इस भागती-दौड़ती जिंदगी में चारों ओर चुनौतियां हैं। ऑफिस में टारगेट पूरा करने की चुनौती तो घर में परिवार की देखभाल की चुनौती। ऐसे में कहीं न कहीं और किसी न किसी कारण महिला हों या पुरुष दोनों के ही भावनाओं पर असर होता है। जब लोग भावनात्मक तरीके से आहत होते हैं, तो यह उन्हें भावनात्मक रूप से उदास और थका हुआ महसूस होता है। इन भावनाओं का निर्माण लंबी अवधि में होता है। हालांकि, लोगों को शुरुआती चेतावनी के संकेत नजर नहीं आते। इससे किसी भी व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन, रिश्तों और व्यवहार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
इस आर्टिकल में आप भावनात्मक असंतुलन (Emotional balance) के लक्षण, कारण, जोखिम और बचाव के बारे में जानेंगे।
किन कारणों से हो सकता भावनात्मक असंतुलन?
भावनात्मक असंतुलन खासकर तनाव की वजह से होता है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल है:
- एक महत्वपूर्ण जीवन परिवर्तन से गुजरना जैसे कि तलाक या किसी प्रियजन की मृत्यु होने पर भावनात्मक असंतुलन की समस्या हो सकती है। इन घटनाओं के साथ ही कोई भी अप्रिय घटना भावनात्मक असंतुलन की दस्तक हो सकती है।
- किसी की अत्यधिक देखभाल करने में भावनात्मक असंतुलन की संभावना हो सकती है।
- भावनात्मक असंतुलन फाइनेंशियल स्थिति ठीक न होने के कारण भी हो सकता है।
- बच्चे की परवरिश ठीक से नहीं कर पाना पेरेंट्स में भावनात्मक असंतुलन हो सकते हैं।
- खुद के घर लेने की चिंता करने की वजह से भावनात्मक असंतुलन हो सकता है।
- एक साथ कई काम करना जैसे घर का काम, परिवार की देखभाल और बच्चों को स्कूल भेजना।
- किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होना शारीरिक परेशानी के साथ-साथ भावनात्मक असंतुलन का भी कारण बन सकता है।
- अत्यधिक तनाव वाले माहौल में काम करना या रहना।
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भावनात्मक असंतुलन के लक्षण क्या हैं ?
भावनात्मक असंतुलन से पीड़ित व्यक्ति के मूड और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर ही बुरा प्रभाव पड़ता है। पीड़ित व्यक्ति के शुरुआती लक्षण नोटिस किए जा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति धीरे-धीरे निराशावादी होते जाते हैं।
नकारात्मक सोच की वजह से निम्नलिखित समस्या शुरू हो जाती है:
- क्रोध और चिड़चिड़ापन
- चिंता
- उदासीनता
- डिप्रेशन
- असफलता
- आत्मविश्वास की कमी
- निराश रहना
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भावनात्मक असंतुलन का खतरा क्यों बढ़ सकता है ?
भावनात्मक असंतुलन किसी के भी साथ हो सकता है। अगर पीड़ित लंबे समय तक तनाव में रह रहें हो या यदि उन्होंने हाल ही में अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव का अनुभव किया हो। लेकिन, कुछ लोगों को दूसरों की तुलना में अधिक जोखिम होता है, जिनमें निम्नलिखित अनुभव करने वाले लोग शामिल हैं:
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नौकरी से जुड़ी परेशानी:
तनावपूर्ण माहौल में काम करना जैसे देर-देर तक काम करना, काम पर नियंत्रण की कमी महसूस करना या मनचाही नौकरी न करना।
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आदर्शवादी होना:
जो व्यक्ति अपने जीवन के एक या अधिक क्षेत्रों में अपने काम को परफेक्ट रखना और लगातार प्रयास करते रहना। ऐसे व्यक्ति भावनात्मक असंतुलन महसूस कर सकते हैं।
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अकेलापन:
अकेलापन किसी भी व्यक्ति के भावनाओं पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। रिसर्च के अनुसार सामाजिक रिश्तों को बढ़ावा देने से लोगों के भावनाओं में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।
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खुद का ध्यान न रखना:
जो लोग अपने आपको प्राथमिकता नहीं देते हैं वे भावनात्मक असंतुलन के ज्यादा शिकार हो सकते हैं। इसमें वे लोग शामिल हो सकते हैं जो एक्सरसाइज न करते हों, अच्छी नींद न लेते हों या पौष्टिक आहार का सेवन नहीं करते हों।
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अन्य कारण:
अत्यधिक तनाव में रहना या एल्कोहॉल का सेवन करना आपकी परेशानी बढ़ा सकता है।
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भावनात्मक असंतुलन से बचने के लिए क्या करें?
भावनात्मक असंतुलन से बचने के लिए निम्नलिखित टिप्स फॉलो किये जा सकते हैं। जैसे-
- भावनात्मक असंतुलन की स्थिति होने पर खुद को सबसे पहले रिलैक्स करें। गहरी सांस लें। डीप ब्रीदिंग आपको रिलैक्स होने में मदद करेगा और आप अच्छा महसूस करेंगे।
- भावनात्मक असंतुलन से बचने के लिए अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है। हालांकि अपनी भावनाओं को संतुलित रख पाना आसान नहीं होता है लेकिन, यह इतना मुश्किल भी नहीं होता है। इसके लिए सिर्फ इच्छा शक्ति की जरूरत होनी चाहिए।
- अपने आपको अच्छी तरह से समझें और अपने अंदर की नकारात्मक सोच को दूर करें। पॉसिटिव थिंकिंग से आप अपने लक्ष्य को पाने में भी सफल हो सकते हैं और भावनात्मक असंतुलन की परेशानी से भी बाहर आ सकते हैं।
- भावनात्मक असंतुलित होने पर अपने आपको समझने के साथ-साथ दूसरी लोगों के बारे में भी सोचें। आप सामने वाले व्यक्ति के विचार को भी अपनायें और समझें की सामने वाले व्यक्ति किस संदर्भ में सझाने की कोशिश कर रहें हैं या समझाना चाह रहें हैं। किसी भी बात पर इमोशनल न हों। अपने आपको समय दें और लोगों को भी समझने की कोशिश करें। किसी भी लोगों की भावनाओं को समझें। उनकी सकारात्मक और नकारात्मक पहलु दोनों को समझें।
- खुद से निर्णय लेना सीखें। अपने किसी भी कार्य का डिसीजन (निर्णय) लेने के लिए अपने आपको सकारात्मक और नकारात्मक बातों को ध्यान रखें लेकिन, कहते हैं न पॉसिटिव सोच आपको आपके मंजिल तक पहुंचाने में मददगार होता है।
- घर और बाहर के लोगों से खुलकर बातचीत करें। घर या बाहर दोनों ही जगहों पर लोगों के साथ अच्छे रिलेशन बनायें और अगर किसी के साथ कोई परेशानी है तो उसे दूर करने की पहल करें।
- ऐसे लोगों के संपर्क में ज्यादा रहें जिनसे आपको बात करना या समय बिताना पसंद हो और जिनकी सोच सकारात्मक हो। नकारात्मक प्रवृति वाले लोगों से ज्यादा से ज्यादा दूर रहें। नेगेटिव सोच वाले व्यक्ति आपकी परेशानी कम करने के बजाये बढ़ा सकते हैं। इसलिए ऐसे लोगों से डिस्टेंस मेंटेन करना सीखें। हालांकि अपना स्वभाव उनके सामने ऐसा न बनायें की उन्हें बुरा लगे।
किसी भी परिस्थित में अपने आपको खुश रखने की कोशिश करें। जो करना चाहते हों वो अवश्य करें जैसे डांसिंग, ड्राइविंग या पढ़ना आदि। लोगों से बात करें क्योंकि आजकल के वक्त में सब किसी न किसी कारण तनाव में रहते हैं। ऐसी शायद आप ये महसूस कर सकते हैं की लोगों के पास समस्याएं होने के बावजूद वो खुश हैं और यह सब देख आप भी अच्छा महसूस करेंगे। किसी से भी बात करने के दौरान सकारात्मक सोच रखें, इससे अन्य लोग भी आपसे बात करना पसंद करेंगे। लेकिन, भावनात्मक असंतुलन की समस्या बढ़ने पर डॉक्टर से जरूर मिलें। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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