स्ट्रोक्स (Strokes)
मेडलिनप्लस (MedlinePlus) के अनुसार अधिकतम स्ट्रोक तब होते हैं जब ब्लड क्लॉट ब्रेन में मौजूद ब्लड वेसल तक मूव कर जाता है और उस जगह के ब्लड फ्लो को ब्लॉक कर देता है। इस तरह के स्ट्रोक में फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) का प्रयोग किया जाता है ताकि ब्लड क्लॉट जल्दी से घुल जाए। पहले स्ट्रोक के लक्षण नजर आने के तीन घंटों के अंदर इस थेरेपी के प्रयोग से स्ट्रोक से होने वाले नुकसान हो कम किया जा सकता है। यह थेरेपी देने का निर्णय इस चीजों पर निर्भर करता है:
- ब्रेन सीटी स्कैन (Brain CT Scan) करने पर यह बात सिद्ध हो जाए कि ब्रेन में कोई ब्लीडिंग नहीं है
- मेडिकल हिस्ट्री
- यह थेरेपी किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दी जाती है जिसमें ब्रेन में ब्लीडिंग हो। इससे स्ट्रोक बदतर हो सकता है। जानिए, कैसे की जाती है इस थेरेपी की तैयारी?
और पढ़ें : क्या सामान्य है डिलीवरी के बाद ब्लड क्लॉट की समस्या?
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी की तैयारी कैसे करें? (Fibrinolytic Therapy)
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) या थ्रंबोलिटिक थेरेपी (Thrombolytic Therapy) का प्रयोग आपातकालीन उपचार के लिए किया जाता है। अगर आप में किसी ऐसी स्थिति का निदान होता है, जिसके उपचार में इस थेरेपी का प्रयोग होना है। तो आपको इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में हार्ट और लंग फंक्शन की क्लोज मॉनिटरिंग के लिए ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके लिए आपको जल्दी करने के लिए कहा जा सकता है, खासकर अगर आपका उपचार कैथेटर-डायरेक्टेड थ्रोम्बोलिसिस द्वारा होना हो।
और पढ़ें : कोरोना रोगियों में ब्लड क्लॉट्स की बात आई सामने, जानिए क्यों डॉक्टर्स के लिए ये है चुनौती
फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी के बाद की प्रक्रिया क्या होती है? (Procedure after Fibrinolytic Therapy)
अधिकतर मामलों में फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) का उपचार लक्षणों को उलट देगा या कम कर देता है। हालांकि, फाइब्रिनोलिटिक थेरेपी (Fibrinolytic Therapy) हर बार सफल नहीं होती और हर बार इसके प्रयोग से ब्लड क्लॉट डिसॉल्व नहीं होते। खासतौर, पर अगर ट्रीटमेंट में देरी हो जाए। ऐसा भी हो सकता है कि क्लॉट डिसॉल्व हो जाए। लेकिन, प्रभावित टिश्यूज को (जैसे दिल, दिमाग, फेफड़े या टांग में) ब्लड फ्लो के लंबे समय तक ब्लॉक होने के कारण स्थायी रूप से नुकसान हो। ट्रीटमेंट के बाद सर्जन रोगी के लक्षणों को फिर से जांचेंगे। इमेजिंग टेस्ट जैसे सीटी-स्कैन (CT-Scan), इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram), वेनोग्राम (Venogram) का प्रयोग किसी भी बचे हुए ब्लड क्लॉट्स की जांच के लिए किया जा सकता है।
ब्लड क्लॉट के बनने के अंडरलायिंग कारणों के अनुसार डॉक्टर आपको अन्य उपचार की सलाह दे सकते हैं जैसे बैलून एंजियोप्लास्टी (Balloon Angioplasty), स्टेंटिंग (Stenting) या ओपन सर्जरी (Open Surgery) आदि। आपको ब्लड थिनर की भी सलाह दी जा सकती है जिसमें हेपरिन (Heparin) और वार्फरिन (Warfarin) आदि शामिल हैं।
लेकिन एक सफल ट्रीटमेंट के बाद भी क्लॉट ब्लड वेसल में फिर से बन सकता है। अगर ऐसा होता है तो रोगी को किसी और ट्रीटमेंट की जरूरत हो सकती है। ताकि, ब्लड क्लॉट के अंडरलायिंग कारणों को दूर किया जा सके और डैमेज्ड टिश्यूज और अंगों को रिपेयर किया जा सके। जानिए इस थेरेपी से जुड़े जोखिमों के बारे में।