बच्चों और शिशुओं के साथ कई बार कुछ ऐसी परेशानियां होती हैं, जिन्हें वे बोलकर नहीं बता पाते। हाई ब्लड प्रेशर एक ऐसी समस्या है, जिसका पता लगा पाना मुश्किल होता है। साथ ही कारण का पता लगाए बिना इसका इलाज भी संभव नहीं है। ऐसे में कई बार यह जानलेवा साबित हो सकता है। हालांकि बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के मामले दुर्लभ ही सामने आते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको इस बारे में बताएंगे।
इस बारे में हमने मुंबई के खार घर स्थित मदरहूड हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक्स एंड निओनेटोलॉजिस्ट डॉक्टर सुरेश बिरजदार से खास बातचीत की। उन्होंने इस बारे में विस्तार से समझाया।
और पढ़ें: मल्टिपल गर्भावस्था के लिए टिप्स जिससे मां-शिशु दोनों रह सकते हैं स्वस्थ
शिशुओं और बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का कारण
डॉक्टर बिरजदार ने कहा, ‘बच्चों में ब्लड प्रेशर की समस्या का प्रमुख कारण कोटेशन ऑफ एओर्टा होता है। यह एक जन्मजात दोष है, जिसमें एऑर्टा सामान्य के मुकाबले ज्यादा संकुचित होती है। यदि एऑर्टा काफी संकुचित है और इसका इलाज ना किया जाए तो ये बच्चे के लिए गंभीर समस्या खड़ी कर सकती है।’
शिशु के जन्म के बाद इसका पता चलने पर तुरंत हार्ट की सर्जरी की जरूरत होती है। प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भ में शिशु के विकास के साथ एऑर्टा सही तरीके से विकसित नहीं होती है तब कोटेशन ऑफ एओर्टा होता है। बच्चों के व्यस्क होने तक इसके ज्यादातर लक्षण सामने नहीं आते हैं। दुर्लभ मामलों में कोटेशन ऑफ एओर्टा से बच्चों का हार्ट फेलियर हो सकता है।
इसके अतिरिक्त, बच्चों की किडनी में सूजन (नैफ्रोटिक सिंड्रोम) होने पर भी उन्हें हाई ब्लड प्रेशर का खतरा रहता है। डॉक्टर बिरजदार ने कहा, ’10-12 वर्ष की उम्र के बच्चों को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। इसके पीछे लाइफस्टाइल फैक्टर जिम्मेदार होते हैं।’
और पढ़ें: ऐसे जानें आपका नवजात शिशु स्वस्थ्य है या नहीं? जरूरी टिप्स
शिशुओं में हाई ब्लड प्रेशर का पता कैसे चलता है?
शिशुओं में हाई ब्लड प्रेशर के दुर्लभ मामले सामने आते हैं। हालांकि, छोटे बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। शिशुओं में हाई ब्लड प्रेशर का पता इलेक्ट्रॉनिक मशीन से ही लगाया जा सकता है क्योंकि, ब्लड प्रेशर की जांच करने के लिए उनके लिए विशेष पट्टी आती है। पांच वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का पता आसानी से लगाया जा सकता है।
और पढ़ें: बेबी पूप कलर से जानें कि शिशु का स्वास्थ्य कैसा है
शिशुओं और बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण
- शिशुओं और बच्चों का चिड़चिड़ापन होना।
- बच्चों और शिशुओं का विकास ना होना।
- सिर दर्द होना।
- बच्चों का उदास रहना।
- ब्रेन में इंटरनल ब्लीडिंग होना।
और पढ़ें : पेरेंटिंग का तरीका बच्चे पर क्या प्रभाव डालता है? जानें अपने पेरेंटिंग स्टाइल के बारे में
शिशुओं और बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का इलाज
डॉक्टर बिरजदार ने कहा, ‘शिशुओं और बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर का पता चलने पर इसका इलाज संभव है। यदि बच्चे की किडनी में सूजन है तो संबंधित डॉक्टर से इसका इलाज कराकर हाई ब्लड प्रेशर को ठीक किया जा सकता है। दूसरी तरफ बच्चे की एऑर्टा सिकुड़ी हुई है तो उसका इलाज ह्रदय रोग विशेषज्ञ करेगा। इसके बाद ही हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को रोका जा सकता है।’
घरेलू उपाय के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘शिशुओं और बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर एक गंभीर समस्या है। इसका इलाज घर पर नहीं किया जा सकता। हाई ब्लड प्रेशर में बच्चों के दिमाग में ब्लीडिंग होने पर उन्हें स्ट्रोक हो सकता है। इससे एक हाथ या पैर चलाने या मुंह से बोलने में दिक्कत हो सकती है। ब्रेन में इंटरनल ब्लीडिंग का पता क्लीनिकल एग्जामिनेशन से ही लगाया जा सकता है।’
अगर कई दिनों से आपको बच्चों में ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर के पास न जाकर आप खतरे को बढ़ा रहे हैं। अगर बच्चा लगातार रो रहा है या उदास दिखाई दे रहा है तो बिना देर करें डॉक्टर से सलाह लें।
[mc4wp_form id=’183492″]
बच्चों में ब्लड प्रेशर होना आम नहीं है लेकिन नवजात शिशुओं को पीलिया होना काफी आम है। हर 10 में से छह नवजात शिशु पीलिया से पीड़ित होते हैं। आमतौर पर जॉन्डिस (Jaundice) शिशु के जन्म के 24 घंटे बाद नजर आता है। यह तीसरे या चौथे दिन में और बढ़ सकता है। यह आमतौर पर एक सप्ताह तक रहता है।”
हालांकि, जन्म के एक से दो सप्ताह में ही पीलिया खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है, लेकिन यदि ऐसा न हो तो समय पर इसका उपचार कराना जरूरी हो जाता है। अब जानते हैं बच्चों में पीलिया होने के कारण
और पढ़ेंः नवजात शिशु को बुखार होने पर करें ये 6 काम और ऐसा बिलकुल न करें
नवजात शिशुओं को पीलिया क्यों होता है?
नवजात शिशु को पीलिया बिलीरुबिन (Bilirubin) की मात्रा बढ़ने की वजह से होता है। जन्म के समय नवजात शिशुओं के अंग बिलीरुबिन को कम करने के लिए पूरी तरह से विकसित नहीं हुए होते हैं। इस वजह से न्यू बॉर्न बेबी को पीलिया हो जाता है। 20 में से केवल एक ही शिशु को इसके इलाज की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में आमतौर पर बच्चे की त्वचा और आंखों में पीलापन नजर आने लगता है।
हालांकि, ऐसा देखा जाता है कि, ज्यादातर मामलों में, नवजात शिशु को पीलिया अपने आप ही कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि, जन्म के बाद बच्चे के लिवर का विकास होने लगता है और जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है तो उसका शरीर बिलीरुबिन से लड़ने में भी सक्षम होने लगता है। ज्यादातर मामलों में, पीलिया दो से तीन सप्ताह के अंदर ठीक हो जाता है। लेकिन, अगर इसकी समस्या 3 सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। क्योंकि, अगर बच्चे के शरीर में बिलीरुबिन का लेवल बढ़ने लगेगा तो इसके कारण बच्चे में बहरापन, ब्रेन स्ट्रोक या अन्य शारीरिक समस्याओं का खतरा भी बढ़ सकता है।
बच्चों में ब्लड प्रेशर के मामले भले ही कम आते हों, लेकिन वे निमोनिया से जल्दी ग्रसित हो जाते हैं।
और पढ़ें: सिजेरियन के बाद क्या हो सकती है नॉर्मल डिलिवरी?
बच्चों में निमोनिया
निमोनिया का सबसे आम कारण स्ट्रेप्टोकॉकल बैक्टीरिया है। यह बैक्टीरिया एक प्रकार के निमोनिया का कारण बनता है जिसे टिपिकल निमोनिया कहा जाता है। रेस्पिरेटरी सिंसीटियल वायरस (Respiratory syncytial virus) इनफ्लूएंजा (Influenza) पैराइनफ्लूएंजा (Parainfluenza) अडिनोवायरस (Adenovirus) से वायरल निमोनिया भी होता है।
बैक्टीरिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैल जाते हैं। ऐसा छींकने, खांसने पर म्यूकस या सलाइवा के सीधे संपर्क में आने से होता है। यह बैक्टीरिया संक्रमण बच्चे के इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है और फैफड़ों में फैल जाता है। आंकडों पर गौर करें, तो सालाना तौर पर, लगभग 450 लाख लोगों में निमोनिया के लक्षण पाए जाते हैं। जिनमें 40 से 60 फीसदी छोटे बच्चे शामिल होते हैं। इसके कारण लगभग 4 लाख लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर द्वारा निमोनिया को “मौत बांटने वाले पुरुषों का मुखिया” तक कहा गया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में निमोनिया के उपचार के लिए एंटीबायोटिक और टीकों का सफल निर्माण किया गया, जिससे निमोनिया के कारण होने वाले मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया गया। हालांकि, इसके बावजूद,अभी भी विकासशील देशों में, बुजुर्गों और वयस्कों के साथ-साथ छोटे बच्चों में निमोनिया के नए मामले हर साल देखे जाते हैं।
हम उम्मीद करते हैं कि बच्चों में ब्लड प्रेशर पर आधारित यह आर्टिकल आपको उपयोगी लगा होगा। बच्चों में ब्लड प्रेशर के मामले वैसे तो कम होते हैं लेकिन, अगर ऐसा कुछ नजर आए तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। यहां हमने आपको बच्चों में होने वाली कॉमन बीमारी निमोनिया और पीलिया के बारे में भी बताया है। किसी प्रकार की अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
[embed-health-tool-vaccination-tool]