के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
ल्यूकेमिया vs लिंफोमा (Leukemia and Lymphoma) कैंसर का एक प्रकार है, जो मनुष्य के बोन मैरो (Bone marrow) को नुकसान पहुंचाता है। बोन मैरो के अलावा यह ब्लड सेल्स (Blood cells), लिम्फ नॉड्स (Lymph nodes) या फिर लिम्फैटिक सिस्टम (Lymphatic system) पर अपना प्रभाव डालता है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी जर्नल (American Cancer Society Journals) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में चाइल्डहुड ब्लड कैंसर (Childhood Blood Cancer) के 20,000 मरीज डायग्नोस्ड किये गयें, जिनमें से 15,000 केसेस सिर्फ ल्यूकेमिया (Leukemia) के हैं। आज इस आर्टिकल में ल्यूकेमिया vs लिंफोमा (ल्यूकेमिया और लिंफोमा) से जुड़ी खास जानकारी शेयर करेंगे।
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ल्यूकेमिया और लिंफोमा दो अलग-अलग तरह के कैंसर हैं, ब्लड और इम्यून सिस्टम को अपना शिकार बनाते हैं। हालांकि ल्यूकेमिया और लिंफोमा (Leukemia and Lymphoma) दोनों ही वाइट ब्लड सेल्स (White Blood Cells) को अपना शिकार बनाते हैं। ल्यूकेमिया vs लिंफोमा के लक्षण तकरीबन एक जैसे होते हैं, जिनके बारे में आगे समझेंगे, लेकिन सबसे पहले ल्यूकेमिया और लिंफोमा के बारे में समझने की कोशिश करते हैं।
ल्यूकेमिया vs लिंफोमा एक ऐसी बीमारी है, जो बहुत धीरे-धीरे डेवलप होती है। इसलिए कई ल्यूकेमिया या लिंफोमा के लक्षणों को समझना भी कठिन हो जाता है। बीमारी के कुछ दिनों के बाद शरीर में वाइट ब्लड सेल्स (WBC) की संख्या बढ़ना और रेड ब्लड सेल्स (RBC) का कम होना शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। ल्यूकेमिया की समस्या क्रोनिक या एक्यूट हो सकती है। दरसअल एक्यूट ल्यूकेमिया (Acute Leukemia) तेजी से फैलने वाले कैंसर की लिस्ट में शामिल है, तो वहीं क्रोनिक ल्यूकेमिया (Chronic leukemia) सामान्य है और यह शुरुआती स्टेज में काफी धीरे-धीरे डेवलप होता है।
लिम्फोमा लिम्फैटिक सिस्टम में होने वाला कैंसर है। लिम्फोसाइट्स में विकसित होने वाला ये कैंसर वाइट ब्लड सेल्स (White Blood Cell) को क्षति पहुंचने के कारण यही सेल्स इम्यून सिस्टम की रक्षा नहीं कर पाते हैं। हालांकि जब कैंसरस सेल्स यहीं डेवलप होने लगते हैं, तो पीड़ित व्यक्ति की इम्यून सिस्टम (Immune system) कमजोर पड़ने लगती है। आर्टिकल में ल्यूकेमिया vs लिंफोमा के लक्षणों को समझेंगे।
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ल्यूकेमिया vs लिंफोमा (Leukemia vs Lymphoma): ल्यूकेमिया और लिंफोमा के लक्षण इस प्रकार हैं-
ल्यूकेमिया और लिंफोमा के लक्षण एक जैसे होने की वजह से कई बार बीमारी को लेकर कन्फयूजन भी रहता है। हालांकि ल्यूकेमिया vs लिंफोमा (Leukemia vs Lymphoma) से जुड़े रिसर्च रिपोर्ट्स की बात करें, तो लोगों में लिम्फोमा की जानकारी ल्यूकेमिया की तुलना में ज्याद है। साल 2018 में ल्यूकेमिया के 60,300 नये केसेस रिकॉर्ड किये गए थें, तो वहीं लिम्फोमा के 83,180 नये केसेस रिकॉर्ड हुए।
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ल्यूकेमिया और लिंफोमा के मुख्य कारण अभी भी साफ नहीं हैं। हालांकि रिसर्च रिपोर्ट्स की मानें, तो इसका कारण वंशानुगत और पर्यावरण से संबंधित हो सकता है। इसके अलावा इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं। जैसे:
ऊपर बताई गई स्थिति ल्यूकेमिया या लिंफोमा को दावत दे सकते हैं।
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ल्यूकेमिया या लिंफोमा (ल्यूकेमिया vs लिंफोमा) होने की स्थिति में या इसके लक्षण समझ आने पर डॉक्टर निम्नलिखित बॉडी चेकअप करवाने की सलाह देते हैं। जैसे:
ल्यूकेमिया की आशंका होने पर निम्नलिखित जांच की सलाह दी जाती है-
फिजिकल एग्जाम (Physical exam)- फिजिकल एग्जाम के दौरान डॉक्टर पेशेंट में ल्यूकेमिया के लक्षणों को जैसे एनीमिया (Anemia), लिम्फ नॉड्स में सूजन (Lymph nodes) एवं लिवर (Liver) और स्प्लीन (Spleen) के सामान्य से ज्यादा बड़े होने को समझने की कोशिश करते हैं।
ब्लड टेस्ट (Blood tests)- ब्लड टेस्ट की मदद से ब्लड में वाइट ब्लड सेल्स (WBC), रेड ब्लड सेल्स (RBC) और प्लेटलेट्स (Platelets) की संख्या पर ध्यान देते हैं। ब्लड टेस्ट से ल्यूकेमिया सेल्स (Leukemia cells) से संबंधित जानकारियों को भी इक्क्ठा करते हैं।
बोन मैरो टेस्ट (Bone marrow test)- लंबी सूई की मदद से पेशेंट के बोन मैरो लेकर जांच की जाती है। इससे इलाज का कौन सा तरीका बेहतर रहेगा यह भी निश्चय किया जा सकता है।
लिंफोमा के निदान के लिए निम्नलिखित टेस्ट की सलाह दी जाती है। जैसे:
ल्यूकेमिया के लिए की जाने वाली टेस्ट जैसे फिजिकल एग्जाम, ब्लड टेस्ट एवं बोन मैरो टेस्ट लिंफोमा के डायग्नोसिस में भी किये जाते हैं। इन तीनों टेस्ट के अलावा निम्नलिखित एक टेस्ट और की जा सकती है। जैसे:
इमेजिंग टेस्ट (Imaging tests)- इस दौरान सीटी स्कैन (CT Scan), एमआरआई (MRI) या पॉजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी (PET) की जाती है। इस टेस्ट की मदद से लिंफोमा बॉडी के अन्य ऑर्गेन में फैला है या कितना फैला है इसकी जानकारी मिलती है।
ल्यूकेमिया vs लिंफोमा (Leukemia vs Lymphoma) के निदान के लिए इन ऊपर बताये टेस्ट की जाती है। हालांकि अगर पेशेंट किसी अन्य बीमारी से पीड़ित हैं, तो ऐसी स्थिति में अन्य टेस्ट करवाने की सलाह दी जा सकती है और फिर इलाज शुरू किया जाता है।
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डॉक्टर इस कैंसर का इलाज कैसे करते हैं यह अलग-अलग पेशेंट में अलग-अलग हो सकते हैं। इसके साथ ही कैंसर कौन सी स्टेज में है यह भी ध्यान में रखा जाता है और फिर इलाज शुरू किया जाता है। ल्यूकेमिया या लिंफोमा का इलाज निम्नलिखित तरह से किया जा सकता है। जैसे:
कीमोथेरिपी (Chemotherapy)- कीमोथेरेपी कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान दी जाती है। इससे कैंसरस सेल्स को खत्म किया जाता है। कीमोथेरिपी ओरल, इंट्रावेनस या इंट्रामस्क्युलर तरह से दी जा सकती है। कीमोथेरिपी में आवश्यकता अनुसार एवं स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल के तहत 2 या 3 अन्य दवाओं को भी मिक्स किया जा सकता है। टारगेट थेरिपी (Targeted therapy) के दौरान भी यही प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
रेडिएशन थेरिपी (Radiation therapy)- रेडिएशन थेरिपी को रेडियोथेरेपी भी कहा जाता है। रेडिएशन थेरेपी की मदद से ल्यूकेमिया या लिंफोमा का इलाज किया जाता है। इस ट्रीटमेंट के दौरान रेडिएशन किरणों (Radiation Rays) के माध्यम से कैंसर के सेल्स (Cancer Cells) को खत्म किया जाता है।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplants)- ल्यूकेमिया या लिंफोमा जैसे अन्य ब्लड कैंसर के इलाज में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की भी मदद ली जा सकती है। दरअसल इस ट्रीटमेंट के दौरान डोनर (Donor) के ब्लड से वाइट ब्लड सेल्स (WBC) कैंसर पेशेंट के बॉडी में ट्रांसप्लांट किया जाता है। अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन के एक जर्नल में पब्लिश्ड एक रिपोर्ट के अनुसार स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplants) की जानकारी से जुड़ी मुहीम भी चलाई गई थी, जिससे काफी लोग जोड़ें भी थें।
ड्रग्स (Drugs)- ल्यूकेमिया या लिंफोमा (ल्यूकेमिया vs लिंफोमा) के इलाज के दौरान नैशनल कैंसर इंस्टीटूट, यूएसए (National Cancer Institute, USA) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार एरानोन (Arranon), एस्परलास (Asparlas) या बेस्पोंसा (Besponsa) जैसे अन्य मेडिसिन प्रिस्क्राइब किये जा सकते हैं।
नोट: यहां कैंसर ड्रग्स (Cancer drugs) के नाम सिर्फ जानकारी के लिए दी गई है। बिना डॉक्टर के कंसल्टेशन से इन दवाओं का शरीर पर साइड इफेक्ट्स भी पड़ सकता है।
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किसी भी बीमारी से बचने के लिए सबसे पहले उस बीमारी के बारे में जानना और समझना बेहद जरूरी है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति ल्यूकेमिया या लिंफोमा की समस्या से पीड़ित हैं, तो उन्हें इस बीमारी के लक्षणों और कारणों को समझना चाहिए और इसके साथ-साथ डॉक्टर से कंसल्ट करना चाहिए। डॉक्टर द्वारा बताये गए दिशा निर्देशों का ठीक तरह से पालन करना चाहिए और निम्नलिखित घरेलू उपाय या जीवन शैली पर ध्यान देना चाहिए। जैसे:
इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने के साथ-साथ वैसे लोगों से भी डिस्टेंस मेंटेन करें, जो नेगेटिव ख्याल रखते हों। पेशेंट के साथ-साथ उनके परिवार और दोस्तों को भी पॉजिटिव रखना बेहद जरूरी है। बीमारी के बारे में बात करना जरूरी है, ना की नकारात्मकता फैलाना।
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