शिशु के स्वास्थ्य को लेकर हर पैरेंट्स को चिंता सताती है, जब तक वो बड़ा न हो जाए तबतक पैरेंट्स को उनकी देखभाल काफी सतर्क होकर करने की जरूरत होती है। यहां तक कि बच्चे के मल को लेकर भी। बच्चे का मल का रंग किस ओर इशारा करता है यह जानना बेहद जरूरी है। बच्चे का मल कई बात पर निर्भर करता है, जैसे उसकी उम्र कितनी है, क्या वो मां का दूध पीता है या फिर फॉर्मूला मिल्क, शिशु अनाज का सेवन करता है या नहीं। इन तमाम बातों पर बच्चे का मल निर्भर करता है।
जैसे-जैसे बच्चे का विकास होता है, वैसे-वैसे बच्चे के मल का रंग भी बदलता है, खासतौर पर शुरुआत के एक साल तक। शिशु के एक साल तक हर एक दिन उसके मल का रंग बदलते हुए आप देख सकते हैं। यदि आपके बच्चे का मल एक ही रंग का बना रहता है तो इस स्थिति में घबराने की कोई जरूरत नहीं है, इसका मतलब यह हुआ कि आपका शिशु विकास कर रहा है व उसका वजन बढ़ रहा है। लेकिन जब आपका शिशु मल करने के बाद असजह महसूस करे, खुश न रहे तो उस स्थिति में आपको डॉक्टरी सलाह की जरूरत पड़ सकती है।
आपके नवजात बच्चे का मल कैसा होना चाहिए?
शिशु के जन्म के कुछ दिनों के बाद आपके बच्चे का मल मिकोनियम (meconium) हो सकता है। मिकोनियम में बच्चे का मल हरा व काले रंग का होता है, वहीं चिपचिपा होने के साथ टार की तरह दिखता है। बच्चे का मल म्यूकस, एमनीओटिक फ्लूइड (amniotic fluid) के साथ मां के गर्भ में रहने के दौरान उसने जितने भी पोषक तत्व हासिल किए हैं, वो बच्चे के मल में शामिल होते हैं। शिशु के बम से मिकोनियम को निकलना थोड़ा मुश्किल होता है। बच्चे के मल में यदि मिकोनियम पाया जाता है तो यह अच्छे संकेत हैं, इससे पता चलता है कि शिशु की आंते सामान्य रूप से काम कर रही हैं।
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मां का दूध पीने के दौरान कैसा होना चाहिए बच्चे का मल
मां का कोलोस्ट्रम (colostrum) या पहला गाढ़ा पीला दूध लैक्सेटिव के तौर पर काम करता है जो मोकोनियम को शिशु के शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। वहीं जैसे-जैसे मां सामान्य रूप से शिशु को दूध पिलाने लगती है, उसके दो से तीन दिनों में ही बच्चे का मल का रंग बदलने लगता है। उस स्थिति में बच्चे का मल, सिक्के के आकार का हो सकता है। वहीं उसका रंग कम गाढ़ा होने के साथ हरे रंग से बदलकर ब्राउन या गाढ़े मस्टर्ड येल्लो रंग का दिख सकता है। वहीं इसमें से हल्की दुर्गंध भी आने लगती है। कुछ समय बच्चे का मल दानेदार आ सकता है तो कई बार यह दही की तरह भी दिखता है।
जन्म के शुरुआती सप्ताह में संभव है कि जैसे ही आप अपने शिशु को दूध पिलाएं वो तुरंत मल त्याग दे। पहले सप्ताह में आपका शिशु औसतन हर दिन चार बार मल कर सकता है। धीरे-धीरे कर आपके शिशु का मल त्यागना अपनी सामान्य प्रक्रिया में आ जाएगा और वह सामान्य रूप से काम करने लगेगा। इसके कुछ दिनों से बाद आप खुद महसूस करेंगे कि आपका शिशु एक खास निश्चित समय पर मल त्याग करता है।
शुरुआत के कुछ सप्ताह के बाद आपका शिशु कुछ दिन में मल त्याग कर सकता है। यह कोई समस्या नहीं है, क्योंकि जैसे-जैसे शिशु का मल सॉफ्ट होगा वो आसानी से बाहर निकल जाता है। इन स्थिति के बाद बदलेगा आपके शिशु का मल,
- जब आप शिशु को अनाज खिलाएंगी
- जब आपका शिशु अस्वस्थ महसूस करेगा/करेगी
- कई बार मां का दूध पीने के बाद बच्चे का मल का रंग बदलेगा
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क्या फॉर्मूला मिल्क बच्चे का मल प्रभावित करता है
कोशिश करें कि बच्चे को शुरुआती छह महीनों में सिर्फ व सिर्फ मां का दूध ही पिलाएं। वहीं दो साल तक शिशु को मां का दूध पिलाना चाहिए। लेकिन यदि आप बच्चे को फॉर्मूला मिल्क पिलातीं हैं तो आप खुद अनुभव करेंगीं कि जब आप शिशु को अपना दूध पिलातीं थीं तब और अब जब फॉर्मूला मिल्क पिला रही हैं, दोनों स्थिति में बच्चे का मल का रंग बदलेगा। फॉर्मूला मिल्क पिलाने के बाद बच्चे का मल ऐसे बदलेगा, जैसे
- मां के दूध की तुलना में बच्चे का मल ज्यादा गाढ़ा होगा, टूथपेस्ट की तरह गाढ़ा हो सकता है
- येल्लोइश ब्राउन रंग का बच्चे का मल हो सकता है
- वयस्कों के मल से भी ज्यादा बच्चे के मल से तेज दुर्गंध आएगी
यदि आप शिशु को फॉर्मूला मिल्क देतीं हैं तो बच्चे को कब्जियत होने की संभावनाएं काफी ज्यादा रहती है। ऐसे में शिशु को फॉर्मूला मिल्क देने को लेकर डॉक्टरी सलाह जरूर लें।
फॉर्मूला मिल्क देते ही बदलता है बच्चा के मल का रंग
यह सही है कि शिशु को फॉर्मूला मिल्क देते ही उसके मल का रंग बदलता है। बच्चे का मल ज्यादा डार्क होने के साथ पेस्ट की तरह दिखता है। वहीं उससे तेज दुर्गंध भी आती है। यदि आप शिशु को ब्रेस्ट मिल्क की बजाय फॉर्मूला मिल्क देने की सोच रहीं हैं तो जरूरी है कि धीरे-धीरे कर ऐसा परिवर्तन करें, यानि शिशु को मां का दूध पिलाने के साथ फॉर्मूला मिल्क दें। एकाएक फॉर्मूला मिल्क देने से शिशु की तबीयत बिगड़ सकती है। कुछ सप्ताह में यदि आप शिशु को फॉर्मूला मिल्क की आदत डलातीं हैं तो इससे शिशु के डायजेस्टिव सिस्टम में सुधार होता है, ऐसा कर शिशु को कब्ज होने से बचा सकते हैं। वहीं मां के स्तनों में सूजन (Mastitis) होने के साथ दर्द की समस्या नहीं होती है। एक बार आपका शिशु यदि बॉटल से दूध पीने लग जाए तो उसके बाद बच्चे का मल का रंग बदल जाता है।
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अनाज खाने के बाद बच्चे का मल कैसा होगा?
आप जैसे ही शिशु को अनाज खिलाने लगते हैं तब आप खुद यह महसूस करेंगे कि उसके मल का रंग काफी तेजी से बदल रहा है। बच्चा जो खाता है उसके अनुसार ही उसका मल निकलता है। यदि आप अपने शिशु को शुद्ध गाजर देते हैं तो उसके मल का रंग ब्राइट ऑरेंज दिखेगा। यदि आप शिशु को किडनी बींस (राजमा), मटर, किशमिश खिलातीं हैं तो यह सीधे मल से निकल आएगा। जैसे जैसे आपका शिशु बढ़ेगा वैसे-वैसे इन खाद्य पदार्थों का मल के रूप में आने के दौरान उसका रंग बदलेगा, वहीं यह अच्छी तरह से पच सकेगा।
यदि आप बच्चे को तरह-तरह के भोजन खिलाएंगे तो बच्चे का मल पतला, गाढ़ा और बदबूदार होगा।
बच्चे का मल ऐसा दिखने पर न करें नजरअंदाज, लें डॉक्टरी सलाह
डायरिया : आपके शिशु को डायरिया हो सकता है, जब उसका मल ऐसा दिखने लगे, जैसे
- पॉटी बहने लगे
- सामान्य से ज्यादा पॉटी करे, सामान्य की तुलना में ज्यादा मात्रा में मल त्याग करे
- मल त्याग करने के दौरान आवाज आए और छींटे उड़े
कोई महिला शिशु को अपना दूध पिला रही हो तो ऐसे में संभावनाएं है कि शिशु को डायरिया हो सकता है। क्योंकि मां के दूध में बैक्टीरिया पनपने की संभावना होती है जिसके कारण यह बीमारी होती है। लेकिन इसकी संभावनाएं काफी कम रहती है। ऐसा तभी होता है जब मां का दूध निकालकर उसे अच्छे से साफ न किए बर्तन में लंबे समय के लिए स्टोर किया जाता है। उसके बाद शिशु को वही दूध पिलाने से बीमारी की आशंका होती है। शिशु को दूध पिलाने से बच्चे का मल सॉफ्ट व दही की तरह पानी की समान बह सकता है, ऐसे में घबराए नहीं। ऐसा स्तनपान कराने के कारण हो सकता है। वहीं बच्चे के बार-बार मल करने से आपको डाइपर बदलना पड़ सकता है। स्तनपान के कारण शिशु का आंत ढीला पड़ सकता है। तो ऐसे में बच्चे का सामान्य मल और डायरिया में भेद करना काफी मुश्किल हो जाता है।
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फॉर्मूला दूध पीने बाले बच्चों में इंफेक्शन का खतरा
वैसे बच्चे जिन्हें बॉटल से फॉर्मूला मिल्क पिलाया जाता है उनमें इंफेक्शन का खतरा ज्यादा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शिशु को दूध पिलाने वाले बॉटल सहित अन्य उपकरणों को यदि सही से स्टेरेलाइज न किया, हाथों को अच्छे से नहीं धोया तो बच्चे को इंफेक्शन का खतरा होता है।
इन कारणों से शिशु को हो सकता है डायरिया, जैसे
- इंफेक्शन के कारण, गैस्ट्रोएंट्राइटिस (gastroenteritis) व स्टमक फ्लू
- ज्यादा फ्रूट व जूस पिलाने के कारण
- दवा का रिएक्शन होने से
- खाने से एलर्जी व सेंसिटिविटी के कारण
यदि शिशु को सावधानी के साथ व सही से फॉर्मूला मिल्क न दिया तो उसे डायरिया हो सकता है। वहीं अलग-अलग ब्रैंड का फॉर्मूला मिल्क का सेवन करने से भी शिशु की प्रतिक्रियाएं अलग हो सकती हैं। फॉर्मूला मिल्क का ब्रैंड बदलने को लेकर भी डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
यदि आपके शिशु का दांत निकल रहा है तो उस स्थिति में भी बच्चे का मल सामान्य से पतला हो सकता है, इस कारण डायरिया नहीं होता। यदि शिशु को डायरिया हो जाए तो इसका दांतों के निकलने से कोई लेना देना नहीं है। यह इंफेक्शन के कारण हो सकता है।
शिशु के बड़े होने पर डायरिया होने के कारण गंभीर कब्जियत के लक्षण दिखते हैं। जहां स्वस्थ्य रहने पर मल आसानी से निकल जाता है, वहीं हार्ड मल रहने पर आसानी से नहीं निकलता। जब भी आपको लगे कि आपका शिशु असहज, अस्वस्थ, मायूस दिख रहा है तो डॉक्टरी सलाह लें। खासतौर पर शुरुआत के छह महीनों में बच्चे के स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यदि आपका शिशु पानी की तरह मल करता है तो, आप मल ले जाकर या उसकी फोटो खींच डॉक्टर को दिखा सकते हैं, क्योंकि शिशु में डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है।
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कब्ज
कई बच्चे जब मल त्याग करते हैं तो मल गाढ़ा लाल होने के साथ सख्त होता है। लेकिन यह सामान्य है। जाने बच्चे का मल का कौन-सा प्रकार कब्जियत की ओर इशारा करता है
- जब आपका शिशु मल त्यागने में मशक्कत करें
- जब आपके शिशु का मल छोटा व ड्राय हो, वहीं जब मल ज्यादा होने के साथ हार्ड हो
- आपका शिशु चिड़चिड़ा महसूस करें, वहीं मल त्यागने के दौरान रोए
- शिशु का पेट छूने पर सख्त लगे
- बच्चे के मल में खून आए, यह एनस के अंदर छोटे क्रैक होने की ओर इशारा करते हैं। इन्हें एनल फिशर (anal fissures) कहा जाता है। ऐसा हार्ड मल त्यागने के कारण होता है
फॉर्मूला दूध पिलाने की तुलना में मां का दूध पिलाने के दौरान शिशु को कब्जियत की समस्या नहीं होती है। ब्रेस्ट मिल्क में काफी मात्रा में न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, इस कारण बच्चे का मल सॉफ्ट रहता है। फॉर्मूला मिल्क में सामान्य से अधिक पाउडर मिलाया जाए तो उसके कारण कब्जियत की समस्या हो सकती है। हमेशा फॉर्मूला मिल्क बनाने के पूर्व दिए दिशा निर्देशों को सही से पालन करना चाहिए।
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इन कारणों से हो सकती है कब्जियत की समस्या
- बुखार
- डिहाइड्रेशन
- शिशु के पीने की मात्रा में बदलाव
- शिशु की डाइट में बदलाव
- दवा का सेवन करने के कारण
शिशु के मल में खून दिखने पर तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। यदि शिशु अनाज खाने लगा है तो उसे खाने में फ्लूइड इनटेक करने की सलाह दी जाती है, वहीं फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने को कहा जाता है।
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बच्चे का हरा मल
यदि आप शिशु को दूध पिला रही हैं, तो कभी कभार यदि हरे रंग का मल आता है तो घबराने की जरूरत नहीं होती है। हरे मल के आने का मतलब यह हुआ कि आपके शिशु को ज्यादा लो कैलोरी मिल्क मिल रही है। शिशु को दोनों स्तनों से दूध पिलाकर इस समस्या को कम कर सकतीं हैं। यह भी घरेलू उपचार में से एक है। यदि आपका शिशु लगातार हरा मल त्याग कर रहा है तो ऐसा जल्दी-जल्दी दूध पीने के कारण कर सकता है। जब खाली पेट में दूध जाता है तो उस कारण पेट में एयर बबल्स बनते हैं, इसके कारण अपच की समस्या होती है।
इसके लिए शिशु को शांत कराकर व हल्का लिटाकर दूध पिलाएं। इससे शिशु सजह महसूस करेगा व धीरे-धीरे दूध पीने से उसे पोषक तत्व मिलेगा।
यदि आप शिशु को फॉर्मूला मिल्क पिला रही हैं तो उस स्थिति में आपके ब्रैंड के कारण शिशु का मल का रंग हरा हो सकता है। ऐसे में डॉक्टर से सुझाव लेकर दूसरे ब्रैंड का दूध शिशु को पिलाएं।
यदि 24 घंटे या उससे अधिक समय तक शिशु का मल हरा ही आ रहा है तो उस स्थिति में आप डॉक्टरी सलाह लें, ऐसा इन कारणों से हो सकता है,
- फूड सेंसिटिविटी के कारण
- दवा के साइड इफेक्ट के कारण
- शिशु के फिडिंग रूटीन में बदलाव के कारण
- स्टमक बग की वजह से
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बच्चे का पीला मल
बच्चे का पीला मल जॉन्डिस की ओर संकेत करते हैं। जॉन्डिस की पहचान शिशु के स्किन को देखकर और उनकी आंखों के रंग को देखकर जो सफेद से पीली पड़ जाती है, पहचान कर सकते हैं। आप अपने दिमाग में रखें कि नवजात को जॉन्डिस होने से उनका पेशाब पीला नहीं होता, वहीं मल येल्लो, मस्टर्ड व ब्राउन हो सकता है। पीला मल सामान्य नहीं है, जरूरी है कि जल्द से जल्द डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। शिशु के मल को देख आप समझ नहीं पा रहे हैं तो मल का फोटो लेकर डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर को बताएं कि आपके बच्चे का मल पीला आ रहा है, इसमें सफेद थक्के भी हैं। जॉन्डिस यदि दो सप्ताह से अधिक समय के लिए रह जाता है तो उसके कारण लिवर की समस्या भी हो सकती है। इसलिए इसे कतई नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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बच्चे के मल में खून आए
यदि आपका शिशु कब्जियत की बीमारी से ग्रसित है तो उसके मल में खून आ सकता है। ऐसा एनल फिशर के कारण हो सकता है, जो शरीर में खराब बावेल मुवमेंट के कारण होता है। कई बार इंटेस्टाइन में इंफेक्शन और एलर्जी के कारण भी ऐसा हो सकता है। शरीर में इस प्रकार के लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। कई बार शिशु का मल काला दिख सकता है। यानि कि यह पच गया है। कई बार ऐसा दूध पीने के दौरान मां के स्तन को क्रैक करने से उसके अंदर का खून भी शिशु पी जा जाता है। इस कारण उसका मल काला आता है। वहीं काला मल शिशु के इंटेस्टाइनल ट्रैक में समस्या होने के कारण हो सकता है।
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सही जानकारी है जरूरी, ताकि समय पर ले सकें डॉक्टरी सलाह
बच्चे का मल का रंग देखकर कई बार लोग खुद तरह-तरह की सलाह देने लगते हैं लेकिन यह गलत है। जरूरी है कि शिशु के मल को देख जब आप असजह महसूस करें तो डॉक्टरी सलाह लें। इतना ही नहीं यदि आपके शिशु को मल त्यागने में दिक्कत हो रही है तो डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टरों से दिखाने में देरी करने के कारण समस्या और गंभीर हो सकती है। शिशु को कब तक मां का दूध पिलाना है, कब फॉर्मूला मिल्क देना है, कब से अनाज देना है, आदि मामलों पर डॉक्टर से परामर्श ले सकते हैं। खुद से यह निर्णय लेना आपके शिशु की सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। बता दें कि शिशु के जन्म के बाद से एक साल तक हर दिन शिशु के मल का रंग बदलता है, तो ऐसे में घबराना नहीं है, बल्कि सही जानकारी रखनी चाहिए। ताकि जरूरत पड़ने पर डॉक्टरी सलाह ले लें।
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