ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) सामान्य सी लगने वाली खतरनाक बीमारियों का समूह है, जो पिछले कई दशकों से बढ़ता जा रहा है। क्योंकि ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण जब तक सामने आते हैं, तब तक हमारे शरीर का अंग प्रभावित हो चुका होता है। ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) होने का एक कारण लाइफस्टाइल और मौसम में बदलाव है। धीरे-धीरे यह बीमारी लोगों के बीच बढ़ती जा रही है, आइए जानें क्या है ये बीमारी और इससे कैसे बच सकते हैं।
और पढ़ें : भूलने की बीमारी जो हंसा देती है कभी-कभी
क्या है ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease)?
ऑटोइम्यून डिजीज एक ऐसी स्थिति है, जिसमें इम्यून सिस्टम हमारी बॉडी को अटैक करती है। ऑटोइम्यून दो शब्दों से मिल कर बना है- ऑटो का मतलब है अपने आप या स्वतः और इम्यून का मतलब है प्रतिरक्षा, तो इस तरह से समझा जा सकता है कि शरीर का इम्यून सिस्टम (Immune system) अपने आप कमजोर हो जाता है तो उससे होने वाली बीमारियों को ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) कहते हैं। यह शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है।
और पढ़ें : बच्चों के मुंह के अंदर हो रहे दाने हो सकते हैं ‘हैंड-फुट-माउथ डिसीज’ के लक्षण
ऑटोइम्यून डिजीज होने के क्या कारण हैं? (Cause of Autoimmune Disease)
शरीर में मौजूद बैक्टीरिया (Bacteria) और वायरस (Virus) से हमारा इम्यून सिस्टम लड़ता है और इसके बाद शरीर के स्वस्थ्य ऊतकों को ही नष्ट करने लगता है, तब ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) होती है। सामान्यतः ऑटोइम्यून डिजीज उन लोगों में होती है जो मोटापा (Obesity), खराब लाइफस्टाइल और जंक फूड (Junk food) का ज्यादा सेवन करते हैं।
2014 में हुई एक रिसर्च के अनुसार महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीज होने का खतरा पुरुषों के तुलना में दोगुना है। जहां, 6.4 % महिलाएं ऑटोइम्यून डिजीज से ग्रसित रहती हैं, वहीं पुरुषों में 2.7 % ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या पाई जाती है। ज्यादातर महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) 15 से 44 साल के उम्र में ही नजर आने लगते हैं। ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) अफ्रीकन-अमेरिकन और हिसपैनिक लोगों में ज्यादा पाया जाता है ।
वेस्टर्न डायट के कारण भी ऑटोइम्यून डिजीज होती है। हाई-फैट (High fat), हाई-शुगर (High sugar) और हाई प्रोसेस्ड फूड खाने से इम्यून संबंधित बीमारियां हो जाती है। 2015 में आई एक अन्य थियोरी, जिसे हाइजीन हाइपोथेसिसि कहते हैं। क्योंकि वैक्सीन और एंटीसेप्टिक का सही तरीके से इस्तेमाल न करने से उनमें ऑटोइम्यून डिजीज की समस्या हो जाती है।
और पढ़ें : Chronic Obstructive Pulmonary Disease (COPD) : क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज क्या है?
ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) के सामान्य प्रकार क्या हैं?
ऑटोइम्यून डिजीज निम्न प्रकार के होते हैं :
- रयूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis)
- स्क्लेरोडर्मा (Scleroderma)
- ल्यूपस
- मल्टिपल स्क्लेरोसिस (Multiple Sclerosis)
- टेम्पोरल आर्थराइटिस
- सीलिएक डिजीज
- पोलिमायलजिया रयुमेटिका
- टाइप 1 डायबिटीज
- स्पॉट बाल्डनेस
- इंफ्लेम्ड ब्लड वेसेल्स
और पढ़ें : Rheumatoid arthritis : रयूमेटाइड अर्थराइटिस क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय
ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Autoimmune Disease)
त्वचा में जलन (Skin irritation)
त्वचा शरीर का सबसे ऊपरी भाग है और इसलिए इस पर लक्षण सबसे पहले दिखाई देते हैं। त्वचा पर सामान्यतः जलन, लालपन, खुजली या दाने निकल जाते हैं। इसके साथ ही चेहरे पर मुंहासे भी हो जाते हैं। लेकिन, आपको यह जान के हैरानी होगी कि ऊपर बताई गई समस्याएं ऑटोइम्यून डिजीज से नहीं जुड़ी हुई है। लेकिन, इसके पीछे का कारण यह हो सकता है कि आपके परिवार में किसी को पहले से ऑटोइम्यून डिजीज रही हो तो ही ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण सामने आ रहे हैं।
अगर आपके त्वचा पर ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण की तरह लक्षण दिखाई दें तो सतर्क हो जाएं। अक्सर त्वचा संबंधी समस्या ल्यूपस में होती है। ल्यूपस में हमारा इम्यून सिस्टम अपने शरीर के तत्व और बाहरी एंटीजन के बीच अंतर नहीं कर पाता। इसकी वजह से इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर की कोशिकाओं के ऊपर आक्रमण करने लगेगा जिससे शरीर को आंतरिक रूप से हानि हो सकती है। जिससे जोड़ों, त्वचा, किडनी, खून की कोशिकाओं, दिमाग और फेफड़ों में परेशानी आ सकती है।
और पढ़ें : दुनियाभर में लगभग 17 मिलियन लोगों को होने वाली एक विकलांगता है सेरेब्रल पाल्सी
थकान और ब्रेन फॉग (Tiredness and Brain fog)
आठ या नौ घंटे की नींद लेने के बाद भी अगर आप मानसिक (Mental) और शारीरिक थकान महसूस करते हैं तो ये ब्रेन फॉग हो सकता है। ये ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण में सबसे सामान्य लक्षण है। ऑटोइम्यून डिजीज में एनीमिया के कारण थकान हो जाती है। जिससे शरीर में सूजन आदि की समस्या हो जाती है। इस तरह के ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण सामने आने के बाद आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए।
अल्जाइमर और ब्रेन फॉग में क्या अंतर है? (Difference between Alzheimer and Brain fog)
अल्जाइमर एक ऐसी बीमारी है जो याददाश्त को नष्ट कर देती है। शुरुआती तौर पर अल्जाइमर से ग्रसित व्यक्ति को बातें याद रखने में कठिनाई हो सकती है और फिर धीरे-धीरे व्यक्ति अपने जीवन में महत्वपूर्ण लोगों को भी भूल जाता है। अल्जाइमर में याददाश्त कमजोर होने के साथ-साथ कुछ और भी लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे- पहले लोगों के नाम भूल जाना, अपने विचारों को व्यक्त करने में कठिनाई, निर्देशों का पालन करने में दिक्कत, किसी बात को समझने में भी परेशानी आदि होती है। अल्जाइमर अक्सर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को होती है।
अल्जाइमर (Alzheimer) रोग डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का सबसे आम कारण है। मस्तिष्क विकारों का एक समूह जिसमें बौद्धिक और सामाजिक कौशल को नुकसान पहुंचता है। अल्जाइमर रोग में, मस्तिष्क की कोशिकाएं कमजोर होकर नष्ट हो जाती हैं, जिससे स्मृति और मानसिक कार्यों में लगातार गिरावट आती है। वर्तमान समय में अल्जाइमर रोग के लक्षणों को दवाओं और मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी के द्वारा अस्थायी रूप से सुधारा जा सकता है। इससे अल्जाइमर रोग से ग्रस्त इंसान को कभी-कभी थोड़ी मदद मिलती लेकिन, क्योंकि अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके सहायक सेवाओं का सहारा लेना जरूरी होता है।
वहीं, ब्रेन फॉग के लक्षण बहुत कम समय के लिए होते हैं। वहीं, अल्जाइमर पूरी जिंदगी भी रह सकता है।
और पढ़ें : Muscular dystrophy : मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी क्या है?
वजन का बढ़ना या घटना (Weight loss or gain)
ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण में वजन का घटना या बढ़ना भी सामान्य है। इसे वेट फ्लैक्चुएशन कहते हैं। क्योंकि ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) में वजन का घटना और बढ़ना समय-समय पर लगा रहता है, जिसका कारण मेटाबॉलिजम (Metabolism) में होने वाला बदलाव है। वहीं, हाइपोथायरॉडिजम के कारण भी ऑटोइम्यून डिजीज हो जाती है और वजन में बदलाव होता रहता है। यूं तो ये एक भ्रम है कि हाइपोथाइरॉडिजम में वजन को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। अगर आप अपनी लाइफस्टाइल और खान-पान में बदलाव करते हैं तो वजन को नियंत्रित कर सकते हैं।
[mc4wp_form id=’183492″]
मांसपेशियों या जोड़ों में दर्द
मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द का सबसे बड़ा कारण ऑटोइम्यून डिजीज है। ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण रयूमेटाइड आर्थराइटिस और हाशिमोटोस थाइरॉयडाईटिस में नजर आते हैं। रयूमेटाइड आर्थराइटिस एक जोड़ों से संबंधित खतरनाक बीमारी है। कुछ लोगों में शरीर को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है, जैसे त्वचा, आंखें, फेफड़े, हृदय और खून की नसें शामिल हैं। एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर में रयूमेटाइड आर्थराइटिस तब होता है जब आपका इम्यून सिस्टम शरीर के पेशियों पर हमला करती है तो ऑस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों में दर्द और सूजन पैदा करता है। रयूमेटाइड आर्थराइटिस शारीरिक विकलांगता का कारण बन सकता है। इसका कोई इलाज नहीं है। लेकिन, लक्षणों के आधार पर दवाओं के द्वारा इसका रोकथाम किया जाता है।
वहीं, हाशिमोटोस थाइरॉयडाईटिस में थाइरॉइड हाइपोफंक्शन करने लगता है। जो सीधे इम्यून सिस्टम पर अटैक करता है। इसी के कारण मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है।
और पढ़ें : ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के मरीजों के लिए एक्सरसाइज से जुड़े टिप्स
पाचन तंत्र में समस्या (Digestion problem)
पाचन तंत्र की समस्या में ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण सामने आते हैं, जिसमें पॉटी के साथ खून आने जैसी गंभीर समस्या भी शामिल है। पेट में दर्द, ऐंठन, पेट में सूजन आदि परेशानियां सामने आती हैं। जिससे पेट में जलन और अंदर की तरफ सूजन और छाले भी हो सकते हैं।
अगर आपके अंदर इन सभी में कोई भी लक्षण दिखाई दें तो आप तुरंत डॉक्टर से मिलें। क्योंकि जितना देरी करेंगे, ऑटोइम्यून डिजीज के लक्षण उतने ज्यादा प्रबल होते जाएंगे।
अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
[embed-health-tool-bmr]