क्या न खाएं।
    • दवाओं का सेवन कर : इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को डॉक्टर कुछ दवाइयों का सेवन करने का सुझाव दे सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि नियमित तौर पर उन दवाओं का सेवन करते रहें। दवाओं में ओरल हायपोग्लेसिमिक एजेंट मेटाफॉर्मिन (metformin) का सेवन कर ब्लड शुगर के मेनटेन रखा जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आप नियमित तौर पर डॉक्टरी सलाह लें और अपने ब्लड शुगर की जांच कराएं।
    • स्मोकिंग न कर : यदि आप इस बीमारी से बचाव चाहते हैं तो जरूरी है कि आप स्मोकिंग न करें, वहीं यदि आप स्मोकिंग करते भी हैं तो जितनी जल्दी संभव हो उसे छोड़ दें।
    • नींद पूरी लें : कुछ शोध से पता चला है कि वैसे व्यक्ति जो पूरी नींद नहीं लेते हैं उनको इंसुलिन रेजिस्टेंस की बीमारी हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि आप पूरी नींद लें।
    • तनाव को करें कम : तनाव को कम करने के लिए आप ध्यान और योगासन की मदद ले सकते हैं। परिवार के साथ समय देकर और क्वालिटी टाइम बिताकर आप तनावमुक्त हो सकते हैं।
    • ब्लड डोनेट कर : खून में आयरन  लेवल की अधिक मात्रा का संबंध इंसुलिन रेजिस्टेंस से जुड़ा होता है। इसलिए पुरुषों को और मासिक के बाद महिलाओं को ब्लड डोनेट करना चाहिए। इससे शरीर में इंसुलिन सेंस्टिविटी में सुधार होता है।

    और पढ़ें : डायबिटीज में फल को लेकर अगर हैं कंफ्यूज तो पढ़ें ये आर्टिकल

    इंसुलिन रेजिस्टेंस के यह हो सकते हैं दुष्परिणाम

    वैसे तो किसी भी बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। ऐसे में जरूरी है कि यदि किसी को इंसुलिन रेजिस्टेंस सिंड्रोम या मेटाबॉलिक सिंड्रोम की बीमारी होती है और उसका सही से इलाज न किया जाए तो उसे कई प्रकार की बीमारी हो सकती है, जैसे-

    • गंभीर हाई ब्लड शुगर
    • हार्ट अटैक
    • स्ट्रोक
    • किडनी डिजीज
    • आंखों की बीमारी
    • कैंसर
    • अल्जाइमर डिजीज

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    इंसुलिन रेजिस्टेंस कई बीमारियों को दे सकता है दावत, रहें सावधान

    इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण कई बीमारियाँ हो सकती है। कई प्रकार की क्रॉनिक बीमारियाँ भी हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि आप इस बीमारी से बचाव के लिए या फिर इस हेल्थ कंडीशन से बचाव के लिए शरीर से अतिरिक्त फैट को कम कर हेल्दी खाद्य पदार्थ का सेवन कर और एक्सरसाइज कर इस प्रकार की बीमारी से बचाव कर सकते हैं। वहीं 40 साल से अधिक उम्र के लोगों को नियमित तौर पर डायबिटीज और इंसुलिन से संबंधित ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए ताकि समय रहते बीमारी का पता चल सकें और इसके बचाव संबंधी कदम उठाए जा सकें। एक्सपर्ट बताते हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस को कंट्रोल कर स्वस्थ्य जीवन और लंबे समय तक जीवित रहा जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि हेल्दी लाइफ स्टाइल अपनाएं।

    डिस्क्लेमर

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    Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 15/07/2021

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