जब हमारे शरीर के किसी पार्ट में सेल्स अनियंत्रित होकर ग्रो करने लगते हैं, तो इससे कैंसर की शुरुआत होती है। कैंसर के कई प्रकार होते हैं और शरीर के किसी भी भाग के सेल्स कैंसर बन सकते हैं। इन्हीं में से एक है ल्यूकेमिया। ल्यूकेमिया वो कैंसर है, जो उन सेल्स में शुरू होता है जो विभिन्न प्रकार के ब्लड सेल्स में विकसित होते हैं। ल्यूकेमिया के भी कई प्रकार हैं जिन्हें इस आधार पर विभाजित किया जाता है कि यह ल्यूकेमिया एक्यूट (Acute) है या क्रॉनिक (Chronic) और यह मायलॉइड सेल्स (Myeloid Leukemia) में शुरू हुआ है या लिम्फोयड सेल (Lymphoid Cells) में। आज हम ल्यूकेमिया के एक प्रकार एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) के बारे में बात करने वाले हैं। जानिए इसके बारे में विस्तार से।
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया क्या है? (Acute Myeloid Leukemia)
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) बोन मैरो में शुरू होता है, लेकिन आमतौर पर यह जल्दी से खून में भी मूव कर जाता है। यह कई बार शरीर के अन्य भागों में भी फैल जाता है जिसमें लिम्फ नोड्स (Lymph Nodes), लिवर (Liver), स्प्लीन (Spleen), सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) और टेस्टिकल्स (Testicles) शामिल हैं। अक्सर, एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) उन कोशिकाओं से विकसित होता है, जो सफेद रक्त कोशिकाओं (White Blood Cells) में बदल जाते हैं। लेकिन कभी-कभी यह अन्य प्रकार के रक्त बनाने वाली कोशिकाओं में विकसित हो जाता है। अगर इस समस्या का सही उपचार न हो पाए, तो यह जान के लिए जोखिम भरी हो सकती है। जानिए क्या हैं इसके लक्षण?
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एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया के लक्षण (Symptoms of Acute myeloid leukemia)
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन, बुजुर्गों में इसके होने की संभावना अधिक होती है। अधिकतर लोगों में इसके कारणों को पहचानना आसान नहीं होता। अब बात की जाए इसके लक्षणों के बारे में, तो इसकी शुरुआत फ्लू की तरह के लक्षणों से हो सकती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस कैंसर का कोई खास लक्षण नजर नहीं आते हैं। लेकिन, कुछ लोगों में इसके लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं :
- थकावट (Fatigue)
- बुखार (Fever)
- वजन या भूख कम होना (Weight loss or loss of Appetite)
- सिरदर्द (Headaches)
- असामान्य ब्लीडिंग या नील पड़ना (Unusual Bleeding or Bruising)
- त्वचा पर छोटे लाल स्पॉट्स होना (Tiny Red Spots on Skin)
- मसूड़ों का फूलना (Swollen Gums)
- लिवर या स्प्लीन में सूजन (Swollen Liver or Spleen)
- सामान्य से अधिक इंफेक्शन (More Infections than Usual)
कई लोगों में इस कैंसर की स्थिति में कुछ अन्य लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं। अब जानते हैं इसके कारणों के बारे में।
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एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया के कारण और रिस्क फैक्टर (Causes and Risk Factors of Acute myeloid leukemia)
डॉक्टर भी अक्सर यह नहीं जान पाते हैं कि किसी मरीज को एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) किन वजहों से हुआ है। लेकिन, कुछ चीजें ऐसी है जो न केवल इसकी संभावना को बढ़ाती हैं, बल्कि उन्हें बदतर भी बना सकती हैं। इस कैंसर के रिस्क फैक्टर इस प्रकार हो सकते हैं:
- स्मोकिंग (Smoking) : स्मोकिंग करने वाले लोगों में यह कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।
- केमिकल्स (Chemicals) : किसी खास केमिकल के संपर्क में आने से भी यह समस्या हो सकती है जैसे बेंजीन (Benzene), कीटनाशक (Pesticides), कुछ क्लीनिंग प्रोडक्ट्स (Some Cleaning Products), डिटर्जेंट (Detergents) आदि।
- कुछ कीमोथेरेपी ड्रग्स (Some Chemotherapy Drugs) : कुछ कीमोथेरेपी ड्रग्स जिनका प्रयोग कैंसर के उपचार के लिए किया जाता है जैसे डॉक्सोरूबिसिन (Doxorubicin) , मेलफलेन (Melphalan) आदि भी इस कैंसर का कारण हो सकती हैं।
- रेडिएशन (Radiation) : रेडिएशन की हाय डोज के संपर्क में आने इस कैंसर के होने का जोखिम बढ़ सकता है।
- कुछ ब्लड कंडीशंस (Some Blood Conditions) : कुछ ब्लड कंडीशंस जैसे मायलोप्रोलिफेरेटिव डिसऑर्डर (Myeloproliferative Disorder) को भी इस स्थिति का रिस्क फैक्टर माना जाता है।
- इनहेरिटेड (Inherited) : अगर आपके माता-पिता या भाई-बहन में से किसी को एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) की समस्या है, तो आपको भी यह कैंसर होने का रिस्क बढ़ जाता है।
- कुछ जेनेटिक सिंड्रोम्स (Some Genetic Syndromes) : कुछ जेनेटिक सिंड्रोम जैसे डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome), न्यूरोफाइब्रोमैटॉसिस टाइप 1 (Neurofibromatosis Type 1) भी इस समस्या के रिस्क फैक्टर हैं। जानिए, इस कैंसर के निदान और उपचार के बारे में।
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एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया का निदान कैसे होता है? (Diagnosis of Acute myeloid leukemia)
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) के निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले लक्षणों के बारे में जानते हैं। डॉक्टर रोगी की मेडिकल हिस्ट्री (Medical history) के बारे में भी जानेंगे। रोगी की शारीरिक जांच भी की जाती ताकि मरीज को कहीं ब्लीडिंग (Bleeding), नील पड़ना (Bruising) या इंफेक्शन (Infection) न हो।
नेशनल कैंसर इंस्टीटूट्स (National Cancer Institutes) के अनुसार जब किसी व्यक्ति में एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia)का निदान हो जाता है तो उसके बाद अन्य टेस्ट कराए जाते हैं, ताकि यह पता चल सके कि कहीं यह कैंसर शरीर के अन्य भागों तक तो नहीं फैल गया है। डॉक्टर रोगी को यह टेस्ट्स कराने के लिए कह सकते हैं :
ब्लड टेस्ट्स (Blood Tests) : कम्पलीट ब्लड काउंट (Complete Blood Count) टेस्ट से पता चलता है कि रोगी के शरीर में कितनी तरह के ब्लड सेल हैं। इसके साथ ही ब्लड टेस्ट्स से अन्य मेडिकल स्थितियों के बारे में भी जाना जा सकता है।
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इमेजिंग टेस्ट्स (Imaging Tests) : एक्स-रेज (X-rays), सीटी स्कैन्स (CT Scans) और अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) यह सब टेस्ट इस चीज को जानने के लिए किए जाते हैं कि रोगी के अंदर क्या चल रहा है? इससे इंफेक्शन के बारे में पता करने में मदद मिल सकती है।
बोन मैरो टेस्ट्स (Bone Marrow Tests) : आपके डॉक्टर आपके कूल्हे या ब्रेस्टबोन से मैरो (Marrow), रक्त (Blood) और हड्डी (Bone) का नमूना लेने के लिए एक नीडल का उपयोग करते हैं। विशेषज्ञ ल्यूकेमिया सेल्स (Leukemia Cells) के लिए इसकी जांच करते हैं।
स्पाइनल टेप (Spinal Tap) : इस टेस्ट को लम्बर पंक्चर (Lumbar Puncture) कहा जाता है। इसमें डॉक्टर रोगी की रीढ़ की हड्डी के आसपास से कुछ सेरिब्रलस्पायनल फ्लूइड (Cerebrospinal Fluid) लेने के लिए एक नीडल का उपयोग करते हैं। इस टेस्ट को भी ल्यूकेमिया सेल्स की जांच के लिए किया जाता है।
जेनेटिक टेस्ट्स (Genetic Tests) : यह टेस्ट रोगी की ल्यूकेमिया सेल्स की जांच जीन या क्रोमोसोम बदलाव की जांच करने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट से आपके डॉक्टर को एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) के बारे में अधिक पता चलता है जिससे वो रोगी के लिए बेहतर उपचार के बारे में जान पाते हैं।
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एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया का उपचार कैसे होता है? (Treatment of Acute myeloid leukemia)
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) बहुत तेजी से विकसित होता है। तो ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि इसका उपचार जल्दी शुरू हो जाए। यह उपचार कई चीजों पर निर्भर करता है इसमें एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) का प्रकार, यह कितना फैल चुका है या संपूर्ण स्वास्थ्य शामिल है। इसका उपचार दो भागों में किया जाता है:
रेमिशन इंडक्शन थेरेपी (Remission Induction Therapy) : इस थेरेपी का मकसद खून और बोन मैरो में ल्यूकेमिया सेल्स (Leukemia Cells) को नष्ट करना है।
कंसोलिडेशन थेरेपी (Consolidation Therapy) : इसे पोस्ट रेमिशन (Post-Remission) या रेमिशन कॉन्टिनुएशन थेरेपी (Remission Continuation Therapy) भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य बचे हुए ल्यूकेमिया सेल्स को नष्ट करना है ताकि रोगी फिर से इस समस्या का शिकार न हो पाए।
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इस कैंसर का कई अन्य तरह से भी उपचार संभव है, जैसे :
कीमोथेरेपी (Chemotherapy) : कुछ ड्रग्स कैंसर सेल्स को नष्ट करने या उन्हें विभाजित होने से रोक सकती हैं। यह दवाईयां ओरल या IV के माध्यम से या शारीरिक के अन्य भाग में शॉट्स के माध्यम से दी जा सकती है।
रेडिएशन (Radiation) : हाय-एनर्जी एक्स-रेज कैंसर सेल्स को रोक सकती है। इसमें डॉक्टर एक लार्ज मशीन का प्रयोग कर के रेडिएशन को कैंसर सेल्स की तरफ भेजते हैं या वे रोगी के शरीर में, कैंसर पर या उसके पास एक रेडियोएक्टिव नीडल (Radioactive Needle) , सीड या वायर इंसर्ट कर सकते हैं।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांट (Stem Cell Transplant) : क्योंकि एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) हेल्दी सेल्स को नष्ट कर सकते हैं। ऐसे में कुछ स्टेम सेल्स को आपकी रक्त कोशिकाओं में ग्रो हो सकती हैं। यह रोगी के शरीर या अन्य लोगों से आपको मिल सकते हैं।
टार्गेटेड थेरेपी (Targeted therapy) : इस थेरेपी में ड्रग्स का प्रयोग किया जाता है ताकि उन खास जीन या प्रोटीन्स को नष्ट किया जा सके जो कैंसर सेल्स की ग्रोथ या उनके फैलने में शामिल होते हैं।
अन्य दवाइयां (Other Medications) : आर्सेनिक ट्रायऑक्साइड (Arsenic Trioxide) और सभी ट्रांस रेटिनोइक एसिड (All-Trans Retinoic Acid) जैसी दवाइयां कैंसर सेल्स को टारगेट करती हैं।
अन्य चीजें जो उपचार को प्रभावित करती हैं, इस प्रकार हैं :
अगर किसी की उम्र सत्तर साल से अधिक है या किसी को अन्य गंभीर हेल्थ इश्यूज है जैसे दिल, लंग्स या किडनी की समस्या तो इस केटेगरी के कुछ लोग टोक्सिन कीमोथेरेपी दवाओं को सहन करने में सक्षम नहीं हो पाते। ऐसे में एजेसिटिडीन (Azacitidine) या हायड्रोक्सीयूरिया (Hydroxyurea) जैसी दवाएं बुजुर्गों बेहतर रूप से सहन कर सकते हैं । अगर बच्चे में एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) उपचार किया जाए, तो उनके लिए वयस्कों के मुकाबले थेरेपीज अलग हो सकती हैं।
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एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया के बचाव (Prevention of Acute myeloid leukemia)
एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) के विकसित होने के कारणों के बारे में डॉक्टर को पता नहीं होता। इससे बचना मुश्किल है, लेकिन कुछ चीजों से इसके रिस्क कम किए जा सकते हैं। यह चीजें इस प्रकार हैं:
- रेडिएशन से कम एक्सपोज़र (Minimizing Exposure to Radiation)
- बेंजीन और संबंधित उत्पादों से डील करते हुए सावधानियां बरतना (Take Precautions)
- स्मोकिंग न करें (Avoid Smoking)
- पौष्टिक और संतुलित खाना खाएं (Healthy Food)
- तनाव से बचें (Stay away from Depression)
- पर्याप्त नींद लें और व्यायाम करें (Take enough Sleep and do Exercise)
जो लोग ऐसी जगह नौकरी करते हैं जहां रेडिएशन या बेंजीन का खतरा अधिक है, तो उन्हें सेफ्टी गाइडलाइन्स का पूरी तरह से पालन करना चाहिए।
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यह तो थी एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) के बारे में पूरी जानकारी। लेकिन, एक बार उपचार के बाद भी यह समस्या फिर से हो सकती है। अगर यह कैंसर फिर से हो जाता है या रोगी द्वारा स्टैंडर्ड थेरेपी पूरी करने के बाद भी मौजूद होता है, तो डॉक्टर किसी अलग ट्रीटमेंट के बारे में सोच सकते हैं। एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (Acute Myeloid Leukemia) एक गंभीर स्थिति है। लेकिन, सही उपचार और हेल्दी लाइफस्टाइल से रोगी पहली की तरह अपने जीवन को गुणवत्ता के साथ जी सकता है। सबसे जरूरी है सही समय पर निदान। अगर आपको इस समस्या का कोई भी लक्षण नजर आता है तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना अनिवार्य है।
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