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सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) का कैसे किया जाता है ट्रीटमेंट?

और द्वारा फैक्ट चेक्ड Toshini Rathod


Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/02/2022

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) का कैसे किया जाता है ट्रीटमेंट?

    हार्ट यानी दिल शरीर में ब्लड पंप करने का काम करता है। सामान्य हार्ट में चार चैम्बर्स होते हैं। जिनमें से दो ऊपर चैम्बर्स को राइट और लेफ्ट एट्रिया कहा जाता है, जो इनकमिंग ब्लड को रिसीव करते हैं। जबकि लोयर चैम्बर्स को वेंट्रिकल्स के नाम से जाना जाता है, जिनका काम होता है खून को हार्ट से बाहर पंप आउट करना। लेकिन, कई बच्चे सिंगल वेंट्रिकल हार्ट कंडीशन के साथ जन्म लेते हैं। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में एक ही वेंट्रिकल होता है जो बड़ा और अपने काम को करने में पूरी तरह से सक्षम होता है। इस स्थिति को सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के नाम से जाना जाता है। यह समस्या बहुत दुर्लभ है। आइए जानें सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects)  के बारे में विस्तार से

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स क्या हैं? (Single ventricle defects)

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) होने पर मरीज का एक वेंट्रिकल छोटा, अविकसित या मिसिंग होता है। ऐसे में ब्लड को पंप करने के लिए उनका एक वेंट्रिकल ही अच्छे से काम करता है। यह एक जन्मजात हृदय दोष है, जो आमतौर पर बहुत कम बच्चों में देखने को मिलती है। ऐसा माना जाता है कि एक लाख में से पांच बच्चों को यह समस्या होती है। सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) कई प्रकार के हो सकते हैं। जानिए इनके बारे में विस्तार से:

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    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स के प्रकार (Types of Single Ventricle Defects)

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) से प्रभावित बच्चे जन्म के समय सामान्य दिखाई देते हैं। लेकिन जन्म के कुछ दिन बाद उनमें इसके लक्षण दिखाई दे सकते हैं। जैसे सांस लेने या फीडिंग में समस्या होना आदि। जानिए, कौन-कौन से हैं सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स के प्रकार :

    • हायपोप्लास्टिक लेफ्ट हार्ट सिंड्रोम (Hypoplastic Left Heart Syndrome): इस डिफेक्ट में दिल की लेफ्ट साइड की कई समस्याएं शामिल हैं। जैसे लेफ्ट वेंट्रिकल छोटा हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है कि माइट्रल या एओर्टिक वाल्व तंग, ब्लॉक्ड या बिलकुल भी न बने हों।
    • ट्रायकसपिड अट्रीशिया (Tricuspid Atresia) : यह ऐसा दोष है जिसमें राइट एट्रियम (Right Atrium) और राइट वेंट्रिकल (Right Ventricle) बिलकुल भी नहीं बने होते ।
    • इंटरैक्ट वेंट्रिकुलर सेप्टम  के साथ पल्मोनरी अट्रीशिया (Pulmonary atresia ) : इस डिफेक्ट में वो वॉल्व जो राइट वेंट्रिकल और मुख्य पल्मोनरी आर्टरी के बीच खून के फ्लो को कंट्रोल करता है, सही से नहीं बना होता। इसके साथ ही राइट और लेफ्ट वेंट्रिकल्स के बीच छेद नहीं होता।
    • यूनीवेंट्रिकुलर हार्ट (Univentricular heart) : इन स्थितियों में एक सिंगल लार्ज पंपिंग चैम्बर (वेंट्रिकल) में दोनों कलेक्टिंग चैम्बर्स (एट्रिया) अपने ब्लड को खाली करते हैं। प्रत्येक कलेक्टिंग चैम्बर के अंत में या दोनों के बीच सिर्फ एक वॉल्व हो सकता है। इनमें हार्ट से निकलने वाले दो प्रमुख ब्लड वेसल्स वेंट्रिकल के बाएं या दाएं तरफ से निकल सकते हैं और उनकी अदला-बदली भी की जा सकती है।

    अधिकतर सिंगल वेंट्रिकल हार्ट डिफेक्ट्स का 20 वीक एनाटोमी स्कैन या शिशु के जन्म के बाद इकोकार्डियोग्राम से निदान किया जा सकता है। लेकिन, पहले जान लेते हैं कि इस समस्या के लक्षण क्या होते हैं?

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    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Single Ventricle Defects)

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के अधिकतर मामलों में शिशु को जन्म के बाद ही इंटेंसिव मेडिकल इंटरवेंशन की जरूरत होती है। इसके लक्षण बच्चे की कंडीशन की गंभीरता और हार्ट डिफेक्ट के प्रकार पर निर्भर करते हैं। अगर प्रसव से पहले इस स्थिति का निदान न हो पाए, तो शिशु के जन्म के बाद उसमे निम्नलिखित लक्षण देखने को मिल सकते हैं:

    अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) के अनुसार इस स्थिति में वेंट्रिकल का अविकसित होना, कुछ मामलों में शरीर या फेफड़ों में ब्लड फ्लो को प्रभावित कर सकता है। इस समस्या का जल्दी निदान या उपचार न होने के कारण यह स्थिति जानलेवा भी साबित हो सकती है। इसके बहुत कम रोगी शरीर और फेफड़ों के बीच की सर्कुलेशन को बैलेंस करते हैं और बिना सर्जरी के भी बचपन में सर्वाइव कर पाते हैं। अब जानिए सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के कारण क्या हो सकते हैं?

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    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स के कारण (Causes of Single Ventricle Defects)

    आमतौर पर फीटल डेवलपमेंट के पहले आठ हफ्तों के दौरान सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स होते हैं, जब दिल बन रहा होता है और केवल एक वेंट्रिकल ही बना होता है। कई सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) को अनुवांशिक (Hereditary) माना जाता है। जो बच्चे डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) के साथ पीड़ित होते हैं, उनमें भी जन्मजात हृदय दोष होने का जोखिम अधिक होता है। अन्य क्रोमोजोमल असामान्यताएं (Chromosomal Abnormalities) या एनवायर्नमेंटल फैक्टर्स (Environmental Factors) भी सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के कारण हो सकते हैं।

    अधिकतर मामलों में हार्ट डिफेक्ट (Heart Defects) एकदम से पैदा होते हैं और इनका कोई कारण नहीं होता। यही नहीं,  इन डिफेक्ट्स से बचाव भी संभव नहीं है, लेकिन अधिकतर मामलों में इनका उपचार हो सकता है। जानिए कैसे संभव है इस समस्या का निदान?

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    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स का निदान (Diagnosis of Single Ventricle Defects)

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के साथ पैदा हुए बच्चे जिनमें जन्म से पहले इसका निदान नहीं हो पाता है, जन्म के बाद बहुत अधिक बीमार पड़ सकते हैं। इस विकार के सही लक्षण, इसके कारणों पर निर्भर करते हैं। इसके उपचार का पहला स्टेप है इसका सही निदान। पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट (Pediatric Cardiologist) इस समस्या के निदान के लिए कई टेस्ट्स कराने के लिए कह सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :

    चेस्ट एक्स रे (Chest X-ray)

    इस टेस्ट में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी की बीम के प्रयोग से फिल्म पर इमेज बनती है। जिससे शरीर के अंदर के स्ट्रक्चर दिखाई देता है। हालांकि, चेस्ट एक्स-रे सही निदान प्रदान नहीं करता है, लेकिन यह डॉक्टर को बच्चे के दिल के साइज और स्ट्रक्चर के बारे में जानने में मदद मिलती है।

    कार्डिएक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (Cardiac Magnetic Resonance Imaging)

    इस टेस्ट में थ्री- डायमेंशनल इमेजिंग टेक्नोलॉजी का प्रयोग होता है। जैसे-जैसे हार्ट पंप करता है रिजल्टिंग इमेज से ब्लड फ्लो और हार्ट फंक्शन के बारे में पता चलता है।

    इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram)

    यह टेस्ट शिशु की स्किन पर वायर्स (इलेक्ट्रोड) के साथ पैच लगाकर किया जाता है। जिससे दिल कीइलेक्ट्रिक एक्टिविटी को रिकॉर्ड किया जा सकता है। यह टेस्ट एब्नार्मल हार्ट रिदम (Abnormal Heart Rhythms) और हार्ट मसल स्ट्रेस (Heart Muscle Stress) के बारे में जानकारी देने में मदद करता है।

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    इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram )

    इकोकार्डियोग्राम में हाय पिचड़ साउंड वेव (High-Pitched Sound Waves ) का प्रयोग किया जाता ताकि हार्ट की मूविंग इमेज को वीडियो स्क्रीन पर बनाया जा सके। यह टेस्ट अल्ट्रासाउंड की तरह होता है जिसमें हार्ट डिफेक्ट्स के बारे में जाना जा सकता है।

    कार्डिएक कैथेटेराइजेशन (Cardiac Catheterization)

    इस प्रक्रिया के दौरान शिशु के ग्रोइन में ब्लड वेसल में एक पतली फ्लेक्सिबल ट्यूब को इंसर्ट किया जाता है, जिसे हार्ट तक पहुंचाया जाता है। कैथेटर के माध्यम से डाय को इंसर्ट किया जाता है ताकि एक्स-रे पिक्चर में शिशु के हार्ट स्ट्रक्चर को बनाया जा सके। इस टेस्ट से ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन लेवल को भी मापा जा सकता हैसिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के निदान के बाद इसका उपचार इस तरह से किया जाता है। 

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    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स का उपचार कैसे किया जा सकता है? (Treatment of Single Ventricle Defects)

    सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) को सुधारा नहीं जा सकता है। लेकिन, इसके लक्षणों को सर्जरी के माध्यम से इम्प्रूव किया जा सकता है आमतौर पर फेफड़ों और शरीर में ब्लड फ्लो को संतुलित और ऑप्टिमाइज़ करने के लिए सर्जरी के कई स्टेजेस की आवश्यकता होती है। यह ओपन हार्ट सर्जरीज (Open Heart Surgeries) होती हैं जिन्हें जनरल एनेस्थेटिक के अंडर किया जाता है। इन सर्जरीज के लिए लगने वाला समय शिशु की स्थिति और रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। जब शिशु का जन्म होता है, तो सबसे पहले कार्डियोलॉजिस्ट यह आकलन करते हैं कि:

    • कहीं शिशु के फेफड़ों में बहुत अधिक रक्त तो नहीं जा रहा है? : अगर लंग्स तक बहुत अधिक खून पहुंच रहा है तो पल्मोनरी बैंडिंग (Pulmonary Banding) की जरूरत हो सकती है, ताकि अधिक फ्लो को कम किया जा सके।
    • शिशु के फेफड़ों में पर्याप्त रक्त जा रहा है या नहीं? : अगर फेफड़ों तक पर्याप्त ब्लड नहीं पहुंच रहा है तो शंट (Shunt) या स्टेंट (Stent) की जरूरत हो सकती है। ताकि लंग्स तक ब्लड फ्लो को बढ़ाया जा सके।

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    अन्य सर्जरीज (Other Surgeries)

    यूनीवेंट्रिकुलर हार्ट (Univentricular Hearts) से पीड़ित कुछ बच्चों को नेयोनेटल पीरियड में एकदम किसी उपचार की जरूरत नहीं होती। यह समस्या होने पर प्रयोग की जाने वाले प्रोसीजर इस प्रकार हैं:

    नॉरवुड प्रोसीजर (Norwood Procedure)

    यह वो पहली सर्जरी है, जिसे शिशु के जन्म के बाद पहले कुछ हफ्तों में किया जा सकता है। इसमें सर्जन एक नई बड़ी महाधमनी (Aorta) को बनाते हैं और फेफड़ों में ब्लड फ्लो को निर्देशित करने के लिए एक छोटी ट्यूब का उपयोग करते हैं।

    ग्लेन प्रोसीजर (Glenn Procedure)

    यह दूसरी सर्जरी शिशु के लगभग छे महीने के होने के बाद की जाती है। इसमें सर्जन अपर बॉडी से ब्लड फ्लो को पल्मोनरी आर्टरी (Pulmonary Artery) तक डायरेक्ट करते हैं। ताकि ब्लड हृदय से गुजरे बिना फेफड़ों से ऑक्सीजन इकट्ठी कर सके।

    फोंटेन प्रोसीजर (Fontan procedure)

    यह तीसरी सर्जरी है जो आमतौर पर दो से छे साल की उम्र तक के बच्चों में की जाती है। इसमें सर्जन सर्कुलेशन को अलग कर देते हैं, ताकि खून की मिक्सिंग न हो पाए। इससे सिंगल वेंट्रिकल पर से वर्कलोड कम हो जाता है। यह प्रक्रिया शरीर में सामान्य ब्लड सर्कुलेशन क्रिएट नहीं करती है, लेकिन यह सर्कुलेशन में सुधार कर सकती है।

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    यह तो थी सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स (Single Ventricle Defects) के बारे में पूरी जानकारी। सिंगल वेंट्रिकल डिफेक्ट्स से पीड़ित बच्चों को पूरी उम्र बेहद सावधान रहना पड़ता है। पूरी उम्र उन्हें कार्डियोलॉजिस्ट के अनुसार गतिविधियां करने की सलाह दी जा सकती है। यही नहीं, इस दौरान हुई ओपन हार्ट सर्जरी के निशान और अन्य समस्याएं भी पूरी उम्र उन्हें परेशान कर सकती हैं। इस समस्या से पीड़ित शिशुओं और बच्चों को पूरी उम्र फॉलोअप की भी जरूरत होती है और अधिकतर को लंबे समय तक दवाईयां भी लेनी पड़ती हैं। उन्हें बार बार इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram), इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electrocardiogram) और कई बार कार्डियक मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग स्कैन (Cardiac Magnetic Resonance Imaging) कराने पड़ते हैं, ताकि उनके हार्ट फंक्शन को मॉनिटर किया जा सके। इससे भविष्य में होने वाली हार्ट प्रॉब्लम्स का जल्दी निदान और उपचार भी संभव हो सकता है।

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    Toshini Rathod


    Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/02/2022

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