हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस को हाशिमोटोस डिजीज भी कहा जाता है। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस एक ऑटोइम्यून डिजीज है। जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है। इस डिजीज के होने का कारण हाइपोथायरॉइडिजम है। हाइपोथायरॉइडिजम दवाओं से ठीक हो सकता है। अगर हाइपोथायरॉइडिजम को बिना इलाज के छोड़ दिया जाए तो महिलाओं को गर्भधारण में समस्या हो सकती है। हाइपोथायरॉइडिजम में थकान, वजन बढ़ना, डिप्रेशन और जोड़ों में दर्द आदि लक्षण सामने आते हैं।
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ऑटोइम्यून डिजीज (Autoimmune Disease) क्या है?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस को जानने से पहले हमें ऑटोइम्यून डिजीज के बारे में जान लेना चाहिए। ऑटोइम्यून डिजीज बीमारियों का समूह है, जिसमें मरीज एक साथ कई बीमारियां हो जाती हैं। हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम खुद बखुद कमजोर हो जाता है और शरीर का इम्यून सिस्टम स्वस्थ सेल्स को ही नष्ट करने लगता है। जिसके कारण ऑटोइम्यून डिजीज हो जाती है। ऑटोइम्यून डिजीज शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है।
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस क्या है?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस थायरॉइड ग्लैंड में होने वाली एक समस्या है। थायरॉइड ग्रंथि हमारे गले के आधार पर पाई जाने वाली एक छोटी ग्रंथि है। जो शरीर में वजन नियंत्रण के साथ दिल की धड़कनों को भी कंट्रोल करता है। हाशिमोटोस डिजीज से ग्रसित व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ऐसी एंटीबॉडीज बना लेता है, जो थायरॉइड ग्रंथि पर ही अटैक करने लगती हैं। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस हमेशा हाइपोथायरॉइडिजम होने पर ही होता है।
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस के लक्षण क्या है?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने पर तो पहले कुछ सालों में लक्षण सामने नहीं आते हैं। इसके बाद जब लक्षण सामने आते हैं तो वह घेंघा (goiter) के रूप में जाते हैं। जिसमें थायरॉइड ग्लैंड का आकार बढ़ जाता है। जिससे गले में सूजन आ जाती है। वहीं, कुछ महिलाओं को हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस के कारण गर्भधारण में समस्या होती है। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस के कुछ अन्य लक्षण निम्न हैं :
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने का कारण क्या है?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने का सटीक कारण अभी तक नहीं पता चल सका है। लेकिन कुछ अधययनों में पाया गया है कि हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को होता है। इसके अलावा दो मामलों में हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होना जोखिम सबसे ज्यादा होता है।
आनुवंशिक : हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस एक आनुवंशिक समस्या है। जो परिवारों में पेरेंट्स से बच्चों में जाता है।
मां बनने के बाद : अक्सर महिलाओं को बच्चा पैदा होने के बाद हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस की समस्या हो जाती है। इस स्थिति को पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस कहा जाता है। पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस के लक्षण डिलिवरी के 12 से 18 महीने के बाद नजर आते हैं। लेकिन, अगर आपके परिवार में पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस किसी को पहले रहा हो तो आपको होने का रिस्क ज्यादा होता है।
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होना कितना सामान्य है?
जैसा की पहले ही बताया जा चुका है कि हाशिमोटोस डिजीज पुरुषों में कम और महिलाओं को ज्यादा होता है। ये अक्सर 40 से 60 साल तक की महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है। लेकिन ये किशोरियों को भी प्रभावित कर सकता है। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस के साथ अन्य ऑटोइम्यून डिजीज भी हो सकती हैं। जैसे- सेलिएक डिजीज, रयूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप 1 डायबिटीज, परनिसियस एनीमिया या ल्यूपस आदिर बीमारियां हाशिमोटोस डिजीज के साथ हो सकती है।
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस महिलाओं में हाइपोथायरॉइडिजम के विकसित होने के कारण होता है। हाइपोथायरॉइडिजम महिलाओं को निम्न तरह से प्रभावित कर सकता है :
गर्भधारण में समस्या : हाइपोथायरॉइडिजम के कारण महिलाओं के पीरियड्स में अनियमितता आ जाती है। रिसर्ज में पाया गया है कि लगभग आधी महिलाओं को हाइपोथायरॉइडिजम के साथ ही हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने पर महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या होती है। जिनमें से ज्यादातर महिलाओं को हाशिमोटोस डिजीज होने का कारण हाइपोथायरॉइडिजम का इलाज न होना है।
पीरियड्स में समस्या : हाशिमोटोस डिजीज होने के कारण थायरॉइड हॉर्मोन पीरियड्स को प्रभावित करता है। जिससे पीरयड्स अनियमित हो जाते हैं। इसके अलावा हैवी पीरियड्स आते हैं।
प्रेगनेंसी में समस्या : गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम के विकास के लिए थायरॉइड हार्मोन जिम्मेदार होता है। हाशिमोटोस डीजीज के कारण थायरॉइड हॉर्मोन सही से स्रावित नहीं होता है। जिससे मिसकैरिज, बर्थ डिफेक्ट आदि समस्याएं होती है।
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का पता कैसे लगाते हैं?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस होने पर हाइपोथाइरॉइडिजम के लक्षण सामने आते हैं, तो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस को कंफर्म करने के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट कराते हैं।
थायरॉइड फंक्शन टेस्ट
थायरॉइड फंक्शन टेस्ट एक प्रकार का ब्लड टेस्ट है। जिससे पता लगाया जा सके कि शरीर में थायरॉइड स्टीम्यूलेटिंग हॉर्मोन (TSH) और थायरॉइड हॉर्मोन का लेवल क्या है। अगर TSH का लेवल हाई रहेगा तो थायरॉइड ग्लैंड से ज्यादा मात्रा में थायरॉइड ग्लैंड स्रावित होगी। जो कि हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का कारण बनेगी।
एंटीबॉडी टेस्ट
एंटीबॉडी टेस्ट भी ब्लड टेस्ट है। जिससे भी हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का पता लगाया जाता है। इस टेस्ट को थॉराइड पिरॉक्सीडेस के नाम से भी जाना जाता है।
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हाशिमोटोस डिजीज का इलाज कैसे करते हैं?
हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का इलाज लिवोथायरॉक्सिन का डेली डोज दे कर किया जाता है। लिवोथायरॉक्सीन थायरॉइड जैसा ही हॉर्मोन है। जो दवाओं के रूप में देकर थायरॉइड हॉर्मोन को नियंत्रित करने के काम आता है। बिना डॉक्टर की सलाह के ये दवा न लें। डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
हाशिमोटोस डिजीज का इलाज नहीं करने पर क्या होता है?
हाशिमोटोस डिजीज को अगर इलाज के बिना छोड़ दिया गया तो वह अन्य बीमारियों के लिए न्योता होता है। हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का इलाज न करने पर निम्न समस्याएं हो सकती हैं :
- बांझपन
- मिसकैरिज
- बर्थ डिफेक्ट यानी कि बच्चा विकृति पैदा होता है
- हाई कोलेस्ट्रॉल
कुछ दुर्लभ बीमारियां जो अंडरएक्टिव थायरॉइड में होती है। जिसे मायक्सिडेमा कहा जाता है। जिसमें निम्न समस्याएं होती है :
- हार्ट फेलियर
- कोमा
- सीज़र
- मौत
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हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है?
हाशिमोटोस डिजीज का अगर इलाज न किया जाए तो महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को बहुत समस्याएं होती हैं :
- प्रीइक्लैम्पसिया
- एनीमिया
- मिसकैरिज
- प्लेसेंटल अबरप्शन
- पोस्टपार्टम ब्लीडिंग
इसके अलावा गर्भ में पल रहे बच्चे को भी निम्न समस्याएं होती हैं :
- प्रीमेच्योर बर्थ
- जन्म के समय बच्चे का वजन बहुत कम होना
- स्टिलबर्थ यानी कि मरा हुआ बच्चा पैदा होना
- जन्मजात विकृति
- बच्चे को थायरॉइड की समस्या
प्रेगनेंसी के समय महिलाओं मैं थकान और वजन बढ़ना आदि लक्षण सामने आते हैं। लेकिन ये देखने में सामान्य लगते हैं और थायरॉइड की समस्या का पता भी नहीं चलता है। कभी-कभी गर्भावस्ठा में घेंघा होने के बाद ही समझ मे आ पाता है कि थाईरॉइडाईटिस हो गया है। कुछ महिलाओं में बच्चे के जन्म में थाईरॉइडाईटिस की समस्या होती है, जिसे पोस्टपार्टम थाईरॉइडाईटिस कहते हैं।
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गर्भावस्था में हाशिमोटोस थाईरॉइडाईटिस का इलाज कैसे करें?
प्रेगनेंसी में हाशिमोटोस डिजीज होने पर आपको एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और गायनेकोलॉजिस्टसे मिलना चाहिए। जो आपके शरीर में हुए हॉर्मोनल समस्या का पता लगाते हैं। जिसके बाद आपकी थायरॉइड लेवल को नियंत्रित करने के लिए लिवोथायरॉक्सिन दवा दी जाती है। लेकिन डॉक्टर लिवोथायरॉक्सिन का हाई डोज देते हैं, ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका कोई प्रभाव न पड़े। वहीं, गर्भावस्था के दौरान आपको छह से आठ हफ्ते के अंतराल पर अपना थायरॉइड लेवल चेक कराते रहना चाहिए।
क्या हाशिमोटोस डिजीज दवा लेते हुए बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए?
हां, आप हाशिमोटोस डिजीज की दवा का सेवन करते हुए आप बच्चे को स्तनपान करा सकती हैं। इस दौरान आपके दूध के जरिए बच्चे के शरीर में भी लिवोथायरॉक्सिन दवा की मात्रा चली जाएगी। लेकिन ये बच्चे को नुकसान नहीं करेगा।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
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